वट सावित्री व्रत 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और मान्यताएं

26 मई 2025, दिन सोमवार को है वट सावित्री व्रत। जानिए इस दिन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, सावित्री-सत्यवान की पौराणिक कथा और किस राज्य में कब रखा जाता है यह व्रत।

बट सावित्री व्रत के मौके पर एक सुहागिन महिला बरगद के पेड़ को पूजा करती हुई

अनुक्रमणिका

1. वट सावित्री व्रत क्या है?

2. वट सावित्री व्रत 2025 की तिथि और दिन

3. व्रत रखने की तिथि में क्षेत्रीय भिन्नताएं

4. व्रत का शुभ मुहूर्त (पूजा का समय)

5. पूजा सामग्री सूची

6. वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

7. सावित्री-सत्यवान की पौराणिक कथा

8. व्रत की मान्यताएं और लाभ

9. क्या करें और क्या न करें

10. निष्कर्ष

1. वट सावित्री व्रत क्या है?

वट सावित्री व्रत सनातन (हिन्दू) धर्म में विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला एक पवित्र व्रत है। इसमें वट (बड़) वृक्ष की पूजा की जाती है, जो अखंड सौभाग्य और दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है।

2. वट सावित्री व्रत 2025 की तिथि और दिन

तिथि: सोमवार, 26 मई 2025

तिथि विवरण: ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को यह व्रत रखा जाएगा।

3. व्रत रखने की तिथि में क्षेत्रीय भिन्नताएं

वट सावित्री पूजा मुख्य रूप से भारत के उत्तर भारतीय राज्यों जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में मनाई जाती है। इसके अतिरिक्त, यह नेपाल और मिथिला के क्षेत्रों में भी मनाया जाता है।

दूसरी ओर, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में यह व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और इसे वट पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसलिए, इन राज्यों में 26 मई को वट सावित्री पूजा नहीं मनाई जाएगी।

4. व्रत का शुभ मुहूर्त (पूजा का समय)

अमावस्या तिथि प्रारंभ: 25 मई 2025, रात 12:11 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त: 27 मई 2025, सुबह 08:31 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त: 26 मई को प्रातः 08:22 बजे से 10:02 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा इसके बाद 11:16 बजे से लेकर 12:09 बजे तक अभिजीत मुहूर्त, 01:30 बजे से लेकर 03:30 बजे तक चर मुहूर्त और 01:56 बजे से लेकर 02:50 बजे तक विजय मुहूर्त रहेगा। इस दौरान आप बरगद के पेड़ सहित सावित्री, सत्यवान यमराज और ब्रह्मा, विष्णु, महेश की पूजा अर्चना कर सकते हैं। (स्थानीय सूर्योदय के अनुसार)

5. पूजा सामग्री सूची

लाल वस्त्र व सुहाग सामाग्री

वट वृक्ष की डोरी (सूत्र)

धूप, दीप, अगरबत्ती

रोली, मौली, हल्दी, चावल

फल, मिठाई, भीगा हुआ चना

एक जोड़ा लकड़ी के पाट (पति-पत्नी का प्रतीक)

मिट्टी की सावित्री-सत्यवान की प्रतिमा (यदि उपलब्ध हो)

जल से भरा लोटा

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

01. प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।

02. सुहागिन स्त्रियां लाल या पीले वस्त्र पहनें और श्रृंगार करें।

03. वट वृक्ष के नीचे जाकर पूजा सामग्री के साथ मंडप सजाएं।

04. वृक्ष के चारों ओर 7, 11, 21 या 108 बार कच्चा सूत (डोरा) लपेटते हुए परिक्रमा करें।

05. वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और दीपक जलाएं।

06. सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें या पढ़ें। 

दक्षिण दिशा मुंह करके ना करें पूजा

दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करना पूर्णतः वर्जित माना जाता है। कारण नर्क का द्वार दक्षिण दिशा में ही स्थित है। वट सावित्री पूजा पूरब और उत्तर दिशा मैं करना श्रेष्ठ रहेगा।

ऐसे करें बट सावित्री पूजा, सदा बनी रहेगी सुहागिन

वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा करने की विधान है। सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार बरगद के पेड़ में सभी देवी-देवताओं निवास करते हैं। वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, में विष्णु जी और पत्तों में भगवान भोले शंकर निवास करते हैं। 

वट सावित्री व्रत में सुहागिन स्त्रियां बरगद के पेड़ की 7, 9 एल 11 बार परिक्रमा करती हैं और साथ ही कच्चा सूत भी लपेटती हैं। पौराणिक मान्यता है कि बरगद के वृक्ष की पूजा-अर्चना करने से विवाहिता महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और पति दीर्घायु होते हैं।

प्रतिमा बनाकर करें पूजा

वट वृक्ष के नीचे मिट्टी की बनी सावित्री और सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यम की मूर्ति स्थापित कर पूजा करनी चाहिए तथा वट वृक्ष की जड़ में पानी से सिंचाई करने चाहिए।

* वट सावित्री व्रत: आस्था और प्रकृति का संगम। सौभाग्य और समृद्धि की कामना करती व्रतधारी महिलाएं।

बट वृक्ष को सींचे शुद्ध जल से

जल से वट वृक्ष को सींचकर तने को चारों ओर सात, नौ एवं ग्यारह बार कच्चा धागा लपेट कर उतने ही बार परिक्रमा करनी चाहिए। साथ ही पंखे से बट वृक्ष को हवा करें। इसके बाद उपस्थित सुहागिन स्त्रियों को सावित्री और सत्यवान की कथा सुननी चाहिए।

पूजा के उपरांत भीगे हुए चनों का बायना निकाल कर उस पर यथाशक्ति पैसा रखकर अपनी सास या घर में रहने वाली बुजुर्ग महिलाओं को देना चाहिए। इसके बाद उनके चरण स्पर्श करने चाहिए। घर आकर जल से अपने पति के पैर धोएं और आशीर्वाद लें। पति को पंखा से हवा करने चाहिए। उसके बाद अपना व्रतधारी महिलाएं पारण कर सकती हैं।

अब पढ़ें पौराणिक कथा

सावित्री ने पसंद किया सत्यवान

अपनी कन्या सावित्री के युवा होने पर पिता अर्थात मद्र देश के राजा अश्वपति ने विवाह का विचार करने लगे। राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के लिए कोई योग्य वर नहीं मिला। सावित्री को अपने लिए स्वयं वर खोजने का आदेश पिता ने दिया।

पिता की आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग्य और विश्वासी मंत्रियों के साथ लेकर स्वर्ण से बने रथ पर बैठकर विभिन्न राज्यों की यात्रा के लिए चल पड़ी।

कुछ दिनों तक ब्रह्म ऋषियों और राज ऋषियों के तपोवन और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद राज महल लौट आई। पिता के समीप देव ऋषि नारद जी को बैठे देखकर दोनों के चरणों को श्रद्धापूर्वक स्पर्श कर दंडवत प्रणाम किया।

राजा के पूछने पर सावित्री ने कहा पिताश्री तपोवन में माता-पिता के साथ निवास कर रहे धमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग है। अतः सत्यवान की कृति सुनकर मैंने उन्हें पति के रूप में स्वीकार कर लिया है।

* वीणा के साथ नारद, राजा को पुत्री सावित्री की भाग्य बताते हुए।

 नारदजी ने सत्यवान की आयु बतायी एक वर्ष

नारादजी सत्यवान तथा सावित्री के ग्रहों की गणना कर राजा अश्वपति से बोले राजन सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है। सत्यवान के पिता शत्रुओं द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए थे।

सत्यवान के माता-पिता वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अंधे हो चुके थे। सबसे बड़ी समस्या यह था कि सत्यवान की आयु अब केवल 1 वर्ष की शेष रह गया है।

नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्याकुल हो गए और उन्होंने सावित्री को कहा बेटी अब तुम फिर से विभिन्न राज्यों की याऐ करो और किसी दूसरे सुयोग्य वर का चयन करो। सावित्री सती कन्या थी।

सावित्री ने दृढ़तापूर्वक अपने पिता से कहा हे पिताश्री मैं आर्य कन्या होने के नाते जब मैं सत्यवान का पति मान चुकी हूं तो, अब सत्यवान चाहे दीर्घायु हो या अल्प आयु हो, अब तो वही मेरे पति बनेंगे। जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया, फिर मैं दूसरे पुरुष को पति कैसे मान सकती हूं।

सत्यवान से शादी करने को ठान ली सावित्री ने

सावित्री नाम की धर्मनिष्ठ महिला जिसे पता था उसका पति की आयु मात्र 1 साल है। फिर भी उसे अपने नारी और सतीत्व पर यकीन था। उसमें यमराज से भी लड़ने कि शक्ति थी।

वन में सत्यवान ने प्राण त्यागा

घटना के दिन पति और पत्नी दोनों जंगल में लकड़ी काटने गए थे। सत्यवान के पिता राजा थे, परंतु नियति ने उन्हें आंधा और गरीब बना दिया था। सत्यवान लकड़ी काटने के उपरांत उसने सावित्री से कहा।

सर में दर्द हो रही है । सावित्री कुछ समझ पाती उसी बीच उसके पति के शरीर से प्राण निकल चुके थे। थोड़ी देर में सावित्री ने देखी एक दिव्य व्यक्ति जो यमराज थे, उसके पति सत्यवान की आत्मा को ले जाने के लिए आए हैं। यमराज ने सत्यवान की आत्मा को लेकर चलने लगे। यमराज के पीछे पीछे-पीछे सावित्री भी चलने लगी।

* इस तस्वीर में यमराज के पीछे सावित्री, जो दिखता है पति के प्रति आगाध प्रेम की डोर।

यमराज से मांगी सावित्री ने अपने ससुर और सास के आंखों की खोयी रोशनी और राज्य

यमराज ने कहा सावित्री से कहा पुत्री वर मांग लो और लौट जाओ। सावित्री ने अपने नेत्र हीन सास ससुर की आंखें और खोया हुआ राज्य मांग लिया। वर मिलने के बाद भी सावित्री ने यमराज की पीछा नहीं छोड़ी। तो यमराज ने कहां की पुत्री सशरीर लेकर स्वर्ग में कोई नहीं जाता है।

इसलिए तुम लौट जाओ। विधि का यहू विधान है। तुम्हारे पति की इतना ही आयु बची थी। मुझे तुम्हारे पति को ले जाना मेरी मजबूरी है।

यमराज से सावित्री ने मांगी 100 पुत्र प्राप्ति की वरदान

सावित्री ने कहा कि मुझे एक सौ पुत्र होने का वरदान दे। यमराज ने वरदान दे दिया। फिर भी जब सावित्री पीछा नहीं छोड़ी तो यमराज ने कहा अब क्या चाहिए ?

सावित्री ने कहा कि मुझे एक सौ पुत्र होने का वरदान दे। यमराज ने वरदान दे दिया। फिर भी जब सावित्री पीछा नहीं छोड़ी तो यमराज ने कहा अब क्या चाहिए ? सावित्री कही हे यमराज महाराज आपने मुझे सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान तो दे दिया है, परंतु मेरे पति का आत्मा आप लेकर जा रहे हैं।

ऐसे में मुझे पुत्रों की प्राप्ति कैसे होगी। यमराजजी अपने वचन से हार चुके थे। इसके बाद यमराज ने सावित्री के पति का प्राण वापस कर दिया और फिर यमलोक लौट गए।

सावित्री की धर्मिनष्ठा, विद्या, विवेक, सदाचार और पतिव्रता धर्म की बात सुनकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची, जहां सत्यवान का मृतक शरीर पड़ा हुआ था। सावित्री ने वट वृक्ष की सात बार परिक्रमा की। वटवृक्ष के परिक्रमा के बाद सत्यवान जीवित हो गया।

सावित्री की धर्मिनष्ठा, विद्या, ज्ञान, विवेक और पतिव्रत धर्म की बात सुनकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था।

सावित्री ने वट वृक्ष की सात बार परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा। खुशी पूर्वक सावित्री अपने सास−श्वसुर के पास पहुंची तो देखा कि उनके नेत्रों में ज्योति प्राप्त हो गई। इसके बाद सत्यवान के माता-पिता के कब्ज़ा हुआ राज्य भी उन्हें मिल गया।

कालांतर में सावित्री सौ पुत्रों की मां बनी। इस प्रकार चारों दिशाएं सावित्री के पतिव्रत धर्म पालन की कीर्ति चहुंओर गूंज उठीं।

कथा का सारांश है कि अगर कोई भी नारी निश्चय कर ले ,तो कुछ भी कर सकती है। वैसे भी भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति रूपा मानते हैं।

मृत्यु पर विजय प्राप्त कर वट वृक्ष के छांव में प्रसन्न मुद्रा में बैठे सत्यवान और अपने पति को की निहारती सावित्री 

व्रत की मान्यताएं और लाभ

इस व्रत से पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

स्त्री का सौभाग्य अक्षय बना रहता है।

संतान सुख और परिवार में सुख-शांति का वास होता है।

यह व्रत नारी शक्ति, समर्पण और तप का प्रतीक है।

9. क्या करें और क्या न करें

क्या करें:

व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन करें।

सच्चे भाव से पूजा करें और कथा श्रवण करें।

जरूरतमंदों को अन्न व वस्त्र दान दें।

क्या न करें:

झूठ, छल या किसी प्रकार की कटु वाणी न बोलें।

व्रत में मांसाहार या नशा न करें।

वृक्ष को क्षति न पहुँचाएं, केवल परिक्रमा करें।

10. निष्कर्ष

वट सावित्री व्रत एक ऐसा पर्व है, जो भारतीय नारी की श्रद्धा, आस्था और पति के प्रति समर्पण को दर्शाता है। सावित्री के समान तप और धैर्यवती महिलाएं आज भी समाज के लिए प्रेरणा हैं। यह व्रत न केवल धार्मिक रूप से बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

क्या आप भी यह व्रत करती हैं? नीचे कमेंट में जरूर बताएं और इस पोस्ट को शेयर करें ताकि अन्य महिलाएं भी इस व्रत के महत्व को जान सकें।

डिस्क्लेमर:

यह लेख श्रद्धा, धार्मिक मान्यताओं, पौराणिक ग्रंथों और पंचांग आधारित ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी पाठकों की आस्था और संस्कृति से जुड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य केवल ज्ञानवर्धन और धार्मिक जागरूकता बढ़ाना है। पाठकगण किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या व्रत का पालन करने से पूर्व अपने परिवार के बुजुर्गों, पंडित या विद्वान ज्योतिषी से परामर्श अवश्य करें। इस ब्लॉग की जानकारी को अंतिम सत्य या वैज्ञानिक प्रमाण न मानें। लेखक व ब्लॉग की टीम किसी प्रकार की धार्मिक मान्यता थोपने का प्रयास नहीं करती।







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