आमलकी एकादशी 2026 (27 फरवरी, दिन शुक्रवार ) के बारे में जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, पौराणिक कथा, और आंवले की पूजा का महत्व। मोक्ष और पुण्य प्राप्ति के लिए यह व्रत करें। आमलकी एकादशी आंवले की महिमा और भगवान विष्णु की कृपा पाने का भरपूर अवसर प्रदान करता है।">
कैप्शन:"भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष आंवले के वृक्ष की पूजा करते श्रद्धालु – आमलकी एकादशी 2026 के पावन अवसर पर प्रकृति, भक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम।"
आमलकी एकादशी, जिसे आंवला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, सनातन धर्म में एक विशेष स्थान रखती है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाने वाला यह पर्व भगवान श्रीहरि विष्णु और पवित्र आंवले के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सच्चे मन से व्रत और पूजा करने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। आंवला, जिसे आयुर्वेद में अमृत फल कहा जाता है, इस दिन भगवान विष्णु के साथ पूजा जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस पेड़ में स्वयं भगवान का वास होता है।
2026 में आमलकी एकादशी का पर्व 27 फरवरी, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस ब्लॉग में हम आमलकी एकादशी के महत्व, व्रत विधि, पौराणिक कथाओं, और इसके धार्मिक व आध्यात्मिक लाभों को विस्तार से जानेंगे। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि कैसे इस व्रत को विधि-विधान से पूजन करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। हमारे ब्लॉग में नीचे दिए गए विषयों को विस्तार से पढ़ें।
आमलकी एकादशी 2026
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आंवले का धार्मिक महत्व
आमलकी एकादशी 2026: तिथि और शुभ मुहूर्त
आमलकी एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, जो आमतौर पर फरवरी या मार्च में पड़ती है। वर्ष 2026 में यह पर्व 27 फरवरी, शुक्रवार को मनाया जाएगा। नीचे दिए गए शुभ मुहूर्त इस व्रत को और भी प्रभावशाली बनाएंगे:
कैप्शन: "आमलकी एकादशी 2026 के शुभ मुहूर्त को जानें और व्रत को विधि-विधान से करें।"
एकादशी तिथि की शुरुआत: 26 फरवरी 2026, दिन शुक्रवार को रात 12:33 बजे से।
एकादशी तिथि की समाप्त: 27 फरवरी 2026, दिन शुक्रवार को रात 10:24 बजे तक रहेगा।
व्रत पारणा का समय: 28 फरवरी 2026, सुबह 04:30 बजे से 10:31 बजे तक
अब जानें एकादशी के दिन कैसा रहेगा
एकादशी के दिन सूर्य कुंभ राशि में और चंद्रमा मिथुन राशि में इसके बाद कर्क राशि में गोचर करेगा। नक्षत्र आर्द्रा इसके बाद पुनर्वास योग आयुष्मान इसके बाद सौभाग्य रहेगा।
चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त पंचांग और चौघड़िया पंचांग के अनुसार इस प्रकार है
पंचांग के अनुसार
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:35 बजे से लेकर 12:30 बजे तक, विजय मुहूर्त दोपहर के 01:55 बजे से लेकर 02:41 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 05:45 बजे से लेकर 06:10 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:33 बजे से लेकर 12:22 उ तक और ब्रह्म मुहूर्त 04:30 बजे से लेकर 05:19 बजे तक रहेगा।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार
चर मुहूर्त सुबह 06:09 बजे से लेकर 07:26 बजे तक, लाभ मुहूर्त सुबह 07:36 बजे से लेकर 09:30 बजे तक, अमृत मुहूर्त 09:03 बजे से लेकर 10:31 बजे तक, शुभ मुहूर्त 11:58 बजे से लेकर दोपहर 01:25 बजे तक, संध्या 04:20 बजे से लेकर 05:40 बजे तक, शुभ मुहूर्त रात 11:58 बजे से लेकर 01:30 बजे तक, अमृत मुहूर्त 01:30 बजे से लेकर 03:30 बजे तक और चर मुहूर्त 03:30 बजे से लेकर सुबह 04:35 बजे तक रहेगा।
इस समय के दौरान भक्तों को पूजा, ध्यान और व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। यह समय भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
आमलकी एकादशी का धार्मिक महत्व
आमलकी एकादशी का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत विशेष है। शास्त्रों के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना की, तब उन्होंने आंवले को पेड़ के रूप में प्रतिष्ठित किया। इस कारण आंवले के पेड़ में स्वयं भगवान का वास माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
पद्म पुराण में वर्णित है कि आमलकी एकादशी का व्रत करने से एक हजार गौदान के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत पापों का नाश करता है, आत्मा को शुद्ध करता है और मोक्ष के द्वार खोलता है।
पौराणिक कथा: राजा चित्रसेन और आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति
प्राचीन काल में वैदिशा नगरी में चित्रसेन नामक एक पराक्रमी और धर्मनिष्ठ राजा का शासन था। वह न केवल एक कुशल शासक थे, बल्कि भगवान विष्णु के परम भक्त भी थे। उनके राज्य में धर्म और सत्य का बोलबाला था, और एकादशी व्रत का विशेष महत्व था। चित्रसेन स्वयं प्रत्येक एकादशी का व्रत बड़े ही श्रद्धा और विधि-विधान से करते थे। विशेष रूप से आमलकी एकादशी उनके लिए अत्यंत प्रिय थी, क्योंकि वे मानते थे कि इस व्रत से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
एक बार की बात है, जब चित्रसेन अपने सामान्य शिकार अभियान पर जंगल में गए। वह अपने सैनिकों और कुछ विश्वस्त साथियों के साथ जंगल के गहन क्षेत्रों में भटक रहे थे। उस दिन आमलकी एकादशी थी, और राजा ने प्रातःकाल स्नान कर, भगवान विष्णु की पूजा की थी। उन्होंने आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भगवान का ध्यान किया और व्रत का संकल्प लिया। शिकार के दौरान, वह अपने दल से अलग हो गए और जंगल के एक घने हिस्से में अकेले पहुंच गए।
अचानक, जंगल के उस हिस्से में छिपे कुछ डाकुओं ने राजा को चारों ओर से घेर लिया। ये डाकू क्रूर और निर्दयी थे, जिनका उद्देश्य राजा को लूटना और उनकी जान लेना था। डाकुओं ने अपने प्राण धातक हथियारों मसलन तलवार, भाले, बरछी, चाकू और तीर-कमान—से राजा पर आक्रमण शुरू कर दिया।
राजा चित्रसेन ने अपनी तलवार म्यान से निकाली और डाकुओं का डटकर मुकाबला किया। दूसरी ओर डाकुओं की संख्या बीस से अधिक थी, और वह धीरे-धीरे घायल होने लगे। प्रत्येक बार जब कोई डाकू अपने हथियार से राजा पर प्रहार करता, कुछ चमत्कारी शक्ति के कारण वह हथियार फूलों की माला में बदल जाता। यह देखकर डाकू भयभीत होने लगे, लेकिन उनकी संख्या इतनी अधिक थी कि राजा थकान और चोटों के कारण अंततः बेहोश होकर गिर पड़े।
* "राजा चित्रसेन, अपने राजसी घोड़े पर सवार होकर, डाकुओं के एक गिरोह के बीच फंस गए हैं। यह चित्र उनकी बहादुरी और युद्ध कौशल को दर्शाता है।"
उसी वक्त, एक अप्रत्याशित घटना घटी। राजा के शरीर से एक तेजस्वी, दैवीय शक्ति उत्पन्न हुई। यह शक्ति एक देवी के रूप में थी, जिसके हाथों में गदा, कमल, चक्र और शंख थी—यह स्वयं भगवान विष्णु की वैष्णवी शक्ति थी। इस शक्ति ने डाकुओं पर तीव्र और प्रचंड प्रहार किया, और कुछ ही क्षणों में सभी डाकुओं का मार डाला। इसके बाद, वह दैवीय शक्ति पुनः राजा के शरीर में समाहित हो गई और अदृश्य हो गई।
बेहोश पड़े राजा को जब होश आया, तो उन्होंने देखा कि चारों ओर डाकू मृत पड़े हैं। मृत पड़े डाकुओं को देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह चमत्कार कैसे हुआ। उन्होंने सोचा, "मैं तो बेहोशी के हालात में था, फिर इन डाकुओं को किस देवीय शक्ति ने मारा?" तभी आकाशवाणी हुई: "हे राजन! यह तुम्हारे आमलकी एकादशी व्रत की शक्ति थी। तुम्हारी भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने अपनी वैष्णवी शक्ति को तुम्हारी रक्षा के लिए भेजा। इस शक्ति ने इन दुष्टों का नाश किया और पुनः तुममें समाहित हो गई।"
यह सुनकर राजा चित्रसेन की आंखें आनंद आश्रुओं से भर गईं। उनकी भगवान विष्णु और आमलकी एकादशी के प्रति श्रद्धा और भी गहरी हो गई। वह तुरंत अपने राज्य लौटे और उन्होंने इस चमत्कार की कथा अपनी प्रजा को सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे आमलकी एकादशी का व्रत न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि भक्तों की रक्षा भी करता है। इस घटना के बाद, वैदीशा में आमलकी एकादशी का महत्व और भी बढ़ गया। प्रजा ने इस व्रत को और अधिक श्रद्धा के साथ अपनाया।
कैप्शन: "आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने राजा चित्रसेन की रक्षा की—एक चमत्कारी रक्षा"डाकुओं के बीच फंसे राजा की रक्षा के लिए साक्षात मां लक्ष्मी स्वयं प्रकट हुई हैं।
कथा का विस्तार:
इस कथा में कई पौराणिक तत्व छिपे हैं। शास्त्रों के अनुसार, आंवला भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों का प्रिय है। ऐसा माना जाता है कि आंवले के पेड़ में तुलसी और लक्ष्मी का वास होता है। राजा चित्रसेन की कथा यह दर्शाती है कि सच्ची भक्ति और नियमित व्रत से भगवान की कृपा प्राप्त होती है। यह कथा यह भी सिखाती है कि भक्ति में वह शक्ति है जो असंभव को संभव बना सकती है।
कथा का विस्तृत वर्णन:
राजा चित्रसेन की कहानी केवल एक चमत्कार की कहानी नहीं है, बल्कि यह भक्ति, विश्वास और धर्म के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। उनके जीवन में एकादशी व्रत का महत्व सर्वोपरि था। वह प्रत्येक एकादशी को पूर्ण विधि-विधान से मनाते थे। आमलकी एकादशी के दिन, वह प्रातःकाल उठकर स्नान करते, स्वच्छ वस्त्र धारण करते, और भगवान विष्णु की पूजा करते। इसके बाद, वह आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते और दिनभर उपवास रखते। उनकी यह निष्ठा ही उनकी रक्षा का कारण बनी।
इस कथा में एक और महत्वपूर्ण तत्व है—आंवले का पवित्र स्थान। शास्त्रों में कहा गया है कि आंवला केवल एक औषधीय फल नहीं है, बल्कि यह भगवान विष्णु का प्रिय फल है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु ने आंवले को विशेष स्थान दिया था। इसलिए, आमलकी एकादशी के दिन आंवले की पूजा करने से भक्तों को विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
राजा चित्रसेन की कथा में यह भी दर्शाया गया है कि भगवान विष्णु की शक्ति सर्वत्र व्याप्त है। उनकी वैष्णवी शक्ति, जो राजा के शरीर से प्रकट हुई, यह दर्शाती है कि सच्ची भक्ति भक्त के भीतर ही निवास करती है। यह कथा हमें सिखाती है कि नियमित व्रत और भक्ति से हम अपने भीतर की दैवीय शक्ति को जागृत कर सकते हैं।
कैप्शन: "आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास—आमलकी एकादशी की महिमा।""पवित्र आंवला वृक्ष के नीचे, प्रकृति और आस्था के बीच, भारतीय संस्कृति की परंपराओं को निभाता एक दंपति। यह दृश्य समर्पण और शांति का प्रतीक है।
व्रत के नियम और तैयारी।
पूजा विधि: भगवान विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा।
पारण का महत्व और समय।
दान और पुण्य कार्य।
आमलकी एकादशी के लाभ
आध्यात्मिक लाभ: पाप नाश और मोक्ष प्राप्ति।
स्वास्थ्य लाभ: आंवले का आयुर्वेदिक महत्व।
सामाजिक लाभ: दान और जरूरतमंदों की सहायता।
कैप्शन:"घरेलू आंगन में मिट्टी के नाद में रखे औषधीय गुणों से भरपूर आंवले – स्वास्थ्य और परंपरा का सुंदर संगम।"
डिस्क्लेमर
इस ब्लॉग में प्रदान की गई जानकारी, जिसमें आमलकी एकादशी 2026 की तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, पौराणिक कथा, और धार्मिक महत्व शामिल हैं, शास्त्रों, पुराणों, और विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है। इसका उद्देश्य पाठकों को आमलकी एकादशी के धार्मिक, आध्यात्मिक, और सांस्कृतिक पहलुओं के बारे में जागरूक करना है। हमारा लक्ष्य केवल सूचना और प्रेरणा प्रदान करना है, न कि किसी धार्मिक मान्यता को थोपना।
व्रत और पूजा विधि का पालन करने से पहले, कृपया अपने स्वास्थ्य और व्यक्तिगत परिस्थितियों को ध्यान में रखें। विशेष रूप से, गर्भवती महिलाएं, वृद्ध, या स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त व्यक्ति अपने चिकित्सक या धार्मिक गुरु से परामर्श लें। इस ब्लॉग में दी गई तिथियां और मुहूर्त पंचांग पर आधारित हैं, जो क्षेत्रीय भिन्नताओं के अनुसार बदल सकते हैं। अतः, स्थानीय पंचांग या ज्योतिषी से सटीक समय की पुष्टि करें।
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