पति पत्नी की अटूट प्रेम की व्रत करवा चौथ 4 नवंबर को मनाया जाएगा। सुहागिनी अपने पति के दीर्घायु के लिए करवा चौथ व्रत रखती है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सूर्य तुला राशि में चंद्रमा वृष राशि में रहेंगे और नक्षत्र मृगशिरा रहेगा। निर्जला व्रत के अंत में चंद्रोदय के बाद छलनी में पति का चेहरा देखकर अन्न ग्रहण करती है। अधिकांश महिलाएं करवा चौथ व्रत अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती है। शास्त्रों में चंद्रमा को आयु, सुख और शांति का कारक माना जाता है। इसलिए करवा चौथ के व्रत में चंद्रमा की पूजा करके महिलाएं पति की लंबी आयु की कामना करती है।
सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक रखे जाने वाले व्रत करवाचौथ को पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश और राजस्थान का प्रमुख पर्व माना जाता है। करवा चौथ व्रत सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। करवाचौथ के दिन हर महिला बड़ी ही श्रद्धा भाव से और निर्जला व्रत रखकर शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश के साथ चंद्रमा की भी पूजा करती है। कुंवारी कन्याएं भी मनवांछित वर के लिए करवाचौथ की व्रत रखती हैं। करवाचौथ का पवित्र व्रत प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन रखने का विधान है। इस वर्ष करवाचौथ व्रत 04 नवंबर दिन बुधवार को पड़ रहा है।
चंद्रोदय रात 8:40 मिनट पर
कार्तिक माह, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाए जाने वाला सुहागिनों का व्रत करवाचौथ 4 नवंबर दिन बुधवार को पड़ रहा है। इस दिन रात 8:40 पर चंद्रोदय होगा। व्रतधारी महिलाएं 8:40 के बाद अर्थात चंद्रोदय के बाद अपने पति का चेहरा छलनी में देखकर भगवान चंद्रदेव को अर्घ्य देगी। इसके बाद पति भोजन का निवाला पत्नी को खिलाएंगे। करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं सोलहो सिंगार कर सबसे पहले भगवान भोलेनाथ माता पर्वती कार्तिकेय गणेश और चंद्रमा की पूजा करने के उपरांत पति से निवाला खाने के बाद व्रत को तोड़ती
व्रती क्यों देखती है छलनी से पति का चेहरा
करवा चौथ की रात व्रती महिलाएं छलनी से अपने पति और चांद का चेहरा देखती है। छल से बचने के लिए छलनी से अपने पति का चेहरा देखने का विधान है। इस संबंध में एक पौराणिक कथा है। सात भाइयों के बीच एक करवा नाम की महिला थी। भाइयों की प्यारी बहना की शादी हुई। शादी के साल करवा अपनी नइहर में करवा चौथ का व्रत कर रही थी। निर्जला व्रत रखने के कारण करवा भूख से व्याकुल हो गई। अपनी लाडली बहन की व्याकुलता देखकर छोटे भाई ने थोड़ी दूर पर एक पेड़ के आड़ में आग जलाकर सामने छलनी रखकर अपनी बहन को दिखाता है कि देखो चंद्रोदय हो गया। बहन को जलती हुई अग्नि चांद जैसा दिखा। बहन ने चांद देखकर अपना व्रत तोड़ दी। भगवान चंद्रमा को बड़ा क्रोध हुआ और उसी वक्त पति को भयंकर रोग हो गया। पति को रोगी देखकर करवा दुखी हो गई। करवा अपनी पति का तन, मन और धन से सेवा करने लगी। पति का रोग के कारण उसका सब कुछ बिक गया। वह निर्धन हो गई। घर की बड़े बुजुर्ग महिलाओं ने बताया कि तुमने भगवान चंद्रमा से छल करके बिना उदय के ही निवाला ग्रहण कर लिया था, इसलिए तुम्हारे पति को भयंकर रोग हो गया है। आने वाले वर्ष में विधि विधान से करवाचौथ का व्रत करो। करवा ने आने वाले वर्ष में करवाचौथ के दिन निर्जला व्रत रखकर भगवान चंद्रमा, भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय का पूजा अर्चना की। पूजा अर्चना से खुश होकर भगवान चंद्रमा ने उनके पति को फिर से चंगा कर दिया। इसलिए व्रत की हुई महिलाएं छलनी से चांद और अपने पति का चेहरा देखने के बाद ही भोजन ग्रहण करती है। यही परंपरा आज तक चलते आ रहा है।
अमृत योग में देखें चांद और पति का चेहरा
4 नवंबर दिन बुधवार को रात 8:30 से 9:00 के बीच देश के विभिन्न क्षेत्रों में चंद्रोदय होगा। इस दौरान शुभ और अमृत योग का सुंदर मिलन हो रहा है। व्रतधारी महिलाओं को अमृत योग में अपने पति के चेहरे का दीदार करना चाहिए। अमृत योग रात 8:00 बज के 49 मिनट से लेकर 10:35 तक रहेगा। उसी प्रकार शुभ योग शाम 7:30 से रात 8:49 के बीच रहेगा। इस बार ऐसा संजोग बहुत दिनों के बाद देखने को मिल रहा है की अमृत योग में महिलाएं अपने निर्जला व्रत का पारन करेंगी।
नई छलनी का करें उपयोग
करवा चौथ की रात छलनी से चांद और पति का चेहरा देखने का विधान है। व्रतधारी महिलाएं छलनी से अपने पति का चेहरा देखती है। धर्म शास्त्र के अनुसार नई छलनी से ही इस विधि का पूर्णाहुति करनी चाहिए। पुरानी छावनी का उपयोग करने से महिलाओं के जीवन में अथाह दुख, संकट और रोग आदि रोग से ग्रस्त हो जाती हैं। इसलिए इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि छलनी नई होनी चाहिए।
जाने पूजा करने का शुभ मुहूर्त
करवा चौथ के दिन व्रतधारी महिलाओं को शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा करनी चाहिए। सुबह के समय कोई जातक अगर पूजा करना चाहता है तो उसे लाभ योग में सुबह 6:34 से लेकर 7:49 तक तथा अमृत योग में 7:00 बज कर 49 मिनट से लेकर 9:23 तक करना काफी शुभ रहेगा। इसके बाद शुभ योग का भी आगमन 10:47 से लेकर 12:11 तक रहेगा। इस दौरान पूजा करना शुभ और मंगलकारी होगा।
शाम के समय पूजा करने वाली व्रतधारी महिलाओं को उद्धेग योग जो अमंगलकारी माना जाता है। वह शाम 5:45 से लेकर 7:23 तक रहेगा। इस दौरान पूजा करना वर्जित है। इसे ध्यान में रखने की जरूरत है। इसलिए शाम को पूजा करने वाली महिलाओं को शाम 5:00 बज कर 47 मिनट से पहले पूजा कर लेनी चाहिए। इसके बाद शाम 7:23 से लेकर 8:59 तक शुभ योग है इसके बाद 8:00 बज के 59 मिनट से लेकर 10:35 तक अमृत योग है इस दौरान व्रतधारी महिलाएं पूजा अर्चना कर सकती है।
भूलकर भी ना करें इस दौरान पूजा
करवा चौथ के दिन व्रतधारी महिलाएं भूल कर भी सुबह 9:00 बज कर 23 मिनट से लेकर 10:45 तक काल योग चलेगा। उसी प्रकार दोपहर के 12:00 बज कर 11 मिनट से लेकर 1:35 तक रोग योग चलेगा। और एक बजकर 35 मिनट से लेकर 2:59 बजे तक उद्धेग योग रहेगा। इस दौरान पूजा करने से बचना चाहिए।
आइए जाने कैसे करें करवा चौथ की पूजा
व्रतधारी महिलाओं को सूर्योदय से पहले स्नान कर के व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद करवाचौथ का निर्जल व्रत शुरु हो जायेगा। माता पार्वती, भोलेनाथ शिव व भगवान गणेश का ध्यान पूरे दिन अपने मन में करते रहना चाहिए। आठ पूरियों की ठेकुआ और हलुआ बनाएं। अन्य पकवान भी बनाएं। गिली मिट्टी से मां गौरी और गणेश का प्रतिमा बनाएं और मां गौरी की गोद में गणेश को स्थापित करें। भगवान गणेश को गोद में लिए माता गौरी को लकड़ी के सिंहासन पर विधि विधान से स्थापित कर उन्हें लाल रंग की चुनरी पहना कर अन्य श्रींगार सामग्री अर्पित करें। फिर उनके सामने जल से भरा कलश रखें। गौरी गणेश के स्वरूपों सहित भोलेनाथ, भगवान कार्तिकेय और भगवान चंद्रमा की पूजा करें। इसके बाद करवाचौथ की कथा सुनें। कथा सुनने के बाद आपको अपने घर के सभी वरिष्ठ लोगों का चरण स्पर्श कर लेना चाहिये। रात्रि बेला छननी से चंद्र दर्शन करें। चन्द्रमा को अर्घ्य दें। पति के पैरों को छूकर उनका आर्शिवाद लें। फिर पति देव के हाथों निवाला ग्रहण करें।
राजस्थान में है चौथ माता के मंदिर
देश के विभिन्न भागों में चौथ माता की मंदिर स्थित है परंतु राजस्थान में चौथ माता का मंदिर सबसे प्राचीन और ख्यातिप्राप्त है। राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिला के बरावाड़ा गांव में चौथ माता का मंदिर स्थित है। मंदिर का निर्माण महाराजा भीम सिंह चौहान ने की थी।