सुहागिन महिलाओं की सबसे बड़े निर्जला व्रत हरतालिका तीज, इस वर्ष अमृत योग में मनाने का संयोग बन रहा है। 21 अगस्त को निर्जला व्रत है। इस दिन सूर्य सिंह राशि में, और चंद्रमा कन्या राशि में है। इस सुखद संयोग में अगर व्रतधारी महिलाएं भगवान शंकर, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करती है तो अखंड सौभाग्यवती और दीर्घायु पति पाती हैं।
24 घंटे निर्जला व्रत रखकर व्रतधारी महिलाएं 22 अगस्त को सुबह स्नान कर पूजा-अर्चना करके, तुलसी के पौधे में जल डालकर सूर्योदय के उपरांत पारण करें।
हरतालिका तीज निर्जला व्रत सुहागन महिलाएं करती है। सबसे पहले निर्जला व्रत माता पार्वती ने भोले शंकर को प्राप्त करने के लिए किया था। यह व्रत भ्रादपद माह के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को मनाया जाता है। पति की दीर्घायु के लिए सुहागन महिलाएं व्रत रख अपने अखंड सौभाग्यवती और सुखी वैवाहिक जीवन प्राप्त करने के लिए भगवान भोलेनाथ, माता पर्वती और गणेश भगवान की बालू की प्रतिमा बनाकर विधि विधान से पूजा अर्चना करती है। इस बार बहुत ही सुखद संयोग में पूजा का योग बन रहा है।
अमृत योग सुबह 9:00 बज के 31 मिनट से लेकर 11:06 तक रहेगा। उसी प्रकार अभिजीत मुहूर्त 12:00 बज के 16 मिनट से 1:06 तक है। इस दौरान पूजा करने से सभी तरह के सुख की प्राप्ति होती है।
तृतीया तिथि को 5 तरह का शुभ संयोग बन रहा है । जिस समय पूजा करने से सभी तरह का लाभ प्राप्त होगा। पंचांग के अनुसार सुबह 6:21 से 7:00 बज कर 56 मिनट तक चर योग है। उसी प्रकार लाभ योग 7:00 बज कर 56 मिनट से लेकर 9:31 तक रहेगा। अमृत योग 9:00 बज कर 31 मिनट से 11:06 तक और शुभ योग 12:41 से 2:16 तक रहेगा। उसी प्रकार अभिजीत मुहूर्त दोपहर के 12:16 से 1:00 बज के 6 मिनट तक और एक बार फिर चर योग शाम के 5:26 से 7:01 तक रहेगा। इस दौरान निर्जला व्रत धारी महिलाएं भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती और गणेश भगवान का विधि विधान से पूजा अर्चना कर अपने पति का दीर्घायु की कामना कर सकती है।
इस समय भूलकर भी ना करें पूजा
तृतीया तिथि के दौरान कुछ समय ऐसा भी होता है जिस समय पूजा करना वर्जित होता है। महिलाएं भूल कर भी इस समय पूजा अर्चना ना करें । दिन के 11:06 से लेकर 12:00 बज कर 41 मिनट तक काल योग रहेगा। उसी प्रकार 2:16 से 3:51 तक रोग योग रहेगा। और अंत में 3:52 से 5:26 तक उद्वेग योग रहेगा। इस दौरान व्रतधारी महिलाएं पूजा अर्चना ना करें।
कैसे करें व्रत का विधान
हरितालिका तीज व्रत करने का विधान पौराणिक कथाओं में वर्णित है। तीज व्रत सुहागन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं दोनों करती है। 20 अगस्त को सुबह नदी, तालाब या घर में हैं गंगाजल मिलाकर स्नान कर, माता पार्वती, भगवान भोलेनाथ और गणेश भगवान का ध्यान कर व्रत करने का प्रण करें। इसके बाद पूजा अर्चना कर शाकाहारी भोजन करें।
दूसरे दिन अर्थात 21 अगस्त को दिन भर निर्जला व्रत रख संध्या समय स्नान कर सुहागन महिलाएं सोलह सिंगार कर भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू से निर्मित प्रतिमा बनाएं इसके बाद उसे स्थापित कर मौसमी फल, सिंगार के सामान, विभिन्न प्रकार के मिष्ठान से पूजन करें। भगवान भोलेनाथ को बेलपत्र, भांग, धतूरा के फूल समी के पत्ता से पूजा करें जबकि माता पर्वती को श्रृंगार की वस्तुएं फूल और भगवान गणेश को लड्डू का भोग लगाकर पूजा करें। इसके बाद रातभर जागकर कीर्तन-भजन करें।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती का जन्म हिमालय राजा के घर में हुई थी। शुरू से हैं माता पार्वती भोलेनाथ के भक्त थीं। उनकी मन में हमेशा भोलेनाथ को पति के रूप में देखने की प्रबल इच्छा रहती थी। माता पार्वती ने भोलेनाथ को वर पाने के लिए महल में रहते हैं कठिन व्रत करने लगी। पिता ने अपनी पुत्री की भक्ति देखते हुए और नारद जी के कथा अनुसार मां पार्वती के लिए विष्णु भगवान को वर के रूप में स्वीकार करने का मन बना लिया। इस बात की जानकारी मिलने पर नारद जी ने क्षीर सागर में विश्राम कर रहे हैं भगवान विष्णु को सुखद समाचार सुनाया और नारदजी पार्वती से विवाह करने के लिए सहमति प्राप्त कर ली।
जब यह समाचार पर्वती जी को पता चला तो वह विचलित हो गई और अपने सखियों से अपनी मन की बात सही और भोलेनाथ को प्राप्ति के लिए उपाय पूछी। सखियों ने मां पार्वती को घने जंगल में ले जाकर एक गुफा में छिपा दिया और तपस्या करने का सुझाव दिया। माता पर्वती गुफा ने भोलेनाथ का तपस्या करने लगी। जंगल के गुफा में संजोग बस हस्त नक्षत्र भाद्रपद शुक्ल पक्ष, तृतीय तिथि को बालू का शिवलिंग बनाकर विधि विधान से पूजा अर्चना की। भगवान भोलेनाथ माता पार्वती की आराधना, पूजा और हठयोग देखकर काफी प्रसन्न हुए और पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वचन दे दिया।
इधर माता पर्वती को घर से चले जाने पर पिता हिमालय काफी चिंतित हुए और खोजते हुए गुफा के पास पहुंच गए। माता भगवती ने अपनी पूजा और भोलेनाथ से दर्शन और पत्नी के रूप में स्वीकार करने की पूरी कथा कह सुनाई । राजा हिमालय पार्वती से कथा सुनकर काफी प्रसन्न हुए और शिव को दामाद के रूप में स्वीकार वचन दे दिया।
24 घंटे निर्जला व्रत रखकर व्रतधारी महिलाएं 22 अगस्त को सुबह स्नान कर पूजा-अर्चना करके, तुलसी के पौधे में जल डालकर सूर्योदय के उपरांत पारण करें।