इंदिरा एकादशी 2025: पितरों के मोक्ष का मार्ग, व्रत विधि व पौराणिक कथा

जानिए इंदिरा एकादशी 2025 की तिथि, महत्व, व्रत विधि, पितृदोष निवारण और राजा इंद्रसेन की पौराणिक कथा। पितरों की मुक्ति के लिए करें यह विशेष व्रत। पितरों की मुक्ति का दिव्य पर्व है, इंदिरा एकादशी। Indira Ekadashi Vrat, Ekadashi 2025, Ekadashi Katha Hindi, 

इंदिरा एकादशी व्रत करने के बाद भगवान विष्णु की पूजन करते पति और पत्नी।

लेख में पढ़ने को मिलेगा इन सभी विषयों पर 

1. इंदिरा एकादशी 2025 की तिथि व महत्व

2. श्राद्ध पक्ष और इंदिरा एकादशी का संबंध

3. व्रत का महत्व और लाभ

4. इंदिरा एकादशी व्रत की पूजा विधि (विस्तृत चरणों में)

5. व्रत के नियम और सावधानियां

6. पौराणिक कथा (नाटकीय शैली में)

7. इंदिरा एकादशी से जुड़ी पौराणिक शिक्षाएं

8. तर्पण, श्राद्ध और दान का महत्व

इंदिरा एकादशी 2025: पितरों की मुक्ति का दिव्य पर्व

1. इंदिरा एकादशी 2025 की तिथि व शुभ मुहूर्त

2025 में इंदिरा एकादशी व्रत की तिथि:

इंदिरा एकादशी, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। यह तिथि पितृपक्ष के दौरान आती है, इसलिए इसका संबंध सीधे पितरों की मुक्ति से जुड़ा है।

दिनांक: बुधवार, 17  सितंबर 2025

एकादशी तिथि प्रारंभ: 16 सितंबर, शुक्रवार रात्रि 12:21 बजे

एकादशी तिथि समाप्त: 17 सितंबर, शनिवार रात्रि 11:39 बजे

पारणा (व्रत खोलने का समय):सुबह 05:33 बजे से लेकर 07:04 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।

चारों पहर पूजा करने की शुभ मूहूर्त 

एकादशी व्रत करने वाले व्रत धारी को चारों पर पूजा करने का विधान है हम आपको बताएंगे चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त।

सुबह लाभ मुहूर्त 05:32 बजे से लेकर 07:04 बजे तक और अमृत मुहूर्त 07:04 बजे से लेकर 08:36 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार दोपहर को 10:08 बजे से लेकर 11:40 बजे तक शुभ मुहूर्त और 01:42 बजे से लेकर 02:31 बजे तक विजय मुहूर्त रहेगा। इस प्रकार संध्या मुहूर्त 04:15 बजे से लेकर 05:45 बजे तक लाभ मुहूर्त और 05:45 बजे से लेकर 06:10 बजे तक गोधूलि मुहूर्त रहेगा। मध्य रात्रि का मुहूर्त निशिता मुहूर्त रात 11:16 बजे से लेकर 12:03 बजे तक रहेगा। प्रातः कालीन मुहूर्त सुबह 05:33 बजे से लेकर 07:04 बजे तक शुभ मुहूर्त के रूप में रहेगा इस दौरान में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना कर पालन कर सकते हैं।

यह व्रत मोक्षदायिनी मानी जाती है, और विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो अपने पितरों के कष्ट निवारण हेतु उपाय ढूंढ रहे हैं।

* फल्गु नदी में पितृ तर्पण: एक व्यक्ति अपने पूर्वजों को जल अर्पित कर रहा है।

 02. श्राद्ध पक्ष और इंदिरा एकादशी का संबंध

पितृपक्ष के दौरान जब आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं, तब उनके उद्धार के लिए श्राद्ध, तर्पण और दान किया जाता है। लेकिन यदि किसी कारणवश श्राद्ध विधि सही प्रकार से न हो पाए, या पितरों को अभी तक पूर्ण मोक्ष न मिला हो, तो इंदिरा एकादशी का व्रत ब्रह्मास्त्र की तरह कार्य करता है।

पौराणिक मान्यता है कि इस एकादशी पर व्रत, तर्पण और पूजा करने से पितरों की पीड़ा समाप्त होती है और वे स्व jiर्गलोक की प्राप्ति करते हैं। यही कारण है कि इसे ‘पितृमोचन एकादशी’ भी कहा जाता है।

03. व्रत का महत्व और लाभ

पितरों को मोक्ष: व्रती के सात पीढ़ियों तक के पितरों को यमलोक से मुक्ति मिलती है।

स्वयं को भी मोक्ष: जो व्यक्ति यह व्रत करता है, वह स्वयं भी मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

पितृदोष से मुक्ति: कुंडली में पितृदोष के प्रभावों से छुटकारा पाने के लिए यह एक प्रभावशाली उपाय है।

मानसिक शांति: यह व्रत आत्मा को भी संतोष, पवित्रता और शांति प्रदान करता है।

भाग्यवृद्धि: धन, संतान, और सम्मान की प्राप्ति होती है। यह व्रत श्रद्धा, संयम और सेवा का प्रतीक है, जो व्यक्ति को अध्यात्म से जोड़ता है।

04. इंदिरा एकादशी व्रत पूजा विधि (विस्तृत चरणों में)

(i) दशमी तिथि पर प्रारंभिक तैयारी:

इस दिन घर की सफाई करें और संकल्प लें कि अगले दिन व्रत रखेंगे।

दोपहर में पवित्र नदी या सरोवर में जाकर तर्पण करें—पितरों के नाम से जल अर्पित करें।

ब्राह्मण भोज कराएं और सूर्यास्त से पहले ही भोजन कर लें। रात्रि में संयम रखें।

(ii) एकादशी व्रत विधि (मुख्य दिन):

प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।

भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की पूजा करें।

उन्हें तुलसी, पीले फूल, फल, पंचामृत, और धूप-दीप से अर्पण करें।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें, फिर व्रत का संकल्प लें।

पुनः श्राद्ध विधि करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

गाय, कुत्ते और कौओं को भी भोजन देना आवश्यक है।

(iii) द्वादशी तिथि (व्रत का पारणा):

अगले दिन प्रातःकाल विष्णु पूजन करें।

ब्राह्मण भोज और दक्षिणा सहित दान करें—विशेषकर अन्न, वस्त्र, तांबा, कुश, और तिल का दान शुभ माना गया है।

इसके बाद ही पारणा करें और परिवार सहित भोजन ग्रहण करें।

अब आप पढ़ें राजा इंद्रसेन की पौराणिक 

सतयुग—धर्म, सत्य, और तपस्या का स्वर्णिम काल। इस युग में महिष्मती नामक एक अत्यंत समृद्ध और पवित्र नगरी थी, जो अपनी धार्मिकता, न्यायप्रियता और लोककल्याण के लिए प्रसिद्ध थी। इसी नगरी पर राज्य करते थे एक परम प्रतापी और धर्मनिष्ठ राजा—इंद्रसेन।

राजा इंद्रसेन न केवल युद्ध-कुशल थे, बल्कि वे वेदों और शास्त्रों के भी प्रकांड ज्ञाता थे। वे ब्रह्म मुहूर्त में जागते, गायत्री जप करते, धर्मसभा में न्याय करते और जनकल्याण में लीन रहते। उनकी नगरी में कोई भूखा न था, न कोई असहाय, न कोई दुखी। राज्य में धर्म, सत्कर्म और आध्यात्मिक ऊर्जा का वास था। परंतु एक दिन सब कुछ बदल गया।

स्वप्न में प्रकट हुआ पितरों का संदेश

एक रात्रि जब राजा इंद्रसेन गहन ध्यान के बाद विश्राम कर रहे थे, तभी उन्होंने स्वप्न में देखा—एक अंधकारमय, शुष्क और यातनाओं से भरा लोक। वहां कराहते हुए दो प्रेतात्माएं उन्हें पुकार रही थीं—"पुत्र इंद्रसेन... पुत्र..."।

 * राजा का भयानक सपना: उसके माता-पिता और पूर्वज नरक की आग में जल रहे हैं और अपने पुत्र को पुकार रहे हैं।

राजा भयभीत हो उठे। उन्होंने ध्यान से देखा—वे उनके ही माता-पिता थे! परंतु वे न किसी दिव्य स्वरूप में थे, न ही शांत; अपितु वे नर्क की अग्नि में जलते, पापों की सज़ा काटते, पीड़ा से चीत्कार करते हुए दिख रहे थे।

स्वप्न टूटते ही राजा व्याकुल हो उठे। अगले ही क्षण उन्होंने अपने पुरोहित, राज ऋषि, मंत्रियों और ब्राह्मणों को बुलवाया। सब सभा में उपस्थित हुए।

राजा ने ब्राह्मणों से समाधान कि याचना की

राजा ने अपने स्वप्न का विस्तार से वर्णन किया। वे बोले—

> "मैं धर्म का पालन करता हूं, प्रजा की सेवा करता हूं, प्रतिदिन संध्या-वंदन करता हूँ, फिर मेरे पितृ नर्क में क्यों हैं? उनका उद्धार कैसे हो?"

सभा मौन थी। तभी एक वृद्ध तपस्वी ब्राह्मण ने अपनी आंखें खोलीं और कहा

> "हे राजन! यह सत्य है कि आप धर्मात्मा हैं, परंतु संभव है कि आपके पूर्वजों ने कभी श्राद्ध के अभाव या किसी विशेष व्रत न करने से पितृलोक से पतन पाया हो। नर्क से मुक्ति हेतु एकमात्र उपाय है—इंदिरा एकादशी का व्रत।"

राजा ने पूछा, “यह व्रत क्या है, और कब करना चाहिए?”

ब्राह्मण ने उत्तर दिया

> "आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को यह व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की पूजा कर, श्राद्ध विधि द्वारा पितरों को तर्पण देकर, ब्राह्मण भोज और दान-दक्षिणा देकर उनके लिए स्वर्गद्वार खोला जाता है। जो व्यक्ति यह व्रत करता है, उसके सात पीढ़ियों तक के पितर स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं।"

राजा इंद्रसेन का व्रत संकल्प

राजा इंद्रसेन ने उसी क्षण अपने सिंहासन से उठकर हाथ जोड़ लिए

> “हे महामते! मैं इस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करूंगा। चाहे कितनी भी कठिन तपस्या करनी पड़े, परंतु मैं अपने पितरों को नरक से मुक्त कराऊंगा।”

उन्होंने अपने राज्य में घोषणा करवाई—

> “आगामी इंदिरा एकादशी को मैं व्रत करूंगा, कोई भी व्यक्ति उस दिन मांस-मदिरा का सेवन न करे, पवित्र रहें, और पितरों का ध्यान करें।”

नगर में आध्यात्मिक लहर फैल गई। घाटों पर सफाई हुई, वेदपाठ हुए, तर्पण हेतु व्यवस्था की गई।

दशमी का दिन – तर्पण और ब्राह्मण भोज

इंदिरा एकादशी के एक दिन पूर्व, राजा ने दशमी को स्नान कर यमुना के तट पर जाकर पितरों का विधिपूर्वक तर्पण किया। कुशा और तिल जल में डालकर उन्होंने निम्न मंत्र पढ़े—

> "ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

तर्पण के बाद उन्होंने सैकड़ों ब्राह्मणों को भोज कराया। उन्हें वस्त्र, अन्न, गौ, स्वर्ण आदि दक्षिणा देकर सम्मानित किया। सूर्यास्त से पूर्व स्वयं भी फलाहार कर व्रत का संकल्प लिया।

इंदिरा एकादशी – व्रत और पूजा का दिन

प्रातःकाल चार बजे राजा उठे, स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण किया और भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की पूजा आरंभ की।

पूजा विधि विस्तार से:

शुद्ध गंगाजल से अभिषेक

तुलसीदल, चंदन, अक्षत, केसर, धूप-दीप

विष्णु सहस्रनाम का पाठ

पितरों के नाम से पुनः तर्पण

108 दीपकों से मंदिर प्रज्वलित किया गया

फिर ब्राह्मण भोज कराया गया। राजा ने स्वयं गाय, कुत्ते और कौओं को भोजन कराया।

द्वादशी की रात्रि – स्वप्न में भगवान विष्णु के दर्शन

व्रत की पूर्णाहुति के बाद, राजा थककर सो गए। रात्रि के अंतिम प्रहर में उन्होंने एक दिव्य स्वप्न देखा—भगवान विष्णु स्वयं शंख, चक्र, गदा और पद्म लिए प्रकट हुए।

भगवान ने मुस्कराते हुए कहा

> "हे इंद्रसेन! तुम्हारे व्रत, तप और श्रद्धा से प्रसन्न होकर मैं स्वयं आया हूँ। तुम्हारे पितरों को नरक से मुक्ति मिल गई है। वे अब स्वर्ग में विश्राम कर रहे हैं।"

राजा विष्णु के चरणों में गिर पड़े। वे विह्वल हो उठे। उनकी आंखों से अश्रु बहने लगे।

राजा के माता-पिता का स्वर्गारोहण

सुबह होते ही नगरवासी चमत्कार से चकित हो उठे। राजमहल के आकाश में दिव्य पुष्प वर्षा हुई। एक दिव्य रथ स्वर्ग से उतरा और उसमें दो तेजस्वी आत्माएं आसीन थीं—राजा इंद्रसेन के माता-पिता।

* इंदिरा एकादशी के बाद मुक्ति: राजा के पिता की आत्मा स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हुए अपने पुत्र को आशीर्वाद दे रही है।

माता-पिता की आत्मा ने राजा को आशीर्वाद दिया—

> "पुत्र! तू सच्चा धर्मात्मा है। तेरी श्रद्धा और व्रत ने हमें परमगति दी है। अब हम देवताओं के लोक में जा रहे हैं।"

राजा ने आंखों में आंसू लिए उन्हें विदा किया।

इंदिरा एकादशी का यश फैला सम्पूर्ण भू-लोक में

इसके बाद महर्षि नारद, देवर्षि अंगिरा और स्वयं यमराज ने राजा इंद्रसेन के इस व्रत की महिमा को पूरे संसार में प्रचारित किया।

विष्णु पुराण, पद्म पुराण और गरुड़ पुराण में भी इस कथा का वर्णन आता है, और यही कारण है कि इंदिरा एकादशी को ‘पितृ मोचन एकादशी’ कहा जाता है।

कथा का सार संदेश

श्रद्धा से किया गया व्रत पितरों को भी उबार सकता है।

धर्म से जुड़ा हर कर्म ईश्वर के पास पहुंचता है।

कभी भी किसी स्वप्न को हल्के में न लें—वह संकेत हो सकता है।

ब्राह्मण, गौ, और जीव-जंतुओं को भोजन कराना स्वयं ईश्वर को अर्पण करना है।

इंदिरा एकादशी केवल एक तिथि नहीं, बल्कि आत्माओं की मुक्ति का सेतु है।

इंदिरा एकादशी का यह है निष्कर्ष 

इंदिरा एकादशी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह पितृ ऋण से मुक्ति का महा उपाय है। राजा इंद्रसेन की कथा हमें यह सिखाती है कि अगर मन में श्रद्धा, कर्म में निष्ठा और लक्ष्य में ईश्वर हों, तो कोई भी बाधा हमें पितरों के उद्धार से नहीं रोक सकती।

विष्णु की भक्ति, तर्पण की पवित्रता, और व्रत की शक्ति का संगम ही इंदिरा एकादशी की आत्मा है। जो भक्त इस दिन नियमपूर्वक व्रत करता है, उसके वंशजों का कल्याण होता है और स्वयं को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सावधानियां क्या बरतें 

1. व्रत से एक दिन पूर्व दशमी को एक बार भोजन लें और वह भी सात्विक हो।

2. व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें और क्रोध, विवाद, कटु वचन से दूर रहें।

3. तर्पण करते समय पवित्र जल, तिल और कुशा का उपयोग करें।

4. ब्राह्मण, गौ, कुत्ता, कौवा और चींटी आदि को अन्न देना विशेष पुण्य दायी होता है।

5. इस दिन मांस, मदिरा, लहसुन-प्याज, तामसिक भोजन पूर्णत: वर्जित है।

अक्सर लोग पूछते है यह प्रश्न, जानें जवाब 

1. इंदिरा एकादशी कब आती है?

इंदिरा एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है।

2. क्या इस दिन केवल पितरों का तर्पण करना पर्याप्त है?

तर्पण के साथ-साथ भगवान विष्णु की पूजा व्रत के लिए आवश्यक है। दोनों से ही पितरों को मुक्ति मिलती है।

3. अगर किसी कारण व्रत नहीं कर पाए तो क्या उपाय करें?

अगर व्रत संभव न हो तो किसी योग्य ब्राह्मण से करवाना या दान-पुण्य के साथ तर्पण करना भी फलदायक होता है।

4. क्या महिलाएं इंदिरा एकादशी का व्रत कर सकती हैं?

हां, महिलाएं भी इस व्रत को कर सकती हैं। इसका लाभ उन्हें और उनके पितरों को प्राप्त होता है।

5. क्या इस दिन श्राद्ध करने से कोई दोष तो नहीं लगता?

नहीं, यह श्राद्ध का विशेष दिन माना जाता है। इस दिन श्राद्ध करना अत्यंत पुण्य दायी होता है।

डिस्क्लेमर (Disclaimer):

यह लेख धार्मिक और पौराणिक ग्रंथों, लोक विश्वास और शास्त्रीय स्रोतों पर आधारित है। इसका उद्देश्य धार्मिक जानकारी साझा करना है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पूर्व अपने कुल पुरोहित या स्थानीय विद्वान ब्राह्मण से परामर्श अवश्य लें। लेखक एवं प्रकाशक इस जानकारी की पूर्णता या व्यक्तिगत फलाफल की कोई गारंटी नहीं देते।





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