षट्तिला एकादशी 2026: महत्व, पूजा विधि, पौराणिक कथाएं और शुभ मुहूर्त

षट्तिला एकादशी 14 जनवरी 2026 दिन बुधवार पौष मास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाएगा। एकादशी तिथि का शुभारंभ 13 फरवरी दिन मंगलवार शाम 3:17 से शुरू होकर 14 जनवरी दिन बुधवार शाम 5:52 तक रहेगा।

षट्तिला एकादशी 2026 क्या है? अध्यात्मिक महत्व, पौराणिक कथाएं, तिल का महत्व, व्रत कैसे करें, शुभ मुहूर्त, नियम और निषेध, लाभ। एकादशी व्रत, भगवान विष्णु पूजा, तिल का दान, माघ मास एकादशी, हिंदू उपवास, पूजा विधि,  दान, मोक्ष, समृद्धि, तिल के उपयोग।

षट्तिला एकादशी, पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि, भगवान विष्णु को समर्पित एक पवित्र दिन है। यह सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन व्रत और पूजा करने से पापों का नाश होता है, घर में सुख-समृद्धि आती है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। “षट्तिला” का अर्थ है “छह तिल” (षट् = छह, तिल = sesame seeds), जो इस व्रत में तिल के छह प्रकार से उपयोग को दर्शाता है। यह पवित्र दिन 16 जनवरी 2026, बुधवार को मनाया जाएगा।

कैप्शन: भगवान विष्णु, षट्तिला एकादशी के केंद्र में, जो पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक हैं।ऊ

इस ब्लॉग में हम षट्तिला एकादशी के महत्व, पूजा विधि, पौराणिक कथाओं, शुभ मुहूर्त, और तिल के उपयोग की विस्तृत जानकारी देंगे। चाहे आप भक्त हों या हिंदू परंपराओं के बारे में उत्सुक हों, यह लेख आपको इस पवित्र दिन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेगा जिसकी सूची नीचे दी गई है।

पूजा सामग्री की सूची

षट्तिला एकादशी क्या है?

षट्तिला एकादशी का आध्यात्मिक महत्व

षट्तिला एकादशी की पौराणिक कथाएं

ब्राह्मणी और मिट्टी का पिंड

नारद मुनि और श्रीहरि का संवाद

दाल्भ्य ऋषि और पुलस्त्य मुनि का रहस्य

तिल का महत्व और छह उपयोग

षट्तिला एकादशी व्रत कैसे करें

व्रत की तैयारी

पूजा विधि

षट्तिला एकादशी 2025 के शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार मुहूर्त

चौघड़िया मुहूर्त

वर्जित समय

षट्तिला एकादशी के नियम और निषेध

व्रत के लाभ

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

निष्कर्षो

षट्तिला एकादशी क्या है? 

षट्तिला एकादशी हिंदू पंचांग में 24 एकादशियों में से एक है, जो पौष मास (जनवरी-फरवरी) के कृष्ण पक्ष में पड़ती है। यह शिशिर ऋतु में मनाई जाती है और भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन व्रत करने और तिल का दान करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं, और घर में अन्न की प्रचुरता के साथ सुख-समृद्धि आती है।

“षट्तिला” नाम तिल के छह प्रकार के उपयोग से आया है, जो इस व्रत का मुख्य हिस्सा हैं। ये उपयोग हैं: स्नान में तिल, उबटन में तिल, तिलक में तिल, तिल का जल पीना, तिल का भोजन, और तिल का दान व हवन। ये प्रथाएं व्रत को और भी प्रभावी बनाती हैं।

16 जनवरी 2026 को होने वाली षट्तिला एकादशी के दिन ग्रहों की स्थिति इस प्रकार होगी:

सूर्य: धनु राशि से मकर राशि में।

चंद्रमा: वृश्चिक राशि में।

नक्षत्र: अनुराधा।

ऋतु: शिशिर।

षट्तिला एकादशी का आध्यात्मिक महत्व 

षट्तिला एकादशी का महत्व सनातन धर्मग्रंथों में वर्णित है। इस दिन व्रत और पूजा करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

पापों का नाश: यह व्रत गंभीर पापों जैसे चोरी, ईर्ष्या, और अनजाने में किए गए अपराधों को भी नष्ट करता है।

सुख-समृद्धि: यह घर में अन्न और धन की प्रचुरता लाता है, जिसे माँ अन्नपूर्णा का आशीर्वाद माना जाता है।

मोक्ष की प्राप्ति: श्रद्धापूर्वक व्रत करने से जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।

आध्यात्मिक उन्नति: अनुशासित जीवनशैली और भगवान विष्णु के प्रति समर्पण से मन को शांति मिलती है।

तिल का उपयोग इस दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे सात्विक और नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने वाला माना जाता है। तिल और अन्न का दान इस व्रत का अभिन्न हिस्सा है, जो उदारता और कृतज्ञता का प्रतीक है।

षट्तिला एकादशी की पौराणिक कथाएं 

षट्तिला एकादशी की पौराणिक कथाएं पुराणों में वर्णित हैं, जो इस दिन के महत्व को और गहरा करती हैं। नीचे तीन प्रमुख कथाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।

 * कैप्शन:पूर्वजों को नमन: एक ब्राह्मणी 10वीं सदी की कला शैली में पिंड दान का अनुष्ठान करती हुई।

ब्राह्मणी और मिट्टी का पिंड 

प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी थी, जो व्रत और तपस्या में पूर्ण रूप से लीन रहती थी। उसने एक बार पूरे मास तक कठोर व्रत किए, जिससे उसका शरीर कमजोर हो गया, लेकिन उसकी आत्मा शुद्ध थी। हालांकि, उसने कभी भी देवताओं या ब्राह्मणों को अन्न या धन का दान नहीं किया था, यह सोचकर कि केवल व्रत ही मोक्ष के लिए पर्याप्त है।

उसकी भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान विष्णु ने उसकी परीक्षा लेने का निर्णय लिया। वे एक भिखारी के वेश में उसके द्वार पर आए और भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी, उनकी दिव्यता से अनजान, ने भोजन के बजाय मिट्टी का एक पिंड भिक्षा-पात्र में डाल दिया। भगवान विष्णु ने उसे स्वीकार किया और वैकुंठ लौट गए।

कुछ समय बाद, ब्राह्मणी का देहांत हो गया, और वह स्वर्ग पहुंची। वहां उसे उसकी तपस्या के फलस्वरूप एक भव्य महल प्राप्त हुआ, लेकिन उसमें अन्न और अन्य आवश्यक वस्तुओं का अभाव था। यह देखकर वह आश्चर्यचकित हुई और भगवान विष्णु के पास गई। भगवान ने बताया कि उसकी तपस्या ने उसकी आत्मा को शुद्ध किया, लेकिन दान के अभाव में उसकी तृप्ति अधूरी रही।

भगवान विष्णु ने उसे सलाह दी कि वह अपने महल में आने वाली देवकन्याओं से षट्तिला एकादशी का महत्व और व्रत की विधि सीखे। जब देवकन्याएं आईं, तो ब्राह्मणी ने उनसे व्रत का माहात्म्य सुना और द्वार खोला। उन्होंने बताया कि तिल और अन्न का दान इस व्रत का मुख्य हिस्सा है। 

ब्राह्मणी ने उनके निर्देशानुसार षट्तिला एकादशी का व्रत किया और तिल व अन्न का दान दिया। इसके प्रभाव से उसका महल अन्न और समृद्धि से भर गया, और उसे मां अन्नपूर्णा का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। यह कथा दान और भक्ति के संतुलन का महत्व दर्शाती है।

कैप्शन: ब्राहमणी का मिट्टी का पिंड दान, षट्तिला एकादशी की कथा का महत्वपूर्ण क्षण।

नारद मुनि और श्रीहरि का संवाद 

ऋषि नारद, जो अपनी बुद्धि और भक्ति के लिए प्रसिद्ध थे, ने एक बार भगवान विष्णु से प्रश्न किया: “कुछ लोग गंभीर पाप करने के बावजूद नर्क की यातना से कैसे बच जाते हैं?” भगवान विष्णु, नारद की जिज्ञासा से प्रसन्न होकर, षट्तिला एकादशी का माहात्म्य सुनाया।

उन्होंने बताया कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। भगवान ने ब्राह्मणी की कथा का उदाहरण देते हुए समझाया कि तिल के छह प्रकार के उपयोग—स्नान, उबटन, तिलक, जल, भोजन, और दान—नकारात्मक कर्मों से रक्षा करते हैं। नारद ने इस ज्ञान को संसार में फैलाया, जिससे भक्तों को इस व्रत के महत्व का पता चला।

दाल्भ्य ऋषि और पुलस्त्य मुनि का रहस्य 

एक अन्य कथा में, दाल्भ्य ऋषि ने पुलस्त्य मुनि से पूछा: “कुछ लोग चोरी, ईर्ष्या, और गंभीर पाप करने के बावजूद नर्क से कैसे बच जाते हैं?” पुलस्त्य मुनि ने उत्तर दिया कि माघ मास में षट्तिला एकादशी का व्रत और तिल का दान इस रहस्य का आधार है।

उन्होंने बताया कि इस दिन भक्तों को इंद्रियों को वश में रखकर, क्रोध, लोभ, और अहंकार का त्याग करना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर, तिल, और कपास से कंडे बनाकर 108 बार हवन करना चाहिए। ज्येष्ठा नक्षत्र और एकादशी तिथि के संयोग में यह व्रत विशेष पुण्य देता है। रात्रि में जागरण और भगवान विष्णु की पूजा इस व्रत को पूर्ण करती है।

तिल का महत्व और छह उपयोग 

हिंदू धर्म में तिल को सात्विक और पवित्र माना जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करता है और आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है। षट्तिला एकादशी में तिल का उपयोग छह प्रकार से किया जाता है:

स्नान में तिल: जल में तिल मिलाकर स्नान करने से शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धि होती है।

उबटन में तिल: तिल को पीसकर उबटन के रूप में लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

तिलक में तिल: माथे पर तिल का तिलक लगाने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

तिल का जल: जल में तिल मिलाकर पीने से शरीर की आंतरिक शुद्धि होती है।

तिल का भोजन: तिल के लड्डू या खिचड़ी जैसे व्यंजन व्रत में खाए जाते हैं।

तिल का दान और हवन: तिल का दान और हवन करने से पुण्य मिलता है और पाप नष्ट होते हैं।

कैप्शन: तिल, षट्तिला एकादशी के पूजा अनुष्ठानों का केंद्र, जो शुद्धता और भक्ति का प्रतीक है।

षट्तिला एकादशी व्रत कैसे करें 

षट्तिला एकादशी व्रत को श्रद्धा और अनुशासन के साथ करना चाहिए। नीचे व्रत की पूरी प्रक्रिया दी गई है।

व्रत की तैयारी 

मानसिक और शारीरिक शुद्धता: सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन को शांत रखें और क्रोध, लोभ जैसे नकारात्मक भावों से बचें।

आहार नियम: पूर्ण उपवास करें या सात्विक भोजन जैसे फल, दूध, और तिल के व्यंजन लें। अनाज, दालें, और कुछ सब्जियाँ वर्जित हैं।

दान की तैयारी: तिल, अन्न, और जल से भरा घड़ा दान के लिए तैयार रखें।

पूजा विधि 

सुबह की तैयारी: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तिल मिश्रित जल से स्नान करें। पूजा स्थल को साफ करें और भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

गौरी-गणेश पूजा:

सबसे पहले गणेशजी और गौरी माता की पूजा करें ताकि कोई विघ्न न आए। जल, चंदन, फूल, और अक्षत अर्पित करें।

विष्णु पूजा:

“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र से भगवान विष्णु का आवाहन करें। आसन, जल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी), और फिर जल से स्नान कराएं।

मूर्ति को वस्त्र, आभूषण, और जनेऊ पहनाएं। फूल, तुलसी पत्र, और तिल अर्पित करें। घी या तिल के तेल का दीया जलाएँ और आरती करें।

दान और भोग:

खिचड़ी या तिल के लड्डू का भोग लगाएं। ब्राह्मण को तिल, अन्न, और जल से भरा घड़ा दान करें।

रात्रि जागरण:

रात में विष्णु मंत्रों का जाप करें या भजन गाएं।

व्रत पारण:

द्वादशी तिथि पर शुभ मुहूर्त में व्रत खोलें।

पूजा सामग्री 

तांबे का कलश और लोटा

घी या तिल का तेल, रुई, दीपक

धूपबत्ती, तिल (काले और सफेद)

तुलसी पत्र, फूल, आम के पत्ते

पंचामृत सामग्री (दूध, दही, घी, शहद, चीनी)

मूर्ति के लिए वस्त्र और आभूषण

जनेऊ, कुमकुम, चंदन, अश्वगंधा

नारियल, केला, सुपारी

मिठाई, सूखे मेवे, गुड़

गोबर (हवन के लिए), पान का पत्ता

पट्तिला एकादशी की पारंपरिक पूजा सजावट, जो भगवान विष्णु की भक्ति को दर्शाती है।

षट्तिला एकादशी 2026 के शुभ मुहूर्त 

पूजा के लिए सही समय का चयन महत्वपूर्ण है। नीचे 14 जनवरी 2026 के लिए पंचांग और चौघड़िया मुहूर्त दिए गए हैं।

पंचांग के अनुसार मुहूर्त 

अभिजीत मुहूर्त: नहीं है 

विजया मुहूर्त: दोपहर 01:43 बजे से 02:27 बजे तक

गोधूलि मुहूर्त: शाम 05:18 बजे से 05:45 बजे तक

संध्या मुहूर्त: शाम 6:05 बजे से 7:30 बजे तक

निशिता मुहूर्त: रात 11:28 बजे से 12:21 तक बजे (15 जनवरी)

ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:43 बजे से 05:36 बजे तक

अमृत काल: सुबह 03:23 बजे से 05:10 बजे तक

चौघड़िया मुहूर्त 

लाभ मुहूर्त: सुबह 06:28 बजे से 07:50 बजे तक

अमृत मुहूर्त: सुबह 07:50 बजे से 09:11 बजे तक

शुभ मुहूर्त: दोपहर 10:33 बजे से 11:54 बजे तक

लाभ मुहूर्त: शाम 03:49 बजे से 05:00 बजे तक

शुभ मुहूर्त: शाम 06:59 बजे से लेकर 08:38 बजे पर

चर मुहूर्त: मध्य रात्रि 10:16 बजे से लेकर 11:54 बजे तक

शुभ मुहूर्त: अहले सुबह 06:28 बजे से लेकर 07:50 बजे तक

वर्जित समय: इन समयों में पूजा न करें:

यमगण्ड काल: सुबह 07:50 बजे से 09:11 बजे तक

गुलिक काल: दोपहर 10:33 बजे से 11:54 बजे तक

राहु काल: दोपहर 11:54 बजे से 01:16 बजे तक

उद्वेग मुहूर्त: दोपहर 11:33 बजे से 12:16 बजे तक, 

काल मुहूर्त: दोपहर 12:00 बजे से 01:30 बजे तक

रोग मुहूर्त: दोपहर 03:00 बजे से 04:30 बजे तक

"कैप्शन:14 जनवरी 2026 पंचांग पृष्ठ — तिल और तुलसी पत्रों की पारंपरिक सजावट के साथ शुभ मुहूर्तों की झलक

षट्तिला एकादशी के नियम और निषेध 

पूजा करने का क्या है नियम:

पूर्ण या आंशिक उपवास श्रद्धापूर्वक करें।

तिल का छह प्रकार से उपयोग करें।

तिल, अन्न, और जल का दान करें।

शुभ मुहूर्त में पूजा करें।

“ॐ नमो नारायणाय” मंत्र या विष्णु सहस्रनाम का जाप करें।

रात में जागरण करें और भजन गाएं।

निषेध:

अनाज, दालें, और असात्विक भोजन से बचें।

क्रोध, ईर्ष्या जैसे नकारात्मक भावों से दूर रहें।

राहु काल जैसे अशुभ समय में पूजा न करें।

विष्णु पूजा में चावल का उपयोग न करें; तिल का उपयोग करें।

दान को नजरअंदाज न करें।

व्रत के लाभ 

पापों का नाश: गंभीर पापों से मुक्ति।

सुख-समृद्धि: घर में अन्न और धन की प्रचुरता।

स्वास्थ्य लाभ: उपवास और तिल का सेवन शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाता है।

मोक्ष: जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति।

दिव्य आशीर्वाद: भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी से निकटता।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 

प्रश्न 1: क्या गैर-सनातनी षट्तिला एकादशी का व्रत रख सकते हैं?

उत्तर: हां, भगवान विष्णु में श्रद्धा रखने वाला कोई भी व्यक्ति यह व्रत रख सकता है।

प्रश्न 2: व्रत में कौन से खाद्य पदार्थ खा सकते हैं?

उत्तर: फल, दूध, मेवे, और तिल के व्यंजन खाए जा सकते हैं। अनाज और दालें वर्जित हैं।

प्रश्न 3: क्या रात्रि जागरण अनिवार्य है?

उत्तर: जागरण पुण्य बढ़ाता है, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से इसे छोड़ा जा सकता है।

प्रश्न 4: तिल का दान कितना महत्वपूर्ण है?

उत्तर: तिल का दान इस व्रत का मुख्य हिस्सा है, जो आध्यात्मिक और भौतिक लाभ देता है।

प्रश्न 5: क्या बिना उपवास के व्रत रखा जा सकता है?

उत्तर: उपवास बेहतर है, लेकिन पूजा और दान से भी व्रत का लाभ मिलता है।

क्या है निष्कर्ष 

षट्तिला एकादशी 2026 भगवान विष्णु की भक्ति, पापों से मुक्ति, और समृद्धि प्राप्त करने का एक शुभ अवसर है। तिल के छह प्रकार के उपयोग और दान के साथ यह व्रत आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। ब्राह्मणी, नारद मुनि, और दाल्भ्य ऋषि की कथाएं हमें विश्वास और उदारता का महत्व सिखाती हैं। 14 फरवरी 2026 को श्रद्धा और अनुशासन के साथ इस व्रत को मनाएं, और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करें।

कैप्शन: षट्तिला एकादशी पर दान, जो दैवीय कृपा और समृद्धि का मार्ग खोलता है।

डिस्क्लेमर 

इस ब्लॉग में दी गई जानकारी हिंदू धर्मग्रंथों, परंपराओं, और मान्यताओं पर आधारित है। यह केवल आध्यात्मिक और सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे पूजा और व्रत के लिए किसी योग्य पुजारी या आध्यात्मिक गुरु से परामर्श लें। दिए गए मुहूर्त सामान्य पंचांग गणनाओं पर आधारित हैं और स्थान के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। लेखक और प्रकाशक इस जानकारी के उपयोग से होने वाली किसी भी विसंगति या परिणाम के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।



एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने