अमावस्या की सभी तिथियां 2025: जानें पूजा विधि व तिथियों का महत्व

अमावस्या तिथि सनातन पंचांग की महत्वपूर्ण तिथियों में से एक माना जाता है। अपने पूर्वजों याद करने और तंत्र-मंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण दिन है। बारह अमावस्या तिथियों का विस्तार से जानकारी दी गई है।

साल में कितनी अमावस्या होती है: हर साल में 12 या 13 अमावस्या होती हैं, जो लगभग हर महीने में एक बार आती है। कुछ वर्षों में एक अतिरिक्त अमावस्या भी होती है, जिसे मलमास कहा जाता है।

इसे अंधकार की तिथि भी कहा जाता है, जो मानसिक शांति और नकारात्मकता के नाश का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन विशेष रूप से पितरों की पूजा की जाती है। 

अमावस्या तिथि पर मुख्य रूप से पितरों की पूजा की जाती है। विशेष रूप से पितृदोष निवारण, पितृ पूजन, और तर्पण की प्रक्रिया इस दिन होती है। इसके अलावा, भूत-प्रेत या नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति के लिए भी अमावस्या का महत्व है, और इस दिन भगवान शिव की पूजा भी की जाती है।

अमावस्या पूजा विधि:

01. पवित्र स्नान: इस दिन सूर्योदय से पहले पवित्र नदियों या घर में स्नान करें।

02. पितृ तर्पण: पितरों के नाम से तर्पण अर्पित करें। यह अमावस्या पर अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

03. घी का दीपक: घर में घी का दीपक लगाकर अंधकार से मुक्ति की प्रार्थना करें।

04. पाठ और हवन: विशेष रूप से मृत्युञ्जय मंत्र का जाप और हवन कराना शुभ होता है।

अमावस्या तिथि के दिन शुभ मुहूर्त 

शुभ मुहूर्त: अमावस्या का शुभ मुहूर्त पूजा स्थल की स्थिति और तिथि के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। आमतौर पर रात्रि का समय और दूसरे पक्ष की तिथि के अंत तक यह तिथि रहती है, इसलिए विशेष रूप से रात्रि को ही पूजा की जाती है।

सनातन धर्म में अमावस्या का प्रत्येक माह में अलग-अलग महत्व है। हर माह की अमावस्या विशेष कार्यों और पूजा-पद्धति के लिए जानी जाती है। नीचे चैत्र से फाल्गुन तक की सभी अमावस्या और उनके महत्व का विस्तृत विवरण दिया गया है:

01. चैत्र अमावस्या (मार्च-अप्रैल)

महत्व: चैत्र अमावस्या नए हिंदू वर्ष की शुरुआत का संकेत देती है। इस दिन पवित्र स्नान, व्रत, और पितृ तर्पण का महत्व है।नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति और भगवान शिव की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।

विशेष पूजा:

जल में तिल मिलाकर पितरों को अर्पित करें। शिवलिंग पर जल चढ़ाकर "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।

02. वैशाख अमावस्या (अप्रैल-मई)

महत्व: इस अमावस्या को स्नान, दान, और तप का विशेष महत्व है। गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु और पितरों की आराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

विशेष पूजा: तिल, चावल और गुड़ का दान करें। पितृ तर्पण के साथ विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।

03. ज्येष्ठ अमावस्या (मई-जून)

महत्व: इसे शनि जयंती और वट सावित्री व्रत के साथ जोड़ा जाता है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा और पितरों को प्रसन्न करने का विशेष महत्व है। यह दिन विशेष रूप से शनि देव की कृपा पाने के लिए मनाया जाता है।

विशेष पूजा: वट वृक्ष की पूजा करें और रक्षा सूत्र बांधें। सरसों के तेल का दीपक शनि देव को अर्पित करें।

04. आषाढ़ अमावस्या (जून-जुलाई)

महत्व: इसे हलहारिणी अमावस्या भी कहते हैं। यह खेती-बाड़ी से संबंधित कार्यों के लिए शुभ मानी जाती है। इस दिन पितरों को जल अर्पित करने और दान करने का महत्व है।

विशेष पूजा: हल्दी और तिल अर्पित करें। भगवान शिव और पितरों के लिए दीपक जलाए

05. श्रावण अमावस्या (जुलाई-अगस्त)

महत्व: श्रावण माह में शिव पूजा का विशेष महत्व होता है। इस अमावस्या पर पवित्र शिवलिंग की पूजा करने से पापों का नाश होता है। इस दिन पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण करना अनिवार्य माना गया है।

विशेष पूजा: शिवलिंग पर दूध और बेलपत्र चढ़ाएं। "मृत्युञ्जय मंत्र" का जाप करें।

06. भाद्रपद अमावस्या (अगस्त-सितंबर)

महत्व: इसे कुश ग्रहणी अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन कुश (पवित्र घास) संग्रह करने का महत्व है। पितरों के लिए विशेष श्राद्ध और तर्पण किए जाते हैं।

विशेष पूजा: कुशा से भगवान विष्णु और शिव की पूजा करें।पितरों के लिए तर्पण विधि संपन्न करें।

07. आश्विन अमावस्या (सितंबर-अक्टूबर)

महत्व: इसे महालय अमावस्या भी कहते हैं। यह दिन पितृ पक्ष के अंतिम दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

विशेष पूजा: श्राद्ध कर्म और तर्पण करें। पितरों को अन्न और जल अर्पित करें।

08. कार्तिक अमावस्या (अक्टूबर-नवंबर)

महत्व: इसे दीपावली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा से समृद्धि प्राप्त होती है।यह तिथि नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने और घर में खुशहाली लाने के लिए जानी जाती है।

विशेष पूजा: लक्ष्मी पूजन करें और घर और मंदिर को दीपों से सजाएं।

09. मार्गशीर्ष अमावस्या (नवंबर-दिसंबर)

महत्व: इसे अगहन अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और पितृ श्राद्ध का महत्व है।

विशेष पूजा: पवित्र जल में दीप जलाकर नदी में प्रवाहित करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।

10. पौष अमावस्या (दिसंबर-जनवरी)

महत्व: इस अमावस्या पर तिल दान का विशेष महत्व है।भगवान सूर्य की पूजा से जीवन में सकारात्मकता आती है।

विशेष पूजा: तिल और गुड़ का दान करें। सूर्य को अर्घ्य दें।

11. माघ अमावस्या (जनवरी-फरवरी)

महत्व: इसे मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन मौन रहकर स्नान और दान करने का महत्व है।

विशेष पूजा: मौन व्रत रखें। गंगा स्नान करें और अन्न का दान करें।

12. फाल्गुन अमावस्या (फरवरी-मार्च)

महत्व: यह दिन होली उत्सव के आगमन का प्रतीक है। अर्थात इस अमावस्या के बाद सनातनी होली की तैयारी में लग जाते हैं। इस अमावस्या पर भगवान शिव और विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है।

विशेष पूजा: शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाएं। होलिका दहन से पहले घर की सफाई करें।

अमावस्या तिथि पूर्वजों को याद करते हैं 

हर माह की अमावस्या अपने आप में विशेष है। यह दिन पितरों, भगवान शिव, और अन्य देवताओं की कृपा पाने के लिए उपयुक्त होता है। हर अमावस्या पर न केवल पूजा, बल्कि दान, व्रत, और ध्यान करने का भी विशेष महत्व है।

डिस्क्लेमर 

अमावस्या तिथि पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। अमावस्या तिथि की पंचांग से लिया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहारों के प्रति रूझान बढ़ाना है। हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।


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