अमृत मुहूर्त में जलाएं दीपावली की दीया


दीपोत्सव का महापर्व दीपावली 4 नवंबर दिन गुरुवार को है। कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष, अमावस्या तिथि को दीपावली के साथ महालक्ष्मी पूजा, कुबेर पूजा, रूप चोदश पूजा, नरक चतुर्दशी पूजा और काली पूजा मनाने की परंपरा है। 


दीपावली के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों तुला राशि में रहेंगे। तुला राशि भगवान श्रीराम का राशि है। दीपावली भगवान श्रीराम का लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में अयोध्या वासियों ने घी का दीप जलाकर श्रीराम प्रभु, भाई लक्ष्मण और माता सीता सहित सभी सैनिकों का स्वागत किया था। 


जानें पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा दिन


दीपावली के दिन अमावस्या तिथि रात 1:44 बजे तक रहेगा। चित्रा नक्षत्र सुबह 7:43 बजे तक है, इसके बाद स्वाति नक्षत्र आ जाएगा। प्रथम करण चतुष्पद और द्वितीय करण नाग है। योग प्रिति है। ‌ 


सूर्योदय सुबह 6:35 बजे पर और सूर्यास्त शाम 5:34 बजे पर होगा। ऋतू हेमंत है। दिनमान 10 घंटा 58 मिनट का और रात्रिमान 13 घंटे 2 मिनट का रहेगा। 


आनन्दादि योग सुबह 7:43 बजे चर मुहूर्त है। इसके बाद सुस्थिर हो जायेगा, जो सुबह 5:08 बजे तक रहेगा। होमाहुति केतु सुबह 7:45 बजे तक इसके बाद सूर्य हो जाएगा। दिशा शूल दक्षिण, राहुवास दक्षिण, अग्निवास पृथ्वी और चंद्रवास पश्चिम रहेगा।


तुला राशि में दीपावली पड़ना काफी शुभ रहेगा। 

अमृत मुहूर्त शाम 6:00 बजे से लेकर रात 7:30 बजे तक रहेगा इस दौरान मां लक्ष्मी की पूजा करना काफी शुभ होगा। 


वैसे रात 12:00 बजे से लेकर रात 01:30 बजे तक लाभ मुहूर्त पड़ रहा है। इस दौरान काली पूजा और मध्यरात्रि की वैभव लक्ष्मी की पूजा करना अति उत्तम रहेगा। 



जानें पूजा करने का शुभ मुहूर्त दिन में


वैसे दीपावली की रात को ही महालक्ष्मी और काली पूजा की जाती है। परंतु बहुत से जातक सुबह में भी महालक्ष्मी की पूजा करते हैं। उन लोगों के लिए शुभ मुहूर्त जो सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक रहेगा। उस दौरान मां की आराधना भक्त कर सकते हैं। 


उसी प्रकार चर मुहूर्त दिन के 12:00 बजे से दोपहर के 1:30 तक, लाभ मुहूर्त 1:30 से लेकर 3:00 बजे तक और अमृत मुहूर्त शाम 3:00 बजे से लेकर शाम 6:00 बजे तक रहेगा। इस दौरान माता लक्ष्मी की पूजा आप कर सकते हैं।


भूलकर भी ना करें इस समय मां की पूजा


सुबह के समय मां की आराधना और पूजा करने वाले भक्तों को ऐसे समय में पूजा अर्चना नहीं करनी चाहिए जिस समय काल और रोग योग चल रहा है। सुबह 6 बजे से लेकर 7:30 बजे तक और शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक काल योग चलेगा।

 इस दौरान पूजा करना वर्जित है। उसी प्रकार सुबह के 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक रोग योग और 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक उद्धेग योग रहेगा, यह दोनों योग काफी अशुभ है। इस समय पूजा करने से जातकों को बचना चाहिए।


अमृत योग में करें महालक्ष्मी की पूजा


दीपावली की रात 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक अमृत योग रहेगा। इसके बाद रात 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक चर योग और सुबह 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक लाभ योग का सुंदर संयोग है। इस दौरान पूजा करना शास्त्र सम्मत और धर्म सम्मत रहेगा। अमृत योग जो 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे के बीच है। इस दौरान महालक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि और शांति की वृद्ध होती है। सालों घर परिवार के लोग खुशहाल रहेंगे।


रात के समय भूलकर भी ना करें पूजा


दीपावली की रात अनिष्ट योग भी विद्यमान है। ऐसे समय में जातकों को पूजा अर्चना नहीं करना चाहिए। शाम 7:30 बजे से लेकर रात 9:00 बजे तक उद्धेग काल चलेगा। इस दौरान पूजा करना वर्जित है। उसी प्रकार रात 1:30 बजे से लेकर 3:00 तक रोग योग और सुबह 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक काल योग का संजोग है। इस दौरान की पूजा अर्चना करना सख्त मना है।


दीपावली पर दो पौराणिक कथा है प्रचलित


दीपावली के संबंध में दो पौराणिक कथा प्रचलित है। त्रेता युग में भगवान श्री राम का लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर नगर वासियों ने घी का दीप प्रज्ज्वलित कर खूशी का इजहार किया था। द्वापर युग में महाबली और वामन अवतार का प्रसंग मिलता है। 


बात महाभारत काल की है।

 

एक बार युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा भगवन आप मुझे कृपा कर कोई ऐसा व्रत या अनुष्ठान बतायें, जिसके करने से मै अपने नष्ट राज्य को पुनः प्राप्त कर सकूं। क्योंकि राज्यच्युत हो जाने के कारण में अत्यन्त दुःखी हूं। श्रीकृष्ण ने कहा कि मेरा परमभक्त दैत्यराज बलि ने एक बार सौ अश्वमेघ यज्ञ करने का संकल्प लिया।


 99 यज्ञ तो उसने निर्विध्न रूप से पूर्ण कर लिये, परन्तु 100 वें यज्ञ के पूर्ण होते ही उन्हें अपने राज्य से निर्वासित होने का भय सताने लगा। देवताओं को साथ लेकर इन्द्र भगवान विष्णु के पास पहुंचकर सम्पूर्ण वृत्तान्त भगवान् विष्णु से कह सुनाया। सुनकर भगवान विष्णु ने उनसे कहा, मैं तुम्हारे कष्ट को शीघ्र दूर कर दूंगा।


 भगवान विष्णु ने वामन का अवतार धारण कर ब्राम्हण के भेष में राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे। राजा बलि को वचनबद्ध कर भगवान् ने तीन पग भूमि उनसे दान में मांग ली । 


बलि द्वारा दान का संकल्प करते ही भगवान् ने अपने विराट् रूप से एक पग में सारी पृथ्वी को नाप लिया । दुसरे पग से अंतरिक्ष और तीसरा चरण उसके सिर पर रख दिया । राजा बलि की दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा । 


राजा के कहा - कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक अर्थात दीपावली तक इस धरती पर मेरा राज्य रहे। तीन दिनों तक सभी लोग दीप-दान कर लक्ष्मी जी की पूजा करें। 


दूसरी कथा लंका विजय से जुड़ी हैं


पौराणिक कथा के अनुसार दीपावली के दिन अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे।अयोध्यावासियों प्रिय राजा के आगमन से उत्साहित थे। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। धरती पर भ्रमण करती हैं और लोगों को वैभव का आशीष देती है।

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