करम पूजा 2026: तारीख, पूजा विधि, कहानी, महत्व और करम नाच | पूरी जानकारी

2026 में करम पूजा 22 सितंबर दिन मंगलवार को परिवर्तिनी एकादशी के दिन है! जानिए करम देवता की पूजा की स्टेप बाय स्टेप विधि, पौराणिक कथा, शुभ मुहूर्त, व्रत नियम और पारंपरिक गीत-नृत्य के बारे में सब कुछ। 

Javanese women worship and dance traditional dance during Karam Puja

"कर्म पूजा 22 सितंबर 2026 (मंगलवार) " को पड़ सकती है, क्योंकि यह भाद्रपद महीने की एकादशी (या पूर्णिमा के आसपास) को मनाई जाती है और उस दिन के आसपास के कैलेंडर में यह तिथि दिख रही है, लेकिन यह तिथि भारतीय पंचांग के अनुसार थोड़ी आगे-पीछे हो सकती है, इसलिए अंतिम तारीख के लिए पंचांग देखना होगा। 

"करम पूजा के संबंध में नीचे दिए गए विषयों के संबंध में विस्तार से पढ़ें रंजीत के ब्लॉग पर" 

*0 2026 में करम का पर्व कब है? 

*करम पूजा कैसे की जाती है? 

*करम पूजा क्या है और इसे कैसे मनाया जाता है? 

*2026 में करम पूजा का शेड्यूल क्या है? 

*करम देवता कौन हैं? 

*करम के 04 प्रकार कौन-कौन से हैं? 

*करम पूजा क्यों किया जाता है? 

*करम पूजा की विधि क्या है? स्टेप बाय स्टेप विधिः की जानकारी दें 

*करम एकादशी क्या है? 

*करमा गीत कब गाया जाता है? 

*करम पूजा की पौराणिक कहानी क्या है? 

*करम पूजा के दिन क्या करें और क्या ना करें 

*करम पूजा के दिन क्या खाएं और क्या न खाएं 

* करम पूजा से संबंधित प्रश्न और उसका उत्तर 

*करम पूजा है कुछ अनसुलझे पहलुओं की जानकारी। 

* करम पर्व से संबंधित वैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहलुओं की जानकारी। 

"करम पूजा 2026: तिथि, विधि, कथा और महत्व की पूरी जानकारी"

"2026 में करम का पर्व कब है"?

*2026 में करम पूजा का त्योहार 22 सितंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा। यह पर्व सनातन पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ रहा है। इस दिन सूर्योदय के समय एकादशी तिथि रहने पर करम पूजा और व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। हालांकि, स्थानीय परंपराओं और चंद्र कैलेंडर की गणना के आधार पर कुछ क्षेत्रों में यह तिथि 21 से 23 सितंबर के बीच भी मनाई जा सकती है। इसलिए अंतिम तिथि जानने के लिए अपने क्षेत्र के स्थानीय पंचांग की जांच करना उचित रहता है।

"करम पूजा क्या है और इसे कैसे मनाया जाता है"?

*करम पूजा भारत के झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रमुख आदिवासी और कृषि पर्व है । यह त्योहार करम देवता (शक्ति और यौवन के देवता) की पूजा और नई फसल के आगमन की खुशी को समर्पित है।

*इसे मनाने का तरीका बहुत ही रोचक और पारंपरिक है। त्योहार से कई दिन पहले ही युवतियां 'जावा' उठाती हैं, जिसमें विभिन्न अनाजों के बीज बोए जाते हैं । पूजा के दिन, लोग सुबह जंगल जाकर करम वृक्ष (कदम्ब वृक्ष) की शाखा काटकर लाते हैं। इस शाखा को गांव के चौक या आंगन में स्थापित कर, उसे फूलों और रंगोली से सजाया जाता है। फिर इस करम शाखा की पूजा की जाती है। पूजा के बाद करम नाच और गीत की शुरुआत होती है, जो अक्सर पूरी रात चलता है। अगले दिन इस शाखा को नदी या तालाब में विसर्जित करके पर्व का समापन किया जाता है ।

"करम पूजा की स्टेप बाय स्टेप विधि"

*करम पूजा एक विस्तृत अनुष्ठान है। यहां इसकी पारंपरिक विधि चरणबद्ध तरीके से बताई गई है:

*01. पूर्व तैयारी (जावा रोपण):

 *त्योहार से लगभग 7 से 10 दिन पहले, युवतियां और महिलाएं 'जावा उठाती' हैं।

*नदी में स्नान करने के बाद वे बालू या मिट्टी लाती हैं और उसमें पांच या सात प्रकार के अनाज (जैसे गेहूं, धान, मक्का, जौ, चना) के बीज रोपते हैं।

*इस टोकरी को एक पवित्र स्थान पर रखकर नियमित रूप से पानी दिया जाता है और धूप दिखाई जाती है।

*02. करम शाखा की प्राप्ति:

*पूजा वाले दिन सुबह, गांव के युवक-युवतियां समूह बनाकर ढोल-नगाड़े बजाते हुए जंगल जाते हैं।

*वहां जाकर वे करम (कदम्ब) वृक्ष की एक ताज़ा, हरी-भरी शाखा काटकर लाते हैं।

*03. शाखा की स्थापना एवं सजावट:

*इस शाखा को गांव के मैदान या आंगन के बीचों-बीच गाय के गोबर से लिपे हुए स्थान पर गाड़ दिया जाता है ।

*शाखा को लाल-पीले फूल, रंगीन कपड़े और धागों से सजाया जाता है। कुछ स्थानों पर मिट्टी से हाथी-घोड़े भी बनाए जाते हैं।

*04. पूजा अनुष्ठान:

*ग्राम पुजारी (पाहन या देहुती) या परिवार का बड़ा सदस्य हंड़िया (चावल से बना एक पारंपरिक पेय) और अंकुरित अनाज को प्रसाद के रूप में चढ़ाता है।

*दीप, धूप, फल और मिठाई से करम देवता का पूजन किया जाता है।

*पूजा के बाद करम देवता की कथा सुनाई जाती है।

*05. नृत्य, संगीत और उत्सव:

*पूजा समाप्त होते ही करम नाच और गीत शुरू हो जाता है।

*सभी लोग करम शाखा के चारों ओर घेरा बनाकर ढोल, मांदर और बांसुरी की थाप पर नाचते-गाते हैं ।

*यह उत्सव देर रात तक, और कई जगहों पर पूरी रात, चलता है।

*06. विसर्जन:

*अगले दिन, करम शाखा को गीत-नृत्य के साथ नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है ।

*करम देवता कौन हैं?

*करम देवता आदिवासी और लोक परंपराओं में पूजे जाने वाले शक्ति, यौवन, साहस और फल दायित्व के प्रतीक हैं। इन्हें प्रकृति का देवता माना जाता है, जो किसानों की फसल की रक्षा करते हैं और उन्हें अच्छी पैदावार एवं स्वास्थ्य प्रदान करते हैं । करम शाखा इन्हीं देवता का साक्षात रूप मानी जाती है। यह मान्यता है कि करम देवता की कृपा से परिवार में समृद्धि आती है और सभी कष्ट दूर होते हैं।

"करम के प्रकार"

*करम पूजा देश के विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाई जाती है। मुख्य रूप से इसे चार प्रकार के समुदायों या संदर्भों में देखा जा सकता है:

*01. आदिवासी समुदायों में करम:

*यह उरांव,मुंडा, खड़िया, भूमिज, बैगा जैसे प्रमुख आदिवासी समुदायों का प्रमुख पर्व है । इनमें जावा की परंपरा, सामूहिक नृत्य और हंड़िया का भोग प्रमुख होता है।

*02. कृषक समुदाय में करम:

*गैर-आदिवासी किसान समुदाय इसे नई फसल के उत्सव के रूप में मनाते हैं। पूजा के बाद नवान्न (नया अन्न) देवताओं को चढ़ाया जाता है और फिर घर में प्रयोग किया जाता है ।

*03. भाई-बहन के रिश्ते से जुड़ा करम (कर्मा एकादशी):

*बिहार,झारखंड आदि क्षेत्रों में इसे कर्मा एकादशी व्रत के रूप में मनाया जाता है । इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं और विशेष पूजा करती हैं।

*04. सामाजिक-सांस्कृतिक करम:

*इस रूप में करम पर्व सामुदायिक एकता का प्रतीक बन जाता है। यह नृत्य, संगीत और सामूहिक भोज के माध्यम से पूरे गांव को एक सूत्र में बांधता है।

"कर्म पूजा की पौराणिक कहानी"

*करम पूजा की उत्पत्ति से जुड़ी कई लोक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से दो प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं:

"करम पर्व से जुड़ी पहली कथा: सात भाइयों की कहानी"

*झारखंड और छत्तीसगढ़ के हरे-भरे वनों और पहाड़ियों के बीच बसा था एक समृद्ध गांव जहां करम पर्व बड़े ही उल्लास और श्रद्धा से मनाया जाता था। यह कहानी उस समय की है जब प्रकृति और मनुष्य के बीच एक अटूट बंधन हुआ करता था, और देवता सीधे मनुष्यों के जीवन में हस्तक्षेप करते थे।

*गांव में सात भाई रहते थे जो अपने परिश्रम और एकता के लिए पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध थे। बड़े भाई का नाम था धनवीर, और उसके बाद क्रमशः बलवीर, ज्ञानवीर, श्रमवीर, धर्मवीर, सहयोगी वीर और सबसे छोटे भाई का नाम था करमवीर। सातों भाई खेती-बाड़ी करते, एक साथ रहते और एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते थे। उनकी सात बहनें भी थीं जो विवाहित होकर दूर-दराज के गांवों में रहती थीं। 

*एक वर्ष ऐसा आया जब प्रकृति ने कहर ढाया। पूरे क्षेत्र में भीषण सूखा पड़ा। नदियां सूख गईं, कुएं शुष्क हो गए, खेतों में धान की बालियां मुरझा गईं। गांव के लोगों के चेहरों पर चिंता की लकीरें उभर आईं। ऐसे में सातों भाइयों ने गांव वालों को एकत्रित किया और कहा, "हमें करम देवता की शरण लेनी चाहिए। वे ही हमारी फसलों और जल स्रोतों की रक्षा कर सकते हैं।"

*गांव के बुजुर्गों ने बताया कि करम देवता को प्रसन्न करने के लिए करम वृक्ष (कदम्ब का वृक्ष) की शाखाएं काटकर उनकी पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही सामूहिक नृत्य-गान और रात भर जागरण भी आवश्यक है। सातों भाइयों ने यह उत्सव आयोजित करने का निर्णय लिया।

*धनवीर ने कहा, "मैं गांव के सभी परिवारों को एकत्रित करूंगा।" बलवीर बोला, "मैं जंगल से करम वृक्ष की पवित्र शाखाएं लाऊंगा।" ज्ञानवीर ने पूजा की विधि जानने का जिम्मा लिया। श्रमवीर ने नृत्य-गान की तैयारी करने का वचन दिया। धर्मवीर ने भोजन और प्रसाद का प्रबंध करने का संकल्प लिया। सहयोगी वीर ने सभी को एक सूत्र में बांधने का कार्य स्वीकार किया। सबसे छोटे भाई करमवीर ने कहा, "मैं रात भर जागरण करूंगा और करम देवता की कथा गाऊंगा।"

*लेकिन समस्या यह थी कि सातों भाइयों की बहनें दूर थीं, और करम पर्व पर बहनों का अपने भाइयों के घर आना और उनकी लंबी आयु की कामना करना परंपरा का अंग था। भाइयों ने सोचा कि शायद इस बार बहनें नहीं आ पाएंगी, फिर भी उन्होंने उत्सव आयोजित करने का निश्चय किया।

*जब करम पर्व का दिन आया, तो गांव के सभी लोग एकत्रित हुए। बलवीर जंगल से करम वृक्ष की शाखाएं लेकर आया। सभी महिलाओं ने मिलकर उन शाखाओं को सजाया, उन पर फूल और रंगोली से अलंकरण किया। गाँव के मध्य में एक विशाल मंडप बनाया गया जहां करम शाखाओं को स्थापित किया गया।

*पूजा आरंभ हुई। ज्ञान वीर ने वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया। सभी ग्रामवासियों ने सामूहिक रूप से करम देवता से प्रार्थना की कि वे वर्षा करें, फसलों को बचाएं और गांव को समृद्धि दें। फिर नृत्य आरंभ हुआ। ढोल, नगाड़े और मांदर की थाप पर सभी युवक-युवतियों ने करम नृत्य किया। हाथों में हाथ डाले, पैरों की थिरकन के साथ, वे गीत गाते रहे।

*रात होने पर करमवीर ने करम देवता की कथा सुनानी शुरू की। उसने गाया कि कैसे करम देवता ने मानवता को कृषि और प्रकृति के रहस्य सिखाए, कैसे उन्होंने मनुष्यों को एकता और सहयोग का पाठ पढ़ाया। सभी लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे।

*तभी अचानक आकाश में बादल छा गए। बिजली चमकने लगी। लोगों के हृदय प्रफुल्लित हो उठे। करमवीर ने और भी जोर से गाना शुरू किया। तभी एक अद्भुत घटना घटी। सातों भाइयों की सातों बहनें अचानक वहां प्रकट हो गईं। उनके चेहरे पर दिव्य आभा थी, वस्त्र स्वर्गीय प्रतीत हो रहे थे।

*बड़ी बहन ने कहा, "हमारे प्रिय भाइयों, करम देवता ने हमें यहां भेजा है। तुम सबकी एकता और समर्पण देखकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए हैं।"

*बहनों ने भाइयों के माथे पर तिलक लगाया, उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधा और लंबी आयु की कामना की। फिर सभी बहनें करम शाखाओं के सामने नतमस्तक हुईं और प्रार्थना करने लगीं।

*तभी मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई। लोग खुशी से झूम उठे। वर्षा इतनी अच्छी हुई कि नदियां, कुएं और तालाब सभी जल से भर गए। सूखे खेत हरे-भरे हो उठे।

*करमवीर ने देखा कि करम शाखाओं से एक दिव्य प्रकाश निकल रहा है। उस प्रकाश में से एक सुंदर देव पुरुष प्रकट हुए जिनके हाथ में अन्न की बालियां थीं और मुख मंडल पर अपार करुणा थी। सभी लोग भूमि पर झुक गए।

*करम देवता बोले, "हे मानवों, तुम सबकी एकता, परिश्रम और आपसी प्रेम ने मुझे प्रसन्न किया है। सातों भाइयों ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए संपूर्ण समुदाय को एकत्रित किया। इनकी बहनों ने दूर से ही सही, इनके प्रति अपना स्नेह बनाए रखा। मैं तुम सबको वरदान देता हूँ कि तुम्हारे खेत हमेशा हरे-भरे रहेंगे, तुम्हारे जल स्रोत कभी शुष्क नहीं होंगे।"

*देवता ने आगे कहा, "लेकिन याद रखो, यह पर्व केवल अन्न की प्राप्ति के लिए नहीं है। यह तुम्हारे भीतर की मानवीय संवेदनाएं जगाए रखने के लिए है। भाई-बहन के बीच का प्रेम, पड़ोसियों के बीच सहयोग, प्रकृति के प्रति सम्मान - ये सभी इस पर्व के मूल तत्व हैं।"

*देवता अंतर्ध्यान हो गए। सुबह हुई तो गांव वालों ने देखा कि करम शाखाएं अभी भी ताजी और हरी थीं जबकि उन्हें कटे हुए पूरी रात बीत चुकी थी। यह करम देवता का चमत्कार था।

*सातों भाइयों ने अपनी बहनों को विदा किया और वचन लिया कि हर वर्ष वे करम पर्व पर अवश्य आएंगी। गांव में खुशहाली लौट आई। फसलें लहलहा उठीं, पशु-पक्षी प्रसन्न हो गए।

*कहते हैं कि उस दिन से करम पर्व की परंपरा और दृढ़ हुई। सात भाइयों की इस कथा ने लोगों को सिखाया कि एकता में कितनी शक्ति होती है। भाई-बहन के बंधन का क्या महत्व है। और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहना कितना आवश्यक है।

*आज भी जब झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में करम पर्व मनाया जाता है, तो सात भाइयों की इस कथा को स्मरण किया जाता है। गांव के लोग सामूहिक रूप से करम वृक्ष की शाखाएं लाते हैं, उनकी पूजा करते हैं, रात भर नृत्य-गान करते हैं और भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूत करते हैं।

*यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। करम देवता वास्तव में प्रकृति की उन शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो हमारे जीवन का आधार हैं। जब हम उनका सम्मान करते हैं, तो वे हमें समृद्धि और खुशहाली प्रदान करती हैं।

*सात भाइयों की यह कथा हमें सामुदायिक जीवन का महत्व समझाती है। व्यक्तिगत सफलता से अधिक महत्वपूर्ण है सामूहिक कल्याण। जब पूरा समुदाय एक साथ मिलकर प्रयास करता है, तो किसी भी संकट का सामना किया जा सकता है, चाहे वह सूखा हो, बाढ़ हो या कोई और प्राकृतिक आपदा।

*करम पर्व आज भी हमारे सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने का कार्य करता है। यह हमें प्रकृति से जोड़ता है, पारिवारिक रिश्तों को सुदृढ़ करता है और सामुदायिक एकता का संदेश देता है। सात भाइयों की यह कथा इन सभी मूल्यों को एक सुंदर कथात्मक रूप प्रदान करती है।

"करम पर्व से जुड़ी दूसरी कथा: राजा विदुरथ और उनकी बहू की कथा"

*प्राचीन काल में विदर्भ प्रदेश में राजा विदुरथ का शासन था। वे न्यायप्रिय, धर्मपरायण और प्रजा का कल्याण करने वाले राजा थे। उनका राज्य अन्न-धन से परिपूर्ण था, नदियां सदा नीरा बहती थीं, वन हरे-भरे थे और प्रजा सुखी थी। राजा विदुरथ के सात पुत्र थे और सभी विवाहित थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी, राजकुमारी गौरी, अपनी सदाचारिता, विवेक और सेवाभाव के लिए प्रसिद्ध थी।

*एक वर्ष राज्य में अकाल पड़ा। वर्षा नहीं हुई, फसलें सूख गईं, नदियां सूखने लगीं। प्रजा दुखी हो उठी। राजा विदुरथ चिंतित हो गए। उन्होंने अपने मंत्रियों और पुरोहितों को बुलाया और उपाय पूछा।

*राजपुरोहित ने कहा, "महाराज, यह संकट तभी टलेगा जब हम करम देवता की उपासना करें। करम देवता ही वर्षा दे सकते हैं और भूमि को उपजाऊ बना सकते हैं।"

"राजा ने पूछा, "करम देवता की उपासना कैसे होगी?"

*पुरोहित बोले, "इसके लिए हमें करम वृक्ष की शाखाएं लानी होंगी, उनकी पूजा करनी होगी, रात भर जागरण करना होगा और सामूहिक नृत्य-गान करना होगा। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि परिवार की सभी बहुएं और बेटियां पूरे श्रद्धाभाव से इस उत्सव में भाग लें।"

*राजा ने तुरंत करम पर्व मनाने का आदेश दिया। राजमहल और पूरे नगर में तैयारियां शुरू हो गईं। लेकिन एक समस्या उत्पन्न हुई। राजा के सातों पुत्र दूर देशों में राजकाज के कार्यों में व्यस्त थे। वे करम पर्व के समय तक लौट नहीं सकते थे। और राज परिवार की परंपरा थी कि करम पर्व पर पतियों की उपस्थिति में ही स्त्रियां पूजा-अर्चना कर सकती थीं।

*राजा चिंतित हो गए। उन्होंने अपनी सातों बहुओं को बुलाया और स्थिति समझाई। छह बहुएं  बोलीं, "पिताश्री, बिना हमारे पतियों के हम पूजा कैसे कर सकते हैं? यह परंपरा के विरुद्ध होगा।"

*लेकिन सबसे छोटी बहू, गौरी, आगे बढ़ी और विनम्रतापूर्वक बोली, "पिताश्री, यदि आप आज्ञा दें, तो मैं अपने सास-ससुर की सेवा और प्रजा के कल्याण के लिए करम देवता की पूजा करना चाहती हूं। मेरा पति दूर है, लेकिन मेरी श्रद्धा और निष्ठा यहीं है। मैं विश्वास करती हूं कि करम देवता मेरी भक्ति स्वीकार करेंगे।"

*राजा विदुरथ गौरी के विवेक और साहस से प्रभावित हुए। उन्होंने गौरी को करम पूजा का नेतृत्व करने की अनुमति दे दी। छह अन्य बहुएं इससे असहमत थीं, लेकिन राजा के आदेश का पालन करना पड़ा।

*गौरी ने पूरे उत्साह से तैयारियां शुरू कीं। उसने सेवकों को जंगल भेजकर करम वृक्ष की सबसे पवित्र शाखाएं लाने का आदेश दिया। राजमहल के मुख्य प्रांगण में एक भव्य मंडप तैयार किया गया। सोने-चांदी के पात्रों में प्रसाद सजाया गया। सभी सामग्री पूर्णतः शुद्ध और पवित्र थी।

*करम पर्व के दिन, गौरी सुबह स्नान करके पवित्र वस्त्र धारण करके आई। उसने स्वयं करम शाखाओं को सजाया, फूलों से अलंकृत किया और उन्हें मंडप में स्थापित किया। राजपुरोहित ने वैदिक मंत्रों से पूजा आरंभ की, लेकिन गौरी ने अपने हृदय से निकली प्रार्थना से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

*वह बोली, "हे करम देवता, हे प्रकृति के स्वामी, हम आपकी शरण में आए हैं। हमारे राज्य में अकाल पड़ा है, प्रजा दुखी है। कृपया हम पर वर्षा की कृपा करें, हमारी भूमि को उपजाऊ बनाएं। मेरे पति दूर हैं, लेकिन मेरी श्रद्धा पूर्णतः आपके चरणों में समर्पित है।"

*पूरे दिन गौरी ने बिना कुछ खाए-पिए उपवास रखा और पूजा में लीन रही। शाम होते ही नगर की सभी महिलाएं एकत्रित हुईं। गौरी ने उन सभी को साथ लेकर करम नृत्य शुरू किया। ढोल, मंजीरा और करताल की ध्वनि के साथ सैकड़ों महिलाओं ने नृत्य किया। गौरी का नेतृत्व अद्भुत था। उसके पैरों की थिरकन और हाथों के संचालन में एक दिव्य लय थी।

*रात भर जागरण चला। गौरी ने करम देवता की कथाएं गा कर सुनाईं, भजन गाए और सभी महिलाओं को प्रेरित किया। छह अन्य बहुएं प्रारंभ में उदासीन थीं, लेकिन गौरी की निष्ठा देखकर धीरे-धीरे वे भी पूरे मन से जुड़ गईं।

*तभी एक चमत्कार हुआ। करम शाखाओं से एक तेज प्रकाश निकलने लगा। वह प्रकाश इतना तीव्र था कि पूरा राजमहल दिन के उजाले जैसा चमकने लगा। प्रकाश के मध्य से एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए जिनके हाथ में धान की बालियां थीं और मुख मंडल पर अलौकिक तेज था।

*सभी ने नतमस्तक होकर प्रणाम किया। करम देवता बोले, "गौरी, तुम्हारी निष्ठा, तुम्हारा साहस और तुम्हारा प्रजा के प्रति प्रेम देखकर मैं अत्यंत प्रसन्न हूं। तुमने बिना किसी स्वार्थ के, केवल दूसरों के कल्याण के लिए मेरी उपासना की है।"

*देवता ने आगे कहा, "तुम्हारे पति दूर हैं, लेकिन तुम्हारा हृदय उनसे और अपने कर्तव्य से जुड़ा है। तुमने साबित किया है कि सच्ची भक्ति के लिए बाहरी अनुष्ठानों से अधिक महत्वपूर्ण है आंतरिक शुद्धता और निःस्वार्थ भाव।"

*करम देवता ने राजा विदुरथ को आशीर्वाद दिया, "हे राजन, तुम्हारी बहू ने तुम्हारे कुल का मान बढ़ाया है। आज से तुम्हारे राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ेगा। वर्षा समय पर होगी, फसलें लहलहाएगी, प्रजा सुखी रहेगी।"

*इतना कहकर करम देवता ने अपने हाथ उठाए और तुरंत आकाश में बादल घिर आए। मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई। लोग खुशी से नाच उठे। सूखी धरती पानी पीकर हरी हो गई।

*देवता ने गौरी को एक विशेष वरदान दिया, "तुम्हारी इस निष्ठा के कारण तुम्हारे पति शीघ्र ही सकुशल लौट आएंगे। तुम्हारा वैवाहिक जीवन आनंदमय रहेगा। और हे राजन, आज से यह परंपरा स्थापित हो कि करम पर्व पर सभी स्त्रियां, चाहे उनके पति उपस्थित हों या न हों, वे पूरे विधि-विधान से इस उत्सव को मना सकती हैं।"

*करम देवता अंतर्ध्यान हो गए। राजा विदुरथ की आंखें खुशी के आंसुओं से भर आईं। उन्होंने गौरी को गले लगाया और कहा, "पुत्री, तुमने न केवल हमारे राज्य को संकट से उबारा, बल्कि एक नई परंपरा की नींव रखी।"

*कुछ दिनों बाद राजा के सातों पुत्र राजकाज समाप्त करके लौट आए। जब उन्होंने गौरी की निष्ठा और करम देवता के चमत्कार के बारे में सुना, तो वे अत्यंत प्रभावित हुए। छह अन्य बहुएं अपने व्यवहार पर लज्जित हुईं और उन्होंने गौरी से क्षमा मांगी।

*राजा विदुरथ ने घोषणा की कि अब से प्रतिवर्ष करम पर्व राज्य स्तर पर मनाया जाएगा और सभी स्त्रियों को, चाहे उनके पति उपस्थित हों या न हों, पूर्ण अधिकार होगा कि वे इस पवित्र उत्सव में भाग लें।

*यह कथा आज भी करम पर्व के अवसर पर सुनाई जाती है। यह हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और निष्ठा में अद्भुत शक्ति होती है। गौरी ने साबित किया कि परंपराओं का पालन करना महत्वपूर्ण है, लेकिन जब परंपराएं समय और परिस्थितियों के अनुकूल न हों, तो विवेक से काम लेना चाहिए।

*यह कथा स्त्री सशक्तिकरण का भी एक प्राचीन उदाहरण है। गौरी ने बिना किसी डर के, अपने विवेक और साहस से न केवल एक संकट का समाधान किया, बल्कि एक नई और उदार परंपरा की स्थापना की।

*करम पर्व आज भी हमें यही संदेश देता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य, सामुदायिक एकता और पारिवारिक मूल्यों का पालन ही सच्ची समृद्धि का मार्ग है। राजा विदुरथ और गौरी की यह कथा इन सभी मूल्यों को एक सुंदर कथात्मक रूप प्रदान करती है और हमें प्रेरणा देती है कि निष्ठा और साहस से हर संकट का सामना किया जा सकता है।

"करम पूजा से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर"

*प्रश्न: 2026 में करम पूजा का शेड्यूल क्या है?

*उत्तर:2026 में करम पूजा का मुख्य दिन 22 सितंबर, मंगलवार है । इससे लगभग एक सप्ताह पहले जावा उठाने की रस्म शुरू हो जाएगी । पूजा का मुख्य अनुष्ठान सुबह से दोपहर तक, और सामूहिक नृत्य-गान शाम से रात तक चलेगा। अगले दिन यानी 23 सितंबर को करम शाखा का विसर्जन होगा।

*प्रश्न: कर्मा एकादशी क्या है?

*उत्तर:कर्मा एकादशी, करम पर्व का ही एक वैष्णव पक्ष है, जो भाद्रपद शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है । इसमें भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और बहनें अपने भाइयों के कल्याण के लिए रखती हैं । मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु शयन के बाद करवट बदलते हैं ।

*प्रश्न: करमा गीत कब गाया जाता है?

*उत्तर:करमा के पारंपरिक लोक गीत पूजा अनुष्ठान के बाद गाए जाते हैं और यह पूरी रात चलते हैं । ये गीत करम शाखा के चारों ओर घेरा बनाकर नाचते हुए गाए जाते हैं। इन गीतों में प्रकृति प्रेम, फसलों की खुशहाली, पूर्वजों की गाथाएं और सामाजिक जीवन के पहलू झलकते हैं।

*प्रश्न: पूजा के दिन क्या करें और क्या न करें?

क्या करें:

*व्रत या सात्विक भोजन करें ।

*परिवार और पड़ोसियों के साथ मिलकर सामूहिक पूजा में भाग लें।

*जावा की देखभाल करें और उसकी पूजा करें ।

*नृत्य-संगीत में उत्साहपूर्वक शामिल हों।

"क्या न करें":

*जिन अनाजों के बीज जावा में बोए गए हैं, उनका सेवन न करें ।

 *तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा आदि) से परहेज करें ।

*पूजन के दिनों में अशुद्ध या नकारात्मक व्यवहार से बचें।

"प्रश्न: करम पूजा के दिन क्या खाएं और क्या न खाएं"?

*क्या खाएं (पारंपरिक व्यंजन):

*दाल पूरी: चने की दाल भरी हुई पूरी, जो प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है ।

*अरवा चावल: सादे उबले हुए चावल।

*करमा का डाला: दाल और चावल से बना खिचड़ी जैसा व्यंजन ।

*सत्तू: भुने चने का आटा।

*हंड़िया: चावल से बना पारंपरिक हल्का मादक पेय ।

क्या न खाएं:

*मांसाहार और मदिरा (अधिकांश परिवारों में)।

*प्याज और लहसुन।

*जावा में बोए गए अनाज (जैसे चना, जौ, मक्का) से बने पकवान, जब तक जावा का कार्यक्रम चल रहा हो ।

"करम पर्व से जुड़ी लोक मान्यताएं एवं विशेष उपाय"

*करम पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि आदिवासी व कृषक समुदायों में लोक जीवन की शुभता, समृद्धि और सुरक्षा से जुड़ी अनेक मान्यताओं का केन्द्र भी है। ये परम्पराए, जिन्हें अक्सर "टोटके" कहा जाता है, पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही हैं और इनका उद्देश्य सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करना है। यहां कुछ प्रचलित मान्यताएं बताई गई हैं:

*01. समृद्धि व धन आकर्षण के लिए:

*जावा के अंकुरों का महत्व: माना जाता है कि पूजा के बाद जावा में उगे हरे अंकुरों को अपने घर के मुख्य द्वार के ऊपर या अनाज की कोठी में रखने से घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती और फसलें अच्छी होती हैं।

*करम शाखा का प्रसाद: करम शाखा पर चढ़ाए गए प्रसाद (जैसे चावल, दाल, सिक्का) को घर लाकर रखने या खेत में रखने से समृद्धि आती है।

*02. पारिवारिक सुख व रिश्तों के लिए:

*भाई-बहन के बंधन में: करम

*करम एकादशी के दिन बहन द्वारा भाई के माथे पर अक्षत (चावल) और रोली का टीका लगाना तथा कलावा बांधना उसकी लम्बी आयु और सुखमय जीवन का प्रतीक माना जाता है।

*सौभाग्य के लिए: सुहागिन महिलाओं द्वारा जावा की टोकरी की सात बार परिक्रमा करने और उसकी पूजा करने से पति की दीर्घायु और सुहाग की रक्षा होती है।

*03. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा के लिए:

*शाखा का स्थान: मान्यता है कि गांव के बीच स्थापित करम शाखा उस पूरे इलाके की नकारात्मक शक्तियों और बुरी नजर से रक्षा करती है।

*विसर्जन का महत्व: अगले दिन करम शाखा को नदी में विसर्जित करना, घर-गांव की सभी तरह की बाधाओं और नकारात्मकताओं को दूर बहा ले जाने का प्रतीक है।

*04. सामाजिक एकता व विवाद समाप्ति के लिए:

*सामूहिक नृत्य की भूमिका: माना जाता है कि करम नृत्य के दौरान एक साथ हाथ में हाथ डालकर नाचने से पुराने विवाद या मनमुटाव दूर हो जाते हैं और सामंजस्य बढ़ता है।

*ध्यान रखें: ये सभी लोक मान्यताएं और सांस्कृतिक विश्वास हैं, जिनका उद्देश्य आस्था और सामुदायिक भावना को मजबूत करना है। इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। करम पर्व का वास्तविक सार प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, सामुदायिक सद्भाव और अच्छी फसल की कामना में निहित है।

"करम पर्व के वैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहलू"

*वैज्ञानिक पहलू: यह पर्व फसल चक्र और जैव विविधता से जुड़ा है। जावा में विभिन्न बीज बोना बीज संरक्षण की प्राचीन पद्धति है। वर्षा ऋतु के अंत में मनाया जाना, कीटों के प्रकोप को कम करने वाले समय से मेल खाता है।

*सामाजिक पहलू: करम पूजा सामुदायिक एकता का महत्वपूर्ण सूत्र है। यह त्योहार सभी उम्र और वर्ग के लोगों को एक साथ लाता है, जिससे सामाजिक समरसता मजबूत होती है। यह लोक कलाओं, नृत्य और संगीत को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम भी है।

*आध्यात्मिक पहलू: आध्यात्मिक दृष्टि से, यह प्रकृति पूजन और कर्म सिद्धांत पर आधारित है। करम वृक्ष की पूजा इस विश्वास को दर्शाती है कि देवता प्रकृति के हर अंग में निवास करते हैं। यह पर्व मनुष्य को प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रखने और अपने कर्म (खेती) के प्रति ईमानदार रहने का संदेश देता है।

"डिस्क्लेमर"

*इस ब्लॉग में दी गई सभी जानकारी विभिन्न ऑनलाइन स्रोतों, समाचार पत्रों और सामग्रियों के आधार पर सामान्य जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से एकत्रित की गई है । 

*यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और लोक परंपराओं पर आधारित है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या व्रत को करने से पहले, अपने क्षेत्र के स्थानीय पंचांग, परंपराओं या किसी योग्य धर्माचार्य/पुरोहित से अंतिम तिथि और विधि की पुष्टि अवश्य कर लें। त्योहार मनाने के तरीके क्षेत्र और समुदाय के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। लेखक या प्रकाशक किसी भी प्रकार की त्रुटि या कमी के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।


एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने