देव उठानी एकादशी क्या है? 2025 में यह कब मनाई जाएगी? इस व्रत की पूजा विधि क्या है और इससे क्या लाभ मिलते हैं? देव उठानी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथाएं और जीवन में खुशहाली लाने के अचूक उपाय जानें।
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देव उठानी एकादशी है क्या जानें इसका महत्व
* देव उठानी एकादशी क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है?
* देवशयनी एकादशी से देव उठानी एकादशी तक का चार महीने का अंतराल।
* भगवान विष्णु के शयन और जागरण का आध्यात्मिक अर्थ।
* देव उठानी एकादशी के अन्य नाम: देवोत्थान एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी भी है।
* सनातन धर्म में देव उठानी एकादशी का विशेष महत्व।
* यह एकादशी दीपावली के कितने दिन बाद आती है? (01 नवंबर 2026 का संदर्भ)
* कुछ क्षेत्रों में 15 नवंबर को उत्पन्न के दिन देव उठानी एकादशी मनाते है।
* उदया तिथि का महत्व और एकादशी व्रत के लिए इसका निर्धारण।
* देव उठानी एकादशी के दिन धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का महत्व।
* मांगलिक कार्यों की शुरुआत: विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि।
देव उठानी एकादशी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
* 01 नवंबर 2025, शनिवार को देव उठानी एकादशी की तिथि और समय का विस्तृत विवरण।
* एकादशी तिथि का प्रारंभ और समाप्ति काल (शनिवार सुबह 09:00 बज के 11 मिनट से प्रारम्भ होकर 02 नवंबर को सुबह 07:31 बजे तक रहेगा)।
* इसके बाद द्वादशी तिथि का प्रारंभ।
* एकादशी व्रत करने वाले व्रतधारियों को चारों पहर पूजा करने का विधान है। आईए बताते हैं चारों पर पूजा करने की शुभ महूर्त।
* सुबह 7:15 से लेकर 8:40 तक चर मुहूर्त और 8:40 से लेकर 10:04 तक लाभ मुहूर्त रहेगा। दोपहर दिन के 10:04 से लेकर 11:19 तक अमृत मुहूर्त और 11:06 से लेकर 11:51 तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा। संध्या समय पूजा करने का शुभ मुहूर्त शाम 5:07 से लेकर 5:32 तक गोधूलि मुहूर्त और 5:07 से लेकर 6:42 तक शुभ मुहूर्त रहेगा। मध्य रात्रि को 11:03 से लेकर 11:54 तक निशिता मुहूर्त रहेगा सुबह 4:15 से लेकर 5:51 मिनट तक शुभ मुहूर्त और 5:51 से लेकर 7:15 तक अमृत मुहूर्त रहेगा।
* 2 नवंबर को सुबह 7:30 से पहले व्रतधारियों को पारण कर लेना चाहिए।
* सूर्योदय और सूर्यास्त का समय (सुबह 05:50 बजे और शाम 05:07 बजे)।
* चंद्रोदय और चंद्रास्त का समय (दिन के 02:08 बजे और सुबह के 02:11 बजे)।
* सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा की राशि कुंभ रहेगा)।
* अयन और ऋतु (दक्षिणायन और हेमंत रहेगा।
* दिनमान 11 घंटे 17 मिनट और रात्रिमान 12 घंटे 43 मिनट की अवधि।
देवउठानी एकादशी पर पूजा विधि और अनुष्ठान में क्या करें
* एकादशी व्रत करने की विस्तृत विधि।
* व्रत से पहले संकल्प लेने का महत्व और विधि।
* भगवान विष्णु की पूजा करने की प्रक्रिया:
* ब्रह्म मुहूर्त में उठना और स्नान करना।
* भगवान श्रीहरि की प्रतिमा स्थापित करना।
* फूलों, फलों, घी, धूप आदि से पूजन करना।
* शंख में जल भरकर अर्घ्य देना।
* रात्रि जागरण का महत्व और उसमें क्या करना चाहिए (नृत्य, गायन, भजन)।
* तुलसी विवाह का महत्व और उसकी संक्षिप्त विधि।
* एकादशी के दिन दान का महत्व और क्या दान करना चाहिए (आंवला, दही, मधु, फल, दूध, घी, चावल, मिठाई, दर्पण, जूता)।
* ब्राह्मणों और विद्वानों को भोजन कराने का महत्व और दक्षिणा देने की प्रथा।
* पूजा के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
* एकादशी व्रत का पारण कब और कैसे करें।
"देव उठानी एकादशी के पावन अवसर पर, भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं और भक्तगण बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ उनकी पूजा-अर्चना करते हैं, रंगीन दीपों से सजे मंडप में दिव्य वातावरण निर्मित होता है।"
देवउठानी एकादशी व्रत के नियम और पालन
* एकादशी के दिन क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए।
* निराहार व्रत का महत्व और उसका पालन कैसे करें।
* फलाहार व्रत के नियम और उसमें शामिल खाद्य पदार्थ।
* एक समय भोजन करने या केवल रात्रि में भोजन करने का नियम।
* व्रत के दौरान शारीरिक और मानसिक शुद्धता का महत्व।
* व्रत के दौरान नकारात्मक विचारों और कार्यों से बचना।
* व्रत के दौरान जप, तप और ध्यान का महत्व।
* बीमार या वृद्ध लोगों के लिए व्रत के नियमों में छूट।
* एकादशी व्रत के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी लाभ
एकादशी तिथि की व्रत विधि
01. ब्राह्म मुहूर्त में उठें: प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
03. पूजा सामग्री: भगवान विष्णु की मूर्ति को गंगाजल, दूध, और शुद्ध जल से स्नान कराएं।
01. ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
देवउठानी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथाएं
* ब्रह्मा जी और नारद जी के संवाद का विस्तृत वर्णन और एकादशी की महत्ता।
* पृथ्वी पर गंगा, समुद्र और तीर्थों का महत्व कब तक रहता है?
* एक हजार अश्वमेध और एक सौ राजसूय यज्ञों के फल के बराबर एकादशी व्रत का महत्व।
* एक समय भोजन, रात्रि भोजन और पूर्ण उपवास के फल का विवरण।
* दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति और पापों का नाश कैसे होता है।
* रुई के गठर और अग्नि की चिंगारी का दृष्टांत और विधिपूर्वक व्रत का महत्व।
* विधिपूर्वक व्रत न करने के दुष्परिणाम।
* संध्या भजन न करने वालों, नास्तिकों और वेद निंदकों का उल्लेख।
* पर स्त्री गमन और ब्राह्मणों को सताने के पाप।
* घुस लेने वालों और नीच लोगों की संगति के दुष्परिणाम।
* प्रबोधिनी एकादशी व्रत से पाप मुक्ति का एकमात्र उपाय।
* व्रत करने से ग्यारह हजार पीढ़ियों को स्वर्ग की प्राप्ति।
* ब्रह्महत्या जैसे महान पापों का नाश।
* तीर्थ स्नान, गौ, स्वर्ण और भूमि दान के समान रात्रि जागरण का फल।
* रात्रि जागरण से हजार गुना फल की प्राप्ति।
* स्नान, दान, तप और यज्ञ का अक्षय पुण्य।
* बालकाल, यौवनकाल और वृद्धाकाल के पापों का नाश।
* चंद्र और सूर्य ग्रहण के समय स्नान से भी अधिक रात्रि जागरण का फल।
* व्रत न करने वालों का पुण्य से वंचित रहना।
* कार्तिक मास में धर्म पर चलने और अन्न त्यागने का फल (चांद्रायण व्रत)।
* भगवान विष्णु की कथा सुनने का महत्व (सौ गायों के दान के बराबर फल)।
* एकादशी की कथा कहने और सुनने का फल (दस हजार यज्ञों और एक हजार गोदान के बराबर)।
* विष्णु के जागने के समय कथा सुनने का फल (पृथ्वी दान के बराबर)।
* कथा सुनाने वाले को दक्षिणा देने का फल (सनातन लोक की प्राप्ति)।
देवउठानी एकादशी पर किए जानें वाले विशेष उपाय
* भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के विशेष मंत्र और स्तोत्र।
* तुलसी पूजन का महत्व और मंत्र।
* विभिन्न प्रकार के फूलों से भगवान विष्णु की पूजा का महत्व (अगस्त्य, बेलपत्र, तुलसी, कदम्ब, गुलाब, अशोक, कनेर, आम की मंजरी, दूब, शमी, चंपा, केतकी, पीला कमल)।
* दान करने की वस्तुओं का महत्व और उनका लाभ (गौ, आंवला, दही, मधु, फल, दूध, घी, चावल, मिठाई, दर्पण, जूता, शैया, सोने का पत्ता, घी और बत्ती)।
* व्रत के दिन मौन व्रत का महत्व और दान।
* मंदिर में दीपक जलाने का महत्व।
* नियम लेने का महत्व और व्रत की समाप्ति पर दान।
देवउठानी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा (राजा और भक्त की कहानी)
* राजा के राज्य में एकादशी व्रत का पालन।
* दूसरे देश के व्यक्ति का आगमन और नौकरी की शर्त।
* एकादशी के दिन भोजन की मांग और राजा का इनकार।
* भगवान विष्णु का भक्त के साथ भोजन करना।
* राजा का आश्चर्य और अविश्वास।
* राजा का छिपकर देखना और भक्त की पुकार।
* भगवान विष्णु का प्रकट न होना और भक्त का प्राण त्यागने का निश्चय।
* भगवान विष्णु का प्रकट होकर भक्त को विष्णुलोक ले जाना।
* राजा को मिली सीख: मन की शुद्धता का महत्व।
* राजा द्वारा मन से व्रत और उपवास करना और स्वर्ग की प्राप्ति।
* इस कथा का नैतिक और आध्यात्मिक महत्व।
देवउठानी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा (संक्षेप में):
* भक्ति और जिज्ञासा: एक भक्त भगवान विष्णु को प्रेमपूर्वक भोजन अर्पित कर रहा है, जबकि एक राजा रहस्यमय ढंग से देख रहा है।
देवउठानी एकादशी और तुलसी विवाह का संबंध
* देवउठानी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन क्यों होता है?
* तुलसी का महत्व:भगवान विष्णु और शंखचूड़ से उनका संबंध।
* तुलसी विवाह की संक्षिप्त कथा।
* तुलसी विवाह की पूजा विधि और महत्व।
* यह विवाह देवोत्थान के प्रतीक के रूप में कैसे मनाया जाता है।
शंखचूड़ और तुलसी विवाह की कथा
शंखचूड़ की कथा
शंखचूड़ की शक्ति और युद्ध
भगवान विष्णु और तुलसी की भक्ति
"भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप और माता तुलसी का दिव्य विवाह, प्रेम और पवित्रता के बंधन का एक सुंदर चित्रण, जिसमें ऋषिगण और देवता आशीर्वाद दे रहे हैं।"
तुलसी का विवाह
निष्कर्ष
* देव उठानी एकादशी का सार और महत्व का पुनरावलोकन।
* इस व्रत को करने से मिलने वाले आध्यात्मिक और भौतिक लाभ।
* भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन को सुखमय बनाने का संदेश।
* पाठकों को इस पवित्र व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करने के लिए प्रेरित करना।
अस्वीकरण (Disclaimer):
इस ब्लॉग में प्रस्तुत देव उठानी एकादशी से संबंधित जानकारी विभिन्न पुराणों, धार्मिक ग्रंथों, लोक परंपराओं, और उपलब्ध पंचांगों के आधार पर दी गई है। इसका उद्देश्य केवल धार्मिक जागरूकता और सांस्कृतिक जानकारी साझा करना है। पाठकों से निवेदन है कि किसी भी धार्मिक कार्य, व्रत या पूजन विधि को अपनाने से पूर्व अपने पंडित, गुरु या ज्योतिषाचार्य से परामर्श अवश्य करें। लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार की धार्मिक या व्यक्तिगत व्याख्या की जिम्मेदारी नहीं लेते।