"परिचय: एक व्रत, अनेक पुण्य"
अगर आप साल भर एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं, तो यह लेख आपके लिए है. सनातन धर्म में एकादशी का व्रत एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. साल में कुल 24 एकादशियां आती हैं, और हर तीन साल में पुरुषोत्तम मास (मलमास) के कारण यह संख्या 26 तक पहुंच जाती है. इन सभी एकादशियों का अपना-अपना महत्व है, लेकिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को सबसे खास माना जाता है. इसे 'भीमसेनी एकादशी' या 'पांडव एकादशी' भी कहते हैं.
इस एकादशी का व्रत इतना कठिन है कि इसे करने वाला व्यक्ति बिना अन्न और जल ग्रहण किए पूरे 24 घंटे उपवास रखता है. यह व्रत महाभारत काल के महान योद्धा भीम से जुड़ा है, जो अपनी भूख पर नियंत्रण नहीं रख पाते थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्यों उन्होंने यह कठिन व्रत किया और इसके पीछे क्या कहानी है? आइए, इस लेख में हम इसी के बारे में विस्तार से जानेंगे.
निर्जला एकादशी की पूजा के लिए तैयार किया गया पवित्र थाल, जिसमें जल से भरा कलश, ताजे फल, फूल और मिठाइयां शामिल हैं।
"निर्जला एकादशी 2026: तिथि और शुभ मुहूर्त"
इस साल, निर्जला एकादशी का व्रत तिथि पर रखा जाएगा. इस दिन कुछ खास योग बन रहे हैं जो इस व्रत के महत्व को और भी बढ़ा देते हैं.
- एकादशी तिथि का आरंभ: [24 जून दिन बुधवार को शाम 6:12 बजे से]
- एकादशी तिथि का समापन: [ 25 जून दिन गुरुवार को रात 8:09 बजे समाप्त होगा]
- पारण का समय (द्वादशी को): [ 26 जून दिन शुक्रवार को सुबह 5:00 बजे से लेकर दिन के 10:00 बजे के बीच आप पारण कर सकते हैं]
नोट: पंचांग के अनुसार तिथि में मामूली बदलाव हो सकते हैं, इसलिए अपने स्थानीय पंडित से सलाह लेना उचित होगा.
"निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त"
एकादशी व्रत में चारों पहर पूजा करने का विधान है। जानें पूजा करने का शुभ मुहूर्त। एकादशी के दिन सुबह 05:02 बजे से लेकर 06:45 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा। उस प्रकार 11:58 बजे से लेकर 01:29 बजे तक लाभ मुहूर्त, दिन के 11:21 बजे से लेकर 12:15 बजे तक अभिजीत मुहूर्त, दोपहर के 02:30 बजे से लेकर 02:57 बजे तक विजय मुहूर्त, दिन के 01:29 बजे से लेकर 03:11 बजे तक अमृत मुहूर्त, 04:52 बजे से लेकर 06:34 बजे तक शुभ मुहूर्त, शाम 06:34 बजे से लेकर 07:52 बजे तक अमृत मुहूर्त, रात्रि 11:48 बजे से लेकर 01:07 बजे तक लाभ मुहूर्त, 11:27 बजे से लेकर 12:09 बजे तक निशिता मुहूर्त रहेगा। सुबह ब्रह्म मुहूर्त 03:38 बजे से लेकर 04:20 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप सुविधा अनुसार चारों पहर की पूजा कर सकते हैं
"पारण करने का शुभ मूहूर्त"
चर मुहूर्त सुबह 05:02 बजे से लेकर 06:44 बजे तक लाभ मुहूर्त, सुबह 06:44 बजे से लेकर 08:25 बजे तक और अमृत मुहूर्त 08:25 बजे से लेकर 10:07 बजे तक रहेगा। शुभ घड़ी में आप अपनी सुविधा अनुसार पारण कर सकते हैं।
"निर्जला एकादशी व्रत की पूजा विधि"
निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है.
- दशमी तिथि को तैयारी: व्रत शुरू करने से पहले दशमी तिथि को शाम में सात्विक भोजन करना चाहिए. मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज का सेवन न करें.
- एकादशी के दिन: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें. व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की पूजा करें.
- पूजा-अर्चना: भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं. उन्हें पीले फूल, तुलसी दल, फल और मिठाई चढ़ाएं. 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' मंत्र का जाप करें.
- व्रत का नियम: इस दिन पूरे 24 घंटे बिना अन्न और जल के रहें.
- दान-पुण्य: इस दिन दान का बहुत महत्व है. जल से भरा हुआ मिट्टी का घड़ा (कलश), वस्त्र, जूता, पंखा, और अनाज दान करें.
- द्वादशी को पारण: द्वादशी के दिन सुबह स्नान करके पूजा-पाठ करें. उसके बाद किसी भूखे ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान दें. इसके बाद ही व्रत का पारण करें।
"श्रद्धा और सेवा": निर्जला एकादशी जैसे पावन व्रत के अवसर पर, यह तस्वीर दान की महत्ता को दर्शाती है, जहां एक व्रतधारी व्यक्ति गरीब महिला और पुरुष की सहायता कर रहा है"।
"निर्जला एकादशी का महत्व और लाभ"
- सभी पापों से मुक्ति: इस एक व्रत को करने से व्यक्ति को ब्रह्म हत्या, गौ हत्या, चोरी, गुरु के अपमान जैसे बड़े पापों से भी मुक्ति मिल जाती है.
- सभी एकादशियों का फल: जो व्यक्ति साल की सभी एकादशियों का व्रत नहीं कर पाता, उसे निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी 26 एकादशियों का फल प्राप्त होता है.
- मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत व्यक्ति को मोक्ष और विष्णु धाम की प्राप्ति कराता है.
- पुण्य: इस दिन दान-पुण्य करने का फल हजारों किलो सोना दान करने के बराबर होता है.
"पारण विधि और सावधानियां"
पारण का अर्थ है व्रत तोड़ना. यह व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
पारण हमेशा द्वादशी तिथि के समाप्त होने से पहले करना चाहिए.
पारण के समय, सबसे पहले भगवान विष्णु को भोग लगाएं.
इसके बाद, कुछ मीठा खाकर या जल पीकर व्रत तोड़ें.
पारण में तुलसी दल का सेवन भी बहुत शुभ माना जाता है।
"सावधानियां":
जो लोग बीमार हैं, गर्भवती हैं, या बुजुर्ग हैं, उन्हें यह व्रत नहीं करना चाहिए. वे फलाहार और जल ग्रहण करके यह व्रत कर सकते हैं। पारण के समय बहुत ज्यादा भोजन न करें, क्योंकि पूरे दिन भूखा रहने से पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है.
"निर्जला एकादशी 2026: क्या करें और क्या ना करें?
निर्जला एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में सभी 24 एकादशियों में सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आता है, जब गर्मी अपने चरम पर होती है। इस व्रत को सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए कुछ नियमों और सावधानियों का पालन करना बहुत आवश्यक है"।
""निर्जला एकादशी के दिन क्या करें"?
(What to Do on Nirjala Ekadashi?")
1. व्रत का संकल्प और तैयारी
व्रत शुरू करने से पहले मन में दृढ़ संकल्प लें। दशमी तिथि को ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। दशमी को सात्विक भोजन करें और शाम को सूर्यास्त से पहले भोजन कर लें। एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने व्रत का संकल्प लें।
2. भगवान विष्णु की पूजा
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। पूजा करते समय इन बातों का ध्यान रखें:
मूर्ति स्थापना: पूजा स्थल को साफ करें और भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से पंचामृत बनाकर भगवान को अर्पित करें।
पीले फूल और तुलसी: भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल, वस्त्र और तुलसी दल बहुत प्रिय हैं। उन्हें ये सभी चीजें अर्पित करें।
धूप और दीपक: घी का दीपक जलाएं और सुगंधित धूपबत्ती लगाएं।
मंत्र जाप: 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। इससे मन शांत होता है और भगवान का आशीर्वाद मिलता है।
✨" निर्जला एकादशी 2026 पर क्या करें और क्या न करें जानें, और बनाएं अपना व्रत अधिक सफल व पुण्यकारी"
3. दान का महत्व
निर्जला एकादशी के दिन दान करने से कई गुना अधिक पुण्य मिलता है। इस दिन निम्नलिखित चीजों का दान करना बहुत शुभ माना जाता है:
जल से भरा कलश: इस दिन गर्मी अधिक होती है, इसलिए किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को जल से भरा हुआ मिट्टी का घड़ा (कलश) दान करना बेहद पुण्य दायी माना जाता है।
अन्न और वस्त्र: भूखे लोगों को अनाज, फल और वस्त्र दान करें। यह दान आपको मोक्ष की ओर ले जाता है।
जूते और छाता: गर्मी से बचाने के लिए जूते, चप्पल, छाता या पंखा दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
मिठाई: भगवान को भोग लगाकर मिठाई का दान करें।
4. कथा श्रवण और जागरण
इस दिन निर्जला एकादशी की कथा को पढ़ना या सुनना चाहिए। यह व्रत की पौराणिक कथा आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाती है और व्रत के महत्व को समझाती है। रात में जागरण करने से भी विशेष फल की प्राप्ति होती है। अगर आप शारीरिक रूप से सक्षम हैं, तो रात भर जागकर भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन कर सकते हैं।
5. पारण की विधि
पारण का अर्थ है व्रत को तोड़ना। यह एकादशी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
समय का ध्यान: पारण हमेशा द्वादशी तिथि के सूर्योदय के बाद और द्वादशी के समाप्त होने से पहले करना चाहिए।
ब्राह्मण को भोजन: पारण से पहले किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान दें।
जल और तुलसी: व्रत का पारण करने के लिए सबसे पहले जल और तुलसी दल का सेवन करें।
सात्विक भोजन: पारण के समय हल्का और सात्विक भोजन जैसे फल, दूध या खिचड़ी खाएं। एकदम से भारी भोजन न करें, क्योंकि पूरे दिन खाली पेट रहने से पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है।
"निर्जला एकादशी के दिन क्या ना करें"?
(What to Avoid on Nirjala Ekadashi?)
1. अन्न और जल का सेवन
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इस व्रत में अन्न और जल दोनों का त्याग करना होता है। सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक किसी भी प्रकार का भोजन या पेय पदार्थ न लें। अगर आप बीमार हैं, गर्भवती हैं या बहुत बुजुर्ग हैं, तो यह नियम शिथिल हो जाता है। ऐसे में आप फलाहार कर सकते हैं।
भगवान विष्णु जो हमारा आराध्य देव है
2. क्रोध, झूठ और अपशब्द
एकादशी का व्रत केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक शुद्धि का भी प्रतीक है। इस दिन क्रोध, झूठ बोलना, किसी का अपमान करना या अपशब्दों का प्रयोग करने से बचना चाहिए। मन को शांत रखें और सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करें।
3. तामसिक भोजन
दशमी तिथि को भी तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांसाहार) नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन इन चीजों का सेवन पूरी तरह वर्जित है। व्रत के नियमों का सख्ती से पालन करें।
4. बालों और नाखूनों की कटाई
इस दिन बाल कटवाने, दाढ़ी बनवाने या नाखून काटने से बचना चाहिए। यह शुभ नहीं माना जाता है।
5. जुआ खेलना और गलत काम
एकादशी के दिन जुआ खेलना, शराब पीना, धूम्रपान करना या कोई भी गलत काम करना पाप माना जाता है। इन सभी कार्यों से बचना चाहिए।
6. दिन में सोना
एकादशी के दिन दिन में सोने से व्रत का फल नष्ट हो जाता है। रात में जागरण करना चाहिए और यदि संभव न हो तो भी कम से कम रात्रि में ही विश्राम करें।
"निष्कर्ष":
एक कठिन व्रत, अनेक लाभ निर्जला एकादशी का व्रत करना एक कठिन तपस्या है, लेकिन इसका फल भी उतना ही महान है। यह व्रत न केवल आपको सभी पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि साल की सभी 26 एकादशियों का पुण्य भी प्रदान करता है।
क्या आप इस साल निर्जला एकादशी का व्रत कर रहे हैं? अगर हाँ, तो इन नियमों का पालन करके आप इस व्रत का पूरा लाभ उठा सकते हैं। अगर आपके मन में कोई और सवाल है, तो आप पूछ सकते हैं।
"निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा: 'पांडव-पुण्य' नाट्य संवाद"
पौराणिक कथा का शुभारंभ और पात्र जिसे हमनें नाटक के रूप में प्रस्तुत किया है। आप पाठकों को मेरा पौराणिक कथा का यह स्वरूप जरूर पसंद आएगा:
भीमसेन: बलशाली और भोजन-प्रेमी पांडव
वेद व्यास: महान ऋषि और कथाकार
युधिष्ठिर: धर्मराज, पांडवों में सबसे बड़े
अर्जुन: महान धनुर्धर
कुंती: पांडवों की माता
द्रौपदी: पांचाली, पांडवों की पत्नी
नारद मुनि: देवर्षि, जो तीनों लोकों में भ्रमण करते हैं
भगवान विष्णु: पालनहार, जो अपनी लीला से सृष्टि चलाते हैं
यमदूत और विष्णु पार्षद: स्वर्ग और नरक के संदेशवाहक
विभिन्न ऋषि-मुनि और आमजन (समूह में)
"कठिन समय में भी धर्म का मार्ग पर चलते हुए निर्जला एकादशी व्रत पर पांडव परिवार का गहन चिंतन"।
दृश्य 1: पांडवों का आश्रम
(सुबह का समय। आश्रम में चारों ओर शांति है। युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव ध्यान में बैठे हैं। कुंती और द्रौपदी पूजा की तैयारी कर रही हैं। एक कोने में भीम बेचैन बैठे हैं, उनके पेट से गुरगुराहट की आवाज आ रही है।)
कुंती: (प्यार से) भीम, आज एकादशी का दिन है। मन को शांत रखो और भगवान नारायण का ध्यान करो।
भीम: (हाथ जोड़कर) माता, मैं मन को कैसे शांत रखूं जब पेट में वृक नामक अग्नि धधक रही है? यह अग्नि मेरी भूख को और भी बढ़ा देती है। मेरा शरीर, मेरा मन, सब भोजन के लिए व्याकुल हैं।
द्रौपदी: (मुस्कुराते हुए) स्वामी, यह एकादशी का व्रत है, कोई साधारण तपस्या नहीं। यह मन और इंद्रियों को वश में करने का अवसर है।
भीम: पांचाली, तुम सब भूखे रहकर कैसे रह लेती हो? मैं तो एक क्षण भी भोजन के बिना नहीं रह सकता। यह तो मेरे लिए असंभव है। मेरे भाई और माता, आप सब तो धर्म के ज्ञाता हैं। मैं तो बस युद्ध और भोजन जानता हूँ।
युधिष्ठिर: (आंखें खोलकर) भाई भीम, धर्म केवल युद्ध में पराक्रम दिखाने या दान-पुण्य करने तक सीमित नहीं है। व्रत और उपवास से मन की शुद्धि होती है। यह भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ मार्ग है।
भीम: (निराश होकर) तो क्या मैं कभी भी भगवान को प्रसन्न नहीं कर पाऊँगा? क्या मुझे कभी मोक्ष नहीं मिलेगा? क्या मुझे नरक में जाना पड़ेगा?
(उसी क्षण, महर्षि वेद व्यास का आगमन होता है। सभी पांडव उन्हें प्रणाम करते हैं।)
वेद व्यास: (शांत स्वर में) हे पांडवों, भगवान विष्णु की कृपा तुम सब पर बनी रहे। मैं जानता हूँ, भीमसेन चिंतित हैं। उनकी व्यथा मेरे कानों तक पहुंची है।
भीम: (उत्सुकता से) हे पितामह! आप तो सर्वज्ञानी हैं। आप ही मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मुझे मोक्ष मिल सके, पर मुझे भूखा न रहना पड़े। मेरा शरीर भोजन के बिना कमजोर हो जाता है।
"ज्ञान और शक्ति का मिलन: ऋषि वेद व्यास और शक्तिशाली भीमसेन, एकांत में निर्जला एकादशी के गहन रहस्यों पर चर्चा करते हुए"।
वेद व्यास: (गंभीरता से) हे भीमसेन, मोक्ष का मार्ग सरल नहीं है। शास्त्रों में हर महीने दो एकादशी का विधान है। जो व्यक्ति इन 24 एकादशियों का व्रत करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है और वह विष्णु लोक को जाता है। लेकिन तुम तो कह रहे हो कि तुम एक भी व्रत नहीं कर सकते।
भीम: (हाथ जोड़कर, कांपते हुए) पितामह, मैं आपसे झूठ नहीं कहूँगा। मैं भोजन के बिना नहीं रह सकता। मेरी स्थिति बहुत दयनीय है। मेरे भाई, माता और द्रौपदी का व्रत देखकर मुझे लगता है कि मैं कोई पापी हूँ। कृपया कोई ऐसा रास्ता दिखाएं जिससे मुझे साल भर में केवल एक ही व्रत करना पड़े, और मुझे उन सभी एकादशियों का पुण्य मिल जाए। क्या ऐसा कोई व्रत है?
वेद व्यास: (मुस्कुराते हुए) हाँ, भीम, ऐसा एक व्रत है। यह व्रत जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आता है। इसका नाम निर्जला एकादशी है।
भीम: (आश्चर्य से) निर्जला? इसका क्या अर्थ है, पितामह?
वेद व्यास: इसका अर्थ है, बिना जल के। इस व्रत में सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक, तुम्हें अन्न के साथ-साथ जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करनी होगी। यह व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन है, क्योंकि यह ज्येष्ठ मास की प्रचंड गर्मी में आता है। लेकिन इसका फल भी सबसे महान है।
भीम: (हैरानी से) बिना पानी के? हे पितामह, यह तो बहुत ही कठिन है।
वेद व्यास: (दृढ़ता से) हे भीमसेन, यही इस व्रत की सबसे बड़ी शक्ति है। जो व्यक्ति इस एक दिन का व्रत पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता है, उसे साल की सभी 26 एकादशियों (पुरुषोत्तम मास सहित) का पुण्य मिलता है। यह व्रत समस्त तीर्थों और दानों से बढ़कर है।
भीम: (आत्मविश्वास से) यदि ऐसा है, तो मैं यह व्रत अवश्य करूंगा। मैं अपनी शक्ति का उपयोग इस व्रत को करने में करूंगा। मैं इस भीषण तपस्या को स्वीकार करता हूँ।
(वेद व्यास मुस्कुराते हैं। भीम को आशीर्वाद देते हैं और सभी पांडव खुशी से भर जाते हैं।)
पर्दा गिरता है।
"दृश्य 2: निर्जला एकादशी का दिन"
(दिन का समय। चारों ओर गर्मी और धूप है। आश्रम में सभी लोग अपने-अपने कार्य में व्यस्त हैं। भीम एक पेड़ के नीचे बैठे हैं। उनका चेहरा पीला पड़ गया है। वे बार-बार अपनी जीभ पर हाथ फेर रहे हैं। उनकी बेचैनी साफ दिख रही है। युधिष्ठिर उनके पास आते हैं।)
युधिष्ठिर: भाई भीम, तुम्हारी तबीयत ठीक है? तुम्हें बहुत परेशानी हो रही है।
भीम: (मुश्किल से बोलते हुए) हां, भ्राता श्री। शरीर कमजोर हो रहा है। गला सूख रहा है। पेट में वृक अग्नि और भी प्रचंड हो गई है। ऐसा लग रहा है मानो मेरे शरीर में आग लगी हो। लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा। मैंने पितामह वेद व्यास से वादा किया है।
द्रौपदी: (जल का पात्र लेकर आती है) स्वामी, थोड़ा जल ग्रहण कर लें। भगवान भी जानते हैं कि आपकी क्या स्थिति है। वे आपको अवश्य क्षमा कर देंगे।
भीम: (आंखें बंद करके, दृढ़ता से) नहीं, पांचाली। अगर मैं अभी जल पी लूंगा तो मेरा व्रत टूट जाएगा। मैं उन सभी एकादशियों का पुण्य खो दूंगा। मैंने नरक में जाने से बचने के लिए यह व्रत स्वीकार किया है। मैं पीछे नहीं हटूंगा।
(भीम की दृढ़ता देखकर द्रौपदी और युधिष्ठिर हैरान रह जाते हैं। वे उन्हें अकेला छोड़ देते हैं। शाम होती है। भीम का शरीर पूरी तरह से शिथिल हो चुका है। वह जमीन पर लेट जाते हैं, पसीने से तरबतर हैं। तभी नारद मुनि का आगमन होता है।)
"भीम को नारद मुनि निर्जला एकादशी के व्रत के बारे में समझाते हुए, एक दिव्य और ज्ञानवर्धक पल का चित्रण"।
नारद मुनि: (वीणा बजाते हुए) नारायण नारायण! हे भीमसेन, क्या हाल है? सुना है आपने निर्जला एकादशी का कठिन व्रत किया है।
भीम: (धीमी आवाज में) हां, मुनिवर। यह व्रत वास्तव में मेरे लिए बहुत कठिन है। पर मैं दृढ़ संकल्पित हूं।
नारद मुनि: (मुस्कुराते हुए) तुम्हारी निष्ठा देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। यह व्रत तुम्हें केवल स्वर्ग ही नहीं, बल्कि भगवान विष्णु के परम धाम तक ले जाएगा। तुम धन्य हो, भीम।
(नारद मुनि अदृश्य हो जाते हैं। रात बीत जाती है। सुबह होती है। द्वादशी का सूर्योदय होता है।)
"द्वादशी की सुबह, पारण का समय"
(आश्रम में चहल-पहल है। भीम स्नान करके आए हैं। उनका शरीर बहुत कमजोर है। सभी पांडव और कुंती उनके पास हैं। एक ब्राह्मण को बुलाया गया है।)
युधिष्ठिर: भाई, अब पारण का समय हो गया है। पहले ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा और भोजन कराओ।
भीम: (कमजोरी से) हां, भ्राता श्री।
(भीम, वेद व्यास के बताए अनुसार, एक जल से भरा हुआ मिट्टी का घड़ा, वस्त्र और कुछ दक्षिणा ब्राह्मण को दान करते हैं। ब्राह्मण उन्हें आशीर्वाद देता है।)
ब्राह्मण: हे भीमसेन, तुम्हारी इस कठिन तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हों। तुम सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करो।
(ब्राह्मण के जाने के बाद, भीम कुछ फल और जल ग्रहण करके अपना व्रत तोड़ते हैं। एक ही क्षण में उनके चेहरे पर रौनक लौट आती है। उनकी आंखों में एक नई चमक है।)
अर्जुन: भाई, तुम्हारी निष्ठा ने हम सबको हैरान कर दिया। हमने कभी नहीं सोचा था कि तुम इतना कठिन व्रत कर सकते हो।
भीम: यह सब पितामह वेद व्यास की कृपा और भगवान विष्णु की शक्ति का परिणाम है। इस व्रत को करने के बाद मुझे महसूस हो रहा है कि मेरा शरीर नहीं, बल्कि मेरा मन शांत हुआ है।
(उसी समय, आकाश से एक दिव्य रथ आता है। रथ में भगवान विष्णु स्वयं विराजमान हैं। सभी लोग उन्हें देखकर नतमस्तक हो जाते हैं। नारद मुनि भी उनके साथ हैं।)
भगवान विष्णु: (भीम की ओर देखकर, मधुर मुस्कान के साथ) हे भीमसेन, तुम्हारी दृढ़ता और भक्ति से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुमने अपनी कमजोरी पर विजय प्राप्त की है। तुमने एक ही दिन में वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त किया है।
(आकाश से फूलों की वर्षा होने लगती है।)
भगवान विष्णु: (सभी की ओर देखकर) हे भक्तों, जो भी व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा से करता है, वह मेरे परमधाम को प्राप्त करता है। उसे यमदूतों का सामना नहीं करना पड़ता, बल्कि मेरे पार्षद उसे लेने आते हैं। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति ब्रह्म हत्या, गौ हत्या, चोरी और अन्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
(भगवान विष्णु की बात सुनकर सभी लोग जयकार करते हैं। भीम भावुक होकर भगवान के चरणों में गिर जाते हैं।)
भीम: हे प्रभु, आप महान हैं। आपने मुझ जैसे साधारण भक्त को भी मोक्ष का मार्ग दिखाया।
भगवान विष्णु: हे भीम, आज से यह एकादशी 'भीमसेनी एकादशी' के नाम से भी जानी जाएगी। तुम्हारा नाम अमर हो जाएगा।
(भगवान विष्णु, दिव्य रथ में बैठकर वापस चले जाते हैं। सभी लोग इस चमत्कार को देखकर हैरान रह जाते हैं।)
युधिष्ठिर: भाई भीम, तुम्हारी एक समस्या ने हम सबको एक नया और महान धर्म सिखाया है। अब से हम सब इस निर्जला एकादशी को पूरी निष्ठा से करेंगे।
भीम: (खुशी से) हां भ्राता, यह व्रत वास्तव में मुक्ति का द्वार है। अब मैं समझ गया कि व्रत करने से केवल शरीर की शुद्धि नहीं, बल्कि आत्मा का भी कल्याण होता है।
(सभी पांडव एक साथ भगवान विष्णु की जयकार करते हैं।)
"मृत्यु के बाद का अलौकिक दृश्य"
(अंधकारमय मार्ग। यमदूतों का समूह भीषण गर्जना के साथ चल रहा है। वे भीम की आत्मा को लेने के लिए आगे बढ़ते हैं। तभी एक तेज प्रकाश प्रकट होता है। उस प्रकाश में भगवान विष्णु के पार्षद, शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए, दिव्य रथ पर बैठे हैं।)
यमदूतों का सरदार: (घबराकर) हे विष्णु पार्षद, आप यहां क्या कर रहे हैं? यह आत्मा तो हमारी है। इसने कई पाप किए हैं।
"दो समूहों के बीच फंसी भीम की आत्मा, एक तरफ यमदूत और दूसरी तरफ पुष्पक विमान पर विष्णु के गण। पृष्ठभूमि में घने जंगल और पहाड़ी मार्ग है"।
विष्णु पार्षद : मूर्ख! यह आत्मा महान भक्त भीमसेन की है। इन्होंने जीवन में कई युद्ध किए, पर अंत में इन्होंने निर्जला एकादशी का व्रत करके अपने सभी पापों को नष्ट कर दिया। यह आत्मा अब आपकी नहीं, बल्कि भगवान विष्णु की है।
विष्णु पार्षद : हमारे स्वामी, भगवान नारायण ने हमें इन्हें लेने भेजा है। जो व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत करता है, उसे मोक्ष का वरदान प्राप्त होता है।
(यमदूत भयभीत होकर पीछे हट जाते हैं। विष्णु पार्षद भीम की आत्मा को दिव्य रथ में बैठाते हैं।)
विष्णु पार्षद 1: हे भीमसेन, चलिए। आपका परमधाम में स्वागत है।
(दिव्य रथ विष्णु लोक की ओर बढ़ जाता है। दूर से भगवान विष्णु की मधुर मुस्कान और शंख की ध्वनि सुनाई देती है।)
"वेदव्यास जी ने अंत में क्या कहा"
"हे मनुष्यों! यह कथा केवल एक कहानी नहीं है। यह सत्य है कि श्रद्धा और भक्ति से किया गया कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं जाता। यदि तुम सभी 26 एकादशियों का व्रत नहीं कर सकते, तो इस निर्जला एकादशी का व्रत पूरी निष्ठा से करो। यह तुम्हें सभी पापों से मुक्ति देगा, मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करेगा और तुम्हें साक्षात भगवान विष्णु के धाम तक ले जाएगा। जय श्री हरि!"
"क्या आपको पता है"?
* विष्णु लोक की प्राप्ति: जो भक्त निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं, उनकी मृत्यु के समय यमदूत नहीं आते, बल्कि भगवान विष्णु के पार्षद उन्हें पुष्पक विमान में बैठाकर अपने लोक ले जाते हैं.
*व्रत के नियम: यह व्रत केवल अन्न-जल त्यागने तक सीमित नहीं है, बल्कि इस दिन मन, वचन और कर्म से भी सात्विक रहना जरूरी है. क्रोध, झूठ, और बुरे विचारों से दूर रहना चाहिए.
*कठिन तपस्या: ज्येष्ठ मास की भीषण गर्मी में बिना जल के रहना एक बहुत बड़ी तपस्या है, इसीलिए इसे सभी एकादशियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.
[निष्कर्ष और अंत में एक प्रश्न]
"निष्कर्ष: एक व्रत, एक जीवन का वरदान"
निर्जला एकादशी, जिसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं, सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि एक कठिन तपस्या है. यह हमें सिखाता है कि इच्छा शक्ति और श्रद्धा से हम किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं. भीम की तरह, अगर हमारे मन में भी भगवान के प्रति सच्ची आस्था है, तो हमें उनका आशीर्वाद जरूर मिलता है.
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डिस्क्लेमर
यह लेख धर्म शास्त्रों, पौराणिक कथाओं और पंचांग के आधार पर लिखा गया है। इसका उद्देश्य आपको निर्जला एकादशी व्रत और उसके महत्व के बारे में जानकारी देना है। इस व्रत से जुड़ी कोई भी पूजा-विधि या मुहूर्त के लिए अपने स्थानीय पंडित या जानकार से सलाह लेना उचित होगा। यह लेख किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत या चिकित्सा सलाह का दावा नहीं करता है।