श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 12 अगस्त को मनाया जाएगा। वैसे अष्टमी तिथि 11 अगस्त से शुरू होकर 12 अगस्त तक रहेगा। लोगों के बीच 11 या 12 अगस्त को लेकर असमंजस बनी है कि आखिर कब है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी? सिंधु पुराण में उदयातिथि की मान्यता है। इसके तहत 12 अगस्त को मनाया जायेगा जन्माष्टमी, क्योंकि 12 अगस्त को अष्टमी तिथि में सूर्योदय हो रहा है इसलिए 12 अगस्त दिन और रात अष्टमी तिथि की मान्यता रहेगी।
अष्टमी तिथि को लेकर असमंजस की स्थिति
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर इस बार भी श्रीकृष्ण भक्तों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है। जन्माष्टमी 11 अगस्त को मनाई जाए या 12 अगस्त को होगा। इसका कारण अष्टमी तिथि का संयोग दोनों दिन रहेगा। 11 अगस्त को अष्टमी तिथि प्रात: 9.10 बजे से प्रारंभ होगी जो अगले दिन 12 अगस्त को प्रात: 11.22 बजे तक रहेगी। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि 12 बजे हुआ था।
इसलिए जन्माष्टमी किस दिन मनाई जाए यह बड़ा सवाल है। 11 अगस्त को मध्य रात्रि अर्थात 12:00 बजे रात को अष्टमी तिथि का संजोग है परंतु अष्टमी तिथि उदया काल में नहीं होने के कारण, अष्टमी तिथि कि मान्यता नहीं है। 12 अगस्त को अष्टमी तिथि उदया तिथि में आ रहा है। इसलिए 12 अगस्त को ही मध्य रात्रि में भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाया जाएगा।
पंचांग के अनुसार इस बार भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 11 अगस्त मंगलवार को प्रात: 9.10 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 12 अगस्त बुधवार को प्रात: 11.22 बजे तक रहेगी। 11 अगस्त को भरणी नक्षत्र मध्यरात्रि के बाद 12.55 बजे तक रहेगा। इसके बाद कृतिका नक्षत्र प्रारंभ होगा जो 12 अगस्त को मध्यरात्रि के बाद 3.30 बजे तक रहेगा। 12 अगस्त को सूर्य कर्क राशि में और चंद्रमा मेष राशि में रहेगा। सूर्य दक्षिणायन दिशा में रहेंगे। उसी रात 12:00 बजे से लेकर रात 1:00 बजे तक अभिजीत मुहूर्त भी है। यह संयोग अद्भुत है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म शुभ लग्न में होगा। शुभ लग्न रात्रि 11:07 से प्रारंभ होकर 12:00 बज के 43 मिनट तक रहेगा।
श्रीकृष्णा जन्माष्टमी की पूजा सामग्री
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को पूजा सामग्री बाजार से खरीदारी कर लेनी चाहिए। पूजा सामग्री के रूप में अगरबत्ती, कपूर, केसर, चंदन, फूल, अरवा चावल, हल्दी, रूई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्तें, गाय का गोबर, माला, गोटा धनिया, कुश, दूर्वा, मेवा, दूध, मौसमी फल, गंगाजल, शहद, शुद्ध घी, दही, मिठाई, सिहासन, आम का पत्ता, श्री कृष्ण की प्रतिमा, वस्त्र, जल कलश तांबा या मिट्टी का, दीपक, माखन, नारियल, खीरा और मिश्री आदि वस्तुओं से भगवान श्री कृष्ण की विधि विधान से और वैदिक मंत्रों के बीच पूजा अर्चना करनी चाहिए।
श्री कृष्ण की जन्म की कहानी संक्षेप में
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भादो माह कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को कारागार में हुआ था। श्री कृष्ण के माता का नाम देवकी और पिता का नाम वासुदेव था। मामा कंस के कारागार में उनके माता-पिता क़ैद थे। श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार जब देवकी की शादी बासुदेव के साथ हुई थी, उस समय देवकी के भाई कंस अपनी बहन की विदाई स्वयं रथ चलाकर नगर के बाहर ले जा रहा था। उसी वक्त आकाशवाणी हुई। हे कंस तुम जिसको विदाई कर रहे हो उसी का आठवां पुत्र तुम्हारे मृत्यु का कारण बनेगा।
आकाशवाणी की बात सुन तत्काल कंस ने अपनी बहन और बहनोई को कारागार में डाल दिया। कारावास के दौरान देवकी और वासुदेव का जो भी पुत्र और पुत्री हुए, उसे कंस ने हत्या कर डाली। आठवां पुत्र के रूप में श्री श्रीकृष्ण का जन्म जब कारागार में हुआ उस समय पूरे कारागार में दिव्य प्रकाश फैल गया। स्वयं भगवान विष्णु अपने रूप में प्रकट हुए और बोले की मां मैं आपके घर बालक के रूप में आ रहा हूं। आप तत्काल मुझे नंद नगरी में यशोदा और नंद के यहां भेज दो, क्योंकि यशोदा को अभी-अभी पुत्री हुई है।
जिस समय भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, उस समय भयानक बारिश हो रही थी। वासुदेव जी ने श्री कृष्ण को दउरा में लेटा कर अपने सर पर रखकर नंद गांव की ओर चल दिए। उफनती यमुना को पार कर मध्य रात्रि में ही नंद के घर पहुंच कर श्रीकृष्ण को यशोदा के बगल में लेट दिए और उस समय जन्मी हुई पुत्री को लेकर कारागार लौट आए।
कैसे करें जन्माष्टमी का व्रत
11 अगस्त को व्रत धारी सुबह गंगा, नदी या तालाब मैं स्नान कर जन्माष्टमी व्रत रखने का प्रण करें। जिस जातक के नजदीक गंगा नदी या तालाब ना हो वह अपने घर में गंगाजल मिलाकर स्नान कर भगवान कृष्ण का विधि विधान से पूजा अर्चना कर शाकाहारी भोजन ग्रहण करें। दूसरे दिन निर्जला व्रत रखकर मध्य रात्रि को मंदिर या स्वयं अपने घर में श्री कृष्ण की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना करें। पूजा स्थल को रंगीन बल्ब और फूलों से सजाये। भगवान श्री कृष्ण का सिहासन सुंदर ढंग से सजा, उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण से सुसज्जित करें। इसके बाद विधि विधान से पूजा अर्चना कर हवन करें । 13 अगस्त को सूर्योदय के बाद व्रत का समापन स्नान और पूजा पाठ कर करें। अंत में भोजन करें।
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