छठ महापर्व की संपूर्ण जानकारी पढ़ें इस लेख में

नहाए खाए, 8 नवंबर को, खरना, 9 नवंबर को, संध्या का अर्ध्य 10 नवंबर को, सुबह का अर्ध्य 11 नवंबर को है।



खड़ना की रात 10:37 बजे के बाद शुरू होगा 24 घंटे का निर्जला व्रत 

पहले दिन का अर्ध्य शाम 7:30 बजे के बाद

सुबह 6:41 बजे के बाद दे उगते सूर्य को अर्घ्य

पौराणिक कथा और पूजा सामग्रियों की सूची पढ़ें


पवित्रता और आस्था का महापर्व छठ इस बार 8 नवंबर से शुरू होकर 11 नवंबर तक चलेगा। 36 घंटे निर्जला व्रत रखकर सूर्य देव की आराधना करना तथा संतान के दीर्घायु और सुखी जीवन की कामना के लिए समर्पित छठ पूजा इस वर्ष का​र्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि अर्थात 8 नवंबर से शुरू होगा। षष्ठी तिथि 10 नवंबर दिन शुक्रवार को है।



छठ पूजा का प्रारंभ चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होता है, फिर पंचमी को खरना या रसियाव होता है। उसके बाद षष्ठी तिथि को छठ पूजा और सूर्य देव को शाम का अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन सप्तमी को सूर्योदय के समय  उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान हैं।अर्घ्य देने के उपरांत व्रतधारी 36 घंटे से निर्जला व्रत का पारण करके व्रत को पूरा करते हैं। छठ पर्व पवित्रता की महता को दर्शाता है।

नहाय-खाय से शुरू करें आस्था का महापर्व छठ



आस्था का महापर्व छठ पर्व का शुभारंभ कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, चतुर्थी तिथि से होती है। यह छठ पर्व का पहला दिन होता है, इस दिन को नहाए खाय कहते हैं। इस वर्ष नहाय-खाय 8 नवंबर दिन सोमवार को है। इस दिन सुबह उठकर नदी, तालाब, कुंआ या घर में स्थित नल से स्नान कर शरीर पर गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद आस्था का महापर्व छठ व्रत करने का संकल्प लें। भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद घर में बड़े बुजुर्गों का चरण स्पर्श करें। पूजा के उपरांत अरवा चावल का भात और लौकी से बने सब्जी का सेवन करें।


चंद्रअस्त के बाद शुरू होता है निर्जला व्रत


खरना के रात चंद्र अस्त के बाद निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा। महाआस्था का पर्व छठ के दूसरे दिन खरना करने का विधान है। इस दिन छठ पूजा का दूसरा दिन कहलाता है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना पर्व मनाते हैं । इस वर्ष खरना 9 नवंबर दिन मंगलवार को है। खरना के दिन सुबह से ही व्रतधारी निर्जला रहकर छठी मैया का दिन भर श्रवन करती है।


शाम को स्नान कर नया वस्त्र पहन कर मिट्टी के बने चूल्हे हैं आम की लकड़ी से पीतल के बर्तन में गुड़ के खीर और रोटी बनाती हैं। गोधूलि बेला में भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद छठी मैया को पूजा अर्चना करने के उपरांत खीर और रोटी खाती है। व्रत धारियोंं को भोजन करने के उपरांत प्रसाद के रूप में लोगों के बीच वितरण किया जाता है।


मान्यता है इस दिन खरना के प्रसाद मांग कर खाने से छठी मैया खुश होती है। आकाश में जब तक चंद्र उदय रहता है व्रतधारी पानी पी सकते हैं। चंद्रमा अस्त हो जाने के बाद 24 घंटेे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।


तीसरा दिन व्रतधारी सूर्य को सन्ध्या अर्घ्य देती हैं व्रतधारीआस्था के महापर्व के तीसरे दिन 10 नवंबर दिन बुधवार को छठ पूजा का प्रमुख दिन होता है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को पड़ता है। इस दिन ही छठ पूजा होती है। इस दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।


छठ की पूजा सामग्री दउरा और सूप में सजा कर व्रतधारी छठी मईय की गीत गाते हुए घाट की ओर प्रस्थान करती है। इसके बाद घाट पर पहुंचकर छठी मैया और सूर्य देव का पिंड बनाकर पवित्र जल में स्नान कर, पूजा अर्चना करने के उपरांत भगवान भास्कर को अर्ध देती हैैं। अर्घ्य देने के दौरान घरवाले जो घाट पर स्नान कर चुके हैं वह भी भगवान भास्कर को जल में दूध मिलाकर अर्घ्य देते हैं। अंत में घाट पर से छठ गीत गाते हुए व्रतधारी घर के लिए प्रस्थान कर जाते हैं।


चौथे दिन उगते सूरज को अर्घ्य देकर महापर्व समाप्त

आस्था का महापर्व छठ के चौथे दिन उगते हुए भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर पारण करते हैं। बहुत से समाज सेवी संस्थाएं घाट पर शिविर लगाकर व्रतधारियों के बीच दूध, आम का दातुन, आम का लकड़ी, चाय, खीर और कॉफी आदि सामग्रियों का वितरण करते हैं। उसी दौरान व्रतधारी भी लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करते हैं।


रात 10:37 बजे के बाद 24 घंटे का निर्जला व्रत शुरू

चार दिवसीय महापर्व छठ के दूसरे दिन खड़ना है। 9 नवंबर, दिन मंगलवार, कार्तिक माह, शुक्ल पक्ष, पंचमी तिथि के दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा धनु राशि में रात 10:00 बज के 37 मिनट तक इसके बाद मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा। नक्षत्र पूर्वाषाढ़ रहेगा। इस दिन चंद्र अस्त का विशेष महत्व होता है। चंद्र अस्त रात 9:50 बजे पर हो जाएगा। व्रत धारी चंद्र अस्त के पहले पानी पी लेते हैं। इसके बाद 24 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।

छठ व्रत के तीसरे दिन अर्थात 10 नवंबर दिन बुधवार कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, षष्ठी तिथि को नक्षत्र उत्तराषाढ़ा रहेगा। इस दिन चंद्रमा मकर राशि में और सूर्य तुला राशि में रहेंगे। दक्षिणायन दिशा में सूर्य स्थित रहेंगे। इस दिन सूर्यास्त का विशेष महत्व है। सूर्य अस्त के पूर्व छठ व्रतधारी अर्ध्य दे देते हैं।

पहले दिन का अर्ध्य शाम 5:30 बजे के बाद

सूर्यास्त शाम 5:30 बजे पर हो जाएगा। व्रतधारियों को अर्घ्य देते समय तीन मुहूर्तों का संयोग मिलेगा। गोधूलि, चर और सायाह्य संध्या मुहूर्त रहेगा। गोधूलि मुहूर्त शाम 5:19 बजे से लेकर 5:45 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार चर मुहूर्त शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे बजे तक और सायाह्य संध्या मुहूर्त 5:30 बजे से लेकर 6:45 बजे तक रहेगा। इस दौरान अर्घ्य देना शुभ रहेगा।

छठ महापर्व के अंतिम दिन अर्थात 11 नवंबर दिन गुरुवार को पड़ रहा है। कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि को सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा मकर राशि में रात 1:52 बजे तक रहेगा। इसके बाद कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे।

सुबह 6:41 बजे के बाद दे उगते सूर्य को अर्घ्य

नक्षत्र श्रावण रहेगा। इस दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य छठ व्रतधारी देते हैं। सूर्योदय सुबह 6:00 बज के 41 मिनट पर होगा इस दौरान चर मुहूर्त रहेगा। जग बहुत का आगमन शिवा 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक रहेगा।


छठ पर्व में लगने वाली पूजा सामग्री

आस्था के महापर्व छठ में अनेक तरह के पूजा सामग्री लगती है। कच्चे बांस की दो टोकरी, बांस या पीतल के सूप, जल अर्पण करने के लिए पीतल या तांबा का लोटा, पान पत्ता, गोटा सुपारी, अरवा चावल, सिंदूर, मिट्टी का दीया, शहद, गुड, दूध, धूप अगरबत्ती, शकरकंद, सुथनी, पत्ते सहित पांच गन्ने के पौधे, मूली, अदरक और हल्दी का हरा पौधा, केला, सेवन, संतरा, नाशपाती, शरीफा, पानी फल, आवला, पानी वाला नारियल, ठेकुआ, नया वस्त्र, गाजर, बड़ा नींबू, कपूर, आम का सूखा लकड़ी और दातुन प्रमुख है

जानें छठ व्रत को लेकर पौराणिक कथा

छठ व्रत के संबंध में कई तरह के पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी के अंश को देवसेना कहा जाता है। देवसेना प्राकृतिक का छठा अंश है। इसलिए देवसेना को छठी मैया भी कहा जाता है।

 पुराणों के अनुसार छठी देवी को नौनिहालों की रक्षा करने वाली माता तथा लंबी उम्र प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। आज भी देश के कई राज्यों में बच्चों के जन्म के छठे दिन को छठिहार के रूप में मनाया जाता है।

 दूसरी ओर छठी मैया को ब्रह्मा जी का मानस पुत्री कहा जाता है इसी देवी की पूजा नवरात्रि के षष्ठी तिथि को देवी कात्यायनी माता के रूप में पूजा जाता है। एक मान्यता के अनुसार सूर्य देव की बहन भी छठी मैया को माना जाता है।

दो कथा महाभारत काल से भी जुड़ा है। कर्ण का जन्म सूर्य देव के द्वारा दिए गए वरदान के कारण कुंती के गर्भ से हुआ था। कर्ण को भगवान सूर्य ने कवच और कुंडल भी प्रदान किया था। कर्ण प्रतिदिन सुबह समय कमर भर जल में खड़े होकर घंटों भगवान सूर्य को पूजा करते थे और नदी के जल से भगवान भास्कर को अर्घ्य देते थे। भगवान सूर्य को अर्घ्य दने की परंपरा कर्ण ने हीं शुरू किया था।

 दूसरी कथा पांडव से जुड़ा है। पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए थे। द्रोपती ने छठ व्रत कर अपने खोए राज पाठ को पुनः प्राप्त किया था। 

रानी के पुत्र प्राप्ति की कथा

 छठ व्रत की कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम मालिनी थी। दोनों नि:संतान थे। संतान नहीं रहने से राजा और रानी काफी दुखी रहते थे। राजा और रानी ने एक दिन पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ के प्रभाव से रानी गर्भवती हो गईं। 9 महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी के गर्भ से मृत पुत्र पैदा हुआ। राजा को जब इस बात का पता चला तो वे बहुत ज्यादा दुख हुए। 

संतान शोक में राजा ने आत्म हत्या करने दृढ़ संकल्प कर लिया। परन्तु जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक अद्भुत और अलौकिक देवी प्रकट हुईं।

देवी ने राजा से कहा कि मैं षष्टी माता हूं। मैं सभी नि: संतानों को को संतान का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे मन से मेरी पूजा करते हैं, मैं उसके सभी प्रकार के मनोकामना को पूर्ण कर देती हूं। 

अगर तुम मेरी पूजा-अराधना करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र प्रदान करूंगी। देवी की इन बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पूरी विधि से छठ व्रत किया। राजा और रानी ने ठीक देवी ने जैसे बताया था वैसे ही कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि-विधान से पूजा की। इस पूजा के परिणामस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।



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