दीपावली और काली पूजा 14 को, ऐसे मनाएं दीपोत्सव

दीपोत्सव का महापर्व दीपावली 14 नवंबर को मनाया जाएगा। 

कार्तिक मास कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को दीपावली के साथ महालक्ष्मी की पूजा, कुबेर पूजा, रूप चोदश, नरक चतुर्दशी और काली पूजा एक साथ मनाया जाएगा। 

दीपावली के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों तुला राशि में रहेंगे। तुला राशि भगवान श्रीराम का राशि है। दीपावली भगवान श्रीराम का लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है।

 इस दिन अयोध्या वासियों ने घी का दीप जलाकर श्रीराम प्रभु, लक्ष्मण और माता सीता सहित सभी सैनिकों का स्वागत किया था। तुला राशि में दीपावली पड़ना काफी शुभ रहेगा।

 आयुष्मान योग शाम 7:30 बजे से लेकर रात 3:15 तक रहेगा इस दौरान पूजा करना काफी फलदाई होगा। वैसे रात 10:30 बजे से लेकर रात 12:00 बजे तक अमृत योग पड़ रहा है आयुष्मान योग के साथ अमृत योग का संजोग महालक्ष्मी का पूजन के लिए अति उत्तम समय होगा। 

जाने पूजा करने का शुभ मुहूर्त दिन में

वैसे दीपावली की रात को ही महालक्ष्मी और काली पूजा की जाती है। परंतु बहुत से जातक सुबह में भी महालक्ष्मी की पूजा करते हैं। उन लोगों के लिए शुभ मुहूर्त जो सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक रहेगा। 

उस दौरान मां की आराधना भक्त कर सकते हैं। उसी प्रकार चर योग दिन के 12:00 बजे से दोपहर के 1:30 तक, लाभ योग 1:30 से लेकर 3:00 बजे तक और अमृत योग शाम 3:00 बजे से लेकर शाम 6:00 बजे तक रहेगा।

भूलकर भी ना करें इस समय मां की पूजा

सुबह के समय मां की आराधना और पूजा करने वाले भक्तों को ऐसे समय में पूजा अर्चना नहीं करना चाहिए जिस समय काल और रोग योग चल रहा है।

 सुबह 6 बजे से लेकर 7:30 बजे तक और शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक काल योग रहेगा। इस दौरान पूजा करना वर्जित है। उसी प्रकार सुबह के 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक रोग योग और 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक उद्धेग योग रहेगा, यह दोनों योग काफी अशुभ है। इस समय पूजा करने से जातकों को बचना चाहिए।

अमृत योग में करें महालक्ष्मी की पूजा

दीपावली की रात 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक अमृत योग रहेगा। इसके बाद रात 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक चर योग और सुबह 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक लाभ योग का सुंदर संयोग है। 

इस दौरान पूजा करना शास्त्र सम्मत और धर्म सम्मत होगा। अमृत योग जो 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे के बीच है। इस दौरान महालक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि और शांति की वृद्ध होगी। सालों भर घर और परिवार के लोग खुशहाल रहेंगे।


रात के समय भूलकर भी ना करें पूजा

दीपावली की रात अनिष्ट योग भी विद्यमान है। ऐसे समय में जातकों को पूजा अर्चना नहीं करना चाहिए। शाम 7:30 बजे से लेकर रात 9:00 बजे तक उद्धेग काल चलेगा। 

इस दौरान पूजा करना वर्जित है। उसी प्रकार रात 1:30 बजे से लेकर 3:00 तक रोग योग और सुबह 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक काल योग का संजोग है। इस दौरान भी पूजा अर्चना करना सख्त मना है।


दीपावली पर दो पौराणिक कथा है प्रचलित

दीपावली के संबंध में दो पौराणिक कथा प्रचलित है। त्रेता युग में भगवान श्रीराम का लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर नगर वासियों ने घी का दीप प्रज्ज्वलित कर खूशी का इजहार किया था। द्वापर युग में महाबली और वामन अवतार का प्रसंग मिलता है। बात महाभारत काल की है।

 एक बार युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा भगवन आप मुझे कृपा कर कोई ऐसा व्रत या अनुष्ठान बतायें, जिसके करने से मै अपने नष्ट राज्य को पुनः प्राप्त कर सकूं। क्योंकि राज्यच्युत हो जाने के कारण में अत्यन्त दुःखी हूं। श्रीकृष्ण ने कहा कि मेरा परमभक्त दैत्यराज बलि ने एक बार सौ अश्वमेघ यज्ञ करने का संकल्प लिया। 99 यज्ञ तो उसने निर्विध्न रूप से पूर्ण कर लिये, परन्तु 100 वें यज्ञ के पूर्ण होते ही उन्हें अपने राज्य से निर्वासित होने का भय सताने लगा। 

देवताओं को साथ लेकर इन्द्र भगवान विष्णु के पास पहुंचकर सम्पूर्ण वृत्तान्त भगवान् विष्णु से कह सुनाया। सुनकर भगवान विष्णु ने उनसे कहा, मैं तुम्हारे कष्ट को शीघ्र दूर कर दूंगा। भगवान विष्णु ने वामन का अवतार धारण कर ब्राम्हण के भेष में राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए। राजा बलि को वचनबद्ध कर भगवान् ने तीन पग भूमि उनसे दान में मांग ली।

 बलि द्वारा दान का संकल्प करते ही भगवान् ने अपने विराट् रूप से एक पग में सारी पृथ्वी को नाप लिया । दुसरे पग से अंतरिक्ष और तीसरा चरण उसके सिर पर रख दिया । राजा बलि की दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा।

 राजा के कहा कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक अर्थात दीपावली तक इस धरती पर मेरा राज्य रहे। तीन दिनों तक सभी लोग दीप-दान कर लक्ष्मी जी की पूजा करें। अपने घरों में सुख और समृद्धि ला सकते हैं।

दूसरी कथा लंका विजय से जुड़ी हैं

पौराणिक कथा के अनुसार दीपावली के दिन अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे।अयोध्यावासियों   प्रिय राजा के आगमन से उत्साहित थे। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। 

दशहरा के 21 दिन के बाद क्यों पड़ता है दीपावली

भारतवासी प्रति वर्ष दशहरे के ठीक 21 दिन बाद ही दीपावली क्यों मनाते है। इसके बारे में कभी आपने इस पर विचार किया है। वाल्मिकी रामायण में कहा गया है कि श्रीराम प्रभु ने अपनी पूरी सेना को श्रीलंका से अयोध्या तक पैदल चलकर आने में 21दिन (इक्कीस दिन यानी 504 घंटे) लगे थे।  श्रीलंका से अयोध्या की पैदल दूरी 3145 किलोमीटर और लगने वाला समय 504 घंटे लगते हैं। वाल्मिकी ऋषि ने तो रामायण की रचना श्रीराम के जन्म से पहले ही कर दी थी।  

मां काली की पूजा मध्य रात्रि को

दीपावली की रात मां काली की पूजा होती है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम के लोग मां काली की पूजा घर में सुख शांति, शत्रुओं पर विजय और सिद्धि प्राप्ति के लिए करते हैं। दीपावली की रात दो तरह के काली की पूजा होती है। एक काले रंग वाली काली मां और दूसरा श्यामा रंग की काली मां। 

मान्यता है कि रौद्र रूप धारण किए काली रंग की काली मां पूर्ण सिद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है। उसी प्रकार श्यामली काली मां सुख, शांति और समृद्धि के लिए भक्त पूजा अर्चना करते हैं। रात्रि 11:00 बजे से लेकर 1:00 के बीच मां काली का पूजा करने का शुभ मुहूर्त है।


यह लेख धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। सभी पक्षों को इसमें समाहित किया गया है। यह धार्मिक कथा आपको कैसा लगा हमारे ईमेल पर जरूर अपना अनुभव लिखकर भेजिएगा।

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