Papmochani Ekadashi पापमोचनी एकादशी 2026: 15 मार्च रविवार को मनाएं यह पवित्र पर्व। जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत के नियम और पढ़ें मेधावी ऋषि और मंजूघोषा की अद्भुत पौराणिक कथा। यह व्रत आपके सभी पापों का नाश कर देगा।
"भगवान विष्णु की दिव्य मुद्रा में कमल पर विराजमान अनुपम छवि, जो पापों के नाश और मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक है — पापमोचनी एकादशी 2026 की पावन वेला पर आराधना का श्रेष्ठ माध्यम।"
क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा दिन भी आता है, जब सिर्फ व्रत और पूजन से आपके सभी पाप धूल सकते हैं? यह कोई साधारण दिन नहीं, बल्कि एक ऐसा पवित्र पर्व है, जो पापों से मुक्ति और मोक्ष का मार्ग दिखाता है। हम बात कर रहे हैं पापमोचनी एकादशी की, जो इस साल 15 मार्च 2026, दिन रविवार को मनाई जाएगी। यह एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही, भक्तों के सभी पापों को हर लेती है और जीवन में सुख-समृद्धि लाती है।
यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शुद्धि का अवसर देता है, बल्कि मानसिक शांति और आत्मिक बल भी प्रदान करता है। आज हम इस ब्लॉग में जानेंगे कि 2026 में पापमोचनी एकादशी का क्या महत्व है, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है, व्रत की सही विधि क्या है और सबसे महत्वपूर्ण, उस अद्भुत पौराणिक कथा के बारे में, जिसने एक अप्सरा को श्राप से मुक्ति दिलाई।
पापमोचनी एकादशी 2026: शुभ मुहूर्त और पारण का समय
पंचांग कैलेंडर की तस्वीर
पापमोचनी एकादशी का व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में किया जाता है। इस वर्ष, यह पर्व एक विशेष रविवार को पड़ रहा है, जिससे इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है। आइए, जानते हैं व्रत और पारण के शुभ मुहूर्त:
* एकादशी तिथि का प्रारंभ: 14 मार्च 2026, शनिवार को सुबह 08 बजकर 10 मिनट पर।
* एकादशी तिथि का समापन: 15 मार्च 2026, रविवार को सुबह 09 बजकर 16 मिनट पर।
* उदया तिथि के अनुसार: 15 मार्च को एकादशी का व्रत रखा जाएगा।
* व्रत का पारण: 16 मार्च 2026, सोमवार को सुबह अमृत मुहूर्त 05:53 बजे से 07:24 बजे तक।
एकादशी वत में चारों पहर पूजा करने का विधान है। चारों पहर का शुभ मूहूर्त पंचांग और चौघड़िया पंचांग के अनुसार नीचे दिया गया है।
पंचांग के अनुसार
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:30 बजे से लेकर 12:18 बजे तक, विजय मुहूर्त दोपहर 01:54 बजे से लेकर 02:42 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त संध्या 05:52 बजे से लेकर 06:16 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:30 बजे से लेकर 12:18 बजे तक और ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:18 बजे से लेकर 05:16 बजे तक रहेगा।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार
चर मुहूर्त सुबह 07:24 बजे से लेकर 08:54 बजे तक, लाभ मुहूर्त 08:54 बजे से लेकर 10:24 बजे तक, अमृत मुहूर्त 10:24 बजे से लेकर 11:54 बजे तक, शुभ मुहूर्त दोपहर 01:24 बजे से लेकर 02:54 बजे तक, शुभ मुहूर्त संध्या 05:54 बजे से लेकर 07:24 बजे तक, अमृत मुहूर्त संध्या 07:24 बजे से लेकर रात्रि 08:54 बजे तक, चर मुहूर्त रात्रि 08:54 बजे से लेकर 10:24 बजे तक, लाभ मुहूर्त रात 01:24 बजे से लेकर 02:54 बजे तक, शुभ मुहूर्त सुबह 04:30 बजे से लेकर 05:53 बजे तक और अमृत मुहूर्त सुबह 05:53 बजे चलेगा 07:24 बजे तक रहेगा।
ऊपर दिए गए शुभ मुहूर्त के अनुसार अपने समय अनुसार आप चारों पहर की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
अशुभ मुहूर्त जैसे रोग, काल और उद्वेग में पूजा करने से बचना चाहिए।
क्या है पापमोचनी एकादशी का महत्व?
सनातन धर्म में एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। यह भगवान विष्णु को समर्पित एक पवित्र तिथि है। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की आराधना करने से मनुष्य को उसके जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। पापमोचनी एकादशी का उल्लेख पद्म पुराण और भविष्योत्तर पुराण में भी मिलता है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इस व्रत की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि यह व्रत व्यक्ति को ब्रह्महत्या, स्वर्ण चोरी, सुरा-पान और गुरु पत्नी गमन जैसे घोर पापों से भी मुक्ति दिलाता है।
पापमोचनी एकादशी की पूजा विधि
घर का पूजा घर, जहां भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख और शांति बनी रहती है।
सही पूजा पद्धति का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि गलत विधि से की गई पूजा निष्फल हो सकती है। वैज्ञानिक प्रयोग की तरह, धार्मिक अनुष्ठान में भी सही नियमों का पालन करना जरूरी है।
व्रत के नियम:
* दशमी का दिन (14 मार्च): व्रत के एक दिन पहले, दशमी को, एक बार ही सात्विक और हल्का भोजन करें। सूर्यास्त से पहले भोजन समाप्त कर लें।
* एकादशी का दिन (15 मार्च):
* सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
* हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें।
* पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
* भगवान विष्णु को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से स्नान कराएं।
* उन्हें पीले वस्त्र, चंदन, तुलसी दल, फूल, फल और मिठाई अर्पित करें।
* "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।
* व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
* दिन भर फलाहार करते हुए जल पी सकते हैं।
* रात्रि जागरण करें और भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन और सहस्त्रनाम का पाठ करें। यह रात भर जागकर भगवान की स्तुति करना बहुत शुभ माना जाता है।
* द्वादशी का दिन (16 मार्च):
* सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर से भगवान विष्णु की पूजा करें।
* ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपनी क्षमतानुसार दान-दक्षिणा दें।
* इसके बाद ही अपना व्रत खोलें।
पूजा सामग्रियों की सूची:
* कैप्शन 1: भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित एक भव्य और सुंदर पूजा थाली, जो भक्ति और आस्था का प्रतीक है।
यह सुनिश्चित करें कि पूजा से पहले सभी आवश्यक सामग्री आपके पास मौजूद हों।
* भगवान विष्णु के लिए: तांबे का पात्र, लोटा, जल कलश, दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल (पंचामृत)।
* वस्त्र और श्रृंगार: पीले वस्त्र, तुलसी दल, चावल, कुमकुम, दीपक, अष्टगंध, जनेऊ, फूल, माला।
* भोग और प्रसाद: गेहूं के आटे की पंजीरी, मौसमी फल, मिठाई, सूखे मेवे, नारियल, पान के पत्ते, सुपारी, इलायची, लौंग।
* अन्य सामग्री: धूप, हवन सामग्री, दक्षिणा के लिए पैसे।
पौराणिक कथा: मेधावी ऋषि और मंजु घोषा की कथा
* कैप्शन 3: जंगल के शांत वातावरण में, जहाँ ऋषि की एकाग्रता और अप्सरा का मनमोहक नृत्य एक कहानी कहते हैं
यह कथा हमें पद्म पुराण में मिलती है, जिसे स्वयं भगवान श्रीहरि ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था।
धर्मराज युधिष्ठिर ने एक बार श्रीहरि से पूछा, "हे भगवान, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का नाम क्या है? इसका महत्व और कथा क्या है? कृपा करके मुझे विस्तार से बताएं।"
भगवान श्रीहरि बोले, "हे राजन! चैत्र मास की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहते हैं। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और यह सभी व्रतों में उत्तम है। इस कथा को सुनने मात्र से ही मनुष्य के पाप नाश हो जाते हैं।"
इसके बाद श्रीहरि ने ब्रह्माजी और देवर्षि नारद के बीच हुए संवाद की कथा सुनाई।
एक समय की बात है, देवर्षि नारद ने अपने पिता ब्रह्माजी से इसी एकादशी के महत्व के बारे में पूछा। ब्रह्माजी ने उन्हें इस व्रत की महिमा और कथा का वर्णन करते हुए कहा, "हे पुत्र! यह कथा प्राचीन समय में चित्ररथ नामक एक रमणिक वन की है। यह वन इतना सुंदर था कि यहाँ स्वर्ग के देवता, गंधर्व, किन्नर और अप्सराएं स्वच्छंद विहार करने आया करते थे।"
इसी वन में च्यवन ऋषि के पुत्र, मेधावी नामक महर्षि तपस्या कर रहे थे। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और उनका तप इतना गहरा था कि पूरा संसार उनके तेज से प्रकाशित हो रहा था।
उसी समय, कामदेव अपने कुछ शिष्यों के साथ वहां से गुजर रहे थे। जब उन्होंने मेधावी ऋषि को गहन तपस्या में लीन देखा, तो उन्हें ईर्ष्या हुई। कामदेव ने सोचा कि यदि इस तपस्वी का तप भंग न किया गया, तो यह मेरे अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है। कामदेव ने अपनी सबसे सुंदर और चतुर अप्सरा मंजुघोषा को बुलाया और उसे मेधावी ऋषि का तप भंग करने का आदेश दिया।
मंजुघोषा ने पहले तो कामदेव से यह कार्य करने से मना किया, क्योंकि वह जानती थी कि तपस्वी ऋषियों का क्रोध कितना भयानक होता है। लेकिन कामदेव के दबाव और उनके द्वारा दिए गए वरदानों से मोहित होकर मंजुघोषा ऋषि के पास जाने को तैयार हो गई।
मंजुघोषा ने अपनी कामुकता और मधुर वाणी का उपयोग करते हुए, मेधावी ऋषि के आश्रम के पास एक सुंदर गीत गाना शुरू किया। उसकी मधुर वाणी और मनमोहक सौंदर्य ने ऋषि के ध्यान को भंग कर दिया। जब ऋषि ने अपनी आंखें खोलीं, तो उनके सामने एक अत्यंत सुंदर स्त्री खड़ी थी, जो अपनी कला, भाव और नृत्य से उन्हें मोह रही थी।
मेधावी ऋषि, जो अभी युवा थे, मंजुघोषा के सौंदर्य और उसकी कला से काम मोहित हो गए। वे अपनी तपस्या को भूलकर मंजुघोषा के साथ रति क्रीड़ा में लीन हो गए। उन्हें समय का बिल्कुल भी भान नहीं रहा। उन्हें लगा जैसे कुछ ही क्षण बीते हैं, लेकिन असल में, रति क्रीड़ा करते हुए 57 वर्ष बीत चुके थे।
एक दिन, जब मंजुघोषा ने ऋषि से स्वर्गलोक जाने की आज्ञा मांगी, तो मेधावी ऋषि को अचानक आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने देखा कि उनकी जटाएं और शरीर पर घास-फूस उग आए थे। उन्हें भान हुआ कि उन्होंने अपनी तपस्या का इतना लंबा समय एक अप्सरा के साथ व्यर्थ कर दिया है।
यह जानकर ऋषि क्रोध से भर उठे। उन्होंने महसूस किया कि उन्हें इस पतन की ओर ले जाने वाली एकमात्र मंजुघोषा ही है। क्रोधित होकर, ऋषि मेधावी ने मंजुघोषा को पिशाचिनी बनने का श्राप दे दिया।
श्राप सुनकर मंजुघोषा डर से थर-थर कांपने लगी। उसने ऋषि से बहुत अनुनय-विनय की और पूछा कि इस श्राप से मुक्ति पाने का क्या उपाय है। ऋषि मेधावी का क्रोध अब शांत हो चुका था। उन्होंने मंजुघोषा की दयनीय दशा देखकर उसे पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने को कहा।
मंजुघोषा को मुक्ति का उपाय बताकर, ऋषि मेधावी पश्चाताप में अपने पिता च्यवन ऋषि के आश्रम में गए। जब उन्होंने अपने पिता को अपनी कहानी सुनाई और बताया कि कैसे उन्होंने एक अप्सरा को श्राप दे दिया, तो च्यवन ऋषि ने उनकी घोर निंदा की। उन्होंने कहा कि एक तपस्वी को क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए।
च्यवन ऋषि ने भी अपने पुत्र मेधावी को अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए पापमोचनी एकादशी का व्रत करने का आदेश दिया। पिता की आज्ञा मानकर मेधावी ऋषि ने विधिपूर्वक इस व्रत को किया और अपने सभी पापों से मुक्ति प्राप्त की।
उधर, मंजुघोषा ने भी ऋषि द्वारा बताए गए विधि-विधान से पापमोचनी एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से वह पुनः प्रेत योनि से मुक्त होकर अपने वास्तविक रूप में लौट आई और स्वर्गलोक चली गई।
कथा समाप्त करते हुए ब्रह्माजी ने नारद से कहा कि जो कोई भी मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, उसके सारे पापों से मुक्ति निश्चित है। इतना ही नहीं, जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसे भी सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और वह परमधाम को प्राप्त करता है।
यह कथा हमें सिखाती है कि चाहे अनजाने में ही सही, पाप करने पर उसका प्रायश्चित करना आवश्यक है। पापमोचनी एकादशी का व्रत उसी प्रायश्चित का एक सरल और प्रभावी माध्यम है।
क्या है निष्कर्ष
पापमोचनी एकादशी का यह पवित्र पर्व हम सभी के लिए एक सुनहरा अवसर है। इस दिन व्रत रखकर, भगवान विष्णु की आराधना करके और कथा का श्रवण करके हम न केवल अपने पापों से मुक्ति पा सकते हैं, बल्कि जीवन में एक नई शुरुआत भी कर सकते हैं। यह व्रत हमें आत्म-शुद्धि, संयम और भगवान के प्रति अटूट विश्वास की ओर ले जाता है। तो, आइए, 15 मार्च 2026 को इस पावन पर्व को पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ मनाएं।
डिस्क्लेमर:
यह लेख पूरी तरह से सनातन धर्म पर आधारित है और शुभ मुहूर्त की जानकारी पंचांग से ली गई है। पौराणिक कथा की जानकारी धर्म शास्त्रों, विद्वान ब्राह्मणों और इंटरनेट के सहयोग से तैयार की गई है। इस लेख का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म के अनुयायियों को उनके पर्व और त्योहारों के संबंध में सही जानकारी उपलब्ध कराना है। यह कथा सिर्फ सूचना प्रद है।