जया एकादशी 2026: 29 जनवरी, दिन गुरुवार को मनाया जाएगा जया एकादशी का व्रत। जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, पौराणिक कथा, भगवान विष्णु कौन है, पापों से मुक्ति, इस व्रत करने से लाभ, व्रत के दौरान क्या करें और क्या न करें।
जया एकादशी, माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाने वाला एक पवित्र व्रत है, जो भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का विशेष अवसर प्रदान करता है। यह व्रत 29 जनवरी 2026 को गुरुवार के दिन पड़ रहा है।
सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, और जया एकादशी को तो और भी खास माना जाता है क्योंकि यह पितृदोष, ब्रह्म हत्या, गौ हत्या जैसे गंभीर पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। साथ ही, यह व्रत पिशाच, भूत और प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने में भी सहायक है।
पद्म पुराण में इस व्रत की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह ब्लॉग आपको जया एकादशी 2026 की संपूर्ण पूजा विधि, शुभ-अशुभ मुहूर्त, पौराणिक कथा, और इस व्रत के आध्यात्मिक लाभों के बारे में विस्तृत जानकारी देगा।
कैप्शन: भगवान विष्णु की कृपा से सजे जया एकादशी का पवित्र उत्सव
जया एकादशी 2026: तिथि और शुभ मुहूर्त
जया एकादशी 29 जनवरी 2026 को गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। यह माघ मास, शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है।
ज्योतिषीय स्थिति:
चंद्रमा: वृषभ राशि के बाद मिथुन राशि
सूर्य: मकर राशि में
नक्षत्र: रोहिणी
करण: बिष्ट
योग: इन्द्र
ऋतु: शिशिर
सूर्य की दिशा: उत्तरायण
विक्रम संवत: 2082
शुभ मुहूर्त:
काशी पंचांग के अनुसार, पूजा के लिए निम्नलिखित शुभ मुहूर्त हैं:
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:36 बजे से दोपहर 12:21 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 01:49 बजे से 02:34 बजे तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 05:29 बजे से 05:55 बजे तक
संध्या मुहूर्त: शाम 05:31 बजे से 06:49 बजे तक
निशिता मुहूर्त: रात 11:33 बजे से 12:24 बजे तक
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:42 बजे से 05:34 बजे तक
प्रातः मुहूर्त: सुबह 05:08 बजे से 06:29 बजे तक
चौघड़िया शुभ मुहूर्त (दिन):
शुभ मुहूर्त: सुबह 06:28 बजे से 07:49 बजे तक
अमृत मुहूर्त: शाम 01:22 बजे से 02:45 बजे तक
लाभ मुहूर्त: दोपहर 11:58 बजे से 01:22 बजे तक
चर मुहूर्त: दोपहर 10:35 बजे से 11:58 बजे तक
चौघड़िया शुभ मुहूर्त (रात):
लाभ मुहूर्त: रात 11:58 बजे से 01:35 बजे तक
शुभ मुहूर्त: रात 03:12 बजे से 04:49 बजे तक
अमृत मुहूर्त: रात 05:31 बजे से 07:08 बजे तक
चर मुहूर्त: रात 07:08 बजे से 08:45 बजे तक
अशुभ मुहूर्त (वर्जित समय):
राहुकाल: दोपहर 01:22 बजे से 02:45 बजे तक
यमगण्ड काल: सुबह 06:26 बजे से 07:49 बजे तक
गुलिक काल: सुबह 09:12 बजे से 10:35 बजे तक
शुभ मुहूर्त और अशुभ बहुत की स्थिति आपको बता दी गई है। आप अपनी सुविधा अनुसार शुभ मुहूर्त देखकर भगवान श्रीहरि विष्णु की चारों पहर का पूजा करें और सुबह सूर्योदय के बाद पारण कर लें। इन शुभ मुहूर्तों में पूजा-अर्चना करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
कैप्शन:"भगवान विष्णु के शंख और चक्र की पावन उपस्थिति में तिथि, नक्षत्र और शुभ मुहूर्त से सुसज्जित पारंपरिक पंचांग चार्ट।"
जया एकादशी व्रत की विधि
जया एकादशी का व्रत भगवान श्रीकृष्ण (विष्णु के अवतार) की पूजा के लिए समर्पित है। इस व्रत को विधि-विधान से करने से भक्तों को असीम पुण्य प्राप्त होता है। निम्नलिखित है व्रत की संपूर्ण विधि:
व्रत की तैयारी (दशमी तिथि):
एकादशी से एक दिन पहले, यानी दशमी तिथि को, केवल एक बार शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करें।
तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा) से बचें।
मन को शांत रखें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
एकादशी के दिन (व्रत):
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
व्रत का संकल्प लें:
"हे भगवान विष्णु, मैं जया एकादशी का व्रत आपके चरणों में समर्पित करता/करती हूं। कृपया मेरे पापों का नाश करें और मुझे मोक्ष प्रदान करें।"
भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
पूजा सामग्री के साथ भगवान का पूजन करें (सामग्री की सूची नीचे दी गई है)।
दीपक जलाएं, धूप-ध्यान करें, और तुलसी पत्र अर्पित करें।
भगवान को मौसमी फल, पंचामृत, और मिठाई का भोग लगाएं।
विष्णु सहस्रनाम, श्रीमद्भगवद्गीता, या श्रीकृष्ण मंत्रों का जाप करें।
दिनभर उपवास रखें। यदि संभव हो तो निर्जला व्रत करें, अन्यथा फलाहार लें।
रात में जागरण करें और भगवान का भजन-कीर्तन करें।
द्वादशी तिथि (पारण):
सुबह स्नान के बाद भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें।
भगवान को भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में इसे भक्तों में वितरित करें।
ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।
अंत में स्वयं भोजन करके व्रत का पारण करें।
बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लें।
भक्ति और श्रद्धा से भरपूर यह क्षण, जब एक भक्त भगवान श्रीकृष्ण को दीपक, तुलसी पत्र और फूल अर्पित कर रहा है। यह दृश्य पूजा स्थल की दिव्यता और शांति को दर्शाता है।
पूजा सामग्री की सूची
जया एकादशी की पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्रियों की आवश्यकता होगी:
तांबे या पीतल का लोटा: भगवान के स्नान के लिए
जल का कलश: पवित्र जल के लिए
दूध, दही, घी, शहद, शक्कर: पंचामृत के लिए
वस्त्र और आभूषण: भगवान को अर्पित करने के लिए
चावल, कुमकुम, हल्दी: तिलक के लिए
दीपक, धूपबत्ती, कपूर: पूजा के लिए
जनेऊ, तिल, फूल, तुलसी पत्र: अर्पण के लिए
अष्टगंध: चंदन और अन्य सुगंधित सामग्री
प्रसाद: गेहूं की पंजीरी, मिठाई, नारियल, सूखे मेवे, गुड़
पान के पत्ते: भगवान को अर्पित करने के लिए
गंगा जल: पूजा में छिड़काव के लिए
दक्षिणा: ब्राह्मणों को देने के लिए रुपये
इन सामग्रियों को एकत्रित करके पूजा को विधि-विधान से संपन्न करें।
पवित्रता और भक्ति से सजी यह पूजा की थाली, जिसमें तुलसी, फूल, पंचामृत, मिठाई और दीपक शामिल हैं। पृष्ठभूमि में भगवान विष्णु का मंदिर, जो इस दृश्य को और भी दिव्य बना रहा है।
जया एकादशी की पौराणिक कथा
जया एकादशी की कथा भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। यह कथा भक्तों के लिए प्रेरणादायक और मार्मिक है, जो इस व्रत के महत्व को और गहराई से समझाती है। आइए, इस कथा को विस्तार से जानें:
धर्मराज युधिष्ठिर का प्रश्न
महाभारत युद्ध के दौरान, भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के साथ समय बिता रहे थे। एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से विनम्रतापूर्वक पूछा, "हे माधव, आपने हमें माघ मास के कृष्ण पक्ष की षट्तिला एकादशी की महिमा बताई थी। अब कृपया माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के बारे में विस्तार से बताएं। इस व्रत का क्या महत्व है? इसे करने की विधि क्या है? और इससे कौन-कौन से फल प्राप्त होते हैं?"
युधिष्ठिर ने आगे कहा, "हे भगवान, आप ही इस सृष्टि के रचयिता, पालक और संहारक हैं। आप स्वेदज, अंडज, उद्भिज, और जरायुज सभी प्रकार के प्राणियों के उत्पत्ति, पालन और नाश के कारक हैं। कृपया हमें जया एकादशी के पूजन का समय, देवताओं की पूजा का विधान, और इसके प्रभाव बताएं।"
श्रीकृष्ण का उत्तर
श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा, "हे युधिष्ठिर, तुम्हारा प्रश्न अत्यंत उत्तम है। जया एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को ब्रह्म हत्या, गौ हत्या, और अन्य महापापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत पिशाच, भूत, और प्रेत योनि से भी छुटकारा दिलाता है। मैं तुम्हें पद्म पुराण में वर्णित इसकी एक मार्मिक कथा सुनाता हूँ।"
कथा: इंद्र का श्राप और प्रेत योनि
प्राचीन काल में स्वर्गलोक में देवराज इंद्र का शासन था। एक दिन इंद्र अपनी अप्सराओं और गंधर्वों के साथ नंदन वन में विहार करने गए। वहां अप्सराएं नृत्य कर रही थीं और गंधर्व गीत गा रहे थे। इस समारोह में गंधर्व पुष्पदंत, उनकी पुत्री पुष्पवती, गंधर्व चित्रसेन, उनकी पत्नी मालिनी, और उनके पुत्र माल्यवान और पुष्पवान भी उपस्थित थे।
पुष्पवती, जो अपनी सुंदरता और कला के लिए विख्यात थी, माल्यवान को देखकर उन पर मोहित हो गई। उसने अपने नृत्य और हाव-भाव से माल्यवान को अपने प्रेम में बांध लिया। दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो गए और उनके बीच प्रेम पनपने लगा।
इंद्र का क्रोध और श्राप
पुष्पवती का मन माल्यवान में इतना रम गया कि वह इंद्र को प्रसन्न करने के लिए किए जा रहे अपने नृत्य-गान में ध्यान नहीं दे पाई। उसका प्रदर्शन बिखर गया, और इंद्र को यह बात तुरंत समझ आ गई। क्रोधित होकर इंद्र ने कहा, "अरे मूर्खों! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है। तुम्हारा यह व्यवहार मेरे लिए अपमानजनक है। मैं तुम दोनों को श्राप देता हूँ कि तुम पृथ्वी पर जाकर प्रेत योनि धारण करो और अपने कर्मों का फल भोगो।"
स्वर्गलोक में इंद्र का भव्य दरबार, जहाँ देवताओं के समक्ष गंधर्वों का मनमोहक नृत्य चल रहा है। यह दृश्य स्वर्ग की अनुपम सुंदरता और दिव्यता को दर्शाता है।
इंद्र के इस श्राप को सुनकर पुष्पवती और माल्यवान अत्यंत दुखी हो गए। उनकी सारी सुख-सुविधाएं छिन गईं, और वे हिमालय के ठंडे और निर्जन पर्वत पर प्रेत योनि में भटकने लगे। वहां उन्हें न तो भोजन का स्वाद मिलता था, न ही स्पर्श का सुख, और न ही नींद की शांति। ठंड इतनी प्रबल थी कि उनके दांत कांपते रहते थे, और उनका शरीर कांपता रहता था।
प्रेत योनि का दुख
एक दिन माल्यवान ने पुष्पवती से कहा, "हमने पिछले जन्म में ऐसा कौन-सा पाप किया कि हमें यह दुखदायी प्रेत योनि मिली? इस योनि का दुख नर्क से भी बदतर है। हमें अब कोई पाप नहीं करना चाहिए।" दोनों दुखी मन से अपने दिन काटने लगे, लेकिन उनके पास कोई उपाय नहीं था।
जया एकादशी का चमत्कार
दैवयोग से माघ मास के शुक्ल पक्ष में जया एकादशी का दिन आया। उस दिन पुष्पवती और माल्यवान ने अनजाने में कुछ भी नहीं खाया और न ही पानी पिया। उन्होंने कोई पाप कर्म नहीं किया और केवल फल-फूल खाकर दिन बिताया। संध्या के समय वे दुखी मन से एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस रात ठंड इतनी थी कि वे एक-दूसरे से लिपटकर कांपते रहे। पूरी रात उन्हें नींद नहीं आई, और वे भगवान का स्मरण करते रहे।
प्रेत योनि से मुक्ति
श्रीकृष्ण ने कहा, "हे युधिष्ठिर, जया एकादशी के निर्जला व्रत और रात्रि जागरण के प्रभाव से अगली सुबह पुष्पवती और माल्यवान को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई। वे अपने पूर्व रूप में, यानी गंधर्व और अप्सरा के रूप में, सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सज्जित होकर स्वर्गलोक की ओर प्रस्थान करने लगे। स्वर्ग में देवताओं ने उन पर पुष्पवर्षा की।"
स्वर्गलोक पहुँचकर दोनों ने इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र ने उन्हें देखकर आश्चर्य व्यक्त किया और पूछा, "तुम दोनों ने प्रेत योनि से मुक्ति कैसे प्राप्त की? सत्य बताओ।" माल्यवान ने कहा, "हे देवराज, यह सब भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी व्रत के प्रभाव से संभव हुआ।"
इंद्र का आशीर्वाद
इंद्र ने कहा, "तुम दोनों धन्य हो। भगवान विष्णु की भक्ति और जया एकादशी के व्रत ने न केवल तुम्हें प्रेत योनि से मुक्त किया, बल्कि तुम अब देवताओं के लिए भी वंदनीय हो गए हो। भगवान विष्णु और शिव के भक्त मेरे लिए भी पूजनीय हैं। अब तुम पुष्पवती के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करो।"
श्रीकृष्ण का उपदेश
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा, "हे धर्मराज, जो व्यक्ति जया एकादशी का व्रत करता है, उसे सभी यज्ञ, जप, तप, और दान का फल प्राप्त हो जाता है। यह व्रत करने वाला मनुष्य हजारों वर्षों तक स्वर्ग में वास करता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।"
हिमालय पर पीपल के वृक्ष के नीचे, प्रेत रूप में पुष्पवती और माल्यवान पर भगवान विष्णु की कृपा बरस रही है, जो उनके लिए स्वर्गलोक का मार्ग खोल रही है।
जया एकादशी व्रत के लाभ
जया एकादशी का व्रत करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
पापों से मुक्ति: यह व्रत ब्रह्म हत्या, गौ हत्या, और अन्य महापापों से छुटकारा दिलाता है।
प्रेत योनि से मुक्ति: पिशाच, भूत, और प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।
मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत मोक्ष के द्वार खोलता है।
स्वर्गलोक में स्थान: व्रत करने वाला हजारों वर्षों तक स्वर्ग में वास करता है।
मानसिक शांति: यह व्रत मन को शांत करता है और भक्ति भाव को बढ़ाता है।
पितृदोष का निवारण: पितरों के दोषों से मुक्ति मिलती है।
जया एकादशी 2026 के लिए विशेष टिप्स
पूजा की तैयारी: पूजा सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें।
निर्जला व्रत: यदि स्वास्थ्य अनुमति दे, तो निर्जला व्रत करें।
रात्रि जागरण: रात में भजन-कीर्तन करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
दान-दक्षिणा: ब्राह्मणों को भोजन और दान अवश्य दें।
तुलसी का महत्व: भगवान को तुलसी पत्र अर्पित करना न भूले।
क्या है निष्कर्ष
जया एकादशी 2026 का व्रत भगवान विष्णु की भक्ति और पापों से मुक्ति का एक अनमोल अवसर है। इस व्रत को विधि-विधान से करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं, बल्कि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि भी आती है। 29 जनवरी 2026 को इस पवित्र व्रत को श्रद्धापूर्वक मनाएं और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करें।
डिस्क्लेमर
यह ब्लॉग केवल सूचनात्मक और धार्मिक उद्देश्यों के लिए लिखा गया है। यहाँ दी गई जानकारी काशी पंचांग और हिंदू शास्त्रों पर आधारित है। पूजा-पाठ और व्रत से संबंधित कोई भी निर्णय लेने से पहले अपने पंडित या ज्योतिषी से परामर्श करें। लेखक या प्रकाशक इस ब्लॉग के उपयोग से होने वाली किसी भी हानि या परिणाम के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।