मागे पर्व 2026: हो जनजाति का प्रमुख त्योहार - परंपरा, पूजा विधि, पौराणिक कथा और क्या करें-क्या न करें

मागे पर्व 2026 में कब मनाया जाएगा? हो आदिवासियों का यह प्रमुख त्योहार कितने दिनों तक चलता है, प्रत्येक दिन किस देवता की पूजा, विधि, मुहूर्त और पौराणिक कथा। क्या करें और क्या न करें की पूरी जानकारी।

✨ "आदिवासी संस्कृति की झलक – मागे महापर्व 2026 में रंग, उत्साह और परंपरा का संगम" ✨

मागे पर्व, मागे पर्व हो जनजाति त्योहार है। इस मौके पर आदिवासी समुदाय के लोग उत्सव मनाते हैं और सिंगबोंगा पूजा की पूजा पूरे श्रद्धा भाव से करते हैं। मागे पोरोब पूजा की परंपरा बहुत पुरानी है। मागे पर्व  हो जनजाति का प्रमुख आदिवासी त्योहार है।

परिचय

हो जनजाति, जो मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में निवास करती है, अपनी अनोखी सांस्कृतिक विरासत के लिए जानी जाती है। इनकी जीवनशैली प्रकृति से जुड़ी हुई है, और उनके त्योहारों में यह जुड़ाव स्पष्ट दिखता है। मागे पर्व, जिसे मागे पोरोब या मागे परब भी कहा जाता है, हो आदिवासियों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। 

यह फसल कटाई के बाद मनाया जाता है, जब अनाज के भंडार भरे होते हैं। 2026 में यह त्योहार विशेष महत्व रखता है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर आदिवासी संस्कृतियों को संरक्षण देने की मुहिम तेज हो रही है। इस ब्लॉग में हम मागे पर्व के हर पहलू को विस्तार से देखेंगे – कब मनाया जाएगा, परंपराएं, अवधि, दैनिक पूजा, विधि, मुहूर्त, पौराणिक कथा, क्या करें और क्या न करें। साथ ही, ब्लॉग में तस्वीरें कहां लगेंगी, इसकी भी जानकारी। 

सामंजस्य, प्रकृति पूजा और समुदाय की एकता का प्रतीक है। हो लोग मानते हैं कि यह त्योहार सिंगबोंगा, उनके सृष्टिकर्ता देवता, को समर्पित है। आइए गहराई में उतरें। 

मागे पर्व कब मनाया जाएगा 2026 में

मागे पर्व का नाम ही माघ महीने से जुड़ा है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार जनवरी-फरवरी में आता है। हो जनजाति में यह त्योहार फिक्स्ड डेट पर नहीं, बल्कि गांव की सुविधा और डेहुरी (गांव के पुजारी) के निर्णय पर निर्भर करता है। सामान्यतः यह मकर संक्रांति (14 जनवरी) से लेकर बैसाख (अप्रैल 14) तक कहीं भी मनाया जा सकता है। 2026 में, हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीना 02 जनवरी से शुरू होगा, जो 01 फरवरी समाप्त हो रही है, जो माघ से जुड़ी है। हो गांवों में मागे पर्व जनवरी के पहले या दूसरे सप्ताह में मनाया जा सकता है, जब फसलें घर में आ चुकी हों।

कुछ गांवों में यह 15 जनवरी के आसपास मनाया जाता है, जैसा कि हाल के वर्षों में देखा गया। डेहुरी तिथि तय करते समय नक्षत्रों और सामुदायिक सुविधा को देखते हैं। अगर 2026 में कोई विशेष घटना हो, जैसे महाकुंभ का अंतिम दिन (15-16 जनवरी, महाशिवरात्रि), तो कुछ गांव इसे उसके आसपास जोड़ सकते हैं। लेकिन मुख्य रूप से, यह जनवरी के मध्य तक होता है। यदि आप भाग लेना चाहते हैं, तो झारखंड के चाईबासा या सरायकेला जैसे इलाकों में स्थानीय से पूछें। 

मागे पर्व की परंपरा

मागे पर्व की जड़ें हो जनजाति की प्राचीन परंपराओं में हैं। यह फसल उत्सव है, जहां नए अनाज को पूर्वजों और देवताओं को चढ़ाया जाता है। हो लोग प्रकृति को बॉन्गो (देवता) मानते हैं, और मागे पर्व में सिंगबोंगा, देसौली, नागेबोंगा जैसे देवताओं की पूजा होती है। परंपरा के अनुसार, गांव के युवा और युवतियां रात भर नाचते-गाते हैं, जो जीवन साथी चुनने का अवसर भी देता है। इली दियांग (चावल से बनी शराब) का महत्वपूर्ण स्थान है, जो देवताओं को चढ़ाई जाती है।

यह त्योहार सामाजिक समानता को बढ़ावा देता है। सात जातियों – चासी होदो (किसान), गोपे (पशुपालक), कुनकल (कुम्हार), आदि – के लोग मिलकर तैयारियां करते हैं। घरों को गोबर से लीपा जाता है, पशुओं की पूजा होती है, और कीड़ों तक को सम्मान दिया जाता है। परंपरा में अश्लील गीत भी शामिल हैं, जो प्रजनन और जीवन चक्र का प्रतीक हैं। मागे पर्व हो संस्कृति की जीवंतता को दर्शाता है, जहां प्रकृति, पूर्वज और समुदाय एक हो जाते हैं। 

"मागे पर्व की पारंपरिक तैयारियां – गांव में महिलाएं फूलों की सजावट करती हुईं और ढोल की थाप पर उत्सव का उल्लास बिखेरता दृश्य।"

कितने दिन तक चलता है मागे पर्व

मागे पर्व की अवधि गांव के अनुसार अलग-अलग होती है, लेकिन सामान्यतः यह 6 से 7 दिनों तक चलता है। कुछ जगहों पर 4 दिन, तो कहीं पूरे सप्ताह। मुख्य रूप से 6 दिनों की संरचना है:

गावमारा या गावल: पशुओं की पूजा।

ओते इली या अते इली: इली की पेशकश।

लोयो या सांगे इली: शुद्धिकरण दिवस।

मारिंग परब या मुसिंग-मुसिंग: मुख्य उत्सव दिवस।

बासी परब या मागे बासी: विदाई दिवस।

हनर मागे या हनर बॉन्गो: दुष्ट आत्माओं को भगाना।

कुछ गांवों में 7वां दिन गुरी पोरोब के रूप में जोड़ा जाता है, जहां घर साफ किए जाते हैं। कुल मिलाकर, यह सामुदायिक उत्सव है जो कई दिनों तक ऊर्जा से भरा रहता है। 

प्रत्येक दिन किस देवी-देवता की होती है पूजा

मागे पर्व बहु-दिवसीय होने से प्रत्येक दिन अलग देवता या रस्म पर फोकस होता है:

दिन 1 (गावमारा): पूर्वज बॉन्गोस की पूजा, पशुओं के कल्याण के लिए।

दिन 2 (ओते इली): सिंगबोंगा, देसौली, मागेबोंगा को इली चढ़ाई।

दिन 3 (लोयो): कोई विशिष्ट देवता नहीं, शुद्धिकरण पर फोकस।

दिन 4 (मारिंग परब): सिंगबोंगा (सफेद मुर्गा), देसौली (लाल मुर्गा), नागेबोंगा (काला मुर्गा)।

दिन 5 (बासी परब): पूर्वज बॉन्गोस को विदाई।

दिन 6 (हनर मागे): दुष्ट बॉन्गोस को भगाना, कोई पूजा नहीं बल्कि रस्म।

कुछ जगहों पर कीड़े और पशुओं को भी देवता मानकर पूजा होती है। 

पूजा करने की विधि और शुभ मुहूर्त

पूजा विधि सरल लेकिन पवित्र है। डेहुरी मुख्य पुजारी होता है, जो विवाहित होना चाहिए। विधि:

इली दियांग बनाना: चावल और 56 जड़ी-बूटियों से।

बलिदान: रंगीन मुर्गों का, सूर्योदय के बाद।

ऑफरिंग: अरवा चावल, फूल, तुलसी, बेल पत्ते।

डांस और गीत: हाउआ गीत गाते हुए।

शुभ मुहूर्त: डेहुरी नक्षत्र देखकर तय करता है, सामान्यतः सुबह 6-9 बजे या शाम 5-7 बजे। मुख्य दिवस पर उपवास रखकर सूर्योदय से शुरू। 2026 में, जनवरी 15-20 के बीच मुहूर्त अच्छा माना जा सकता है। 

मागे पर्व की पौराणिक कथा

मागे पर्व की जड़ें हो जनजाति की सृष्टि कथा में हैं। यह कथा मौखिक परंपरा से आई है, जहां सिंगबोंगा मुख्य भूमिका में हैं। आइए विस्तार से जानें।

सृष्टि की शुरुआत में कुछ भी नहीं था – सिर्फ अंधेरा और पानी का अथाह सागर। इस सागर में सिंगबोंगा, सर्वशक्तिमान देवता, निवास करते थे। सिंगबोंगा सूर्य के समान थे – प्रकाश, जीवन और उर्वरता के प्रतीक। वे अकेले थे, और सृष्टि रचने की इच्छा हुई। सबसे पहले, उन्होंने पानी से भूमि बनाने का निर्णय लिया। लेकिन भूमि कहां से आए? सिंगबोंगा ने विभिन्न जीवों को भेजा – पहले मछली, फिर मेंढक, लेकिन कोई सफल नहीं हुआ। आखिरकार, कछुए को भेजा गया। कछुआ गहराई में गया और मुंह में मिट्टी लेकर लौटा। सिंगबोंगा ने उस मिट्टी से भूमि बनाई, जो आज हमारी पृथ्वी है।

लेकिन भूमि खाली थी। सिंगबोंगा ने सोचा, जीवन की जरूरत है। उन्होंने पेड़-पौधे बनाए, नदियां बहाईं, और जानवर पैदा किए। फिर, मानव सृष्टि का समय आया। सिंगबोंगा ने लुकु कोला नामक पहले पुरुष को बनाया, जिसे लुकु हदम भी कहते हैं। लुकु हदम मिट्टी से बने थे, और सिंगबोंगा ने उन्हें जीवन की सांस दी। लुकु हदम जंगल में घूमते, लेकिन अकेले थे। वे दुखी हुए, और सिंगबोंगा से साथी मांगा। सिंगबोंगा ने लुकु हदम की पसली ली, और झींगे के खून से मिलाकर लुकु बूदी, पहली स्त्री, बनाई। दोनों मानवता के आदि माता-पिता बने।

कथा आगे बढ़ती है। लुकु हदम और लुकु बूदी ने सिंगबोंगा की कृपा से संतान पैदा की। लेकिन एक दिन लुकु बूदी को पेट दर्द हुआ। सिंगबोंगा ने उन्हें इली दियांग बनाने की विधि सिखाई – चावल और 56 जड़ी-बूटियों से बनी पवित्र शराब। यह दवा ने लुकु बूदी को ठीक किया, और तब से इली दियांग पूजा में अनिवार्य हो गई। हो लोग मानते हैं कि सिंगबोंगा ने सात जातियां बनाईं – किसान, पशुपालक, कुम्हार, आदि – जो गांव की नींव हैं। प्रत्येक जाति का कर्तव्य निर्धारित किया, ताकि समाज में सामंजस्य रहे।

कथा में दुष्ट बॉन्गोस का भी जिक्र है। सिंगबोंगा ने अच्छे बॉन्गोस बनाए, लेकिन कुछ दुष्ट हो गए, जो बीमारियां और दुर्भाग्य लाते हैं। इसलिए मागे पर्व के अंतिम दिन उन्हें भगाया जाता है। एक एपिसोड में, लुकु हदम ने टाइगर से लड़ाई की। सिंगबोंगा ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि बड़े जानवर उनसे डरेंगे। यह हो लोगों की बहादुरी का प्रतीक है।

विस्तार से देखें: सृष्टि की शुरुआत में सिंगबोंगा ने आकाश बनाया, जहां से पानी बरसा। पानी में जीवन की शुरुआत हुई। कछुए की कहानी कई संस्कृतियों में मिलती है, लेकिन हो में यह सिंगबोंगा की बुद्धि दर्शाती है। लुकु हदम को बनाने में सिंगबोंगा ने मिट्टी, पानी और आग का उपयोग किया। 

वे पहले पेड़ों से बात करते थे, जानवरों से दोस्ती करते थे। लुकु बूदी की सृष्टि बाइबल की ईव जैसी है, लेकिन हो संस्कृति में स्त्री को समान महत्व दिया गया। दोनों ने पहली फसल उगाई, और सिंगबोंगा को चढ़ाया – यही मागे पर्व की शुरुआत।

कथा के कई वर्शन हैं। एक में, सिंगबोंगा ने पक्षियों को भेजा मिट्टी लाने के लिए, लेकिन कछुआ ही सफल हुआ। दूसरी में, लुकु हदम ने सिंगबोंगा से ज्ञान मांगा, और उन्हें बॉन्गोस की पूजा सिखाई गई। इली दियांग की कथा विस्तृत है: 56 जड़ी-बूटियां प्रकृति के रहस्य हैं – कुछ दर्द निवारक, कुछ उर्वरता बढ़ाने वाली। लुकु बूदी ने इसे पीकर न केवल ठीक हुईं, बल्कि संतान प्राप्त की। हो लोग मानते हैं कि मागे पर्व में इली चढ़ाने से फसल अच्छी होती है।

दुष्ट बॉन्गोस की कथा: एक बार एक दुष्ट बॉन्गो ने गांव में बीमारी फैलाई। सिंगबोंगा ने डेहुरी को सपने में विधि बताई – लाठी से घरों को पीटना और चिल्लाना। यह रस्म आज भी है। कथा में सामाजिक पाठ भी: सात जातियां एक-दूसरे पर निर्भर हैं, जैसे किसान अनाज उगाते, कुम्हार बर्तन बनाते। अगर कोई जाति कमजोर, तो गांव टूट जाता।

यह कथा हो लोगों की पर्यावरणीय समझ दर्शाती है। सिंगबोंगा सूर्य हैं, जो फसल पकाते हैं। लुकु हदम जंगल के रक्षक हैं। कथा सुनाते समय, बुजुर्ग गीत गाते हैं, जो पीढ़ियों से चले आ रहे। मागे पर्व में इस कथा का पाठ होता है, ताकि युवा अपनी जड़ें जानें।

आगे विस्तार: सृष्टि के बाद, सिंगबोंगा ने नियम बनाए – प्रकृति का सम्मान, पूर्वजों की पूजा। लुकु हदम ने पहला गांव बनाया, जहां सात घर थे, प्रत्येक जाति के लिए। वे सिंगबोंगा से बात करते, सपनों में मार्गदर्शन लेते। एक बार बाढ़ आई, सिंगबोंगा ने उन्हें पहाड़ पर चढ़ने को कहा। बचने के बाद, उन्होंने मागे पर्व मनाया।

कथा में प्रजनन का महत्व: अश्लील गीत इसलिए, क्योंकि जीवन चक्र। लुकु बूदी ने कहा, "जीवन नृत्य है, गीत संगीत"। हो डांस इसी से प्रेरित। दुष्ट बॉन्गोस को भगाने की कथा: एक बॉन्गो ने लुकु हदम के बच्चे चुराए, सिंगबोंगा ने उन्हें लाठी दी।

मागे पर्व में क्या करें और क्या न करें

क्या करें:

घरों को गोबर से लीपें, शुद्धिकरण करें।

इली दियांग बनाएं और देवताओं को चढ़ाएं।

डांस और गीतों में भाग लें, समुदाय से जुड़ें।

पशुओं और कीड़ों की पूजा करें।

उपवास (डेहुरी के लिए) रखें, फीस्टिंग में शामिल हों।

युवा: जीवन साथी चुनने के लिए बातचीत करें।

पर्यावरण सम्मान: पेड़ न काटें, जंगल साफ रखें।

क्या न करें:

शुद्धिकरण दिवस पर कोई काम न करें।

मुख्य दिवस से पहले सेक्सुअल संबंध न रखें (पुजारी)।

दुष्ट बॉन्गोस को आमंत्रित करने वाली बातें न कहें।

उत्सव में बाहरी हस्तक्षेप न करें बिना अनुमति।

मांसाहार अगर बलिदान का न हो।

शराब का दुरुपयोग न करें, सिर्फ रस्म में।

निष्कर्ष

मागे पर्व हो जनजाति की आत्मा है। 2026 में इसे मनाकर हम आदिवासी विरासत को संरक्षित कर सकते हैं। 

डिस्क्लेमर 

क्या आप जानते हैं कि मागे पर्व सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि हो जनजाति की आत्मा का आईना है? लेकिन रुकिए, इससे पहले कि आप इस ब्लॉग में डूब जाएं, एक रोचक डिस्क्लेमर सुन लीजिए – जैसे जंगल में सिंगबोंगा की कृपा से हर पेड़-पौधा खिलता है, वैसे ही यह ब्लॉग हो आदिवासियों की समृद्ध विरासत को सम्मान देता है। हमने यहां पौराणिक कथाओं को विस्तार से बुना है, लेकिन याद रखें, ये कथाएं सदियों पुरानी मौखिक परंपराओं से आई हैं, जहां हर गांव की अपनी व्याख्या है। कोई कहता है लुकु हदम ने पहले पेड़ों से बात की, तो कोई कहता है सिंगबोंगा ने आकाश से पानी बरसाया। यह ब्लॉग ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्रोतों पर आधारित है, लेकिन यह कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं – सिर्फ एक प्रयास है आदिवासी संस्कृति को जीवंत रखने का।

अगर आप मागे पर्व मनाने जा रहे हैं, तो सावधान! हमने "क्या करें और क्या न करें" की सूची दी है, लेकिन ये सामान्य दिशानिर्देश हैं। असली जादू तो हो गांवों में है, जहां डेहुरी (पुजारी) की आवाज में गूंजती प्रार्थनाएं और डांस की थाप में छिपी ऊर्जा। कृपया इस जानकारी को मनोरंजन और शिक्षा के लिए यूज करें, न कि किसी रस्म को बदलने के लिए। अगर आप आदिवासी नहीं हैं, तो उत्सव में शामिल होने से पहले स्थानीय समुदाय से अनुमति लें – क्योंकि यह उनका त्योहार है, हमारा सिर्फ सम्मान। और हां, अगर कथा पढ़ते हुए आपको लगे कि सिंगबोंगा आपको बुला रहे हैं, तो शायद यह समय है जंगल की सैर का! लेकिन मजाक नहीं, पर्यावरण का सम्मान करें, क्योंकि हो लोग प्रकृति को देवता मानते हैं। इस ब्लॉग से प्रेरित होकर अगर आप कुछ नया सीखते हैं, तो शेयर करें, लेकिन क्रेडिट दें। डिस्क्लेमर का अंत: सिंगबोंगा की कृपा बनी रहे! 

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