आस्था का महापर्व छठ पर्व का शुभारंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि से होती है। यह छठ पर्व का पहला दिन होता है, इस दिन नहाय खाय होता है। इस वर्ष नहाय-खाय 18 नवंबर दिन बुधवार को है। इस दिन सुबह उठकर नदी, तालाब, कुंआ या घर में स्थित नल से स्नान कर शरीर पर गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद आस्था का महापर्व छठ व्रत करने का संकल्प लें। भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद घर में बड़े बुजुर्गों का चरण स्पर्श करें। पूजा के उपरांत अरवा चावल का भात और लौकी से बने सब्जी का सेवन करें।
खरना के रात चंद्र अस्त के बाद निर्जला व्रत शुरू महाआस्था का पर्व छठ के दूसरे दिन खरना करने का विधान है। इस दिन छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना पर्व मनाते हैं । इस वर्ष खरना 19 नवंबर दिन गुरुवार को है। खरना के दिन सुबह से ही व्रत हरि निर्जला रहकर छठी मैया का दिन भर श्रवन करती है। शाम को स्नान कर नया वस्त्र पहन कर मिट्टी के बने चूल्हे हैं आम की लकड़ी से पीतल के बर्तन में गुड़ के खीर और रोटी बनाते हैं। गोधूलि बेला में भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद छठी मैया को पूजा अर्चना करने के उपरांत खीर और रोटी खाती है। दो व्रत धारियोंं को भोजन करने के उपरांत प्रसाद के रूप में लोगों के बीच वितरण किया जाता है। मान्यता है इस दिन खरना के प्रसाद मांग कर खाने से छठी मैया खुश होती है। आकाश में जब तक चंद्र उदय रहता है गिरधारी पानी पीी सकते हैं। चंद्रमा अस्त हो जाने के बाद 24 घंटेे का निर्जला व्रत शुरूू हो जाताा है।
आस्था के महापर्व के तीसरे दिन 20 नवंबर दिन शुक्रवार को छठ पूजा का प्रमुख दिन होता है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को पड़ता है। इस दिन ही छठ पूजा होती है। इस दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ की पूजा सामग्री दउरा और सूप में सजा कर व्रतधारी छठी मईय की गीत गाते हुए घाट की ओर प्रस्थान करती है। इसके बाद घाट पर पहुंचकर छठी मैया और सूर्य देव का पिंड बनाकर पवित्र जल में स्नान कर, पूजा अर्चना करने के उपरांत भगवान भास्कर को अर्ध देते हैैं। अर्घ्य देने के दौरान घरवाले जो घाट पर स्नान कर चुके हैं वह भी भगवान भास्कर को जल में दूध मिलाकर अर्घ्य देते हैं। अंत में घाट पर से छठ गीत गाते हुए व्रतधारी घर के लिए प्रस्थान कर जाते हैं।
चौथे दिन उगते सूरज को अर्घ्य देकर महापर्व समाप्त
आस्था का महापर्व छठ के चौथे दिन उगते हुए भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर पारन करते हैं। बहुत से समाज सेवी संस्थाएं घाट पर शिविर लगाकर व्रतधारियों के बीच वितरण करते हैं। उसी दौरान व्रतधारी भी लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करते हैं।
जाने अर्घ्य देने का समय
चार दिवसीय महापर्व छठ के दूसरे दिन खड़ना है। 19 नवंबर, दिन गुरुवार, कार्तिक माह, शुक्ल पक्ष, पंचमी तिथि के दिन सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा मकर राशि में रहते हुए नक्षत्र पूर्वाषाढ़ रहेगा। इस दिन चंद्र अस्त का विशेष महत्व होता है व्रत धारी चंद्र अस्त के पहले पानी पी लेते हैं। इसके बाद 24 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
छठ व्रत के तीसरे दिन अर्थात 20 नवंबर दिन शुक्रवार, कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, षष्ठी तिथि को नक्षत्र उत्तराषाढ़ा रहेगा। इस दिन चंद्रमा मकर राशि में और सूर्य वृश्चिक राशि में रहेंगे। दक्षिणायन दिशा में सूर्य स्थित रहेंगे। इस दिन सूर्यास्त का विशेष महत्व है। सूर्य अस्त के पूर्व छठ व्रतधारी अर्घ्य दे देते हैं। सूर्यास्त शाम 5:22 पर हो जाएगा। व्रतधारियों को गोदली मुहूर्त अर्थात शाम 5:11 से लेकर 5:00 बज के 35 मिनट तक या चल मुहूर्त शाम 4:19 से लेकर शाम 5:40 तक रहेगा। इस दौरान अर्घ्य देना शुभ रहेगा।
छठ महापर्व के अंतिम दिन अर्थात 21 नवंबर दिन शनिवार को पड़ रहा है। कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि को सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे। नक्षत्र श्रावण रहेगा। इस दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य छठ व्रतधारी देते हैं। सूर्योदय सुबह 6:00 बज के 45 मिनट पर होगा इस दौरान शुभ मुहूर्त रहेगा।
छठ पर्व में लगने वाली पूजा सामग्री
आस्था के महापर्व छठ में अनेक तरह के पूजा सामग्री लगती है। कच्चे बांस की दो टोकरी, बांस या पीतल के सूप, जल अर्पण करने के लिए पीतल या तांबा का लोटा, पान पत्ता, गोटा सुपारी, अरवा चावल, सिंदूर, मिट्टी का दीया, शहद, गुड, दूध, धूप अगरबत्ती, शकरकंद, सुथनी, पत्ते सहित पांच गन्ने के पौधे, मूली, अदरक और हल्दी का हरा पौधा, केला, सेवन, संतरा, नाशपाती, शरीफा, पानी फल, आवला, पानी वाला नारियल, ठेकुआ, नया वस्त्र, गाजर, बड़ा नींबू, कपूर, आम का सूखा लकड़ी और दातुन प्रमुख हैं।