हनुमान नाम कैसे पड़ा: जानें संपूर्ण जानकारी विस्तार से

"क्या आप जानते हैं हनुमान जी का नाम हनुमान कैसे पड़ा? इंद्र के वज्र प्रहार और 'हनु' टूटने की पूरी कहानी जानें। साथ ही, बजरंगबली नाम के पीछे का रहस्य, असली नाम और पूरी कथा पढ़ें"

Pictures of the various forms of Lord Hanuman

और पढ़ें बजरंगबली क्यों कहते हैं, हनुमान जी का असली नाम, आजनेय, हनुमान की कहानी, हनुमान जी के जन्म की कथा, मारुति नंदन, पवन-पुत्र, मरकट नामों को जानें विस्तार से।

🐒 "कैसे पड़ा हनुमान नाम"

"पवनपुत्र हनुमान को 'बजरंगबली' क्यों कहते हैं?"

*श्री हनुमान, जिन्हें पवन-पुत्र, बजरंगबली, आंजनेय और महावीर जैसे कई नामों से जाना जाता है, भगवान राम के परम भक्त और शक्ति, भक्ति तथा सेवा के साक्षात प्रतीक हैं। उनका जन्म भले ही वायु-पुत्र के रूप में हुआ, लेकिन उनका नाम 'हनुमान' पड़ने के पीछे एक अत्यंत ही रोचक और चमत्कारी घटना है, जो सीधे देवराज इंद्र से जुड़ी है।

*एक बार की बात है। कपीराज केसरी कहीं बाहर गए हुए थे। माता अंजना भी बालक हनुमान को पालने में लिटाकर वन में फल-फूल लेने चली गई थीं। बालक हनुमान जी को जब भूख लगी, तो माता की अनुपस्थिति में वह क्रंदन करने लगे।

*सहसा, उनकी दृष्टि उगते हुए सूर्य भगवान पर गई। सूर्य का लाल रंग उन्हें कोई लाल मीठा फल जैसा प्रतीत हुआ। भूख से व्याकुल हनुमान जी ने बिना सोचे-समझे, उस 'फल' को खाने के लिए आकाश की ओर एक विशाल छलांग लगा दी।

*ठीक उसी समय, देवराज इंद्र अपने वाहन ऐरावत हाथी पर बैठकर जा रहे थे। हनुमान जी ने ऐरावत को भी एक और फल समझा और उसे पकड़ने की कोशिश की। इससे इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने शक्तिशाली अस्त्र 'वज्र' से बालक हनुमान पर प्रहार कर दिया।

*यह वज्र सीधे बालक की ठुड्डी (हनु) पर लगा, जिससे वह मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। वज्र के प्रभाव से उनकी ठुड्डी (हनु) विकृत या टूट गई।

*चूंकि यह प्रहार उनकी 'हनु' पर हुआ था और वह 'हनु' वाले हो गए, इसलिए उस दिन से उनका नाम 'हनुमान' पड़ा।

"पवन देव का प्रकोप और वरदान*

*अपने पुत्र को मूर्छित देखकर, उनके जन्मदाता पवन देव (वायु) अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने तुरंत संसार में वायु का संचार रोक दिया। वायु रुकते ही समस्त लोक में हाहाकार मच गया और सभी प्राणी तड़पने लगे।

*पवन देव को शांत करने के लिए सभी देवताओं ने हनुमान जी को कई वरदान दिए:

*ब्रह्मा जी: उन्हें दीर्घायु और इच्छा अनुसार रूप धारण करने का वरदान दिया।

*इंद्र देव: उन्होंने कहा कि उनका वज्र भी अब हनुमान जी को हानि नहीं पहुँचा पाएगा।

*सूर्य देव: उन्होंने हनुमान जी को समस्त ज्ञान और शास्त्रों का ज्ञाता बनाने का वरदान दिया।

*वरुण देव: उन्हें जल से निर्भय रहने का वरदान दिया।

*इस तरह, वज्र के प्रहार से कमजोर होने के बजाय, हनुमान जी देवताओं के वरदानों से अजेय और महाशक्तिशाली बन गए।

🌟 "हनुमान जी की पूरी कहानी क्या है"? (संक्षेप में)

*हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार हैं, जिनका जन्म पवन देव के अंश से माता अंजना और पिता केसरी के यहां हुआ था। बचपन में अपनी शरारतों और सूर्य को फल समझकर खाने के प्रयास के कारण वह देवराज इंद्र के वज्र से घायल हो गए, जिसके बाद उनका नाम हनुमान पड़ा। 

*उन्हें ऋषियों द्वारा अपनी शक्तियों का विस्मरण होने का शाप मिला था। किष्किंधा के राजा सुग्रीव से मित्रता के बाद, उन्होंने भगवान राम की सेवा स्वीकार की और रावण द्वारा हरण की गई सीता माता की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

*उन्होंने लंका दहन किया, लक्ष्मण को शक्ति लगने पर संजीवनी बूटी लाकर उनकी जान बचाई और राम-रावण युद्ध में अपार पराक्रम दिखाया। वह अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं और उन्हें भक्ति, शक्ति और सेवा का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक माना जाता है।

2. 💪 हनुमान जी को बजरंगबली क्यों कहा जाता है?

हनुमान जी को 'बजरंगबली' इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनका शरीर वज्र के समान मजबूत (अभेद्य) है।

'बज्र' (या वज्र): इसका अर्थ है अत्यधिक कठोर, अभेद्य या इंद्र के अस्त्र 'वज्र' के समान।

'अंग': इसका अर्थ है शरीर।

'बली': इसका अर्थ है शक्तिशाली।

इंद्र के वज्र से आहत होने और फिर सभी देवताओं से वरदान प्राप्त करने के बाद उनका शरीर वज्र जैसा कठोर और शक्तिशाली हो गया। इसलिए उन्हें वज्र के समान अंगों वाला महाशक्तिशाली यानी बजरंगबली कहा जाता है।

3. 🤔 हनुमान जी का असली नाम क्या है?

ग्रंथों और कथाओं के अनुसार, हनुमान जी को कई नामों से जाना जाता है, जिनमें से प्रत्येक किसी न किसी घटना से जुड़ा है। उनके कुछ प्रमुख नाम और उपाधियां हैं:

जन्म का नाम: उनका कोई एक 'असली' नाम नहीं है, लेकिन उनके जन्म के समय उन्हें आंजनेय (अंजना का पुत्र) या केसरी-नंदन (केसरी का पुत्र) कहा जाता था।

वायु-पुत्र: पवन देव के अंश होने के कारण।

हनुमान: इंद्र के वज्र से 'हनु' (ठुड्डी) टूटने के बाद।

बजरंगबली: वज्र के समान शक्तिशाली शरीर के कारण।

महावीर: महान वीर होने के कारण।

4. 🙏 हनुमान जी को मरकट क्यों कहा जाता था?

'मरकट' का अर्थ होता है वानर या बंदर। चूंकि हनुमान जी किष्किंधा राज्य के वानर समूह से संबंधित थे और उनकी शारीरिक बनावट वानर जैसी थी, इसलिए उन्हें मरकट कहकर भी संबोधित किया जाता था। हालांकि, यह नाम उनके लिए कोई उपाधि नहीं, बल्कि उनकी जाति/प्रजाति को दर्शाता है।

निष्कर्ष

हनुमान जी का जीवन त्याग, सेवा और असीम बल का अद्भुत संगम है। उनके नाम, चाहे वह हनुमान हो या बजरंगबली, के पीछे की कहानियां हमें बताती हैं कि कैसे उनका बाल्यकाल ही उनके भविष्य के महान पराक्रम की नींव बन गया था।

. 🤯 हनुमान जी का घमंड कैसे टूटा? 

हनुमान जी को अपनी शक्ति पर कभी घमंड नहीं हुआ, लेकिन एक बार उन्हें अपनी शक्ति के अहंकार से उबरने में मदद मिली थी। यह घटना भगवान श्री कृष्ण के द्वापर युग के अवतार से जुड़ी है, जब वह द्रौपदी के पास गए थे।

घटना का विवरण

वनवास के दौरान एक बार द्रौपदी के लिए एक सहस्रदल कमल (हज़ार पंखुड़ियों वाला कमल) हवा में उड़ता हुआ आया। द्रौपदी ने यह कमल देखा तो उन्हें ऐसे और कमल लाने की इच्छा हुई और उन्होंने यह जिम्मेदारी भीमसेन को सौंपी।

भीमसेन उस कमल की तलाश में एक घने जंगल से गुजर रहे थे, तभी उन्होंने रास्ते में एक वृद्ध, दुर्बल वानर को लेटे हुए देखा, जिसने अपनी पूंछ रास्ते पर फैला रखी थी।

भीम ने उस वानर से पूंछ हटाने को कहा। उस वानर के रूप में साक्षात हनुमान जी थे। हनुमान जी उस समय तक चिरंजीवी थे और भगवान राम के भक्त होने के कारण उनका बल और अहंकार भी बढ़ चुका था।

उस वृद्ध वानर ने भीम से कहा कि वह इतना कमजोर है कि पूंछ हटा नहीं सकता। उसने भीम से ही पूंछ उठाकर रास्ते से हटने का आग्रह किया।

अपनी शक्ति पर घमंड करने वाले भीम ने चुनौती स्वीकार की और पूंछ हटाने की कोशिश की, पर वह अपनी पूरी शक्ति लगाने के बावजूद भी पूंछ को हिला तक नहीं पाए। भीम का सारा बल व्यर्थ हो गया।

तब भीम ने लज्जित होकर पूछा कि वह कौन हैं। वानर रूप में हनुमान जी ने उन्हें अपना परिचय दिया और बताया कि वह उनके ज्येष्ठ भ्राता (बड़े भाई) हैं, क्योंकि भीम और हनुमान दोनों ही पवन देव के पुत्र थे।

इस घटना से हनुमान जी ने भीम का अहंकार तो तोड़ा ही, साथ ही उन्हें यह भी अनुभव हुआ कि संसार में उनसे भी अधिक बलवान शक्तियां विद्यमान हैं और घमंड हमेशा पराजय का कारण बनता है। इसके बाद हनुमान जी ने भीम को सहस्रदल कमल का पता बताया और आशीर्वाद दिया।

2. 🙏 कलयुग में हनुमान जी के दर्शन कैसे होंगे? 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी अष्ट चिरंजीवियों (आठ अमर प्राणियों) में से एक हैं और वह आज भी पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में विचरण करते हैं। हालांकि, उनके साक्षात दर्शन पाना अत्यंत दुर्लभ है।

कलयुग में हनुमान जी के दर्शन पाने के लिए मुख्यतः भक्ति, सेवा और सदाचार को ही मार्ग बताया गया है:

अखंड राम भक्ति: हनुमान जी के दर्शन का सबसे सरल और सीधा मार्ग भगवान श्री राम की निरंतर और सच्ची भक्ति है। जहां भी सच्ची श्रद्धा से राम नाम का जप होता है, हनुमान जी अदृश्य रूप में वहां मौजूद रहते हैं।

मान्यता है कि राम नाम के जाप में लीन व्यक्ति को वह किसी भी रूप में (वृद्ध, बालक, वानर आदि) आकर आशीर्वाद या मार्गदर्शन दे सकते हैं।

सच्ची सेवा और परोपकार: हनुमान जी को सेवाभाव सबसे अधिक प्रिय है। किसी असहाय या जरूरतमंद व्यक्ति की निःस्वार्थ सेवा करना भी हनुमान जी के समीप जाने का एक तरीका है। सच्ची सेवा करते हुए ही कई भक्तों ने उनके चमत्कारी अनुभवों को महसूस किया है।

हनुमान चालीसा का पाठ और नियम: नियमित रूप से, शुद्ध मन से हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करना उन्हें प्रसन्न करता है। जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, सच्चाई और पवित्रता के साथ मंगलवार या शनिवार को उनका स्मरण करता है, उसे उनकी कृपा अवश्य प्राप्त होती है।गोस्वामी तुलसीदास जी का उदाहरण: माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी को राम नाम के प्रताप से ही हनुमान जी के साक्षात दर्शन हुए थे। तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा और रामचरितमानस की रचना की।

संक्षेप में, कलयुग में उनके साक्षात दर्शन की कामना की बजाय, उनकी तरह निःस्वार्थ सेवा और भक्ति का मार्ग अपनाना चाहिए। उनकी कृपा और संरक्षण, दर्शन से कम नहीं है, और यह सच्चे भक्तों को अवश्य प्राप्त होता है।

हनुमान जी का नाम बालाजी क्यों पड़ा था? 

हनुमान जी के भक्तों के बीच उन्हें 'बालाजी' के नाम से भी जाना जाता है, विशेषकर भारत के कुछ क्षेत्रों (जैसे राजस्थान में मेंहदीपुर बालाजी) में। हालांकि, आमतौर पर 'बालाजी' नाम भगवान विष्णु के अवतार तिरुपति वेंकटेश्वर के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन हनुमान जी के लिए भी यह नाम एक विशिष्ट संदर्भ रखता है:

1. युवा अवस्था का प्रतीक हैं बालाजी 

'बालाजी' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है:

बाल: इसका अर्थ होता है बालक या युवा अवस्था (Young Age)।

जी: यह आदर सूचक शब्द है।

चूंकि हनुमान जी अष्ट चिरंजीवी हैं और वह हमेशा युवा और शक्तिशाली रूप में विद्यमान रहते हैं, इसलिए उन्हें 'बालाजी' यानी युवा रूप वाले आदरणीय प्रभु के रूप में पूजा जाता है। यह नाम उनके बचपन के बल और उनकी यौवन-सुलभ स्फूर्ति का प्रतीक है।

2. मेंहदीपुर बालाजी की विशिष्ट मान्यता:

राजस्थान के मेंहदीपुर बालाजी मंदिर में हनुमान जी की पूजा मुख्य रूप से प्रेत बाधाओं और बुरी शक्तियों से मुक्ति के लिए की जाती है। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा बालक रूप में है।

यहां के भक्त मानते हैं कि चूंकि हनुमान जी ने बचपन में सूर्य को फल समझकर खा लिया था और वह हमेशा बालक जैसी निडरता और चपलता से परिपूर्ण रहे, इसलिए उन्हें यहां 'बालाजी' कहकर पुकारा जाता है।

इस मंदिर में, बालाजी को विष्णु के रूप में नहीं, बल्कि शक्तिशाली बाल रूप हनुमान के रूप में पूजा जाता है, जो भक्तों की बाधाओं को दूर करते हैं।

इस तरह, हनुमान जी को 'बालाजी' नाम उनकी चिर-युवा अवस्था, बाल रूप की निडरता और भक्तों को बुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने की उनकी शक्ति के कारण मिला।

⚔️ राम ने हनुमान को दंड क्यों दिया? 

वाल्मीकि रामायण या रामचरितमानस में इस घटना का सीधा वर्णन नहीं है, लेकिन यह कथा उत्तर भारत के लोक कथाओं और कुछ गौण पुराणों में प्रचलित है। यह घटना धर्म और राजधर्म की जटिलता को दर्शाती है।

घटना का विवरण:

जब भगवान राम अयोध्या के राजा बन गए, तब एक बार नारद मुनि ने अपनी लीला से एक ऐसी स्थिति उत्पन्न की, जिससे राम को हनुमान जी को दंड देना पड़ा।

राज दरबार में सभी ऋषि-मुनियों और गुरुओं को प्रणाम करने की परंपरा थी। नारद जी ने हनुमान जी से कहा कि वे सभी ऋषियों को प्रणाम करें, लेकिन विश्वामित्र को छोड़ दें। विश्वामित्र राम के गुरु थे। हनुमान जी ने नारद जी के कहने पर, केवल विश्वामित्र को प्रणाम नहीं किया।

जब विश्वामित्र को पता चला कि हनुमान ने उनका अपमान किया है, तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा राम से हनुमान को मृत्युदंड देने की मांग की। राम अपने गुरु की आज्ञा टाल नहीं सकते थे, क्योंकि राजधर्म यही कहता था कि राजा को गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए, भले ही वह आज्ञा कठिन हो।

दंड और मुक्ति:

गुरु की आज्ञा मानते हुए, राम ने भारी मन से हनुमान पर बाणों की वर्षा करने का आदेश दिया।

हनुमान जी ने स्वयं का बचाव करने के लिए कोई शस्त्र नहीं उठाया, बल्कि वे राम नाम का निरंतर जाप करते रहे। राम द्वारा चलाए गए सभी बाण, राम नाम के जाप के सामने विफल हो गए और हनुमान को छू भी नहीं पाए।

अंततः, जब राम के सभी अस्त्र-शस्त्र विफल हो गए, तो विश्वामित्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और नारद मुनि ने भी अपनी गलती स्वीकार की। तब विश्वामित्र ने राम को आज्ञा दी कि वे हनुमान को मुक्त कर दें।

यह कथा दिखाती है कि हनुमान जी की भक्ति, भगवान राम के राजधर्म से भी बड़ी थी, और राम नाम की शक्ति संसार में सबसे बढ़कर है।

🐾 हनुमान जी का पसंदीदा जानवर कौन सा है? 

पौराणिक कथाओं या मुख्य ग्रंथों में स्पष्ट रूप से यह वर्णित नहीं है कि हनुमान जी का कोई एक "पसंदीदा पालतू जानवर" था, जैसे शिव का नंदी या दुर्गा का शेर।

हालांकि, उनकी जीवन शैली और उनके स्वभाव को देखते हुए, कुछ जानवरों का महत्व उनके जीवन में अधिक रहा है:

1. वानर (बंदर):

महत्व: हनुमान जी स्वयं वानर जाति से थे। उनका समुदाय, उनके मित्र (जैसे सुग्रीव), और उनकी सेना (वानर सेना) इसी जाति की थी। वानर उनके लिए सिर्फ एक जानवर नहीं, बल्कि उनका परिवार और प्रजाति थी।

पसंदीदा होने का कारण: हनुमान जी का अधिकांश जीवन वानरों के बीच ही बीता। उन्होंने अपनी प्रजाति के कल्याण और सम्मान के लिए ही भगवान राम की सेवा में कदम रखा। इसलिए, यदि कोई जानवर उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है, तो वह निस्संदेह वानर ही है।

2. सिंह (शेर/बाघ):

महत्व: हनुमान जी को महावीर (महान वीर) भी कहा जाता है। सनातन धर्म में, शेर/बाघ शक्ति, निर्भीकता और पराक्रम का प्रतीक हैं।

पसंदीदा होने का कारण: कई स्थानों पर, हनुमान जी को शक्ति और बल के प्रतीक के रूप में शेर पर सवारी करते हुए या शेर के साथ चित्रित किया जाता है, यद्यपि यह उनकी सवारी नहीं है। उनकी असीम शक्ति और निर्भीकता की तुलना अक्सर शेर से की जाती है।

3. गज (हाथी):

महत्व: बचपन में, जब हनुमान जी सूर्य को फल समझकर खाने गए थे, तब उन्होंने इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी को भी फल समझकर पकड़ने का प्रयास किया था।

पसंदीदा होने का कारण: हालांकि यह घटना इंद्र के वज्र प्रहार का कारण बनी, लेकिन यह हाथी उनके बचपन के अद्वितीय बल और लीला से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पात्र है।

अंत में, यह कहना उचित होगा कि हनुमान जी का "पसंदीदा जानवर" उनका अपना समुदाय, वानर ही है, क्योंकि उनके जीवन का हर बड़ा कार्य और उनकी पहचान वानरों से ही जुड़ी हुई है।

 हनुमान जी को कसम कैसे दी जाती है? 

हनुमान जी को कसम देना या उनसे किसी बात का वचन लेना, भारतीय लोक संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का एक भावनात्मक हिस्सा है, विशेष रूप से जब कोई व्यक्ति अपनी सच्चाई सिद्ध करना चाहता है।

कसम देने का आधार: राम और सीता

हनुमान जी की भक्ति का मूल आधार भगवान राम और माता सीता हैं। इसलिए, उन्हें कोई भी कसम या शपथ तभी दी जाती है जब वह सीधे राम नाम या सीता माता के सम्मान से जुड़ी हो।

कसम देने के मुख्य तरीके इस प्रकार हैं:

राम नाम की शपथ: सबसे प्रचलित तरीका है व्यक्ति का यह कहना, "मैं राम की कसम खाकर कहता हूं..." या "यदि यह झूठ हो, तो मुझे राम का द्रोही माने।" चूंकि हनुमान जी के लिए राम का नाम उनके प्राणों से भी बढ़कर है, इस नाम की शपथ को सबसे पवित्र और अटूट माना जाता है।

माता सीता का वास्ता: दूसरा अत्यंत भावनात्मक तरीका है माता सीता के नाम का वास्ता देना। उदाहरण के लिए, यह कहना कि "यदि मैं झूठ बोलूं, तो मुझे सीता माता के चरणों की सेवा न मिले।" हनुमान जी ने सीता माता की खोज और सेवा में अपना सर्वस्व न्योछावर किया था, इसलिए सीता माता का अपमान उन्हें असहनीय है।

बजरंगबली का आह्वान: कुछ लोग सीधे हनुमान जी के नाम का आह्वान करते हैं, जैसे "मुझे बजरंगबली का दंड मिले यदि मैं झूठ बोल रहा हूं।"

महत्व: यह कसम इसलिए दी जाती है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी धर्म और सच्चाई के संरक्षक हैं। वे कभी भी किसी को राम या सीता के नाम की झूठी शपथ लेने पर माफ नहीं करते और ऐसे व्यक्ति को तुरंत दंडित करते हैं।

📅 1 साल में दो बार जन्मदिन किसका आता है? 

सनातनी पंचांग और लोक मान्यताओं के अनुसार, भगवान हनुमान जी का जन्मदिन वर्ष में दो बार मनाया जाता है। यह एक विशिष्ट धार्मिक रहस्य है जो उनकी अपार शक्ति और चिरंजीवी स्वरूप से जुड़ा है।

1. पहली तिथि: चैत्र पूर्णिमा (जन्मोत्सव)

हनुमान जी का मुख्य और सर्वाधिक मान्य जन्मदिन चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन को हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है।

मान्यता: अधिकांश धार्मिक ग्रंथ और परंपराएं मानती हैं कि हनुमान जी का जन्म इसी तिथि पर हुआ था। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करते हैं, और बजरंगबली की पूजा करते हैं।

2. दूसरी तिथि: कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (विजय/जन्म तिथि)

वर्ष में दूसरी बार हनुमान जी की विशेष पूजा कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को की जाती है। इस तिथि को दीपावली से एक दिन पहले, नरक चतुर्दशी के रूप में भी जाना जाता है।

मान्यता: कुछ विद्वानों और धार्मिक समुदायों की मान्यता है कि इस तिथि पर हनुमान जी का जन्म हुआ था।

विजय पर्व: दूसरी प्रमुख मान्यता यह है कि यह तिथि हनुमान जी के विजय पर्व या आविर्भाव दिवस के रूप में मनाई जाती है, न कि उनके जन्मदिवस के रूप में। यानी, कुछ लोग इसे उनके उस दिन के रूप में मानते हैं जब उन्होंने अपनी शक्तियों का सही उपयोग करना शुरू किया या उन्हें देवताओं से वरदान प्राप्त हुए।

क्यों हैं दो जन्मदिन?

इन दो अलग-अलग तिथियों के पीछे मुख्य कारण पंचांगों का मतभेद और शुभ तिथि का महत्व है। कई स्थानों पर चैत्र पूर्णिमा को उनका जन्म दिवस माना जाता है, जबकि कार्तिक चतुर्दशी को उनका विजय दिवस मानकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। इस कारण, हनुमान जी की पूजा और स्मरण वर्ष में दो बार बड़े उत्साह से किया जाता है।

🏇 हनुमान जी की सवारी कौन है? 

हनुमान जी की पूजा मुख्य रूप से उनके वानर रूप और पवन वेग के लिए की जाती है। अन्य देवी-देवताओं की तरह, उनका कोई पारंपरिक या निश्चित वाहन (सवारी) नहीं है।

सवारी का वास्तविक अर्थ: वायु (पवन)

हनुमान जी को पवन-पुत्र कहा जाता है। वह वायु देव के पुत्र हैं और स्वयं पवन के वेग से उड़ने की अद्भुत क्षमता रखते हैं।

पवन वेग: हनुमान जी की शक्ति इतनी तीव्र है कि उन्हें किसी भौतिक सवारी की आवश्यकता नहीं है। वह एक क्षण में लंका से संजीवनी पर्वत तक उड़कर जा सकते थे। इसलिए, उनकी वास्तविक सवारी उनका अपना पवन वेग (वायु) ही है।

प्रतीकात्मक चित्रण:

यद्यपि उनकी कोई स्थायी सवारी नहीं है, लेकिन कुछ प्रतीकात्मक चित्रणों में उन्हें शक्ति और तेज का प्रतीक दिखाने के लिए अलग-अलग रूपों में दर्शाया जाता है:

वानर: चूंकि वह स्वयं एक वानर हैं, उनकी अपनी काया ही सबसे बड़ी सवारी है।

गरुड़ या शेर: कुछ स्थानों पर, उन्हें शक्ति के प्रतीक के रूप में गरुड़ या शेर के साथ भी चित्रित किया जाता है, लेकिन ये पारंपरिक रूप से उनकी सवारी नहीं माने जाते।

🌊 हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज की अद्भुत कथा

हनुमान जी को उनके घोर ब्रह्मचर्य व्रत के लिए जाना जाता है। उनका विवाह नहीं हुआ था और वह आजीवन ब्रह्मचारी रहे। यही कारण है कि उनके पुत्र मकरध्वज के जन्म की कथा हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे विस्मयकारी और चमत्कारी घटनाओं में से एक मानी जाती है।

हनुमान जी का ब्रह्मचर्य और मकरध्वज का जन्म

यह कथा उस समय की है जब भगवान राम की पत्नी माता सीता को लंकापति रावण ने हरण कर लिया था और हनुमान जी उन्हें खोजने के लिए विशाल समुद्र को पार कर लंका पहुँचे थे।

लंका दहन और पसीने की बूंद

माता सीता को अशोक वाटिका में देखने और उनसे राम का संदेश पहुँचाने के बाद, हनुमान जी ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए रावण की पूरी वाटिका उजाड़ दी। इसके बाद, रावण के सबसे छोटे पुत्र अक्षय कुमार का वध करने पर, उन्हें मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र से बांध दिया और रावण के दरबार में लाया गया। रावण ने उन्हें दंड देने के लिए उनकी पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया।

पूंछ में आग लगने के बाद, हनुमान जी ने पूरी लंका में कूद-कूद कर भयंकर लंका दहन किया। पूरी लंका जलकर राख हो गई। इस भीषण अग्निकांड और युद्ध के 

परिणामस्वरूप, हनुमान जी का शरीर अत्यधिक गर्म हो गया। लंका दहन के बाद, जब हनुमान जी समुद्र तट पर पहुंचे, तो उन्होंने अपनी पूंछ की आग बुझाने और शरीर की गर्मी शांत करने के लिए समुद्र के ठंडे पानी में डुबकी लगाई।

अत्यधिक परिश्रम और गर्मी के कारण, जब हनुमान जी जल में थे, तब उनके शरीर से पसीने की एक बूंद (या वीर्य की एक बूंद) निकली। यह बूंद सीधे समुद्र के जल में जा गिरी।

मछली का गर्भधारण

जिस स्थान पर हनुमान जी के शरीर से निकली वह बूंद गिरी थी, वहां एक विशालकाय मकर (मगरमच्छ या बड़ी मछली) मौजूद थी। उस मकर ने अनजाने में जल के साथ उस ऊर्जा से युक्त बूंद को निगल लिया।

हनुमान जी की दिव्य ऊर्जा से वह मकर गर्भवती हो गई। कुछ समय बाद, जब लंका से कुछ दूरी पर स्थित पातालपुरी के अहिरावण के सेवकों ने समुद्र में जाल फेंका, तो उस जाल में वह गर्भवती मकर फंसी। जब मछुआरों ने मकर का पेट फाड़ा, तो उसके पेट के भीतर उन्हें एक वानर-समान बालक मिला, जिसका आधा शरीर वानर का और कुछ हद तक मकर (मगरमच्छ) जैसा था।

अहिरावण, जो पातालपुरी का मायावी राजा और रावण का घनिष्ठ मित्र था, ने इस अद्भुत बालक को देखा। बालक में अद्भुत शक्ति और तेज देखकर अहिरावण ने उसे अपने पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त कर दिया और उसका नाम 'मकरध्वज' रखा गया, क्योंकि वह एक मकर के गर्भ से उत्पन्न हुआ था।

पिता-पुत्र का युद्ध और मिलन

लंका युद्ध के दौरान, हनुमान जी और मकरध्वज का आमना-सामना हुआ।

राम और लक्ष्मण का हरण

जब राम और रावण के बीच भीषण युद्ध चल रहा था, तब अहिरावण ने छल से राम और लक्ष्मण को रात्रि में मूर्छित कर दिया और उन्हें अपनी पातालपुरी ले गया, जहां वह उनकी बलि देने वाला था। विभीषण की सलाह पर, हनुमान जी अपने प्रभु राम और लक्ष्मण को छुड़ाने के लिए पातालपुरी पहुंचे।

पातालपुरी के प्रवेश द्वार पर, हनुमान जी ने एक अत्यंत बलशाली और तेजस्वी वानर को द्वारपाल के रूप में देखा।

हनुमान और मकरध्वज का संवाद

हनुमान जी ने उस वानर से पातालपुरी के अंदर जाने की अनुमति मांगी। द्वारपाल मकरध्वज ने विनम्रता से मना कर दिया और कहा कि वह किसी भी बाहरी व्यक्ति को अंदर जाने नहीं दे सकता।

हनुमान जी ने पूछा, "तुम कौन हो, वानर होते हुए भी रावण के सहयोगी अहिरावण की सेवा क्यों करते हो? और तुम मेरे जैसे क्यों दिखते हो?"

मकरध्वज ने उत्तर दिया, "मेरा नाम मकरध्वज है। मैं अपने स्वामी अहिरावण का सेवक हूं। मैं एक मकर के गर्भ से उत्पन्न हुआ था, इसलिए मेरा नाम मकरध्वज पड़ा। जहां तक आपकी और मेरी समानता का प्रश्न है, मेरी माता ने मुझे बताया था कि मैं उस महान वानर का पुत्र हूं, जिसने लंका दहन के बाद समुद्र में डुबकी लगाई थी।"

यह सुनकर हनुमान जी आश्चर्यचकित रह गए, क्योंकि वह अपने ब्रह्मचर्य व्रत के कारण जानते थे कि उनका कोई पुत्र नहीं हो सकता। परंतु मकरध्वज की बात पर उन्हें लंका दहन के बाद समुद्र में हुई घटना याद आई।

पिता-पुत्र का द्वंद्व

मकरध्वज ने अपने पिता को पहचान लिया, लेकिन राजधर्म के अनुसार, उन्होंने कहा कि वह उन्हें बिना युद्ध के अंदर जाने नहीं दे सकते।

विवश होकर, हनुमान जी और मकरध्वज के बीच एक भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध पिता-पुत्र के कर्तव्य और धर्म के बीच का द्वंद्व था। मकरध्वज भी अपने पिता की तरह ही पराक्रमी था, लेकिन हनुमान जी ने अंततः अपनी शक्ति से उसे पराजित कर दिया।

हनुमान जी ने मकरध्वज को अपनी पूंछ में बांध लिया और पाताल लोक में प्रवेश किया।

अहिरावण का वध और राज्याभिषेक

अंदर पहुंचकर, हनुमान जी ने अहिरावण का वध किया और राम तथा लक्ष्मण को उसकी कैद से मुक्त कराया।

युद्ध समाप्त होने के बाद, हनुमान जी ने मकरध्वज को अपनी पूंछ से मुक्त किया। पिता-पुत्र का मिलन हुआ। राम और लक्ष्मण ने मकरध्वज की वीरता और धर्म निष्ठा देखी।

भगवान राम ने मकरध्वज की धर्मपरायणता से प्रसन्न होकर उन्हें पातालपुरी का नया राजा नियुक्त किया और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार, मकरध्वज एक वीर और धर्मी राजा के रूप में स्थापित हुए।

निष्कर्ष

मकरध्वज की कथा यह दर्शाती है कि हनुमान जी का ब्रह्मचर्य व्रत केवल शारीरिक बंधन तक सीमित था, लेकिन उनकी ऊर्जा और तेज इतना महान था कि वह अनजाने में भी एक जीवन को जन्म दे सकता था। यह कथा पिता-पुत्र के अलौकिक मिलन, धर्म निष्ठा और अद्भुत जन्म की गाथा है, जो हनुमान जी की अलौकिक लीलाओं में एक और अध्याय जोड़ती है।

😡 हनुमान को किस बात से गुस्सा आता है?

हनुमान जी को शांत, सौम्य और जितेंद्रिय माना जाता है, लेकिन कुछ ऐसी बातें हैं जो उन्हें अत्यंत क्रोधित कर सकती हैं। उनका क्रोध धर्म, मर्यादा और भक्ति के उल्लंघन पर आधारित होता है:

1. राम नाम का अपमान या अनादर:

हनुमान जी के प्राण राम नाम में बसते हैं। यदि कोई व्यक्ति भगवान श्री राम या माता सीता के नाम का अपमान करता है, उनकी निंदा करता है, या उनकी मर्यादा का उल्लंघन करता है, तो इससे हनुमान जी को अत्यधिक क्रोध आता है। वे राम के प्रति द्रोह करने वाले को कभी क्षमा नहीं करते।

2. अहंकार और शक्ति का दुरुपयोग:

हनुमान जी स्वयं विनम्रता और सेवाभाव के प्रतीक हैं। उन्हें घमंड या अहंकार बिल्कुल पसंद नहीं है। यदि कोई अपनी शक्ति का दुरुपयोग करता है, निरपराधों को सताता है या दूसरों को कष्ट देता है, तो वे क्रुद्ध हो जाते हैं। रावण और इंद्र जैसे बलशाली लोगों के अहंकार को तोड़ते समय उनका क्रोध स्पष्ट देखा गया था।

3. असत्य और झूठ:

हनुमान जी सत्य और धर्म के पक्षधर हैं। उन्हें झूठ, छल और कपट पसंद नहीं है। जो व्यक्ति सच्ची भक्ति का दिखावा करता है या अपने स्वार्थ के लिए धर्म का मार्ग छोड़ देता है, वह उनके क्रोध का पात्र बन सकता है।

संक्षेप में, हनुमान जी का क्रोध व्यक्तिगत नहीं, बल्कि धर्म, सत्य और रामभक्ति के उल्लंघन पर आधारित होता है।

🚫 हनुमान चालीसा क्यों नहीं पढ़नी चाहिए? 

सामान्यतः, हनुमान चालीसा को पढ़ना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। हिंदू धर्म में ऐसी कोई मान्यता या शास्त्रोक्त प्रमाण नहीं है जो कहता हो कि हनुमान चालीसा नहीं पढ़नी चाहिए।

इसके विपरीत, यह मान्यता है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से बल, बुद्धि और विद्या प्राप्त होती है, और सभी प्रकार के कष्ट तथा संकट दूर होते हैं।

अीपवाद और प्रतिबंध:

फिर भी, कुछ विशेष परिस्थितियों में भक्तों को हनुमान चालीसा का पाठ नहीं करने या सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है:

अशुद्ध अवस्था: जब कोई व्यक्ति अशुद्ध अवस्था में हो (जैसे, स्नान न किया हो, अपवित्र वस्त्र पहने हों, या शौच के तुरंत बाद) तब चालीसा या किसी भी धार्मिक ग्रंथ का पाठ नहीं करना चाहिए। पवित्रता चालीसा पाठ के लिए अनिवार्य है।

मांसाहार/शराब के तुरंत बाद: यदि किसी ने तामसिक भोजन (मांसाहार) किया हो या शराब का सेवन किया हो, तो उस समय तुरंत हनुमान चालीसा का पाठ नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह पाठ पवित्रता और ब्रह्मचर्य की भावना से जुड़ा है।

अश्रद्धा या उपहास: यदि कोई व्यक्ति बिना श्रद्धा के, केवल मनोरंजन के लिए, या चालीसा का उपहास करने के उद्देश्य से पढ़ रहा हो, तो उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे लाभ होने के बजाय हानि हो सकती है।

संक्षेप में, हनुमान चालीसा पढ़ने पर कोई रोक नहीं है। 'नहीं पढ़ना चाहिए' केवल उन स्थितियों में लागू होता है जहां भक्त पवित्रता और श्रद्धा के मूलभूत नियमों का पालन नहीं कर रहा हो।

🛌 क्या हम बिस्तर पर हनुमान चालीसा पढ़ सकते हैं?

सामान्यतः, हनुमान चालीसा या किसी भी धार्मिक पाठ को पढ़ने के लिए पवित्रता, शुद्धता और आसन का नियम निर्धारित किया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, आदर्श स्थिति में स्नान करने के बाद, शुद्ध वस्त्र पहनकर, आसन पर बैठकर चालीसा का पाठ करना चाहिए।

कब पढ़ा जा सकता है?

हालांकि, भक्ति और श्रद्धा के मामले में कठोर नियमों से अधिक मन की भावना को महत्व दिया जाता है। इसलिए, कुछ विशेष परिस्थितियों में बिस्तर पर हनुमान चालीसा पढ़ना उचित माना जाता है:

अस्वस्थता या बीमारी: यदि कोई व्यक्ति बीमार है, चलने-फिरने में असमर्थ है, या बिस्तर पर लेटा हुआ है, तो वह मन को एकाग्र करके बिस्तर पर बैठकर या लेटकर भी चालीसा का पाठ कर सकता है। ऐसी स्थिति में, भगवान भक्त की मजबूरी को समझते हैं।

मानसिक जप: यदि आप बिस्तर पर केवल मानसिक रूप से (मन ही मन) चालीसा का जाप कर रहे हैं, तो यह हमेशा स्वीकार्य है, क्योंकि मानसिक जप के लिए स्थान या अवस्था का कोई प्रतिबंध नहीं होता।

क्या नहीं करना चाहिए?

बिस्तर पर पाठ करते समय भी पवित्रता का ध्यान रखना अनिवार्य है:

बिस्तर पर बैठकर पाठ करते समय जूते या चप्पल नहीं पहनने चाहिए।

बिस्तर स्वच्छ होना चाहिए।

मुख का जप करते समय, यदि संभव हो, तो लेटने के बजाय बैठ जाना चाहिए।

संक्षेप में, यदि आप स्वस्थ हैं तो नियम का पालन करें, अन्यथा सच्ची श्रद्धा के साथ बिस्तर पर मानसिक जप करना हमेशा स्वीकार्य है।

हनुमान जी खुश कैसे होते हैं?

हनुमान जी को प्रसन्न करना सबसे सरल माना जाता है, क्योंकि वे भक्ति, सेवा और विनम्रता के भूखे हैं। उन्हें खुश करने के लिए किसी आडंबर या बड़े चढ़ावे की आवश्यकता नहीं होती।

हनुमान जी को प्रसन्न करने के मुख्य तरीके इस प्रकार हैं:

1. राम नाम का निरंतर जप:

हनुमान जी की प्रसन्नता का सबसे बड़ा स्रोत भगवान श्री राम का नाम है। जहां भी सच्ची श्रद्धा से राम नाम का कीर्तन या जप होता है, हनुमान जी वहीं अदृश्य रूप में उपस्थित होकर आनंदित होते हैं। सच्चे मन से राम नाम का स्मरण करने वाला उनका सबसे प्रिय भक्त होता है।

2. निःस्वार्थ सेवाभाव:

हनुमान जी स्वयं सेवा और समर्पण के प्रतीक हैं। यदि कोई व्यक्ति निःस्वार्थ भाव से जरूरतमंदों, असहायों, या वृद्धों की सेवा करता है, तो हनुमान जी उससे अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

3. सात्विक भोग और आराधना:

हनुमान जी को सात्विक चीजें जैसे बूंदी के लड्डू, गुड़-चना, तुलसी दल और केला अत्यंत प्रिय हैं। मंगलवार या शनिवार को शुद्ध मन से उन्हें ये भोग अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उन्हें सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाना भी उन्हें खुश करने का एक प्रमुख तरीका है।

4. हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ:

नियमित रूप से शुद्ध और एकाग्र मन से हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्तों पर वे सदैव कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं और उनकी रक्षा करते हैं।

✍️ ब्लॉग के लिए डिस्क्लेमर 

📜 महत्वपूर्ण सूचना और अस्वीकरण (Disclaimer)

यह ब्लॉग पोस्ट 'कैसे पड़ा हनुमान नाम' और उनके जीवन से संबंधित अन्य जानकारियां, मुख्य रूप से पौराणिक कथाओं, धार्मिक ग्रंथों (जैसे रामायण, रामचरितमानस, और पुराणों) पर आधारित हैं।

धर्म और आस्था: इस लेख में दी गई कहानियां करोड़ों लोगों की आस्था और श्रद्धा का विषय हैं। इन कथाओं का उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना और आध्यात्मिक ज्ञान को साझा करना है।

सत्यता का दावा नहीं: यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सनातन धर्म में विभिन्न क्षेत्रों और संप्रदायों के आधार पर इन कथाओं में कुछ भिन्नताएं या अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं। हम यहां प्रस्तुत हर कहानी या घटना की ऐतिहासिक या वैज्ञानिक सत्यता का कोई दावा नहीं करते हैं। इन कथाओं को आस्था के विषय के रूप में ही समझा जाना चाहिए।

व्यक्तिगत मान्यता: प्रत्येक पाठक को यह सलाह दी जाती है कि वह अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं और आस्था के अनुसार इन जानकारियों का आकलन करें। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या मान्यता को अपनाने से पहले, किसी योग्य गुरु या धर्मग्य से परामर्श अवश्य लें।

उद्देश्य: इस ब्लॉग का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है, बल्कि भगवान हनुमान से जुड़ी उन रोचक और प्रेरणादायक कथाओं को प्रस्तुत करना है जो सदियों से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रही हैं।


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