गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव 5 नवंबर को धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन गौ सेवा करना फलदाई और पूण्य का काम होगा।
कार्तिक मास प्रतिपदा तिथि दिन शुक्रवार को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव है।
कैसा रहेगा आज का दिन जानें पंचांग के अनुसार
कार्तिक मास, प्रतिपदा तिथि, दिन शुक्रवार को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव है। इस दिन पंचांग के अनुसार प्रतिपदा तिथि रात 11 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। नक्षत्र विशाखा है। योग आयुष्मान है।
सूर्योदय 6 बजकर 36 मिनट पर और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 33 मिनट पर होगा। सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा तुला राशि में रात 9 बजकर 3 मिनट तक इसके बाद वृश्चिक राशि में प्रवेश कर जायेंगे।
आनन्दादि योग मातंग, होमाहुति सूर्य, दिशाशूल पश्चिम, राहु वास दक्षिण-पूर्व, अग्नि वस पृथ्वी और आकाश और चंद्रमा वास पश्चिम और उत्तर रहेगा।
गोवर्धन पूजा के दिन क्या करें गौपालक जानें
शुक्रवार को सुबह उठकर गोपालक सबसे पहले अपने जानवरों को शुद्ध जल से स्नान कराकर उसके सिर में घी का लेप लगाते हैं। इसके बाद उसके शरीर पर विभिन्न तरह के रंगों से भरे हुए चित्रकारी बनाते हैं। और पैरों में घुंघरू बांध देते हैं। साथ ही तरह-तरह के सजावट के सामान अपने जानवरों के शरीर पर सजाते हैं। पौष्टिक आहार भी देते हैं।
पौराणिक कथाओं की जानकारियां
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव का विस्तार से वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में किया गया है। कथा के अनुसार नंद जी ने सभी ग्वालों से कहे कि अब समय आ गया है। इंद्र को याद कर उन्हें खुश किया जाए। इस विषय पर श्री कृष्ण ने कहा कि संसार की स्थिति, उत्पत्ति और उसके अंत क्रमशः सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण में है।
यह संपूर्ण जगत स्त्री और पुरुष के संजोग से रजोगुण द्वारा उत्पन्न होता है। उसी रजोगुण की प्रेरणा से मेघगण सभी जगहों पर जल बरसाते हैं। जल से अन्न उत्पादन होता है। उपजे अन्न से ही सभी जीवों की जीविका चलती है। इसमें भला इन्द्र का क्या लेना-देना है।
श्री कृष्ण ने कहा इन्द्र की पूजा करना अनुचित
पिताश्री न तो हमारे पास किसी देश का राज्य है। और ना तो बड़े-बड़े नगर ही हमारे अधीन है। हमारे पास गांव या घर भी नहीं है। इसलिए हम लोगों गौओं, ब्राह्मणों और गिरिराज का पूजा करने की तैयारी करें। इंद्र यज्ञ के लिए जो सामग्रियों इकट्ठा की गई है।
उन्हीं से इस यज्ञ का अनुष्ठान होने दें। पूजा के लिए खीर, हलवा, पुआ, पूरी आदि से लेकर मूंग की दाल तक बनाए जाएं। ब्रज का सारा दूध एकत्र कर लिया जाए। वेदवादी ब्राह्मणों के द्वारा भांति भांति हवन कराया जाए तथा उन्हें अनेकों प्रकार के अन्न, गाय और दक्षिण दी जाए। अंत में सज धज कर सभी गोपी और गोपिया गोवर्धन की परिक्रमा करें। यह मेरी इच्छा है इसे करने से गौ, ब्राम्हण और गिरिराज को भी प्रिय लेगा और मुझे भी बहुत पसंद आएगा।
श्रीकृष्ण की इच्छा थी कि इंद्र का घमंड चूर चूर कर दें। नंद बाबा सहित सभी गोपों ने उनकी बात सुनकर बड़ी प्रसन्नता से स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण के कहे अनुसार यज्ञ प्रारंभ किया गया।
श्री कृष्ण ने गोप और गोपियों को विश्वास दिलाने के लिए गिरिराज के ऊपर एक दूसरा विशाल शरीर धारण करके प्रकट हो गए। तथा मैं हूं गिरिराज ? इस प्रकार कहते हुए बनात हुए सारी सामग्री स्वयं खाने लगे। भगवान श्री कृष्ण ने अपने गिरिराज बने स्वरूप को दूसरे व्रजवासियों के साथ स्वयं भी प्रणाम किया और कहने लगे देखो कैसा लीला है। गिरिराज स्वयं प्रकट होकर हम पर कृपा की है।
यह चाहे जैसा रूप धारण कर सकते हैं। जो बनवासी जीव पर्वत का निरादर करते हैं, उन्हें यह नष्ट कर देते हैं। आओ अपना और अपने गौओं का कल्याण एवं रक्षा करने के लिए इस गिरिराज को हम नमस्कार और पूजन करें।
गुस्से में इंद्र ने की भीषण बारिश
जब इंद्र को पता चला कि नंद गांव के लोगों ने मेरी पूजा बंद कर दी गई है। तब नंद बाबा और गोप और गोपियों पर बहुत अधिक क्रोधित हुए। इन्द्र को देवताओं के राजा होने पर बड़ा घमंड था। वह समझते थे कि मैं ही त्रिलोक का ईश्वर हूं।
इन्द्र ने क्रोध से तिलमिलाकर प्रलय करने वाले मेघों और सांवर्तक नामक गणों को व्रज पर चढ़ाई करने का आज्ञा दी। इन्द्र ने गुस्से में भरकर कहा को ओह जंगली इन्सानों को इतना घमंड ? सचमुच यह धन का नाश है। भला देखो तो सही एक साधारण मनुष्य कृष्ण के बल पर उन्होंने मुझे अर्थात देवराज का अपमान कर डाला।
कृष्ण नालायक, बकवादी, अभिमानी, नादान और मूर्ख होने पर भी अपने को बहुत बड़ा ज्ञानी समझता है। वह स्वयं मृत्यु का ग्रास बनेगा। फिर भी उसी का सहारा लेकर इन अहीरों ने मेरी अवहेलना और घोर बेज्जयती की है।
सात दिनों तक होती रही बारिश,
भगवान ने उंगली पर उठाए रखें पर्वत को
भीषण बारिश होते देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने खेल खेल में एक ही हाथ से गिरिराज गोवर्धन को अखाड़ा कर हाथ में रख लेते हैं। उन्होंने उस पर्वत को धारण कर लिया। इसके बाद भगवान ने गोपों से कहा माता जी, पिता जी और ब्रजवासियों तुम लोग अपनी गोवधन, सब सामग्रियों के साथ इस पर्वत के गड्ढे में आकर आराम से बैठ जाओ।
भगवान श्रीकृष्ण के आश्वासन देने पर सब के सब ग्वालों ने अपने-अपने गोधन, आश्रितों, पुरोहित और बच्चों महिलाओ को अपने साथ लेकर गोवर्धन के गड्ढे में आ घुसे। श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक लगातार उस पर्वत को उठा रखा। एक पग भी वहां से इधर-उधर नहीं हुए। श्रीकृष्ण की योग माया का प्रभाव देखकर इंद्र को आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
इसके बाद मेघों को वर्षा रोकने का आदेश दिया। भीषण तूफान बंद हो गया। सूर्य दिखने लगे। इससे बाल गोपाल काफी खुश हो गए, इसके बाद श्रीकृष्ण ने कहा बचे हुए समस्त सामग्रियों को लेकर आप लोग अपने-अपने घर लौट जाएं क्योंकि सभी नदी-नाले में पानी कम हो गया है।