करवा चौथ 2025, पढ़ें करवा चौथ व्रत कथा, करवा चौथ पूजा विधि, करवा चौथ शुभ मुहूर्त, करवा चौथ क्या करें क्या न करें, करवा चौथ की तीन पौराणिक कथाएं।
"करवा चौथ 2025 – चांद की रोशनी में अटूट विश्वास और पति की लंबी आयु की कामना।
10 अक्टूबर 2025 को करवा चौथ मनाएं। विस्तृत तीन पौराणिक कथाएं, पूजा की स्टेप-बाय-स्टेप विधि, मुहूर्त और दोस-डॉन्ट्स (Dos-donts) । जानें सनातन परंपरा का रोचक वर्णन।
करवा चौथ का त्योहार हिंदू संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। यह मुख्य रूप से उत्तर भारत में विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए मनाया जाता है। वर्ष 2025 में करवा चौथ 10 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पड़ता है, जिसे करवा चौथ या करक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, अर्थात सूर्योदय से चंद्रोदय तक बिना पानी और अन्न के रहती हैं। शाम को पूजा-अर्चना के बाद चंद्रमा के दर्शन कर व्रत खोला जाता है।
यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक भी है। आधुनिक समय में यह त्योहार फैशन, मेहंदी, सजावट और पारंपरिक रीतियों से जुड़ गया है, जो इसे और भी रोचक बनाता है। इस ब्लॉग में हम करवा चौथ की पूरी जानकारी देंगे, जिसमें तीन प्रमुख पौराणिक कथाओं का विस्तृत वर्णन पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत के दौरान क्या करें और क्या न करें, शामिल हैं। यह ब्लॉग आपको रोचक लगेगा क्योंकि हम कथाओं को जीवंत तरीके से पेश करेंगे, जैसे कोई कहानी सुनाई जा रही हो।
करवा चौथ कैसे मनाया जाता है?
करवा चौथ का व्रत महिलाओं के लिए एक कठिन लेकिन भक्ति से भरा दिन होता है। यहां व्रत की मुख्य रीतियां हैं:
सरगी: सूर्योदय से पहले महिलाएं सरगी ग्रहण करती हैं। यह उनकी सास द्वारा तैयार की जाती है, जिसमें फल, मिठाई, ड्राई फ्रूट्स, परांठे और अन्य पौष्टिक चीजें शामिल होती हैं। सरगी से दिन भर की ऊर्जा मिलती है।
निर्जला व्रत: पूरे दिन बिना पानी या अन्न के व्रत रखा जाता है। महिलाएं सज-संवर कर दिन बिताती हैं, मेहंदी लगाती हैं और परिवार के साथ समय व्यतीत करती हैं।
शाम की पूजा: शाम को महिलाएं करवा (मिट्टी का बर्तन) लेकर पूजा करती हैं। भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की आराधना की जाती है। व्रत कथा सुनी जाती है।
चंद्रोदय और व्रत तोड़ना: चंद्रमा निकलने पर छलनी से चंद्रमा और फिर पति का चेहरा देखा जाता है। पति के हाथों से पानी पीकर और भोजन ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है।
यह त्योहार सामूहिक रूप से मनाया जाता है, जहां महिलाएं एक साथ पूजा करती हैं, जो सामाजिक बंधन को मजबूत करता है।
करवा चौथ पूजा की विधि
*करवा चौथ की पूजा शाम को की जाती है। यहां चरणबद्ध विधि:
*पूजा स्थल साफ करें, चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
*करवा में पानी भरें, दीया जलाएं।
*शिव परिवार की मूर्तियां स्थापित करें।
*रोली, चावल, फूल, धूप से पूजा करें।
*व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
*आरती करें।
चंद्रोदय पर छलनी से चंद्रमा देखें, पति को अर्घ्य दें।
यहां करवा चौथ की पूजा थाली का एक खूबसूरत चित्र है, जिसमें सभी आवश्यक सामग्री जैसे चलनी, लोटा, दीया और पूजा की थाली रखी हुई है। यह थाली करवा चौथ के व्रत और पूजा के लिए तैयार है।
करवा चौथ 2025 के शुभ मुहूर्त
2025 में करवा चौथ 10 अक्टूबर को है:
पूजा मुहूर्त: शाम 08:24 बजे से लेकर 10:00 बजे तक।
चंद्रोदय: रात 08:50 बजे।
उपवास समय: सुबह 05:40 से रात 08:50 तक।
अन्य मुहूर्त: गोधूलि शाम 05:24 बजे से लेकर 05:49 बजे तक, लाभ मुहूर्त रात 08:24 बजे से लेकर 10:00 बजे तक, शुभ मुहूर्त रात 11:32 बजे से लेकर 01:04 बजे तक और अमृत मुहूर्त देर रात 01:04 बजे से लेकर 02:36 बजे तक रहेगा।
करवा चौथ के दिन क्या करें और क्या न करें
क्या करें:
*सरगी में पौष्टिक भोजन लें।
*लाल वस्त्र पहनें।
*व्रत कथा सुनें।
*हल्का व्यायाम करें।
*पानी ज्यादा पिएं (व्रत से पहले)।
क्या न करें:
*सफेद या काला वस्त्र न पहनें।
*कैंची, सुई न छुएं।
*भारी काम न करें।
*नकारात्मक विचार न लाएं।
*व्रत बीच में न तोड़ें।
करवा चौथ की पौराणिक कथाएं
करवा चौथ की कथाएं भक्ति, प्रेम और समर्पण की मिसाल हैं। यहां तीन प्रमुख कथाओं का विस्तृत वर्णन है, प्रत्येक को हमने जीवंत और रोचक तरीके से विस्तार दिया है।
पहली कथा: वीरवती की कथा
प्राचीन काल में एक छोटे से राज्य में वीरवती नाम की एक सुंदर और साहसी राजकुमारी रहती थी। वह सात भाइयों की इकलौती बहन थी, जिन्हें वह अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती थी। भाई भी अपनी बहन को राजकुमारी की तरह पालते थे, उसके हर सुख-दुख में साथ देते थे। वीरवती की उम्र हुई तो उसके पिता ने उसका विवाह एक शक्तिशाली और धनी राजा से कर दिया। राजा न केवल बहादुर था, बल्कि दयालु और न्यायप्रिय भी था। विवाह के बाद वीरवती राजमहल में रानी बनकर रहने लगी, लेकिन उसके दिल में हमेशा अपने भाइयों की याद रहती थी।
समय बीता और कार्तिक मास की चतुर्थी आई। यह वीरवती की पहली करवा चौथ थी। उसने सुना था कि यह व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। वीरवती ने पूरे उत्साह से व्रत रखने का निर्णय लिया। सूर्योदय से पहले उसने सरगी ग्रहण की, जिसमें मीठे फल, नट्स और दूध से बनी मिठाइयां थीं। फिर वह पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए रही। राजमहल में सब कुछ वैभवपूर्ण था, लेकिन व्रत की कठिनाई ने वीरवती को परेशान करना शुरू कर दिया।
दिन चढ़ता गया, सूरज की तेज किरणें महल की दीवारों पर पड़ रही थीं। वीरवती को भूख और प्यास लगने लगी। उसके चेहरे पर थकान छा गई, आंखें लाल हो गईं। वह महल के बगीचे में टहल रही थी, लेकिन पैर लड़खड़ा रहे थे। अचानक उसे चक्कर आया और वह गिर पड़ी। सेविकाओं ने उसे उठाया और राजा को सूचना दी। राजा चिंतित हो गया, लेकिन वीरवती ने कहा, "मैं व्रत नहीं तोड़ूंगी। यह मेरे पति की रक्षा के लिए है।"
उधर, वीरवती के भाई अपने पिता के घर से उसकी हालत जान चुके थे। वे सातों भाई बहन की चिंता में व्याकुल थे। सबसे बड़ा भाई बोला, "हमारी बहन इतनी कमजोर हो गई है, हम उसे ऐसे नहीं देख सकते। हमें कुछ करना होगा।" उन्होंने योजना बनाई। शाम होने से पहले वे एक ऊंचे पेड़ के पीछे छिप गए। उन्होंने एक बड़ा आईना लिया और उसमें सूरज की रोशनी डालकर एक कृत्रिम चंद्रमा जैसा प्रतिबिंब बनाया। फिर उन्होंने वीरवती को बुलाया और कहा, "बहन, देखो चंद्रमा निकल आया है। अब तुम व्रत तोड़ सकती हो।"
वीरवती भाइयों पर अटूट विश्वास रखती थी। उसने आईने में देखा और सोचा कि सच में चंद्रमा निकल चुका है। उसने खुशी-खुशी व्रत तोड़ा, पानी पिया और भोजन किया। लेकिन जैसे ही उसने पहला निवाला मुंह में डाला, महल से एक दुखद समाचार आया – राजा की अचानक मृत्यु हो गई! वीरवती स्तब्ध रह गई। उसका दिल टूट गया, आंसू बहने लगे। वह रोते-रोते राजा के शव के पास पहुंची और विलाप करने लगी, "हे भगवान, यह क्या हो गया? मैंने व्रत क्यों तोड़ा?"
उसकी करुणा और प्रेम इतना गहरा था कि देवी इंद्राणी स्वयं प्रकट हुईं। देवी ने कहा, "बेटी, तुम्हारे भाइयों ने छल किया है। असली चंद्रमा अभी नहीं निकला है। तुम्हारा व्रत अधूरा रह गया, इसलिए यह विपत्ति आई। लेकिन तुम्हारी भक्ति सच्ची है। अब तुम फिर से व्रत रखो, पूरी श्रद्धा से।" वीरवती ने देवी की बात मानी। उसने अगले साल फिर करवा चौथ का व्रत रखा, इस बार और अधिक समर्पण के साथ। वह पूरे दिन पूजा में लीन रही, मंत्र जपती रही। चंद्रमा निकलने पर उसने विधिवत व्रत तोड़ा।
देवी प्रसन्न हुईं और उन्होंने राजा को जीवनदान दिया। राजा जीवित हो उठा, जैसे कुछ हुआ ही न हो। पूरा राज्य खुशी से झूम उठा। वीरवती के भाइयों ने अपनी गलती मानी और बहन से माफी मांगी। इस घटना से करवा चौथ का महत्व बढ़ गया। यह कथा बताती है कि व्रत में सच्ची भक्ति और नियमों का पालन कितना जरूरी है। छल या जल्दबाजी से विपत्ति आ सकती है, लेकिन समर्पण से सब ठीक हो जाता है। आज भी महिलाएं इस कथा को सुनकर व्रत रखती हैं, ताकि उनके पति की रक्षा हो।
इस कथा से हमें सीख मिलती है कि परिवार का प्रेम कितना मजबूत होता है, लेकिन धार्मिक नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। वीरवती की कहानी पीढ़ियों से चली आ रही है, जो करवा चौथ को और पवित्र बनाती है।
एक कृत्रिम चंद्रमा कोहरे और रोशनी वाले पेड़ों से घिरी एक शांत रात के दृश्य में चमकता हुआ, पानी में अपनी रोशनी बिखेर रहा है।
दूसरी कथा: सावित्री और सत्यवान की कथा
प्राचीन भारत में एक राजा थे, जिनकी पुत्री सावित्री थी। सावित्री न केवल रूपवान थी, बल्कि बुद्धिमान, धार्मिक और समर्पित भी थी। उसके पिता ने उसके लिए योग्य वर खोजा, लेकिन सावित्री ने खुद सत्यवान को चुना, जो एक निर्वासित राजकुमार था। सत्यवान धर्मपरायण, ईमानदार और वन में रहकर लकड़ियां बेचकर जीवन यापन करता था। विवाह हुआ, लेकिन नारद मुनि ने सावित्री को चेतावनी दी, "सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष की है। वह मर जाएगा।"
सावित्री दुखी हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह सत्यवान के साथ वन में रहने लगी, उसे हर सुख देने लगी। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, सावित्री ने कठिन तपस्या शुरू की। वह रोज पूजा करती, व्रत रखती। करवा चौथ का दिन आया, जो सत्यवान की मृत्यु का दिन भी था। सावित्री ने निर्जला व्रत रखा, पति की लंबी उम्र की प्रार्थना की।
उस दिन सत्यवान जंगल में लकड़ियां काटने गया। सावित्री भी साथ गई। सत्यवान ने कुल्हाड़ी चलाई, लेकिन अचानक सिर में दर्द हुआ और वह गिर पड़ा। सावित्री ने उसे गोद में लिया, रोने लगी। तभी यमराज प्रकट हुए, सत्यवान की आत्मा लेने आए। सावित्री ने कहा, "हे यमराज, मेरे पति को मत ले जाओ। मैं उनके बिना जी नहीं सकती।" यमराज ने कहा, "यह विधि का विधान है, मैं नहीं रोक सकता।"
लेकिन सावित्री ने यमराज का पीछा किया। वह उनके साथ चली, जंगलों, नदियों को पार करती गई। यमराज ने कहा, "तुम वापस जाओ, स्त्री हो।" सावित्री बोली, "पति के साथ रहना मेरा धर्म है। मैं आपके साथ चलूंगी।" उसकी भक्ति से प्रभावित हो यमराज ने वरदान मांगा। सावित्री ने पहले वर में ससुर की आंखें मांगी, दूसरे में राज्य, तीसरे में सौ पुत्र। यमराज ने दिया, लेकिन सावित्री बोली, "बिना पति के पुत्र कैसे?" यमराज हंस पड़े और सत्यवान को जीवनदान दे दिया।
नदी के किनारे, ग्रामीणों की भीड़ के बीच, सावित्री यमराज से अपने पति को वापस लाने की प्रार्थना कर रही है। यह दृश्य जीवन और मृत्यु के चक्र में आस्था और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।
सत्यवान जीवित हो उठा। वे घर लौटे, राज्य मिला। यह कथा समर्पण की शक्ति दिखाती है।
तीसरी कथा: करवा की कथा
प्राचीन काल में, गंगा नदी के तट पर बसा एक छोटा सा गांव था, जिसका नाम था करवापुर। यह गांव हरे-भरे खेतों से घिरा हुआ था, जहां सुबह की पहली किरण के साथ पक्षियों का कलरव गूंजता था और शाम ढलते ही नदी की लहरें एक मधुर संगीत की तरह बहती थीं।
गांव के लोग सादा जीवन जीते थे – खेती-बाड़ी करते, पशु पालते और देवी-देवताओं की पूजा में लीन रहते। इसी गांव में रहती थी करवा नाम की एक युवती, जो अपनी पतिव्रता और भक्ति के लिए पूरे इलाके में विख्यात थी।
करवा का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था, लेकिन उसके गुण उसे राजकुमारी जैसी बना देते थे। उसकी आंखें गहरी और शांत थीं, जैसे नदी का गहरा पानी, और उसके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान रहती, जो उसके हृदय की पवित्रता को दर्शाती थी।
करवा की शादी गांव के एक ईमानदार और मेहनती युवक से हुई थी, जिसका नाम था धर्मपाल। धर्मपाल एक कुशल किसान था, जो सुबह से शाम तक खेतों में काम करता और शाम को घर लौटकर करवा के साथ समय बिताता। दोनों का प्रेम इतना गहरा था कि गांव वाले उन्हें आदर्श दंपत्ति मानते थे।
करवा अपने पति की हर छोटी-बड़ी जरूरत का ख्याल रखती थी। वह सुबह उठकर घर की सफाई करती, पूजा-अर्चना करती और फिर खेतों में जाकर धर्मपाल को भोजन पहुंचाती। शाम को जब धर्मपाल थककर लौटता, तो करवा उसके पैर दबाती और मीठी-मीठी बातें करके उसकी थकान दूर करती।
करवा की भक्ति केवल पति तक सीमित नहीं थी; वह भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना में भी लीन रहती थी। हर चतुर्थी को वह व्रत रखती और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती। गांव की अन्य महिलाएं करवा से प्रेरणा लेतीं और कहतीं, "करवा जैसी पत्नी मिले तो जीवन सफल हो जाए।"
एक दिन की बात है, कार्तिक मास की शुरुआत हो चुकी थी। मौसम सुहावना था – हल्की ठंडी हवा बह रही थी और नदी का पानी क्रिस्टल की तरह साफ था। धर्मपाल ने सोचा कि आज नदी में स्नान करके पूजा करूंगा। वह सुबह-सुबह उठा, करवा से विदा लेकर नदी की ओर चल पड़ा।
करवा घर पर रहकर पूजा की तैयारी कर रही थी। वह एक मिट्टी का करवा बना रही थी, जिसमें वह जल भरकर देवताओं को अर्घ्य देती। उसके मन में अजीब सी बेचैनी थी, जैसे कोई अनहोनी होने वाली हो। लेकिन वह अपनी भक्ति में लीन हो गई और मंत्र जपने लगी।
उधर, नदी के किनारे धर्मपाल पहुंचा। नदी की धारा शांत थी, लेकिन गहराई में छिपे खतरे का किसी को अंदाजा नहीं था। धर्मपाल ने कपड़े उतारे और पानी में उतर गया। वह स्नान कर रहा था, अपने शरीर पर पानी छिड़क रहा था, और मन ही मन भगवान का नाम जप रहा था।
अचानक, पानी में हलचल हुई। एक विशाल मगरमच्छ, जो नदी की गहराई में छिपा हुआ था, ने धर्मपाल पर हमला कर दिया। मगरमच्छ का मुंह इतना बड़ा था कि वह धर्मपाल के पैर को अपने जबड़ों में दबा लिया।
"नदी में मगरमच्छ के जबड़े में फंसे धर्मपाल, किनारे से चिंतित ग्रामीण देख रहे हैं यह भयावह दृश्य।"
खबर सुनते ही करवा का दिल धड़क उठा। वह पूजा बीच में छोड़कर नदी की ओर दौड़ी। उसके पैरों में जैसे पंख लग गए थे। रास्ते में वह गिरती-पड़ती, लेकिन रुकती नहीं। गांव वाले उसके पीछे-पीछे भागे।
जब करवा नदी के किनारे पहुंची, तो दृश्य देखकर उसके होश उड़ गए। धर्मपाल पानी में आधा डूबा हुआ था, मगरमच्छ उसे खींच रहा था। धर्मपाल की आंखें बंद हो रही थीं, उसका शरीर कमजोर पड़ रहा था। करवा ने चीखकर कहा, "हे भगवान! मेरे पति को बचा लो!" लेकिन वह हार नहीं मानी।
उसकी भक्ति ने उसे अपार शक्ति दी। करवा ने अपनी साड़ी से एक धागा निकाला – वह धागा जो वह पूजा के लिए रखती थी, रक्षासूत्र की तरह। उसने उस धागे को मंत्र पढ़ते हुए मगरमच्छ के मुंह के चारों ओर बांध दिया। धागा साधारण नहीं था; करवा की भक्ति से वह इतना मजबूत हो गया कि मगरमच्छ हिल भी नहीं सका। मगरमच्छ की आंखें लाल हो गईं, वह छटपटाया, लेकिन धागे की पकड़ से मुक्त नहीं हो पाया।
गांव वाले यह चमत्कार देखकर स्तब्ध रह गए। एक महिला ने इतने बड़े मगरमच्छ को एक धागे से बांध दिया! करवा अब धर्मपाल के पास गई, उसे पानी से बाहर खींचा। लेकिन धर्मपाल की सांसें थम चुकी थीं। वह मृतप्राय हो चुका था। करवा रो पड़ी, उसके आंसू नदी के पानी में मिल गए। वह बोली, "हे पतिदेव, तुम मुझे छोड़कर कैसे जा सकते हो? मैंने तुम्हारी रक्षा के लिए कितने व्रत रखे, कितनी पूजाएं कीं।" लेकिन करवा की भक्ति अभी खत्म नहीं हुई थी।
उसने आकाश की ओर देखा और यमराज से प्रार्थना की। "हे यमराज! आप मौत के देवता हैं, लेकिन न्याय के भी। मेरे पति की आत्मा को वापस लौटाएं। यह मगरमच्छ दुष्ट है, इसे दंड दें। मेरी भक्ति की परीक्षा लीजिए, लेकिन मेरे सुहाग को मत छीनिए।"
करवा की पुकार इतनी मार्मिक थी कि स्वयं यमराज प्रकट हो गए। यमराज का रूप भयानक था – काला वर्ण, हाथ में पाश और दंड, सिर पर मुकुट। लेकिन करवा डरी नहीं। वह यमराज के चरणों में गिर पड़ी और बोली, "हे देव, मेरे पति निर्दोष हैं। यह मगरमच्छ ने उन्हें मार डाला। कृपा करके उन्हें जीवनदान दें।" यमराज ने गंभीर स्वर में कहा, "बेटी, मौत का नियम अटल है। जो समय आया है, वह टल नहीं सकता।
धर्मपाल की आयु पूरी हो चुकी है।" करवा ने हाथ जोड़कर कहा, "हे यमराज, अगर मौत का नियम अटल है, तो भक्ति का नियम भी अटल है। मैंने जीवन भर पति की सेवा की, व्रत रखे, पूजा की। मेरी भक्ति की शक्ति से यह मगरमच्छ बंधा हुआ है। अगर आप मेरे पति को नहीं बचाते, तो मैं इस धागे को कभी नहीं खोलूंगी। मगरमच्छ यूं ही तड़पता रहेगा।"
यमराज करवा की दृढ़ता से प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, "तुम्हारी भक्ति अद्भुत है। ऐसी पतिव्रता स्त्री मैंने पहले नहीं देखी। लेकिन नियम तोड़ना मेरे बस में नहीं।" करवा ने उत्तर दिया, "हे देव, नियम न्याय के लिए हैं। अगर मगरमच्छ ने गलत किया, तो उसे दंड मिलना चाहिए। मेरे पति की मौत का कारण यह दुष्ट जीव है।
आप इसे मृत्यु दंड दें और मेरे पति को जीवन लौटाएं।" यमराज ने सोचा, करवा की बात में सच्चाई है। उन्होंने अपने दूतों को आदेश दिया कि मगरमच्छ की जांच करें। पता चला कि मगरमच्छ एक दुष्ट आत्मा था, जो पिछले जन्म में एक पापी था और अब जीवों पर हमला करता था। यमराज ने कहा, "ठीक है, करवा। तुम्हारी भक्ति जीत गई। मैं मगरमच्छ को मृत्यु दंड देता हूं और तुम्हारे पति को जीवनदान। लेकिन याद रखना, यह चमत्कार तुम्हारी निष्ठा का फल है।"
जैसे ही यमराज ने अपना दंड उठाया, मगरमच्छ की सांसें थम गईं। उसका शरीर निर्जीव हो गया। करवा ने धागा खोला और मगरमच्छ नदी में बह गया। फिर यमराज ने धर्मपाल की आत्मा को उसके शरीर में लौटा दिया। धर्मपाल की आंखें खुलीं, वह उठ बैठा। "क्या हुआ?" उसने पूछा। करवा ने उसे गले लगा लिया और सारी घटना बताई। धर्मपाल हैरान था, "तुमने मेरी जान बचाई, करवा। तुम्हारी भक्ति ने यमराज को भी झुका दिया।" गांव वाले यह दृश्य देखकर जय-जयकार करने लगे। वे करवा को देवी मानने लगे।
इस घटना के बाद, करवा चौथ का व्रत और महत्वपूर्ण हो गया। लोग कहते कि करवा नाम इसी स्त्री से पड़ा, जिसने करवा (मिट्टी का बर्तन) से पूजा की और पति की रक्षा की। यह कथा बताती है कि सच्ची भक्ति और प्रेम में इतनी शक्ति होती है कि मौत भी झुक जाती है।
महिलाएं इस कथा को सुनकर व्रत रखती हैं, ताकि उनके पति की लंबी उम्र हो। करवा की कहानी पीढ़ियों से चली आ रही है, जो हमें सिखाती है कि विपत्ति में भी धैर्य और भक्ति से सब संभव है। आज भी करवा चौथ पर महिलाएं करवा लेकर पूजा करती हैं, चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और पति के चेहरे को छलनी से देखती हैं, ठीक वैसे ही जैसे करवा ने अपनी भक्ति से पति को बचाया।
इस कथा का मूल संदेश है – पत्नी का समर्पण पति की ढाल बन जाता है। करवा जैसी महिलाएं समाज की नींव हैं, जो प्रेम और भक्ति से परिवार को बांधे रखती हैं। यदि हम करवा की तरह निष्ठावान रहें, तो जीवन की हर चुनौती पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। यह कहानी न केवल धार्मिक है, बल्कि जीवन का एक सबक भी है – प्रेम में शक्ति है, भक्ति में चमत्कार।
डिस्क्लेमर
यह लेख करवा चौथ पर आधारित है, जो सनातन धर्म की परंपराओं से प्रेरित है। जानकारी पंडितों, ज्योतिषियों और पंचांग से ली गई है। मुहूर्त दिल्ली आधारित हैं, स्थानीय पंचांग देखें। हमने निष्ठा से लिखा है, लेकिन कोई त्रुटि हो तो हम जिम्मेदार नहीं। स्वास्थ्य संबंधी सलाह लें, यदि बीमार हैं तो व्रत न रखें। उद्देश्य सनातन संस्कृति का प्रचार है।
ं