"सोहराय पर्व 2025 की पूरी जानकारी :जानें पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त, क्या करें और क्या ना करें, पांच दिवसीय पूजा की विस्तृत वर्णन। संपूर्ण जानकारी पढ़ें मेरे ब्लॉग पर"
"सोहराय पर्व आदिवासी समुदायों, विशेष रूप से संताल, मुंडा, ओरांव, हो और अन्य जनजातियों का सबसे प्रमुख और जीवंत त्योहार है। यह मुख्य रूप से झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में मनाया जाता है। सोहराय एक फसल कटाई का उत्सव है, जो प्रकृति, पशुओं और कृषि के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम है"।
सोहराय पर्व क्या है और इसका महत्व
इस पर्व का नाम 'सोहराय' संताल भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'पशुओं का सम्मान' या 'फसल का जश्न'। यह पर्व पांच दिनों तक चलता है और इसमें पूजा, नृत्य, गीत, दीवार चित्रकारी (सोहराय कला) और सामूहिक भोज की परंपराएं शामिल हैं।
2025 में सोहराय पर्व की तिथि क्या है?
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, सोहराय पौष मास की अमावस्या के आसपास मनाया जाता है। 2025 में कार्तिक माह कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि दिन मंगलवार 21 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इसलिए सोहराय पर्व 21 अक्टूबर से शुरू होकर 25 अक्टूबर तक चलेगा। कुछ क्षेत्रों में इसे पौष अमावस्या के बाद भी मनाया जाता है, लेकिन झारखंड के आदिवासी समुदायों में मुख्य उत्सव अक्टूबर में ही होता है। यह पर्व सर्दियों की शुरुआत में आता है, जब फसल कट चुकी होती है और लोग सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
सोहराय पर्व का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
सोहराय पर्व की जड़ें प्राचीन आदिवासी परंपराओं में हैं। लोककथाओं के अनुसार, यह पर्व मारंग बुरु (महान देवता) द्वारा दिए गए कृषि और पशुपालन के ज्ञान का जश्न है। आदिवासी मान्यताओं में, सोहराय सृष्टि की शुरुआत से जुड़ा है, जब थाकुर जिऊ ने धरती बनाई और मनुष्यों को फसल उगाने का तरीका सिखाया। यह पर्व प्रकृति पूजा का प्रतीक है, जहां पशु, पेड़-पौधे और भूमि को देवता माना जाता है।
आधुनिक समय में, सोहराय आदिवासी संस्कृति को संरक्षित रखने का माध्यम है। यूनेस्को ने सोहराय कला को इंटैंजिबल कल्चरल हेरिटेज के रूप में मान्यता दी है। 2025 में, यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक बनेगा, जहां युवा पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ती है। झारखंड सरकार भी सोहराय को प्रमोट करती है,
सोहराय का महत्व यह है कि यह कृषि चक्र का अंत और नई शुरुआत का उत्सव है। लोग पशुओं को परिवार का सदस्य मानते हैं, क्योंकि वे खेती में सहायक होते हैं। इस पर्व में महिलाएं सोहराय चित्र बनाती हैं, जो प्राकृतिक रंगों से बने होते हैं और घरों को सजाते हैं। पुरुष नृत्य और शिकार की परंपरा निभाते हैं।
"सोहराय पर्व 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त"
2025 में सोहराय पर्व 21 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। यह कार्तिक माह कृष्ण पक्ष के अमावस्या तिथि (21 अक्टूबर) से शुरू होता है।
शुभ मुहूर्त: सोहराय पूजा के लिए कोई सख्त ज्योतिषीय मुहूर्त नहीं है, क्योंकि यह आदिवासी परंपरा है। हालांकि, पूजा सूर्योदय के बाद शुरू की जाती है। 2025 में:
"पहला दिन (21 अक्टूबर): कार्तिक माह कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि दिन मंगलवार को है। शुभ मुहूर्त सुबह 08:37 बजे पर से लेकर 10:03 बजे तक चर मुहूर्त, 10:03 बजे से लेकर 11:30 बजे तक लाभ मुहूर्त, 11:30 बजे बजे से लेकर 12:56 बजे तक अमृत मुहूर्त, शाम 06:49 बजे से लेकर 08:22 बजे तक लाभ मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार अभिजीत मुहूर्त 11:07 बजे से लेकर 11:30 बजे तक, विजय मुहूर्त दिन के 01:25 बजे से लेकर 02:11 बजे तक और गोधूलि मुहूर्त शाम 05:15 बजे लेकर 05:40 बजे तक रहेगा"।
"दूसरा दिन (22 अक्टूबर): गोहाल पूजा 22 अक्टूबर कार्तिक माह प्रतिपदा तिथि शुक्ल पक्ष दिन बुधवार को है। अभिजीत मुहूर्त नहीं है। लाभ मुहूर्त 06:45 बजे से लेकर 07:11 बजे तक, अमृत मुहूर्त 07:11 बजे से लेकर 08:37 बजे तक, शुभ मुहूर्त दिन के 10:03 बजे से लेकर 11:30 बजे तक लाभ बहुत 03:46 बजे से लेकर 05:14 बजे तक और गोधूलि बहुत 05:14 बजे से लेकर 05:39 बजे तक रहेगा"।
"तीसरा दिन (23 अक्टूबर): दिन गुरुवार कार्तिक माह शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। अभिजीत मुहूर्त 11:06 बजे से लेकर 11: 52 बजे तक, विजय मुहूर्त 01:24 बजे से लेकर 02:10 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त 05:13 बजे से लेकर 05:38 बजे तक, शुभ मुहूर्त सुबह 05:45 बजे से लेकर 07:11 बजे तक चर मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 11:00 बजे तक और अमृत मुहूर्त 12:55 बजे से लेकर 02:30 बजे तक रहेगा"।
"चौथा दिन (24 अक्टूबर): कार्तिक मां शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि दिन शुक्रवार को शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। अभिजीत मुहूर्त 11:06 बजे से लेकर 11:52 बजे तक, विजय मुहूर्त 01:24 बजे से लेकर 02:10 बजे तक गोधूलि मुहूर्त शाम 05:13 बजे से लेकर 06:28 बजे तक, चर मुहूर्त 05:56 बजे से लेकर 07:12 बजे तक, लाभ मुहूर्त 07:12 बजे से लेकर 08:30 बजे तक और अमृत मुहूर्त 08:38 बजे रात 10:30 बजे तक रहेगा"।
"पांचवां दिन (25 अक्टूबर): कार्तिक मां मां शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि दिन शनिवार को विदाई समारोह का आयोजन किया जाएगा । इस दिन अभिजीत मुहूर्त 11:06 बजे से लेकर 11:52 बजे तक, विजय मुहूर्त 01:30 बजे से से लेकर 02:09 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त 05:52 बजे से लेकर 05:37 बजे तक, शुभ मुहूर्त सुबह 07:12 बजे से लेकर 08:30 बजे तक, लाभ मुहूर्त 12:55 बजे से लेकर 02:30 बजे और अमृत मुहूर्त 02:30 बजे लेकर 03:56 बजे तक रहेगा"।
ये मुहूर्त स्थानीय पंडित या आदिवासी गुरुओं से कन्फर्म करें। पूजा के दौरान राहु काल से बचें, जो 2025 में जनवरी में अलग-अलग दिनों में अलग होता है।
"सोहराय पूजा की विधि: चरणबद्ध तरीका"
सोहराय पूजा की विधि सरल और प्रकृति-केंद्रित है। इसमें मुख्य रूप से पशुओं, कृषि उपकरणों और कुल देवताओं की पूजा होती है। यहां विस्तृत विधि:
तैयारी: घर की सफाई करें। सोहराय चित्र बनाएं - सफेद, काली और लाल मिट्टी से पशु, पक्षी और प्रकृति के चित्र दीवारों पर उकेरें।
समाग्री: चावल, दूध, फल, फूल, हल्दी, कुमकुम, धूप, दीपक, हंडिया (चावल की बीयर), और पशुओं के लिए घास-चारा।
पूजा प्रक्रिया:
सुबह स्नान करें। कुल देवता (मारंग बुरु) की मूर्ति या प्रतीक स्थापित करें।
मंत्र जाप: 'ओम मारंग बुरु नमः' या स्थानीय आदिवासी गीत गाएं।
पशुओं को नहलाएं, सींगों पर तेल लगाएं, और उन्हें चारा अर्पित करें। आरती उतारें और प्रसाद बांटें।
विशेष: महिलाएं सोहराय गीत गाती हैं, पुरुष मांदर बजाते हैं।
यह विधि पांच दिनों में अलग-अलग रूपों में की जाती है।
"भारत की समृद्ध संस्कृति और परंपरा की झलक दिखाती यह तस्वीर, जहां ग्रामीण समुदाय अपने पशुधन का सम्मान और पूजा करता है। यह दृश्य प्रकृति और मानव के गहरे रिश्ते को दर्शाता है, जिसमें गाय और बैल को रंग-बिरंगे परिधानों से सजाकर उनकी सेवा की जाती है"।
"सोहराय पूजा के दौरान क्या करें और क्या ना करें"
"क्या करें (Dos)":
घर और पशुशाला की सफाई करें।
पशुओं को सम्मान दें, उन्हें सजाएं और विशेष भोजन दें।
सामूहिक नृत्य और गीत गाएं, जैसे डोंग नृत्य।
प्रकृति की पूजा करें, पेड़ों को पानी दें।
शाकाहारी भोजन बनाएं, खिचड़ी और चावल की बीयर का सेवन संयम से करें।
परिवार और समुदाय के साथ जश्न मनाएं।
सोहराय चित्र बनाकर घर सजाएं।
"क्या ना करें (Don'ts)":
मांसाहारी भोजन ना खाएं (कुछ समुदायों में शिकार होता है, लेकिन पूजा के दौरान नहीं)।
झगड़ा या नकारात्मक बातें ना करें।
पशुओं को कष्ट ना दें।
प्लास्टिक या रासायनिक रंगों का उपयोग ना करें, केवल प्राकृतिक सामग्री।
पूजा के दौरान शराब का अधिक सेवन ना करें।
पर्यावरण को हानि ना पहुंचाएं, जैसे कचरा फेंकना।
ये नियम आदिवासी परंपराओं से लिए गए हैं, जो सद्भाव और प्रकृति संरक्षण पर जोर देते हैं।
"सोहराय पर्व के पांच दिनों का विस्तृत वर्णन"
सोहराय पांच दिनों का उत्सव है, प्रत्येक दिन का अपना महत्व और रस्में हैं। यहां 2025 के संदर्भ में विस्तार:
"दिन 01: उम हिलोक या ऊम महाह (14 जनवरी 2025) - सफाई का दिन"
यह दिन सफाई और तैयारी का है। लोग सुबह उठकर घर, पशुशाला और कृषि उपकरण साफ करते हैं। कुल देवताओं की पूजा शुरू होती है। महिलाएं सोहराय चित्र बनाती हैं। शाम को सामूहिक गीत गाए जाते हैं। महत्व: यह दिन नई शुरुआत का प्रतीक है। पूजा विधि: कृषि उपकरणों पर हल्दी लगाकर पूजा। शुभ मुहूर्त: सुबह 6:30-8:00। क्या करें: फास्ट रखें। क्या ना करें: गंदगी छोड़ना।
विस्तार: इस दिन आदिवासी लोककथाएं सुनाई जाती हैं, जैसे मारंग बुरु की कथा। बच्चे उत्साहित होते हैं।
(तस्वीर सुझाव: घर सफाई और चित्रकारी की इमेज।)
"दिन 02: गेल-दाका या गोहाल पूजा (15 जनवरी 2025) - पशु पूजा का दिन"
यह मुख्य दिन है, जहां पशुओं (गाय, बैल) की पूजा होती है। उन्हें नहलाया जाता है, सींगों पर रंग लगाया जाता है, और विशेष चारा दिया जाता है। महत्व: पशु कृषि के आधार हैं। पूजा विधि: पशुओं को कुमकुम लगाकर आरती। शुभ मुहूर्त: दोपहर 12:00-2:00। क्या करें: पशुओं को आराम दें। क्या ना करें: उन्हें काम पर लगाना।
विस्तार: कुछ क्षेत्रों में गोट पूजा होती है, जहां पशुओं को सजाकर गांव घुमाया जाता है।
"दिन 03: दंगरा खुन्ताओ (16 जनवरी 2025) - कुल देवता पूजा का दिन"
कुल देवताओं और पूर्वजों की पूजा। सामूहिक भोज और नृत्य। महत्व: आशीर्वाद लेना। पूजा विधि: देवता को प्रसाद चढ़ाना। शुभ मुहूर्त: शाम 5:00-7:00। क्या करें: गीत गाएं। क्या ना करें: अकेले रहना।
"सोहराय पर्व की रात का यह मनोरम दृश्य, जिसमें ढोल-नगाड़े की थाप पर आदिवासी पुरुष, महिलाएं और युवा सामूहिक नृत्य कर रहे हैं। गांव के मैदान में एक मंदिर की मौजूदगी इस धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव की महत्ता को और बढ़ाती है"।
"दिन 04: काड़ा खुन्ताओ (17 जनवरी 2025) - शिकार और भोज का दिन"
परंपरागत शिकार (आजकल प्रतीकात्मक) और भोज। महत्व: सामुदायिक एकता। पूजा विधि: भूमि पूजा। शुभ मुहूर्त: सुबह 7:00-9:00। क्या करें: वनभोज। क्या ना करें: हिंसा।
विस्तार: खिचड़ी और हंडिया बनाई जाती है।
"दिन 05: जले दासर महाह (18 जनवरी 2025) - विदाई का दिन। विदाई पूजा और उत्सव का समापन"।
महत्व: धन्यवाद। पूजा विधि: अंतिम आरती और प्रसाद बांटें। क्या ना करें: उदास न होना।
विस्तार: अगले साल आने की कामना करना।
सोहराय पर्व में सोहराय कला और सांस्कृतिक तत्व
सोहराय कला दीवार चित्रकारी है, जो प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है। यह पर्व का हाइलाइट है। नृत्य जैसे करमा, गीत और हंडिया भी महत्वपूर्ण। 2025 में, सोहराय जैसे इवेंट्स में भाग लें।
"सोहराय पर्व की पौराणिक कथा"
प्राचीन काल में, जब सृष्टि की शुरुआत हुई थी, तब पूरी दुनिया पानी से भरी हुई थी। कोई जमीन नहीं थी, कोई पहाड़ नहीं, केवल अथाह जलराशि जो अनंत तक फैली हुई थी। उस समय थाकुर जिऊ नामक सर्वोच्च देवता ने सृष्टि की रचना करने का निर्णय लिया।
थाकुर जिऊ ने सबसे पहले जलचर प्राणियों को बनाया। उन्होंने मछलियाँ, कछुए, केकड़े और मगरमच्छ जैसे जीवों को जीवन दिया, ताकि वे पानी में विचरण करें। लेकिन थाकुर जिऊ का मन था कि वे एक ऐसी दुनिया बनाएं जहाँ जीवन फल-फूल सके, जहाँ जमीन हो, पेड़-पौधे हों और मनुष्य रह सकें।
थाकुर जिऊ ने कछुए से कहा, "हे कछुए, तुम पानी की गहराई में जाओ और नीचे से मिट्टी लाओ, ताकि मैं जमीन बना सकूं।" कछुआ गया, लेकिन उसकी पीठ चिकनी थी, मिट्टी फिसल गई। फिर थाकुर जिऊ ने केकड़े को भेजा। केकड़े ने अपनी पंजों से मिट्टी पकड़ी, लेकिन रास्ते में आधा गिर गया।
अंत में, थाकुर जिऊ ने एक छोटे से कीड़े को भेजा, जो अपनी सूंड से मिट्टी चूसकर ऊपर लाया। थाकुर जिऊ ने उस मिट्टी से धरती की रचना की। धीरे-धीरे पहाड़ बने, नदियाँ बहीं और जंगल उगे।
अब थाकुर जिऊ ने मनुष्यों की रचना करने का विचार किया। उन्होंने दो हंसों के अंडों से पहले मनुष्य जोड़े को जन्म दिया - पिल्चू हरम और पिल्चू बुधी। ये पहले संताल थे, जो जंगलों में भटकते थे। वे भूखे थे, क्योंकि उन्हें खेती का ज्ञान नहीं था। वे केवल जंगली फल और शिकार पर निर्भर थे।
एक दिन, जब वे भूख से व्याकुल होकर रो रहे थे, तब मारंग बुरु, जो संतालों के महान देवता हैं - पहाड़ों के स्वामी, जंगलों के रक्षक - ने उन्हें दर्शन दिए। मारंग बुरु एक विशाल आकृति वाले थे, उनके सिर पर सींग थे, और वे प्रकृति की शक्ति का प्रतीक थे।
मारंग बुरु ने पिल्चू हरम और पिल्चू बुधी से कहा, "हे मेरे बच्चों, तुम्हें दुखी देखकर मेरा हृदय द्रवित हो रहा है। मैं तुम्हें खेती का ज्ञान दूंगा, ताकि तुम कभी भूखे न रहो।" उन्होंने उन्हें बीज दिए - धान के बीज, जो स्वर्ग से लाए गए थे। मारंग बुरु ने कहा, "इस बीज को जमीन में बोओ, पानी दो, और देखो कैसे यह फसल बनकर तुम्हें भोजन देगा। लेकिन याद रखो, इस फसल के लिए तुम्हें पशुओं की मदद लेनी होगी।"
पिल्चू हरम ने पूछा, "हे देव, पशु कैसे मदद करेंगे?" मारंग बुरु मुस्कुराए और बोले, "मैं तुम्हें गाय और बैल दूंगा। गाय तुम्हें दूध देगी, बैल तुम्हारी खेत जोतेंगे। वे तुम्हारे साथी होंगे, तुम्हारी संपत्ति होंगे। लेकिन तुम्हें उनकी देखभाल करनी होगी, उन्हें सम्मान देना होगा।" ऐसा कहकर मारंग बुरु ने स्वर्ग से दिव्य पशुओं को बुलाया - अयानी, बयानी, सुगी और अन्य। ये पशु इतने शक्तिशाली थे कि सींगों से जमीन हिल जाती थी, और दूध अमृत समान था।
पिल्चू जोड़े ने मारंग बुरु की आज्ञा का पालन किया। उन्होंने खेत तैयार किए, बीज बोए, और बैलों की मदद से हल चलाया। पहली फसल उगी - सुनहरे धान के बालियाँ, जो सूरज की किरणों में चमक रही थीं। जब फसल कटाई का समय आया, तो पिल्चू हरम और पिल्चू बुधी ने मारंग बुरु को धन्यवाद दिया।
उन्होंने पशुओं को सजाया, उनके सींगों पर रंग लगाया, और उन्हें विशेष भोजन दिया। मारंग बुरु प्रसन्न हुए और बोले, "हर साल, जब फसल कटे, तुम इस उत्सव को मनाओ। इसे सोहराय कहो, जो मेरी सिखाई खेती और पशुओं के सम्मान का प्रतीक होगा। इस दिन तुम बोंगा (अच्छी आत्माओं) को याद करो, नृत्य करो, गीत गाओ, और दीवारों पर चित्र बनाओ जो प्रकृति की सुंदरता दर्शाएं।"
इस प्रकार सोहराय की शुरुआत हुई। लेकिन कथा यहीं समाप्त नहीं होती। संताल लोककथाओं में यह बताया जाता है कि एक बार, जब पिल्चू जोड़े खेती कर रहे थे, तब एक दुष्ट आत्मा आई, जिसका नाम था राक्षस बुरु। वह ईर्ष्या से भरा था, क्योंकि मारंग बुरु ने संतालों को इतना ज्ञान दिया था। राक्षस बुरु ने फसल को नष्ट करने की कोशिश की - उसने आंधी भेजी, बाढ़ लाई, और पशुओं को बीमार किया। पिल्चू हरम ने मारंग बुरु से प्रार्थना की। मारंग बुरु ने उन्हें एक जादुई ड्रम दिया, जिसे बजाने से अच्छी आत्माएं जागतीं। पिल्चू बुधी ने ड्रम बजाया, और बोंगा आ गए - वे आत्माएं जो जंगलों, नदियों और पहाड़ों में रहती हैं।
"भगवान बोंगा और राक्षस बुरु के बीच एक भयंकर युद्ध का अद्भुत चित्रण। राक्षस बुरु की भयानक अग्नि लपटों का सामना करते हुए, भगवान बोंगा अपनी जल शक्ति से उन्हें शांत कर रहे हैं। हरे-भरे जंगल, विशाल पहाड़ों और एक शांत नदी के किनारे का यह दृश्य इस महाकाव्य लड़ाई की भव्यता को दर्शाता है, जहाँ अच्छे और बुरे के बीच संघर्ष प्रकृति की गोद में हो रहा है"।
बोंगा ने राक्षस बुरु से युद्ध किया। युद्ध बड़ा भयंकर था। राक्षस बुरु ने आग की लपटें फेंकी, लेकिन बोंगा ने पानी की बौछार से उन्हें बुझा दिया। अंत में, मारंग बुरु स्वयं प्रकट हुए और राक्षस बुरु को पहाड़ों में कैद कर दिया। इस विजय के बाद, संतालों ने सोहराय को और भी जोर-शोर से मनाना शुरू किया, ताकि दुष्ट आत्माओं से रक्षा हो। वे दीवारों पर सोहराय चित्र बनाते, जो पशुओं, पक्षियों और प्रकृति के प्रतीकों से भरे होते। ये चित्र न केवल सजावट थे, बल्कि रक्षा कवच भी।
समय बीतता गया, और संताल समुदाय बढ़ता गया। पिल्चू हरम और पिल्चू बुधी के वंशज पूरे जंगलों में फैल गए। हर सोहराय पर वे इकट्ठा होते, कहानियाँ सुनाते, और मारंग बुरु की पूजा करते। एक कथा यह भी है कि एक बार, जब सूखा पड़ा, तो संतालों ने सोहराय के दौरान विशेष नृत्य किया - डोंग नृत्य, जिसमें युवक-युवतियाँ हाथ पकड़कर घेरा बनाते और गाते।
उनके गीतों से बादल बरसे, और फसल फिर लहलहाई।
मारंग बुरु ने उन्हें चावल की हंड़िया (बीयर) बनाना भी सिखाया, जो सोहराय का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे कहते, "यह हंड़िया तुम्हारी खुशी का प्रतीक है, लेकिन संयम से पीयो।" सोहराय के पांच दिनों में पहले दिन पशुओं की पूजा होती, दूसरे दिन घर की सफाई और चित्रकारी, तीसरे दिन नृत्य और गीत, चौथे दिन भोज, और पांचवें दिन विदाई। प्रत्येक दिन की अपनी कथा है।
उदाहरण के लिए, पहले दिन की कथा: अयानी गाय की कहानी। अयानी स्वर्ग से आई थी, और उसने संतालों को दूध दिया, जिससे वे मजबूत हुए। लेकिन एक बार एक चोर ने उसे चुराने की कोशिश की। अयानी ने अपनी शक्ति से चोर को पत्थर बना दिया। इसलिए पशुओं की रक्षा का महत्व सिखाया जाता है।
दूसरे दिन: दीवार चित्रकारी की कथा। पिल्चू बुधी ने पहली बार दीवार पर चित्र बनाया, जिसमें मारंग बुरु की आकृति थी। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आई।
इस प्रकार, सोहराय न केवल उत्सव है, बल्कि संताल संस्कृति का हृदय है। यह कथा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, और आज भी मनाई जाती है।
निष्कर्ष: सोहराय पर्व क्यों मनाएं
सोहराय प्रकृति और संस्कृति का उत्सव है। 2025 में इसे मनाकर अपनी जड़ों से जुड़ें। अधिक जानकारी के लिए स्थानीय आदिवासी समुदाय से संपर्क करें।
सोहराय पर्व आदिवासियों, विशेष रूप से संताल, मुंडा, ओरांव और अन्य जनजातियों द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख फसल उत्सव है। यह मुख्य रूप से झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है। सोहराय कार्तिक मास की अमावस्या (अक्टूबर-नवंबर) को शुरू होता है, जो आमतौर पर दिवाली के एक दिन बाद पड़ता है। यह पांच दिनों तक चलने वाला उत्सव है, जिसमें पशुओं की पूजा, फसल की कटाई का जश्न, नृत्य, गीत और दीवार चित्रकारी (सोहराय कला) मुख्य रूप से शामिल होती है। इस दौरान लोग अपने पशुओं को सजाते हैं, उन्हें विशेष भोजन देते हैं और प्रकृति तथा देवताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
डिस्क्लेमर: सोहराय पर्व 2025 ब्लॉग के लिए
सोहराय पर्व पर यह ब्लॉग आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के प्रति प्रेम और सम्मान के साथ तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारी संताल, मुंडा, ओरांव जैसे समुदायों की लोककथाओं, परंपराओं और उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है। हमारा उद्देश्य इस खूबसूरत त्योहार की महिमा को साझा करना और इसके सांस्कृतिक महत्व को उजागर करना है। हालांकि, तिथियां, पूजा विधियां और रीति-रिवाज क्षेत्र और समुदाय के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। हम अनुशंसा करते हैं कि आप स्थानीय आदिवासी गुरुओं या पंडितों से संपर्क करें ताकि 2025 में शुभ मुहूर्त और विशिष्ट परंपराओं की पुष्टि हो सके। इस ब्लॉग में व्यक्त विचार सूचनात्मक हैं और किसी भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इरादा नहीं है। यदि कोई जानकारी गलत लगे, तो कृपया हमें सूचित करें। सोहराय के इस उत्सव को मनाएं, प्रकृति और पशुओं का सम्मान करें, और इस पर्व की खुशी को अपने समुदाय के साथ साझा करें। आइए, इस सांस्कृतिक धरोहर को सहेजें और अगली पीढ़ी तक पहुंचाएं