उत्पन्ना एकादशी 2025: व्रत कथा, मुहूर्त व पूजा विधि और पौराणिक कथा

जानें उत्पन्ना एकादशी 2025 की व्रत कथा, पूजा विधि, चारों पहर पूजा मुहूर्त, राक्षस मुरा वध कथा और एकादशी माता के जन्म का पौराणिक प्रसंग। 

उत्पन्ना एकादशी 15 नवंबर 2025 दिन शनिवार को मनाया जाएगा। कार्तिक माह कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले एकादशी को उत्पन्न एकादशी कहा जाता है। एकादशी तिथि की शुभारंभ 14 नवंबर नवरात्रि 02:37 बजे से शुरू होकर 15 नवंबर को सुबह 04:45 बजे तक रहेगा।


 * दिव्य दर्शन: जब माता एकादशी ने स्वयं दिए भगवान विष्णु को दर्शन।

चारों पहर पूजा की शुभ मुहूर्त 

व्रतधारी को चार पहरों में पूजा करनी चाहिए: पंचांग अनुसार तिथि व शुभ मुहूर्त

उत्पन्ना एकादशी कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को मनाऐ जाते है। अभिजीत, विजय, गोधूलि, निशिता, ब्रह्म मुहूर्त जैसे कई शुभ मुहूर्त इस दिन पूजा के लिए उपयुक्त होते हैं।

प्रथम पहर: सुबह –  शुभ मुहूर्त 07:21 बजे से लेकर 08:44 बजे तक

द्वितीय पहर: दोपहर – शुभ चौघड़िया मुहूर्त दोपहर के 11:08 बजे से लेकर 11:52 बजे तक और चर मुहूर्त 11:30 बजे से लेकर 12:53 तक।

तृतीय पहर: संध्या समय – गोधूलि मुहूर्त 05:01 बजे से लेकर 06:19 बजे तक और लाभ मुहूर्त 05:01 बजे से लेकर 06:38 बजे तक रहेगा।

चतुर्थ पहर: रात्रि – निशिता मुहूर्त रात्रि 11:04 बजे से लेकर 11:56 बजे तक और चर मुहूर्त 11:30 बजे से लेकर 01:07 बजे तक रहेगा।

पारण ब्रह्म मुहूर्त में 04:15 बजे से लेकर 05:07 बजे और लाभ मुहूर्त 04:42 बजे से लेकर 05:59 बजे तक रहेगा।

पूजा का संकल्प और सामग्री

दशमी तिथि को एक समय सात्विक भोजन करें और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए शुद्धता बनाए रखें।

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर संकल्प लें, स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा करें।

पूजा सामग्री में – पंचामृत, तुलसी दल, दीप, मौसमी फल, फूल, वस्त्र, प्रसाद, नारियल, गंगाजल, धूप, गुड़, पान आदि रखें।

रात्रि जागरण और पारण विधि

एकादशी रात्रि को भजन, कीर्तन, सहस्त्रनाम का पाठ और दीप दान करना अत्यंत पुण्य कारी माना गया है।

द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराकर और दान देकर पारण करें।

महत्वपूर्ण बातें जो आपको जानने लायक है

एकादशी के दिन मन, वाणी और कर्म से पवित्रता बनाए रखें।

झूठ, निंदा, क्रोध, असत्य भाषण, कामवासना, हिंसा, पर-स्त्री गमन आदि से बचें।

यह व्रत सभी पापों को नष्ट करने वाला और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्रदान करने वाला माना गया है।

उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा 

एकादशी व्रत की भूमिका 

सनातन धर्म में एकादशी व्रत को अत्यंत पवित्र और पुण्य दायक माना गया है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, और इसकी महिमा पुराणों में विस्तार से वर्णित है। वर्षभर में 24 एकादशी आती हैं, लेकिन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं। यह वह एकादशी है जिसका जन्म हुआ था – अर्थात् एकादशी तिथि की उत्पत्ति इसी दिन मानी जाती है। इस दिन से ही व्रत करने की परंपरा शुरू हुई।

पौराणिक कथा का मूल स्रोत

उत्पन्ना एकादशी की यह पौराणिक कथा भविष्योत्तर पुराण में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। इसमें दैत्य मुर के अत्याचार, भगवान विष्णु की गुप्त गुफा में निद्रा, और देवी एकादशी के प्राकट्य की अद्भुत कथा पढ़ने में आती है।

पौराणिक कथा का विस्तार

दैत्य मुर का उत्पात

प्राचीन काल में एक भयंकर दैत्य उत्पन्न हुआ था, जिसका नाम था मुर। वह अत्यंत बलशाली, मायावी और असुरों का संरक्षक था। उसका जन्म नरकासुर के कुल में हुआ था और उसका निवास स्थान था – चंडनपुर। मुर ने कई वर्षों तक घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अद्वितीय बल प्राप्त किया। जब मुर को वर प्राप्त हो गया, तो वह अत्याचार की सीमा लांघ गया।

 * रणभूमि में देवताओं और राक्षसों का भीषण युद्ध, जिसकी अगुवाई कर रहा है पराक्रमी मूर!

उसने स्वर्ग, मर्त्य और पाताल – तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचा दी। देवता, ऋषि-मुनि, यज्ञ, व्रत, साधना – सब कुछ बाधित हो गया। उसने इंद्रलोक पर आक्रमण कर दिया, इंद्रदेव भाग गए। यमराज, वरुण, अग्नि, वायु और अन्य लोकपाल उसके भय से छिप गए। मुर ने अपनी राजधानी से पांच हजार योजन लंबा एक भयंकर दुर्ग बनवाया, जिसमें अनेक राक्षसों की सेना रहती थी।

देवताओं की शरणागति

अपनी हार और अपमान से व्यथित होकर समस्त देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और उनकी स्तुति करने लगे:

"हे प्रभु! आप ही सृष्टि, स्थिति और संहार के स्वामी हैं। आपकी माया से यह समस्त ब्रह्मांड बंधा है। हमारी रक्षा कीजिए। दैत्य मुर ने तीनों लोकों में प्रलय मचा रखी है।"

भगवान विष्णु ने देवताओं की पीड़ा को सुना और आश्वासन दिया – "हे देवगण! आप निश्चिंत रहें। मैं स्वयं उस दुष्ट का विनाश करूंगा।"

भगवान विष्णु और मुर का युद्ध

भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र और शंख को लेकर गरुड़ पर सवार होकर चंडनपुर की ओर प्रस्थान किया। उनकी सेना में देवताओं की चुनी हुई टोली थी। जैसे ही वे चंडनपुर पहुंचे, मुर ने उन्हें देखकर भयंकर अट्टहास किया और बोला:

"हे विष्णु! तू मेरी राजधानी में कैसे घुस आया? अब मैं तुझे मृत्यु का स्वाद चखाऊंगा।"

भगवान विष्णु ने कहा – "हे दैत्य! तुझे धर्म का विनाश करते हुए बहुत समय हो गया। अब तेरा अंत निकट है।"

फिर प्रारंभ हुआ एक भीषण युद्ध, जो हजारों वर्षों तक चला। भगवान विष्णु के बाणों से असुर सेना के अंग-भंग होने लगे। मुर ने भी ब्रह्मास्त्र, अग्न्यास्त्र, वायव्यास्त्र का प्रयोग किया, परंतु भगवान विष्णु के तेज के सामने वह टिक न सका।

भगवान विष्णु की विश्राम गुफा

लंबे समय तक युद्ध करने के पश्चात भगवान विष्णु थोड़े थक गए। वे विश्राम के लिए हिमालय की बद्रिका आश्रम के पास एक रहस्यमयी गुफा में चले गए, जो सिंहवती गुफा कहलाती थी। वहां जाकर उन्होंने शेषशैय्या पर आंखें मूंद लीं और योगनिद्रा में लीन हो गए।

उधर, मुर ने भगवान विष्णु को अकेला पाकर गुफा में प्रवेश किया और जैसे ही वह विष्णु पर वार करने वाला था, एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई।

देवी एकादशी का प्राकट्य

भगवान विष्णु के शरीर से तेजस्विनी कन्या प्रकट हुई। वह दिव्य देवी थी, जिनके हाथों में खड्ग, त्रिशूल, गदा और अन्य शस्त्र थे। वह अपूर्व तेज वाली थीं और उनका शरीर दिव्य प्रकाश से दीप्त था। यह कन्या ही देवी एकादशी थीं।

* देवी एकादशी और दैत्यराज मूरा का भीषण युद्ध: एक ऐसा विराट दृश्य जहां धर्म और अधर्म का महासंग्राम छिड़ा है।

देवी ने गुफा में प्रवेश करते ही मुर को ललकारा –

"हे पापी! तू इस गुफा में विष्णु भगवान को मारने आया है? पहले मुझसे युद्ध कर।"

मुर ने कहा – "तू कौन है? तू तो स्त्री है! तू मुझसे युद्ध नहीं कर सकती।"देवी ने कहा –

"स्त्री होकर भी मैं अधर्मियों के नाश के लिए जन्मी हूं। यदि तू पुरुष है तो मेरे साथ युद्ध कर।"

फिर एक भीषण युद्ध हुआ, जिसमें देवी एकादशी ने मुर के सारे अस्त्रों को काट डाला। अंततः उन्होंने खड्ग से उसका सिर काट दिया। मुर का वध होते ही सम्पूर्ण देवगण प्रसन्न हो उठे। आकाश में पुष्प वृष्टि होने लगी।

भगवान विष्णु की स्तुति और वरदान

जब भगवान विष्णु की नींद टूटी, तो उन्होंने अपने समक्ष मुर का वध देख कर आश्चर्य से पूछा –

"हे देवी! तुम कौन हो? तुमने मेरी अनुपस्थिति में इस भयंकर दैत्य का वध कैसे किया?"

देवी ने उत्तर दिया –

"हे प्रभु! मैं आपके तेज से उत्पन्न हुई हूं। इस दैत्य का संहार कर मैंने आपके कार्य को पूर्ण किया है।"

भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और कहा –

"हे देवी! तुमने धर्म की रक्षा की है। मैं तुम्हें वर देता हूँ – आज से तुम्हारा नाम 'एकादशी' होगा। तुम सभी व्रतों में श्रेष्ठ मानी जाओगी। जो भी मनुष्य तुम्हारा व्रत करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करेगा।"

 देवी एकादशी ने भगवान को प्रणाम किया और अंतर्धान हो गईं।

व्रत की परंपरा का आरंभ

तभी से एकादशी व्रत की परंपरा आरंभ हुई। उत्पन्ना एकादशी वह तिथि है, जब यह देवी प्रकट हुईं और अधर्म का नाश किया। यह तिथि धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ मानी जाती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ होता है, जो पहली बार एकादशी का व्रत आरंभ करना चाहते हैं। उत्पन्ना एकादशी से एकादशी व्रत की शुरुआत करना शुभ फलदायक माना गया है।

* शांति और भक्ति का प्रतीक: एकादशी माता की आराधना करते श्रद्धालु।

भावार्थ और शिक्षा

उत्पन्ना एकादशी की कथा हमें यह सिखाती है कि जब अधर्म अपने चरम पर होता है, तब धर्म की रक्षा के लिए स्वयं ईश्वर अथवा उनके तेज से उत्पन्न शक्तियां प्रकट होती हैं। देवी एकादशी उसी दिव्य शक्ति का प्रतीक हैं। इस कथा से यह भी ज्ञात होता है कि नारी शक्ति केवल कोमलता की प्रतीक नहीं, बल्कि जब धर्म पर संकट आता है, तो वह विनाशकारी रूप भी धारण कर सकती है।

महत्वपूर्ण बिंदु संक्षेप में

  1. उत्पन्ना एकादशी की कथा भविष्योत्तर पुराण में वर्णित है।

  1. दैत्य मुर का वध देवी एकादशी ने किया था।

  1. भगवान विष्णु ने उन्हें "एकादशी" नाम दिया और व्रत का वरदान दिया।

  1. यह एकादशी व्रत आरंभ करने के लिए आदर्श तिथि मानी जाती है।

  1. इस दिन व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

डिस्क्लेमर (Disclaimer):

> डिस्क्लेमर: इस ब्लॉग में प्रस्तुत उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा, पूजा विधि, मुहूर्त एवं पौराणिक जानकारी विभिन्न धर्मग्रंथों, पुराणों, जनश्रुतियों एवं श्रद्धालु मान्यताओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य धार्मिक जागरूकता और सांस्कृतिक परंपराओं को साझा करना है। पाठकों से निवेदन है कि किसी भी व्रत या धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले अपने पंडित या गुरुजन की सलाह अवश्य लें। लेखक या वेबसाइट किसी भी प्रकार की आध्यात्मिक या धार्मिक व्याख्या की पूर्णता का दावा नहीं करते हैं।







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