भैया दूज, यम द्वितीया, भाई फोटा व चित्रगुप्त पूजा शनिवार, 6 नवंबर को

पांच दिवसीय दीपोत्सव महोत्सव के क्रमानुसार आज अंतिम महोत्सव भैया दूज अर्थात यम द्वितीया और चित्रगुप्त पूजा है। दीपोत्सव का प्रथम महोत्सव धनतेरस से शुरू होकर नरका चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और आज अंतिम भैया दूज है। पांचों महोत्सव का ऐतिहासिक महत्व है।


भैया दूज या गोधन, भाई फोटा, चित्रगुप्त पूजा और यम द्वितीया 6 नवंबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा‌। कार्तिक माह, शुक्ल पक्ष, द्वितीय तिथि, अनुराधा नक्षत्र में पड़ने वाले इस पर्व में सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा वृश्चिक राशि में रहेगा।


गोधन कूटने, चित्रगुप्त पूजा, भाई फोटा व भाई के हाथों में रक्षा सूत्र बांधने का शुभ मुहूर्त


गोधन कूटने, चित्रगुप्त पूजा, भाई फोटा और भाई के हाथों में रक्षा सूत्र बांधने का शुभ मुहूर्त सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक शुभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। इसके बाद 12:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक चर, लाभ, अमृत, विजय और अभिजीत मुहूर्त का संयोग रहेगा। यह समय काफी अच्छा और शुभ है।


पंचांग के अनुसार आज का दिन कैसा रहेगा



6 नवंबर 2021, दिन शनिवार, कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, द्वितीय तिथि रात 7 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। ऋतू हेमंत, अयन दक्षिणायन, नक्षत्र अनुराधा और योग शोभना है। सूर्योदय 6:37 बजे पर और सूर्यास्त 5:00 बज के 32 मिनट पर होगा। चंद्रोदय सुबह 8:01 बजे पर और चंद्रास्त शाम 6:50 बजे पर होगा।

सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा वृश्चिक राशि में, दिनमान 10 घंटा 55 मिनट का और रात्रिमान 13 घंटा 5 मिनट का होगा।

आनंदादि योग अमृत रात 11:00 बज के 49 मिनट तक है। इसके बाद मुसल हो जाएगा।होमाहुति सूर्य, दिशा शूल पूर्व, राहुवास पूर्व, अग्निवास पाताल रात 7:44 बजे तक इसके बाद पृथ्वी और चंद्र वास उत्तर है।


भैया दूज मनाने की पौराणिक कथा


भैया दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को दीर्घायु की कामना कर व्रत रखती है। साथ ही यह त्योहार भाई बहन के स्नेह को सुदृढ़ बनाने का काम करता है। बहनों का पर्व भैया दूज दीवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है। आज ही के दिन कायस्थ समाज के लोग भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं।

सनातन धर्म में भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक दो पर्व होते हैं। पहला रक्षाबंधन जो श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। रक्षा बंधन के मौके पर भाई बहन की रक्षा करने की शपथ लेते हैं जबकि दूसरा त्योहार, भाई दूज आता है। इसमें बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु की कामना करती हैं।

भैया दूज को भ्रातृ द्वितीया, भाई फोटा, यम द्वितीया और गोधन भी कहा जाता हैं। इस त्योहार का प्रमुख कारक भाई और बहन के मधुर संबंध व प्रेमभाव को प्रगाढ़ बनाना है।

इस दिन बहनें गोबर से बने यम और यमी की पूजा भी करती है। बहनें भाइयों के स्वस्थ्य तथा दीर्घायु होने की मंगल कामना करके व्रत भी रखतीं हैं।

इस दिन बहनें भाइयों के शरीर में तेल की मालिश कर यमुना में स्नान कराती हैं। बहनें अपने हाथों से भाइयों को खिलाने पर भाई दीर्घायु होते हैं और जीवन भर कष्टों से मुक्त रहते हैं। इस दिन बहनों को चाहिए कि भाई को चावल सहित विभिन्न तरह के पकवान खिलाएं। इस दिन बहन के घर भोजन करने का धार्मिक महत्व है।


गोबर से बना याम-यमी को बहनें क्यों कुटती हैं


भैया दूज के दिन गोधन कूटने की पुरानी प्रथा है। गोबर की यम और यमी की प्रतिमा जमीन पर बना कर उसके छाती पर ईंट, पत्थर, रेगनी के कांटा और सुपारी रखकर बहनें उसे मूसलों से तोड़ती है और कुटती हैं।

मुसल से कुटते समय बहनें पारंपारिक गीत गाते हुए अपने भाई की दीर्घायु और मंगल कामना करती हैं। अंत में बहनें रेगनी के कांटे से अपने जिव्हा मैं छुभाती है और प्रायश्चित करती है। इस दिन यमराज और बहन यमुना की पूजा करने का विधान है।


भैया दूज की धार्मिक और पौराणिक कथा


भगवान भास्कर (सूर्य) की पत्नी का नाम छाया था। छाया के पुत्र यमराज और पुत्री यमुना थी। यमुना यम की बहन थी इसलिए उसका नाम यमी पड़ा। यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर विनती करती कि भाई यमराज उसके घर आए और भोजन करें।


अपने कार्य में व्यस्त रहने के कारण यमराज बहन की बात टालते रहते थे। कार्तिक माह शुक्ला पक्ष द्वितीया तिथि के दिन यमुना ने एक बार फिर से यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उन्हें अपने घर आने के लिए विवश कर लिया।


यमराज ने वचनबद्ध होकर अपनी बहन यमुना से मिलने उसेे घर पहुंच गए। अपनेे घर भाई यमराज को आया हुआ देखकर बहन यमुना काफी खुश हुई और खुशी का ठिकाना ना रहा है।

सबसे पहले यमुना ने भाई केे साथ यमुना नदी में स्नान कर भाई को टीका लगा आशीर्वाद लिया। इसके बाद घर ले जाकर विभिन्न तरह के व्यंजन परोसकरकर भोजन करायी। बहन के सत्कार को देखकर यमराज काफी खुश हुए और वर मांगने को कहा।

यमुना ने कहा कि भाई आप इसी तरह प्रत्येक वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहनें इस दिन अपने भाई को अपने घर में भोजन करा माथे पर टीका लगाएं उसे तुम्हारा भय न रहे। ऐसा आशीर्वाद दो। यमराज ने वचन दिया और अपनी बहन यमुना को उपहार देकर यमलोक चल गए।


गोधन कूटने का शुभ मुहूर्त जानें, चौघड़िया पंचांग के अनुसार


गोधन कूटने और भाई पूजने का शुभ मुहूर्त सुबह से ही शुरू हो जाता है। शुभ मुहूर्त सुबह 7:30 से शुरू होकर 9:00 बज के 4 मिनट तक रहेगा। उसी प्रकार चर मुहूर्त सुबह 12:00 से लेकर 1:30 बजे तक और लाभ मुहूर्त दोपहर 1:00 बजकर 30 मिनट से लेकर 3:00 बजे तक और अमृत मुहूर्त शाम 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक रहेगा। इस दौरान बहने सभी तरह की धार्मिक कार्य निर्बाध रूप से संपन्न कर सकती हैं।


चौघड़िया पंचांग के अनुसार रात का शुभ मुहूर्त

शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक लाभ मुहूर्त, 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक शुभ मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक अमृत मुहूर्त और 12:00 बजे से लेकर रात 1:30 बजे तक चर मुहूर्त का आगमन रहेगा। इस दौरान भी आप पूजा अर्चना कर सकते हैं।


बहनें भूलकर भी ना करें इस दौरान पूजा


भैया दूज के दिन सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 तक काल मुहूर्त रहेगा। उस दौरान किसी प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान और पूजा करना निषेद्ध है। उसी तरह रोग मुहूर्त सुबह 9:00 से लेकर दोपहर 10:30 तक और उद्धेग मुहूर्त 10:30 से लेकर 12:00 बजे तक रहेगा। एक बार फिर से काल मुहूर्त आगमन शाम 4:30 से लेकर 6:00 बजे तक रहेगा। इस दौरान भी पूजा अर्चना करना वर्जित है। बहने शुभ मुहूर्त देखकर अपने धार्मिक अनुष्ठान को संपन्न करें।


अब जाने पंचांग के अनुसार शुभ और अशुभ मुहूर्त


अभिजीत मुहूर्त दिन के 11 बजकर 43 मिनट से लेकर 12:26 बजे तक रहेगा।


जानें विस्तार से शुभ मुहूर्त की गणना


भैया दूज के दिन विजय मुहूर्त दिन के 1:54 बजे से लेकर 2:38 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 5:21 बजे से लेकर 5:45 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त 5:32 बजे से लेकर 6:00 बज के 51 मिनट तक, निशिता मुहूर्त रात 11:39 बजे से लेकर 12:31 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:43 बजे से लेकर 5:00 बज के 45 मिनट तक प्रातः संध्या 5:19 बजे से लेकर 6:37 बजे तक रहेगा।


अशुभ मुहूर्त सुबह 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक राहुकाल के रूप रहेगा। उसी प्रकार सुबह 6:37 बजे से लेकर 7:20 बजे तक गुलिक काल के रूप में, दिन के 1:26 से लेकर 2:48 तक यमगण्ड काल, शाम 6:37 से लेकर 7:20 तक दुर्मुहूर्त काल के रूप मेंं, शाम 4:00 बज के 39 मिनट से लेकर 6:04 बजे तक वज्य काल के रूप में रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।


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