मौनी अमावस्या 29 जनवरी 2025 को: पढ़ें शुभ मुहूर्त पूजा विधि दो पौराणिक कथा व जैन समुदाय को क्या है लगाव

 29 जनवरी 2025, दिन बुधवार, पौष मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को जैन और सनातन धर्म के महत्वपूर्ण तिथि मौनी अमावस्या है। प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेला के मुख्य स्नान पर्व है। दो पौराणिक कथाओं के साथ ही जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और तिथि का महत्व।

मौनी अमावस्या एक अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है, जो भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपराओं से गहराई से जुड़ी हुई है। यह दिन मौन रहकर आत्म-अवलोकन, तपस्या और ध्यान करने का दिन माना जाता है। इसे "अमावस्या" (चंद्र मास के अंतिम दिन) के विशेष महत्व के कारण यह नाम दिया गया है। मौनी अमावस्या का जैन, वैदिक और कुंभ मेले की परंपराओं से भी गहरा नाता है। 

कुंभ मेले में मौनी अमावस्या का महत्व

01. शाही स्नान का दिन:

मौनी अमावस्या कुंभ मेले के दौरान सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इसे "शाही स्नान" के लिए सबसे शुभ दिन माना गया है। इस दिन साधु-संत, नागा बाबा और श्रद्धालु पवित्र गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करते हैं। कुंभ मेला के दौरान सबसे अधिक सनातनी लोग मौनी अमावस्या के दिन स्नान करते हैं।

02. मोक्ष प्राप्ति का अवसर:

पौराणिक और आध्यात्मिक मान्यता है कि इस दिन संगम में स्नान करने से जीवन के पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्त होती है। यह दिन आत्मा की शुद्धि और दिव्यता को बढ़ाने का दिन है।

03. धार्मिक और सामाजिक महत्व:

मौनी अमावस्या के दिन संगम क्षेत्र में लाखों लोग एकत्रित होते हैं। यह मेला सामाजिक एकता और धार्मिक भावना का प्रतीक भी है।

मौनी अमावस्या और जैन समुदाय के बीच का संबंध 

01. महावीर जयंती का संदर्भ:

मौनी अमावस्या का जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इस दिन को भगवान महावीर द्वारा "मौन" की शक्ति का प्रचार करने का दिन माना जाता है। मौन आत्म-अवलोकन का साधन है, जो जैन धर्म के तप और साधना के सिद्धांतों से मेल खाता है।

02. तपस्या और साधना:

जैन मुनि इस दिन विशेष तप और ध्यान करते हैं। मौन धारण करके वे कर्मों के बंधन से मुक्त होने का प्रयास करते हैं।

मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा

मनु और सृष्टि की शुरुआत की पौराणिक कथा

मनु और सृष्टि की शुरुआत की कथा भारतीय पौराणिक ग्रंथों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कथा सृष्टि की उत्पत्ति, मानव जीवन के आदिकाल और अमावस्या तिथि के महत्व को समझने में मदद करती है। मनु को सृष्टि के प्रथम मानव और प्रथम राजा के रूप में जाना जाता है। अमावस्या तिथि से यह कथा इस प्रकार जुड़ी हुई है।:

01. सृष्टि का विनाश और जलप्रलय

पुराणों के अनुसार, एक समय ऐसा आया जब सृष्टि में अधर्म बढ़ गया। देवता, असुर, मानव और सभी जीव अधर्म, हिंसा और पाप के मार्ग पर चलने लगे। इस कारण भगवान विष्णु ने निर्णय लिया कि सृष्टि को नष्ट कर पुनः निर्मित किया जाएगा।

श्री हरि विष्णु ने प्रलय लाया जिसे हम "जलप्रलय" कहते हैं। जलप्रलय से पूरी पृथ्वी जलमग्न हो गई। सभी जीव-जन्तु और मानव जाति जल में समाप्त हो गए।

02. मनु की तपस्या और विष्णु का आशीर्वाद

मनु (स्वायंभुव मनु) ने सृष्टि के विनाश से पहले लंबी तपस्या की थी। उन्होंने भगवान विष्णु से सृष्टि की रक्षा और नवजीवन की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद दिया और बताया कि वे जलप्रलय के बाद सृष्टि को पुनः आरंभ करने के लिए चुने गए हैं।

03. मत्स्य अवतार की कथा

जब प्रलय का समय आया, भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछली) का रूप धारण कर लिया। एक दिन मनु नदी के तट पर जल से हाथ धो रहे थे, तभी एक छोटी मछली उनके हाथ में आ गई। मछली ने मनु से प्रार्थना की, "मुझे बचा लीजिए।" मनु ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया।

04. मछली का बढ़ना और प्रलय का संकेत

कुछ समय बाद, मछली तेजी से बढ़ने लगी और मनु ने उसे एक बड़े जलाशय में छोड़ दिया। मछली ने मनु को बताया कि वह स्वयं भगवान विष्णु हैं और प्रलय का समय निकट है। मछली ने मनु को एक विशाल नौका (जहाज) तैयार करने के लिए कहा, जिसमें सभी जीवों के बीज, औषधियां, और सप्तऋषि सवार हो सकें।

05. प्रलय और नवसृष्टि का आरंभ

जलप्रलय के दौरान मनु, सप्तऋषि, और सभी जीवों के बीज उस नौका में सुरक्षित थे। भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में उस नौका को अपनी नाक से बांधकर सुरक्षित रखा और प्रलय के जल से पार लगाया। जब प्रलय समाप्त हुआ, तो मनु ने अमावस्या तिथि के दिन पृथ्वी पर पुनः सृष्टि की शुरुआत की।इस तिथि को महत्वपूर्ण माना गया क्योंकि यह आत्म-नवीनीकरण और पुनः निर्माण का प्रतीक बन गई।

अमावस्या तिथि से जुड़ाव

01. सृष्टि का आरंभ:

अमावस्या तिथि पर मनु ने पहली बार पृथ्वी पर जीवन को पुनः स्थापित किया। इसे "सृष्टि के प्रारंभ" का दिन माना जाता है।यह दिन सृजन, तपस्या और आत्म-नवीनीकरण का प्रतीक बन गया।

02. मौन और तपस्या:

अमावस्या तिथि पर मनु ने मौन रहकर ध्यान और तपस्या की।इस दिन को आत्म-अवलोकन और शांति के लिए आदर्श माना जाता है।

03. दान और पुनर्निर्माण का महत्व:

अमावस्या पर दान और पुण्य के कार्य मनु की नवसृष्टि के प्रतीक माने जाते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान करना पुण्य कारी माना जाता है।

धार्मिक महत्व

01. मनु का आदर्श:

मनु को धर्म, नीति और जीवन जीने के आदर्श सिद्धांतों का निर्माता माना जाता है। उन्होंने "मनुस्मृति" की रचना की, जो मानव जाति के लिए नियमों का आधार बनी।

02. सप्तऋषियों की भूमिका:

अमावस्या तिथि पर मनु के साथ सप्तऋषियों ने सृष्टि के विभिन्न पहलुओं को संभालने में सहायता की। यह दिन ऋषि परंपरा और ज्ञान का प्रतीक भी है।

03. तपस्या और आत्मबल:

मनु की तपस्या और भगवान विष्णु की कृपा से यह सिद्ध होता है कि आत्मबल और ईश्वर में विश्वास से असंभव को संभव किया जा सकता है

मनु और अमावस्या तिथि 

मनु और सृष्टि की शुरुआत की कथा अमावस्या तिथि को एक पवित्र और शुभ दिन बनाती है। इस दिन आत्मचिंतन, दान, और धर्म के प्रति समर्पण का विशेष महत्व है। यह कथा हमें जीवन में नई शुरुआत करने, कठिनाइयों का सामना करने और धर्म का पालन करने की प्रेरणा देती है।

पौराणिक कथा: महर्षि दधीचि का त्याग

महर्षि दधीचि से जुड़ी अमावस्या तिथि की पौराणिक कथा भारतीय धर्म और परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कथा उनके त्याग, तपस्या और समर्पण की मिसाल प्रस्तुत करती है। अमावस्या तिथि पर महर्षि दधीचि के जीवन का विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि इस दिन उनके मौन, ध्यान और तपस्या को स्मरण किया जाता है।

महर्षि दधीचि महान तपस्वी और ऋषि थे, जिन्हें अपने अद्भुत त्याग और तपस्या के लिए जाना जाता है। उनके जीवन से संबंधित प्रमुख कथा इस प्रकार है:

कथा का वृतांत

01. देवताओं और असुरों का संघर्ष:

पुराणों के अनुसार, असुरों ने देवताओं पर बार-बार आक्रमण करना शुरू कर दिया। असुरों के राजा वृत्रासुर ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। देवताओं के राजा इंद्र असुरों से हारकर भगवान विष्णु की शरण में आ गए।

02. वज्र निर्माण की आवश्यकता:

भगवान विष्णु ने इंद्र को सलाह दी कि वे वृत्रासुर को हराने के लिए एक शक्तिशाली हथियार (वज्र) बनवाएं। लेकिन इसके लिए महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र का निर्माण करना आवश्यक था। दधीचि की हड्डियां ही इतनी शक्तिशाली थीं कि उनसे बना वज्र वृत्रासुर को परास्त कर सकता था।

03. महर्षि दधीचि का बलिदान:

देवता महर्षि दधीचि के आश्रम पहुंचे और उनसे सहायता मांगी। उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर अपनी हड्डियां दान करने का निश्चय किया। इससे पहले उन्होंने गंगा किनारे मौन व्रत धारण कर तपस्या की और अपने शरीर को तपोबल से दिव्यता प्रदान की।

04. वज्र का निर्माण:

महर्षि दधीचि के त्याग के बाद, उनके अस्थि पंजर से वज्र का निर्माण किया गया। इस वज्र से इंद्र ने वृत्रासुर का वध किया और देवताओं को स्वर्ग वापस मिला।

अमावस्या तिथि का विशेष महत्व

महर्षि दधीचि ने अमावस्या तिथि को गंगा के तट पर ध्यान और तपस्या की थी। इस दिन को मौन, तप और आत्म-बलिदान के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

क्या है प्रतीकात्मकता

01. मौन व्रत और ध्यान:

महर्षि दधीचि ने अपने अंतिम समय में मौन व्रत धारण किया। यह मौन आत्म-ज्ञान और तपस्या का प्रतीक है।

02. त्याग का संदेश:

अमावस्या पर महर्षि दधीचि का स्मरण हमें यह सिखाता है कि समाज और धर्म के कल्याण के लिए त्याग का महत्व कितना बड़ा है।

02. गंगा स्नान का महत्व:

एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य अपने पापों से मुक्त होता है। गंगा में स्नान आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्रदान करता है।

मौनी अमावस्या की पूजा विधि

01. स्नान:

सूर्योदय से पहले गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करें। यदि नदी में स्नान संभव न हो, तो घर पर स्नान करते समय जल में गंगा जल मिलाएं।

02. मौन व्रत:

इस दिन मौन रहना शुभ माना जाता है। मौन धारण करने से आत्मा की शुद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

03. दान और पुण्य:

ब्राह्मणों को भोजन कराना और वस्त्र, अनाज, घी आदि का दान करें। गायों को चारा खिलाना और पक्षियों को दाना डालना भी शुभ माना जाता है।

04. ध्यान और मंत्र जाप:

इस दिन ध्यान और भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप विशेष फलदायक होता है।

05. विशेष अनुष्ठान:

घर में सत्यनारायण कथा या भगवद्गीता का पाठ करें। भगवान विष्णु और शिव की पूजा करें।

मौनी अमावस्या का शुभ मुहूर्त

अमावस्या तिथि प्रारंभ: 28 जनवरी 2025 दिन मंगलवार को शाम 06:05 बजे तक और समाप्ति 29 जनवरी 2025 दिन बुधवार को संध्या 0:10 बजे हो जायेगा।

स्नान और दान का श्रेष्ठ समय: 29 जनवरी दिन बुधवार को सूर्योदय से पूर्व रहेगा वैसे दोपहर तक स्नान और ध्यान करना शुभ माना गया है। ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:43 बजे से लेकर 05:34 बजे तक। इस प्रकार लाभ मुहूर्त सुबह 06:26 बजे से 07:49 बजे तक और अमृत मुहूर्त 07:49 बजे से लेकर 09:12 बजे तक रहेगा। इस दौरान काफी शुभ और फलदाई रहेगा।

डिस्क्लेमर

लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य कुंभ के दौरान मौनी अमावस्या क्या है अत्यधिक महत्व। इस विषय की खोज हमने धर्म ग्रंथों, विद्वान ब्राह्मणों और आचार्यों से विचार-विमर्श कर एवं इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्रियों का विवेचन कर लिखा गया है। हमने अपनी ओर से जितना सामग्री मिल सका आपके समक्ष प्रस्तुत किया है। इस विषय कि सत्यता की गारंटी हम नहीं लेते हैं। यह सिर्फ सूचना प्रद जानकारी है।


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने