13 फरवरी 2026, दिन शुक्रवार को विजया एकादशी का पावन पर्व मनाया जाएगा। यह एकादशी फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में आती है । विजया एकादशी कब है? पवित्र व्रत की पौराणिक कथा, पूजा विधि, और शुभ-अशुभ मुहूर्त। इस व्रत से पाएं हर कार्य में विजय।
विजया एकादशी इसका नाम ही इसकी महिमा बताता है – विजया, यानी विजय दिलाने वाली माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से हर कार्य में सफलता मिलती है और व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने का विशेष विधान है।
कैप्शन:"विजया एकादशी 2026 के पावन अवसर पर चतुर्भुज भगवान विष्णु—हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए, दिव्य आभा से आलोकित।"
यह व्रत भगवान राम की लंका विजय से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने इसी व्रत को करके समुद्र पार करने और रावण को हराने की शक्ति प्राप्त की थी। आइए, इस विजया एकादशी के महत्व को विस्तार से जानते हैं।
विजया एकादशी 2026: एक अवलोकन
* तिथि: 13 फरवरी 2026, शुक्रवार
* एकादशी तिथि का आरंभ: 12 फरवरी, शुक्रवार, दोपहर 12:22 बजे
* एकादशी तिथि का समापन: 13 फरवरी, शनिवार, सुबह 02:25 बजे
* पारण का समय: 14 फरवरी, शनिवार, सुबह 08:12 बजे के बाद
मेरे ब्लॉग में विस्तार से पढ़ें नीचे दिए गए विषयों को
*जया एकादशी 2026
* विजया एकादशी व्रत कथा
* विस्तृत विजया एकादशी कथा
* राम की लंका विजय
* विजया एकादशी का महत्व
* एकादशी व्रत
* भगवान विष्णु
* श्री राम की पौराणिक कथा
धर्मराज युधिष्ठिर को विजया एकादशी का महत्व बताते भगवान श्री कृष्ण।
विजया एकादशी की पौराणिक कथा: श्री राम की लंका विजय का आधार
धर्मराज युधिष्ठिर ने एक बार भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, "हे वासुदेव! संसार के कल्याण के लिए, आप मुझे फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का महत्व और उसकी कथा विस्तार से बताएं। इस व्रत का नाम क्या है और इसका पालन किस प्रकार किया जाता है? मैं जानना चाहता हूं कि यह एकादशी क्यों इतनी विशेष है और इसके प्रभाव से मनुष्य को क्या फल प्राप्त होता है।"
भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराए और बोले, "हे धर्मराज! आपने बहुत ही उत्तम प्रश्न पूछा है। यह एकादशी 'विजया एकादशी' कहलाती है। इसका नाम ही इसकी महिमा को दर्शाता है, क्योंकि इसके प्रभाव से मनुष्य को जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। यह व्रत अत्यंत पवित्र और फलदायक है। इस व्रत की महिमा आज तक मैंने किसी को नहीं बताई है, किंतु आपके प्रश्न ने मुझे यह रहस्य बताने के लिए प्रेरित किया है। सुनो, मैं तुम्हें त्रेता युग की एक महान कथा सुनाता हूँ, जो इस एकादशी के महत्व को स्पष्ट करेगी।"
त्रेता युग का आरंभ और श्री राम का वनवास
"यह कथा त्रेता युग की है, जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में अवतार लिया था। राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूप में चार भाई थे। राम का जन्म धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। जब राम युवा हुए, तो उनका विवाह जनक पुत्री सीता से हुआ। सब कुछ सुख-शांति से चल रहा था, तभी एक दिन राजा दशरथ ने राम को युवराज बनाने का निर्णय लिया। समस्त अयोध्या इस बात से अत्यंत प्रसन्न थी, किंतु मंथरा नामक एक दासी के भड़काने पर कैकेयी ने अपने दो वरदान मांगे, जिनके कारण राम को चौदह वर्ष का वनवास और भरत को राज-सिंहासन प्राप्त हुआ।
पिता के वचन का पालन करते हुए, श्री राम ने सहर्ष वनवास स्वीकार किया। उनके साथ उनकी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण भी वन में गए। वन में उन्होंने अनेक ऋषियों और मुनियों का उद्धार किया। वे पंचवटी नामक स्थान पर एक कुटिया बनाकर रहने लगे। वहाँ का वातावरण अत्यंत शांत और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण था।
रावण द्वारा सीता का हरण
पंचवटी में रहते हुए, एक दिन रावण की बहन शूर्पणखा ने राम और लक्ष्मण को देखा और उन पर मोहित हो गई। जब लक्ष्मण ने उसके प्रस्ताव को ठुकराया, तो वह क्रोधित होकर सीता को मारने दौड़ी। लक्ष्मण ने उसका नाक-कान काट दिया। अपमानित शूर्पणखा ने लंका जाकर अपने भाई रावण को पूरी घटना बताई। उसने सीता के सौंदर्य का ऐसा वर्णन किया कि रावण के मन में सीता को पाने की लालसा जागृत हो गई।
रावण ने अपने मामा मारीच को बुलाया और सोने के हिरण का रूप धारण करने को कहा। मारीच ने ऐसा ही किया। जब सीता ने उस हिरण को देखा, तो वे उसे पाने के लिए व्याकुल हो गईं। राम हिरण को पकड़ने के लिए उसके पीछे चले गए। राम को दूर जाते देख, रावण ने साधु का वेष धारण कर सीता को कुटिया से बाहर निकाला और उनका हरण कर लिया।
यह तस्वीर घायल जटायु को दर्शाती है, जिसे भगवान श्रीराम अपनी गोद में लिए हुए हैं और लक्ष्मण उनके बगल में खड़े हैं। यह दृश्य करुणा, सम्मान और गहरे दुख को दर्शाता है, जिसमें एक पक्षी अपने अंतिम क्षणों में भगवान की उपस्थिति में है, जो एक जंगल और समुद्र तट के शांत वातावरण के बीच है।
सीता की खोज और जटायु का बलिदान
राम जब हिरण को मारकर वापस लौटे, तो कुटिया में सीता को न पाकर अत्यंत व्याकुल हो गए। लक्ष्मण भी उनके साथ मिलकर सीता को खोजने लगे। वन में भटकते हुए वे मरणासन्न पक्षीराज जटायु के पास पहुंचे। जटायु ने उन्हें बताया कि रावण सीता का हरण करके दक्षिण दिशा की ओर ले गया है और उसने रावण से युद्ध भी किया, किंतु रावण ने उसके पंख काट दिए। इतना कहकर जटायु ने राम के समक्ष ही अपने प्राण त्याग दिए।
जटायु का अंतिम संस्कार करने के बाद, राम और लक्ष्मण आगे बढ़े। उनकी भेंट हनुमान और सुग्रीव से हुई। हनुमान ने उन्हें किष्किंधा पर्वत पर सुग्रीव से मिलाया। वहाँ, अग्नि को साक्षी मानकर राम और सुग्रीव ने मित्रता की। राम ने सुग्रीव को बाली के अत्याचारों से मुक्त कराया और सुग्रीव ने उन्हें सीता को खोजने का वचन दिया।
हनुमान का लंका जाना
सुग्रीव ने अपनी विशाल वानर सेना को सीता की खोज में चारों दिशाओं में भेजा। हनुमान को दक्षिण दिशा में भेजा गया। हनुमान जी ने अपनी अतुल्य शक्ति और भक्ति के बल पर समुद्र को पार कर लंका में प्रवेश किया। उन्होंने अशोक वाटिका में सीता को खोज निकाला और उन्हें राम की अंगूठी दी। सीता माता को विश्वास दिलाने के बाद, उन्होंने लंका दहन किया और वापस राम के पास लौट आए।
हनुमान ने राम को सीता के सकुशल होने का समाचार दिया। यह सुनकर राम अत्यंत प्रसन्न हुए। अब राम ने पूरी वानर सेना के साथ लंका की ओर प्रस्थान किया।
समुद्र तट पर राम की चिंता
भगवान राम अपनी विशाल वानर सेना, जिसमें हनुमान, सुग्रीव, अंगद, नल, नील जैसे वीर योद्धा थे, के साथ समुद्र तट पर पहुँचे। सामने विशाल, अगाध और गर्जना करता हुआ समुद्र था। उसमें मगरमच्छ, शार्क और अनेक भयानक समुद्री जीव निवास करते थे। समुद्र को देखकर राम और उनकी पूरी सेना चिंता में डूब गई।
राम ने सोचा कि इस विशाल सागर को पार कैसे किया जाए? उनकी सेना इतनी बड़ी थी कि बिना किसी साधन के इसे पार करना असंभव था। राम ने तीन दिनों तक समुद्र से प्रार्थना की, किंतु समुद्र ने कोई उत्तर नहीं दिया। तब राम क्रोधित हो गए और उन्होंने अपना धनुष उठाया, 'हे लक्ष्मण, यदि समुद्र को मेरी प्रार्थना स्वीकार नहीं, तो मैं अपने बाणों से इसे सुखा दूँगा!'
यह देखकर समुद्र देव प्रकट हुए और उन्होंने राम से क्षमा मांगी। समुद्र देव ने कहा, "हे प्रभु! आप तो स्वयं सृष्टि के रचयिता हैं। आप नल और नील नामक दो वानरों की सहायता से सेतु का निर्माण करा सकते हैं। उनके पास एक वरदान है, जिसके कारण उनके हाथ से डाले गए पत्थर पानी में नहीं डूबेंगे।"
ऋषि वकदालभ्य का आश्रम
लेकिन इससे पहले कि राम समुद्र पर सेतु निर्माण का कार्य आरंभ करते, लक्ष्मण ने उन्हें एक और उपाय सुझाया। लक्ष्मण ने राम से कहा, "हे अग्रज! आप सर्वज्ञ हैं, किंतु इस समय आप मनुष्य रूप में हैं। यहां से लगभग आधा योजन दूर पर 'कुमारी द्वीप' नामक स्थान है, जहां वकदालभ्य नाम के एक अत्यंत तेजस्वी ऋषि रहते हैं। उन्होंने अनेक युगों को देखा है और वे तीनों लोकों के ज्ञाता हैं। हमें उनके पास जाकर इस कार्य में सफलता पाने का उपाय पूछना चाहिए।"
कैप्शन: ऋषि वकदालभ्य से मार्गदर्शन लेते प्रभु श्री राम।
लक्ष्मण के इस सुझाव को सुनकर, राम ने ऋषि वकदालभ्य के आश्रम की ओर प्रस्थान किया। जब वे आश्रम पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि ऋषि अपनी कुटिया में ध्यानमग्न बैठे हैं। राम ने श्रद्धापूर्वक उन्हें प्रणाम किया और उनके शांत होने का इंतजार किया। जब ऋषि ने अपनी आंखें खोलीं, तो उन्होंने राम को उनके तेजस्वी स्वरूप में पहचान लिया।
ऋषि वकदालभ्य ने कहा, "हे राम! आप तो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं। मुझे ज्ञात है कि आप माता सीता को वापस लाने के लिए लंका की ओर जा रहे हैं। आप यहाँ किस उद्देश्य से आए हैं?"
राम ने विनम्रतापूर्वक कहा, "हे ऋषि! मैं अपनी विशाल सेना के साथ इस विशाल समुद्र तट पर आया हूँ। मुझे लंका जाकर दुष्ट रावण का वध करना है और सीता को मुक्त कराना है। किंतु यह विशाल समुद्र हमारी राह में बाधा है। कृपया मुझे ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं और मेरी सेना इस समुद्र को पार कर सकें और युद्ध में विजय प्राप्त कर सकें।"
ऋषि ने कहा, "हे राम! आप यदि इस विजया एकादशी के व्रत को अपनी सेना के सेनापतियों और प्रियजनों के साथ करेंगे, तो आपकी विजय निश्चित है। इस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को पार करने में सफल होंगे और रावण को पराजित कर सीता को वापस ला पाएंगे।"
श्री राम द्वारा व्रत का पालन
भगवान राम ने ऋषि वकदालभ्य की बात को स्वीकार किया। उन्होंने तुरंत ही अपने सेनापति सुग्रीव और भाई लक्ष्मण को बुलाकर इस व्रत का पालन करने का निर्देश दिया। सभी वानर योद्धाओं ने राम के साथ पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ विजया एकादशी का व्रत किया। उन्होंने ऋषि द्वारा बताई गई विधि के अनुसार कलश स्थापित किया, भगवान विष्णु की पूजा की और रातभर जागकर भजन-कीर्तन किया।
इस व्रत के प्रभाव से राम को अद्भुत शक्ति प्राप्त हुई। उनका मन शांत और संकल्प और भी मजबूत हो गया। द्वादशी के दिन उन्होंने पारण किया और फिर समुद्र को पार करने का निर्णय लिया।
सेतु निर्माण और लंका विजय
विजया एकादशी व्रत के प्रभाव से ही राम ने सेतु निर्माण का कार्य आरंभ किया। नल और नील की देखरेख में, वानरों ने विशाल पत्थरों पर 'राम' नाम लिखकर समुद्र में डालना शुरू किया। 'राम' नाम की महिमा और विजया एकादशी के व्रत के प्रभाव से वे पत्थर पानी पर तैरने लगे। देखते ही देखते एक विशाल सेतु का निर्माण हो गया, जो भारत से लंका तक फैला हुआ था।
यह चित्र श्री राम और लक्ष्मण को वानर सेना के साथ रामसेतु पर लंका की ओर बढ़ते हुए दर्शाता है। यह दृश्य उनके दृढ़ संकल्प और लंका विजय के लिए उनकी तैयारी को उजागर करता है। समुद्र में गोता लगाती हुई बड़ी मछलियां और पुल पर मौजूद वानर सेना इस महाकाव्य यात्रा की भव्यता को दर्शाती है।
राम अपनी पूरी सेना के साथ उस सेतु को पार कर लंका पहुंचे। वहां रावण के साथ उनका भयंकर युद्ध हुआ। विजया एकादशी के व्रत के प्रभाव से राम ने युद्ध में अद्भुत पराक्रम दिखाया और अंततः रावण का वध कर दिया। उन्होंने विभीषण को लंका का राजा बनाया और सीता को सम्मानपूर्वक वापस लेकर अयोध्या लौटे।
विजया एकादशी व्रत का विधान
ऋषि वकदालभ्य ने राम की बात सुनकर कहा, "हे राम! आपके इस कार्य में सफलता और विजय प्राप्त करने का एक ही अचूक उपाय है - विजया एकादशी का व्रत। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली यह एकादशी सभी व्रतों में श्रेष्ठ है। जो व्यक्ति इस व्रत को विधि-विधान से करता है, उसे सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और उसे अपने हर कार्य में विजय प्राप्त होती है।"
ऋषि ने आगे कहा, "हे राम! आप अपनी पूरी सेना के साथ यह व्रत करें। इसके लिए यह विधि है:
* दशमी के दिन: दशमी तिथि को एक मिट्टी का घड़ा (कलश) लें। यह घड़ा या तो मिट्टी का हो या फिर सोने, चांदी, तांबे अथवा पीतल का।
* कलश की स्थापना: इस घड़े को शुद्ध जल से भरें। उसके मुख पर पांच आम के पत्ते रखें।
* वेदी का निर्माण: वेदी बनाकर उस पर सात प्रकार के अनाज रखें और उसके ऊपर जौ रखें।
* मूर्ति स्थापना: उस घड़े के ऊपर भगवान श्रीहरि विष्णु की सोने की मूर्ति स्थापित करें।
* एकादशी का दिन: एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर, शुद्ध वस्त्र धारण करें।
* पूजा और नैवेद्य: कलश के समक्ष बैठकर धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, फल और फूलों से भगवान विष्णु की पूजा करें।
* जागरण और मंत्र जाप: दिन भर व्रत का पालन करें और रात्रि में जागकर भगवान श्रीहरि के नामों का जाप करें। 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का निरंतर जाप करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
* द्वादशी का दिन: द्वादशी तिथि को, विधि-विधान से पूजा करने के बाद, उस कलश को उसके अनाज और भगवान की मूर्ति सहित किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर दें।
* पारण: दान के बाद, ब्राह्मणों को भोजन कराएं और स्वयं भोजन करके व्रत का पारण करें।
कथा का उपसंहार
श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा, "हे धर्मराज! इस प्रकार विजया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही श्री राम को लंका विजय प्राप्त हुई थी। इसलिए इस व्रत का नाम 'विजया' पड़ा। जो कोई भी मनुष्य इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है, उसे अपने जीवन के हर कार्य में सफलता और विजय मिलती है।"
भगवान ने आगे कहा, "इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने या सुनने मात्र से ही मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। यह व्रत हर प्रकार के भय, शत्रु और बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। इसलिए, हर व्यक्ति को इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।"
इस प्रकार, भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को विजया एकादशी का महत्व और उसकी पौराणिक कथा सुनाई। यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति से किया गया कोई भी कार्य असंभव नहीं होता और भगवान की कृपा से हर बाधा को पार किया जा सकता है।
( कैप्शन: विजया एकादशी के व्रत से प्राप्त विजय के बाद, अयोध्या में प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक।)
पूजा सामग्री की सूची:
* भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र
* तांबे या पीतल का कलश
* दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल (पंचामृत)
* वस्त्र और आभूषण
* अरवा चावल, कुमकुम, तिल
* तुलसीदल (तुलसी के पत्ते)
* फूल, धूप, दीपक
* फल, मिठाई, नारियल, सूखे मेवे
* जनेऊ, अष्टगंध
* गेहूं के आटे की पंजीरी (प्रसाद के लिए)
* पान के पत्ते और गुड़
पूजा विधि:
* कलश स्थापना: दशमी की रात में या एकादशी के दिन, पूजा स्थान पर मिट्टी का एक कलश स्थापित करें। उसे जल से भरें, पाँच आम के पत्ते रखें और उसके ऊपर जौ और भगवान विष्णु की मूर्ति रखें।
* पूजा: संकल्प के बाद, भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। वस्त्र और आभूषण पहनाएं। धूप, दीप, और फूल अर्पित करें। तुलसी दल चढ़ाएं, क्योंकि यह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
* प्रसाद: गेहूं के आटे की पंजीरी और अन्य फल-मिठाई का भोग लगाएं।
* जागरण: रात में जागरण करें। भजन-कीर्तन, भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ और कथा का श्रवण करें।
* पारण: द्वादशी के दिन, विधि-विधान से पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं भोजन करके व्रत का पारण करें।
विजया एकादशी 2026: पंचांग के अनुसार शुभ और अशुभ मुहूर्त
यह जानकारी आपको 13 फरवरी 2026 के लिए पंचांग के आधार पर दी गई है।
शुभ मुहूर्त (पूजा और शुभ कार्यों के लिए):
* अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:11 बजे से दोपहर 12:57 बजे तक
* विजय मुहूर्त: दोपहर 02:29 बजे से 03:15 बजे तक
* गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:07 बजे से 06:31 बजे तक
* निशिता मुहूर्त: रात 12:09 बजे से 12:59 बजे तक
* ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 05:09 बजे से 05:59 बजे तक
अशुभ मुहूर्त (इन समय में पूजा से बचें):
* राहुकाल: सुबह 09:42 बजे से 11:08 बजे तक
* गुलिक काल: सुबह 06:50 बजे से 08:16 बजे तक
* यमगण्ड काल: दोपहर 02:00 बजे से 03:26 बजे तक
* दुर्मुहूर्त काल: सुबह 06:50 बजे से 08:21 बजे तक
डिस्क्लेमर (Disclaimer)
इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक ग्रंथों और पंचांग पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल सूचना प्रदान करना है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले आप किसी योग्य पंडित या पुरोहित से सलाह अवश्य लें।