गणेश चतुर्थी 22 को, भूलकर भी नही करें चंद्रमा का दर्शन

गणेश चतुर्थी 22 अगस्त दिन शनिवार को है। इस दिन भगवान गणेश का पूजा अर्चना होती है। रात के समय चंद्रमा को भूलकर भी नहीं देखना चाहिए। चंद्रमा देखने पर कलंक का भागी जातक बन सकते हैं और चोरी का आरोप लग सकता है। भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती की मैल से हुआ था। चन्द्रमा अपने रूप के गुमान में भगवान गणेश के कोप भाजन बने।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को धूमधाम से गणेश महोत्सव मनाया जाता है। इस बार 22 अगस्त दिन शनिवार को चतुर्थी तिथि है। सनातन धर्म के अनुसार प्रथम पूज्य देवता गणेश भगवान हैं। हस्त नक्षत्र में पड़ने वाला चतुर्थी तिथि के दिन सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा कन्या राशि में रहेंगे। चतुर्थी तिथि के रात चंद्रमा को देखना वर्जित है। इस दिन के रात को, जो भी लोग चंद्रमा का दर्शन करेंगे। उन्हें कलंक का भागी बनना पड़ेगा और चोरी का इल्जाम लग सकता है। इसलिए इस दिन चंद्रमा के दर्शन से लोगों को बचना चाहिए। भगवान गणेश का जन्म चतुर्थी तिथि को दिन के मध्य में हुआ था। मां पार्वती की मैल से जन्मे भगवान गणेश प्रथम पूज्य देवता कहलाये।

पूजा करने का उचित मुहूर्त
चतुर्थी तिथि को अभिजीत मुहूर्त दिन के 12:16 से लेकर एक बजकर 6 मिनट तक रहेगा। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त सुबह 7:56 से लेकर 9:30 तक, चार मुहूर्त दिन के 12:48 से लेकर 2:16 तक, लाभ मुहूर्त दिन के 2:16 से लेकर 3:15 मिनट तक है। उसी प्रकार अमृत योग का मुहूर्त 3:51 से लेकर 5:00 बज के 26 मिनट तक रहेगा। इस समय भक्त अपने आराध्य देव भगवान गणेश की पूजा अर्चना पूरे विधि विधान से करना चाहिए।
भूलकर भी ना करें इस समय पूजा
गणेश चतुर्थी तिथि के दिन भूल कर भी राहुकाल, गुली काल और यमघट काल मैं पूजा नहीं करनी चाहिए। राहु काल सुबह 9:00 बज के 30 मिनट से लेकर 11:00 बज के 6 मिनट तक रहेगा। उसी प्रकार गुली काल सुबह 6:00 बज कर 21 मिनट से लेकर 7:00 बज के 56 मिनट तक और यमघट काल दिन के 2:16 से लेकर 3:00 बज गए 51 मिनट तक रहेगा। शाम के समय भी गुली काल का आगमन हो रहा है। शाम 5:00 बज के 26 मिनट से लेकर 7:00 बजे तक गुली काल रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।


भगवान गणेश के जन्म की कथा
भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती की मैल से हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती अपनी सहेलियों के साथ बैठी हुई थी। सहेलियों ने सुझाव दिया की भगवान शिव को मानने वाले उनके गण हैं, जो हमेशा उनकी सेवा में लगे रहते हैं। उसी प्रकार आपका भी एक सेवक होना चाहिए। माता को सहेलियों की बात जच गई। एक दिन गुफा के अंदर बने तालाब में माता पार्वती स्नान कर रही थी। उनके मन में विचार आया कि एक ऐसा सेवक होना चाहिए जो गुफा के द्वार पर पहरा दे सके और किसी को भी अंदर आने की अनुमति न दें। उनके मन में विचार आने के बाद उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को जन्म दिया। जिसका नाम गणेश पड़ा।


चंद्रमा को देखना क्यों है, वर्जित
शिव पुराण कथा के अनुसार माता पार्वती अपने गुफा के अंदर स्थित तालाब में स्नान कर रही थी। गुफा के द्वार पर पहरा देने के लिए भगवान गणेश को बैठा दी थी। माता पर्वती ने गणेशजी को आदेश दिया कि किसी को भी, किसी भी कीमत में, गुफा के अंदर प्रवेश नहीं करने देना। मां स्नान करने में मशगूल थी। उसी समय भगवान भोलेनाथ गुफा के द्वार पर आए और अंदर जाने की चेष्टा करने लगे। भगवान गणेश ने उन्हें रोक दिया। भगवान भोलेनाथ काफी देर तक समझाते रहे की मैं तुम्हारा पीता हूं । इसलिए अंदर जाने दो। भगवान गणेश किसी भी कीमत पर भोलेनाथ को अंदर जाने नहीं देना चाहते थे। अंत में भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से भगवान गणेश का सर काट दिया। जब यह समाचार माता पार्वती को मिली, तो मां ने रौद्र रूप धारण कर पृथ्वी को नष्ट करने पर तुल गई। भगवान विष्णु के सुझाव के बाद भोलेनाथ ने गणेश के सिर के जगह हाथी के सिर जोड़ दिए। इस प्रकार भगवान गणेश सर हाथी के सिर जैसा हो गया।
भगवान गणेश को हाथी के रूप में अवतरित देखकर चंद्रमा मंद मंद मुस्कुराने लगे। उन्हें अपने रूप और रंग पर गर्व था। भगवान गणेश ने चंद्रमा के कुटिल हंसी को देखते हुए श्राप दे दिया। तुम हमेशा के लिए काला हो जाओ। चंद्रमा को अपनी गलती का एहसास हुआ और काफी विनती करने लगा। भगवान गणेश ने दया कर उसे 1 दिन के लिए पूर्ण रूप दे दिए। बाकि 15 दिन कटते रहना है और 15 दिन जुड़ते जाना है। यह वाक्य चतुर्थी के दिन हुआ था। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा को देखने से जातक को भगवान गणेश का कोप भाजन बनना पड़ेगा। भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण ने चतुर्थी तिथि को चंद्रमा देख लिए थे। उससे उन पर चोरी का झूठा इल्जाम लगा। इसलिए चतुर्थी का चांद देखना वर्जित है।


भगवान गणेश की प्रतिमा की बिक्री जोरों पर
गणेश चतुर्दशी जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहा है, प्रतिमा की बिक्री बढ़ती जा रही है। बाजार में छोटे बड़े हर तरह की प्रतिमा की बिक्री हो रही है। मिट्टी से निर्मित बड़े और छोटे प्रतिमा की कीमत ₹100 से लेकर ₹10,000 तक की है बाजार में चांदी, सोना, तांबा और पीतल से बने गणेश प्रतिमा की बिक्री जोरों पर है। गणेश उत्सव के आगोश में समाने के लिए सनातनी व्याकुल है। गणपति बप्पा के आगमन को लेकर लोग तैयारी में जुट गए हैं। 10 दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में भगवान गणेश की नित्य पूजा होती है और 11 वें दिन विसर्जन कर दिया जाता है।

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