"गणेश चतुर्थी 2025: पूजा विधि, पौराणिक कथाएं, शुभ मुहूर्त और महत्व"

"गणेश चतुर्थी 2025, 27 अगस्त दिन बुधवार, भाद्रपद के शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को मनाएं जानें वाले गणेश पूजा की संपूर्ण जानकारी - पूजा विधि, पौराणिक कथाएं, शुभ मुहूर्त और देश-विदेश में कहां-कहां है गणेश का मंदिर सहित उत्सव की तैयारियां। जानें विघ्नहर्ता गणपति की भक्ति का महत्व"।

"भव्य गणेश पूजा 2025 – ढोल-नगाड़ों और भक्तिभाव के बीच विघ्नहर्ता गणेश का अलौकिक उत्सव"

सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी एक ऐसा पर्व है जो भक्ति, उत्साह और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम है। यह त्योहार भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता और मंगलकारी के रूप में पूजे जाते हैं। हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। 

वर्ष 2025 में गणेश चतुर्थी का व्रत 27 अगस्त दिन बुधवार को होगा, और विसर्जन 06 सितंबर, दिन शनिवार को अनंत चतुर्दशी के दिन होगा। इस ब्लॉग में हम गणेश चतुर्थी की संपूर्ण जानकारी, पूजा विधि, पौराणिक कथाओं, महत्व, शुभ मुहूर्त और उत्सव की तैयारियों को विस्तार से जानेंगे। 

गणेश चतुर्थी की सारी जानकारी जो हमारे ब्लॉग में है, जो नीचे दी गई है, पढ़ें विस्तार से 

*गणेश चतुर्थी 2025

*गणेश पूजा विधि

*गणेश चतुर्थी कथाएं

*गणेश चतुर्थी मुहूर्त

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*गणेश चतुर्थी 2025: संपूर्ण जानकारी और उत्सव की तैयारी

*गणेश चतुर्थी की तिथि और समय

*गणेश पूजा की शास्त्रोक्त विधि

*पौराणिक कथाएं और महत्व

*शुभ मुहूर्त पंचांग और चौघड़िया पंचांग 

*चंद्र दर्शन का निषेध

*गणेश जी का जन्म

*एकदंत स्वरूप की कथा

*चंद्रमा का श्राप

*महाभारत लेखन और गणेश जी

*गणेशजी और परशुराम जी युद्ध 

सनातन पंचांग के अनुसार, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 2025 में निम्नलिखित समय पर होगी:

चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 26 अगस्त 2026, दोपहर 01:54 बजे 

चतुर्थी तिथि समाप्त: 27 अगस्त 2026, शाम 03:44 बजे 

उदय तिथि: 27 अगस्त 2026 को चतुर्थी तिथि के कारण व्रत और पूजा इसी दिन होगी।

गणेश चतुर्थी का उत्सव 27 अगस्त से शुरू होकर 10 दिनों तक चलेगा, जिसका समापन 06 सितंबर, दिन शनिवार को अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति विसर्जन के साथ होगा। इस दौरान भक्त अपने घरों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं और भक्ति-भाव से उनकी पूजा करते हैं।

2025 का पंचांग कैलेंडर: इसमें चतुर्थी तिथि और शुभ मुहूर्त को विशेष रूप से हाइलाइट किया गया है।

गणेश चतुर्थी का महत्व

गणेश चतुर्थी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत गहरा है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, सिद्धि दाता और बुद्धि-विद्या का प्रदाता माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन पूजा और व्रत करने से जीवन के सभी कष्ट, बाधाएं और दोष दूर होते हैं। यह पर्व न केवल भारत में, बल्कि विश्वभर में बसे भारतीय समुदायों द्वारा उत्साह के साथ मनाया जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि चोरी का झूठा आरोप लगा था। नारद मुनि ने उन्हें बताया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन के कारण यह दोष उत्पन्न हुआ। गणेश जी द्वारा चंद्रमा को दिए गए श्राप के कारण इस दिन चंद्र दर्शन वर्जित है। श्रीकृष्ण ने गणेश चतुर्थी का व्रत और पूजा कर इस दोष से मुक्ति पाई। इसलिए यह पर्व झूठे आरोपों और पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।

गणेश चतुर्थी की पूजा विधि

गणेश चतुर्थी की पूजा विधि अत्यंत विस्तृत और शास्त्रोक्त है। इसे विधि-विधान से करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नीचे पूजा की पूरी प्रक्रिया दी गई है:

पूजा की तैयारी

ब्रह्म मुहूर्त में स्नान: गणेश चतुर्थी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 04:00 बजे से लेकर 05:00 बजे) में उठकर स्नान करें।

पूजा स्थल की शुद्धि: घर के मंदिर या पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।

गणेश मूर्ति स्थापना: लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति के नीचे साबुत चावल (अक्षत) बिछाएं।

गणेश चतुर्थी के उत्सव का एक सुंदर दृश्य, जिसमें ढोल-नगाड़ों की थाप और रंग-बिरंगी सजावट के बीच गणेश पंडाल में भक्तों की भीड़ उमड़ी है।

पूजा सामग्री: निम्नलिखित सामग्री तैयार करें:

गणेश मूर्ति

लाल कपड़ा (सवा मीटर)

गंगाजल, रोली, मौली, चंदन, अक्षत

दूर्वा घास, फूल, इलायची, लौंग, सुपारी

घी, कपूर, मोदक, लड्डू, पंचामृत (दूध, दही, घी, मधु, गुड़)

जनेऊ, कलश, हवन सामग्री, पंचमेवा।

पूजा विधान

आचमन और संकल्प: शुद्ध जल में गंगाजल मिलाकर आचमन करें। देश, काल और स्थान का उच्चारण कर पूजा का संकल्प लें।

प्राण प्रतिष्ठा: मूर्ति में गणेश जी का आवाहन करें। मंत्र: ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः।

आसन शुद्धि: अपने और मूर्ति के आसन को गंगाजल से शुद्ध करें।

कलश पूजा: कलश में जल, गंध, अक्षत और फूल डालकर सभी देवी-देवताओं और पवित्र नदियों का आवाहन करें।

शंख और घंटा पूजा: शंख में जल भरकर गंध और श्वेत फूल चढ़ाएं। घंटा नाद कर राक्षसी शक्तियों को दूर करें।

दीप प्रज्वलन: शुद्ध घी का दीपक जलाएं और गंध, अक्षत, फूल चढ़ाएं।

गणेश पूजन:

गणेश जी को गंगाजल से स्नान कराएं।

पंचामृत स्नान (दूध, दही, घी, मधु, गुड़) कराएं।

दूर्वा, लाल फूल, चंदन, सिंदूर, हल्दी, कुमकुम और अष्टगंध चढ़ाएं।

मोदक और लड्डू का भोग लगाएं।

मंत्र: वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।

अंग पूजा: गणेश जी के प्रत्येक अंग पर अक्षत और फूल चढ़ाएं।

पत्र पूजा: 21 प्रकार की पत्रियां (बेल, दूर्वा, तुलसी, शमी, आदि) चढ़ाएं।

नैवेद्य: तुलसी दल के साथ मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। मंत्र: प्राणाय स्वाहा।

आरती और हवन: गणेश आरती करें और हवन में दूर्वा, मोदक और घी की आहुति दें।

विसर्जन की तैयारी: अंतिम दिन (06 सितंबर) गणेश जी को विदाई दें और मूर्ति का जल में विसर्जन करें।

गणेश पूजा विधि का एक सुंदर दृश्य, जिसमें हरे-भरे स्थान पर गणेश मूर्ति की स्थापना की जा रही है। दीप प्रज्वलन और पूजा सामग्री से सजे इस स्थल पर भक्तगण खुशहाली के माहौल में पूजा कर रहे हैं।

गणेश चतुर्थी के शुभ मुहूर्त 2026

पंचांग के अनुसार, 14 सितंबर 2026 को निम्नलिखित शुभ मुहूर्त होंगे:

अभिजित मुहूर्त: नहीं है 

विजय मुहूर्त: दोपहर 01:53 बजे से 02:44 बजे

गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:07 बजे से 06:30 बजे

सायाह्न संध्या मुहूर्त: शाम 06:07 बजे से 07:15 बजे

चौघड़िया मुहूर्त:

लाभ मुहूर्त: सुबह 05:26 बजे से दोपहर 07:01 बजे

अमृत मुहूर्त: दोपहर 07:01 बजे से 08:36 बजे

शुभ मुहूर्त: दोपहर 10:11 बजे से शाम 11:47 बजेइन 

चर मुहूर्त: सुबह 02:57 बजे से 04:32 बजे

मुहूर्तों में पूजा करने से गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है और कार्यों में सफलता मिलती है।

गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथाएं 

गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथाएं सनातन धर्म की समृद्ध परंपराओं का आधार हैं। ये कथाएं भगवान गणेश के जन्म, उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और उनके महत्व को दर्शाती हैं। 

01. गणेश जी का जन्म

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने एक बार स्नान करने से पहले अपनी गोपनीयता की रक्षा के लिए एक द्वारपाल की आवश्यकता महसूस की। उनके पास भगवान शिव की तरह कोई गण या दूत नहीं थे। अपनी सखियों के सुझाव पर, माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल (उबटन) से एक सुंदर बालक का पुतला बनाया। उन्होंने उसमें प्राण फूंके, और इस प्रकार भगवान गणेश का जन्म हुआ। पार्वती ने उन्हें गृह रक्षा का दायित्व सौंपा और स्नान करने चली गईं।

जब भगवान शिव कैलाश लौटे, तो गणेश ने उन्हें द्वार पर रोक दिया, क्योंकि वे अपने पिता को नहीं पहचानते थे। शिव ने क्रोधित होकर गणेश से युद्ध किया और अपने त्रिशूल से उनका सिर काट दिया। माता पार्वती को जब यह पता चला, तो वे अत्यंत दुखी हुईं और विलाप करने लगीं। 

पार्वती को प्रसन्न करने के लिए शिव ने अपने गणों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा में जाएं और जो भी प्राणी सबसे पहले मिले, उसका सिर ले आएं। गणों को एक गज (हाथी) का बच्चा मिला, जिसका सिर काटकर लाया गया। शिव ने उस सिर को गणेश के धड़ से जोड़ दिया, और इस तरह गणेश जी गजानन के रूप में जाने गए।

"गणेश जन्म कथा – माता पार्वती द्वारा गणेश की रचना और भगवान शिव द्वारा सिर जोड़ने का दिव्य दृश्य, कैलाश पर्वत की पृष्ठभूमि में।"

02. शनि की कुदृष्टि और गणेश का सिर

एक अन्य कथा के अनुसार, माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह के कई वर्षों बाद भी उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ। पार्वती ने भगवान श्रीकृष्ण के व्रत का पालन किया और उनकी तपस्या से गणेश जी का जन्म हुआ। कैलाश पर उत्सव का माहौल था। सभी देवता गणेश को आशीर्वाद देने आए। 

जब शनि देव गणेश को देखने आए, तो उनकी कुदृष्टि के कारण गणेश का सिर कटकर भूमि पर गिर गया। यह देखकर पार्वती अत्यंत दुखी हुईं। भगवान विष्णु ने स्थिति को संभाला और एक गज के सिर को गणेश के धड़ से जोड़ दिया। इस तरह गणेश जी को गजमुख प्राप्त हुआ। यह कथा गणेश जी के गजानन रूप की उत्पत्ति को दर्शाती है।

03. परशुराम और गणेश का एकदंत स्वरूप

पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान परशुराम कैलाश पर्वत पर शिव और पार्वती के दर्शन के लिए आए। उस समय शिव और पार्वती गहन निद्रा में थे, और गणेश जी द्वार पर पहरा दे रहे थे। परशुराम ने जब प्रवेश करने की कोशिश की, तो गणेश ने उन्हें रोक दिया। 

इससे क्रोधित होकर परशुराम ने अपने परशु (कुल्हाड़ी) से गणेश पर प्रहार किया, जिससे उनका एक दांत टूट गया। इस घटना के बाद गणेश जी को एकदंत के नाम से जाना गया। गणेश ने परशुराम के प्रहार को सहन किया, क्योंकि वे जानते थे कि परशु भगवान शिव का दिया हुआ है। यह कथा गणेश जी की विनम्रता और सहनशीलता को दर्शाती है।

परशुराम और गणेश के बीच दिव्य युद्ध, जिसमें गणेश अपनी शांत मुद्रा और टूटे हुए दांत के साथ कैलाश पर्वत पर अपने भक्तों की रक्षा कर रहे हैं।

04. चंद्रमा का श्राप और गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन वर्जित होने की कथा अत्यंत रोचक है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार गणेश जी अपने वाहन मूषक पर सवार होकर जा रहे थे। चंद्रमा ने उनकी विशाल काया और मूषक पर सवारी देखकर उनका उपहास किया। गणेश जी ने क्रोधित होकर चंद्रमा को श्राप दिया कि जो भी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। इस श्राप के कारण ही इस दिन चंद्र दर्शन निषिद्ध है।

एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने अनजाने में चंद्रमा को देख लिया, जिसके कारण उन पर स्यमंतक मणि चोरी का झूठा आरोप लगा। नारद मुनि के सुझाव पर श्रीकृष्ण ने गणेश चतुर्थी का व्रत और पूजा की, जिससे वे इस दोष से मुक्त हुए। यह कथा गणेश चतुर्थी के महत्व को और भी बढ़ाती है।

05. गणेश जी और महाभारत का लेखन

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने जब महाभारत की रचना करने का निर्णय लिया, तो उन्हें एक ऐसे लेखक की आवश्यकता थी जो उनकी गति के साथ लेखन कर सके। ब्रह्मा जी के सुझाव पर वेदव्यास ने गणेश जी से यह कार्य करने का अनुरोध किया। गणेश जी ने शर्त रखी कि वेदव्यास बिना रुके कथा सुनाएंगे, और वे बिना रुके लिखेंगे। वेदव्यास ने यह शर्त स्वीकार की, लेकिन यह भी कहा कि गणेश जी प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझकर ही लिखें। इस तरह गणेश जी ने महाभारत का लेखन किया, जिससे उनकी बुद्धि और लेखन कौशल की महिमा स्थापित हुई।

घने जंगल में शांत नदी के किनारे, वेदव्यास के मुख से महाभारत की कथा सुनकर गणेश जी अपनी लेखनी से उसे ताम्रपत्र पर अंकित करते हुए।

06. गणेश जी की प्रथम पूजा की परंपरा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सभी देवताओं में यह विवाद हुआ कि प्रथम पूजा का अधिकार किसे मिलना चाहिए। इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव ने एक प्रतियोगिता आयोजित की, जिसमें गणेश और उनके भाई कार्तिकेय को ब्रह्मांड की परिक्रमा कर जल्दी लौटने को कहा गया। कार्तिकेय अपने मयूर वाहन पर ब्रह्मांड की परिक्रमा के लिए निकल गए, लेकिन गणेश जी ने बुद्धिमानी से अपने माता-पिता (शिव-पार्वती) की परिक्रमा की, क्योंकि उनके लिए माता-पिता ही संपूर्ण ब्रह्मांड थे। उनकी इस बुद्धिमानी से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया। तभी से हर शुभ कार्य में गणेश जी की पूजा सबसे पहले की जाती है।

07. गणेश जी के बारह नाम

शास्त्रों में गणेश जी के बारह प्रमुख नामों का उल्लेख है, जो उनकी विभिन्न शक्तियों और गुणों को दर्शाते हैं:

सुमुख: सुंदर मुख वाला

एकदंत: एक दांत वाला

कपिल: भूरा रंग वाला

गजकर्ण: हाथी जैसे कर्ण वाला

लंबोदर: विशाल उदर वाला

विकट: विशाल और भयंकर स्वरूप वाला

विघ्नविनाशन: विघ्नों का नाश करने वाला

विनायक: सभी का नेतृत्व करने वाला

धूम्रकेतु: धूमकेतु के समान तेजस्वी

गणाध्यक्ष: गणों का स्वामी

भालचंद्र: चंद्रमा को मस्तक पर धारण करने वाला

गजानन: गज के समान मुख वाला

इन नामों का जाप करने से भक्तों को गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

"गणेश जी के बारह नामों का प्रतीकात्मक चित्रण - सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लंबोदर, विकट, विघ्नविनाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन।"

गणेश चतुर्थी की तैयारियां

मूर्ति का चयन: पर्यावरण के प्रति जागरूक रहें और मिट्टी की बनी गणेश मूर्ति चुनें।

पूजा स्थल की सजावट: रंग-बिरंगे फूलों, तोरण और रंगोली से पूजा स्थल को सजाएं।

प्रसाद: मोदक, लड्डू, और पंचमेवा तैयार करें। गणेश जी को दूर्वा और मोदक विशेष रूप से प्रिय हैं।

व्रत की तैयारी: पूजा के दिन व्रत रखें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।

विसर्जन की व्यवस्था: पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए विसर्जन के लिए जलाशय या कृत्रिम टैंक का उपयोग करें।

चंद्र दर्शन का निषेध

गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन वर्जित है। 27 अगस्त 2025 को चंद्रास्त रात 08:27 बजे होगा। सूर्यास्त शाम 06:07 बजे होगा। इसलिए शाम 06:07 बजे से रात 08:27 बजे तक चंद्रमा का दर्शन न करें।

निष्कर्ष

गणेश चतुर्थी 2025 एक ऐसा अवसर है जो भक्तों को भगवान गणेश की भक्ति में डूबने और उनके आशीर्वाद से जीवन को समृद्ध करने का मौका देता है। इस ब्लॉग में हमने पर्व की तिथि, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, पौराणिक कथाएं और उत्सव की तैयारियों को विस्तार से जाना। चाहे आप पहली बार यह पर्व मना रहे हों या परंपरागत रूप से इसे मनाते आ रहे हों, यह लेख आपके उत्सव को और भी विशेष बनाएगा। पर्यावरण के प्रति जागरूक रहें, मिट्टी की मूर्ति का उपयोग करें और गणपति की भक्ति में लीन होकर अपने जीवन को मंगलमय बनाएं। गणपति बप्पा मोरया!

अज्ञानता और दुर्भाग्य से बचने के लिए, गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को न देखने का संकेत देते हुए गणेश जी।

नमस्कार! हमने गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर भगवान गणेश की भक्ति और उनके मंदिरों की जानकारी साझा करना मेरे लिए हर्ष का विषय है। भगवान गणेश विघ्नहर्ता के रूप में पूजे जाते हैं, और दुनिया भर में उनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां लाखों भक्त दर्शन करने जाते हैं। नीचे मैंने भारत और विदेश के प्रमुख गणेश मंदिरों की सूची तैयार की है, जिसमें प्रत्येक मंदिर का नाम, स्थान और विशेषताएं शामिल हैं। 

भारत में प्रसिद्ध गणेश मंदिर

भारत में गणेश जी के मंदिरों की संख्या हजारों में है, लेकिन यहां कुछ सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिरों की सूची है:

मुंबई, महाराष्ट्र का प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर

सिद्धिविनायक मंदिर

स्थान: मुंबई, महाराष्ट्र।

विशेषता: यह गणेश जी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है जहां प्रतिदिन लाखों भक्त दर्शन करते हैं। मंदिर में स्वर्ण जड़ित मूर्ति है और यह मनोकामनाएं पूरी करने के लिए जाना जाता है। गणेश चतुर्थी पर यहां विशेष उत्सव होते हैं।

दगड़ूशेठ हलवाई गणपति मंदिर

स्थान: पुणे, महाराष्ट्र।

विशेषता: 1893 में स्थापित यह मंदिर अपनी भव्य सजावट और सोने-चांदी से जड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। गणेश चतुर्थी पर यहां पांडाल में विशाल उत्सव मनाया जाता है, जो लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

गणपतिपुले मंदिर

स्थान: गणपतिपुले, रत्नागिरि जिला, महाराष्ट्र।

विशेषता: समुद्र तट पर स्थित यह मंदिर स्वयंभू (स्व-प्रकट) मूर्ति के लिए जाना जाता है। यहां गणेश जी को सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पूजा की जाती है, और मंदिर की प्राकृतिक सुंदरता इसे पर्यटन स्थल भी बनाती है।

अष्टविनायक मंदिर समूह (8 मंदिर)

स्थान: विभिन्न स्थानों पर, मुख्य रूप से पुणे और रायगढ़ जिले, महाराष्ट्र (जैसे मोरगांव, थेवर, लेन्याद्री आदि)।

विशेषता: ये आठ प्राचीन मंदिर गणेश जी के विभिन्न रूपों को समर्पित हैं। प्रत्येक मंदिर की अपनी पौराणिक कथा है, जैसे विघ्नेश्वर ओझर में विघ्नासुर का वध। तीर्थयात्रा के रूप में इनकी यात्रा की जाती है।

कनिपकम विनायक मंदिर

स्थान: कनिपकम, चित्तूर जिला, आंध्र प्रदेश।

विशेषता: यहां की मूर्ति स्वयंभू है और मान्यता है कि यह बढ़ती जा रही है। मंदिर एक प्राचीन कुएं के पास है जहां पाप धुल जाते हैं, और यह झूठे आरोपों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रसिद्ध है।

दोद्दा गणपति मंदिर

स्थान: बसवनगुड़ी, बेंगलुरु, कर्नाटक।

विशेषता: 18 फीट ऊंची और 16 फीट चौड़ी एकाश्म (एक पत्थर की) मूर्ति यहां की मुख्य आकर्षण है। हर चार साल में मूर्ति को मक्खन से लेपित किया जाता है, जो चमत्कारिक रूप से पिघलता नहीं

कुरुदुमाले गणेश मंदिर के अंदर, भगवान गणेश की भव्य प्रतिमा, जिसे एक ही पत्थर से बनाया गया है। यह प्राचीन वास्तुकला और धार्मिक आस्था का अद्भुत संगम है।

कुरुदुमाले गणेश मंदिर

स्थान: कुरुदुमाले, कर्नाटक।

विशेषता: 13 फीट ऊंची प्राचीन मूर्ति यहां है, जिसे ऋषि अगस्त्य द्वारा स्थापित माना जाता है। मंदिर की वास्तुकला होयसल साम्राज्य की है और यह शुभकामनाओं के लिए जाना जाता है

पिल्लयारपट्टी करपगा विनायक मंदिर

स्थान: पिल्लयारपट्टी, शिवगंगा जिला, तमिलनाडु।

विशेषता: चट्टान काटकर बनाया गया यह मंदिर 6 फीट ऊंची गणेश मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। यहां गणेश जी को 'कुज्जी पिल्लयार' कहा जाता है, और मंदिर की प्राचीन शिल्पकला द्रविड़ शैली की है।

त्रिनेत्र गणेश मंदिर

स्थान: रणथंबोर किला, सवाई माधोपुर, राजस्थान।

विशेषता: तीन नेत्रों वाली अनोखी गणेश मूर्ति यहां है, जो किले के अंदर स्थित है। विवाह संबंधी कामनाओं के लिए प्रसिद्ध, और रणथंबोर नेशनल पार्क के पास होने से पर्यटन स्थल भी है।

मधुर महागणपति मंदिर

स्थान: मधुर, कासरगोड जिला, केरल।

विशेषता: मधुरा नदी के किनारे स्थित यह मंदिर अपनी अनोखी वास्तुकला और मधुरा पेयासम (मीठा प्रसाद) के लिए जाना जाता है। गणेश जी यहां बच्चे के रूप में पूजे जाते हैं।

खजुराहो गणेश मंदिर

स्थान: खजुराहो, मध्य प्रदेश।

विशेषता: यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के पास स्थित, यह मंदिर चंदेल वंश द्वारा बनाया गया है। यहां की मूर्तियां कामुक कला के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन गणेश जी की पूजा विघ्न नाश के लिए की जाती है।

मानकुला विनायगर मंदिर

स्थान: पुडुचेरी।

विशेषता: फ्रेंच उपनिवेश काल से पहले का यह मंदिर गणेश जी की 3 फीट ऊंची मूर्ति के लिए जाना जाता है। यहां गणेश चतुर्थी पर विशेष जुलूस निकलता है।

विदेश में प्रसिद्ध गणेश मंदिर

विदेशों में गणेश जी के मंदिर मुख्य रूप से प्रवासी भारतीयों द्वारा स्थापित हैं, जो हिंदू संस्कृति का प्रसार करते हैं। यहां कुछ प्रमुख हैं:

गणेश देवस्थान मंदिर

स्थान: बैंकॉक, थाईलैंड।

विशेषता: थाईलैंड का सबसे बड़ा गणेश मंदिर, जहां विशाल मूर्ति और जीवंत उत्सव होते हैं। यहां थाई और हिंदू संस्कृति का मिश्रण देखने को मिलता है, और यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

श्री गणपति मंदिर

स्थान: लंदन, यूनाइटेड किंगडम (विंबलडन)।

विशेषता: दक्षिण भारतीय वास्तुकला से प्रेरित यह मंदिर यूरोप का प्रमुख गणेश मंदिर है। यहां गणेश चतुर्थी पर ग्रैंड प्रोसेसन होता है, और यह प्रवासी हिंदुओं का आध्यात्मिक केंद्र है।

श्री महा गणपति मंदिर

स्थान: कोलंबो, श्रीलंका।

विशेषता: श्रीलंका का सबसे व्यस्त हिंदू मंदिर, जहां गणेश जी की पूजा तमिल परंपरा से की जाती है। यह स्थानीय लोककथाओं से जुड़ा है और वार्षिक उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है।

सूर्यविनायक मंदिर

स्थान: काठमांडू, नेपाल।

विशेषता: नेपाल का सबसे पुराना गणेश मंदिर, जो पहाड़ी पर स्थित है। यहां सूर्योदय के समय पूजा की जाती है, और यह स्वास्थ्य और सफलता की कामना के लिए जाना जाता है।

अरुलमिगु नवशक्ति विनायगर मंदिर

स्थान: विक्टोरिया, सेशेल्स।

विशेषता: अफ्रीका के निकट द्वीप राष्ट्र में स्थित यह मंदिर तमिल हिंदुओं द्वारा बनाया गया है। यहां की मूर्ति स्वर्ण जड़ित है, और यह शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।0f2deb

संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर के फ्लशिंग में स्थित हिंदू टेम्पल सोसाइटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका में भगवान गणेश का सुंदर मंदिर। यह मंदिर प्रवासी भारतीयों के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र है।

हिंदू टेम्पल सोसाइटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका (गणेश मंदिर)

स्थान: फ्लशिंग, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका।

विशेषता: अमेरिका का पहला गणेश मंदिर (1977 में स्थापित), जहां पारंपरिक दक्षिण भारतीय पूजा होती है। यहां कैंटीन में शाकाहारी भोजन उपलब्ध है, और यह हिंदू संस्कृति का केंद्र है।

श्री गणेश मंदिर

स्थान: ओकलेघ, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया।

विशेषता: ऑस्ट्रेलिया का प्रमुख गणेश मंदिर, जहां गणेश चतुर्थी पर भव्य उत्सव होते हैं। मंदिर की वास्तुकला भारतीय शैली की है, और यह प्रवासियों की एकता का प्रतीक है।

श्री गणपति मंदिर

स्थान: बर्लिन, जर्मनी।

विशेषता: यूरोप में स्थित यह मंदिर अपनी शांतिपूर्ण पूजा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है। यहां गणेश जी की मूर्ति ग्रेनाइट की है।

गणेश टोक

स्थान: गंगटोक, सिक्किम (लेकिन अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में नेपाल-सीमा निकट)।

विशेषता: पहाड़ी पर स्थित, यह मंदिर दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि मुख्य रूप से भारत में, यह नेपाल के प्रभाव से जुड़ा है।

श्री गणेश मंदिर

स्थान: टोरंटो, कनाडा।

विशेषता: कनाडा का प्रमुख गणेश मंदिर, जहां उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय परंपराओं का मिश्रण है। गणेश चतुर्थी पर विशेष जुलूस निकलता है।

बेकासी, इंडोनेशिया में स्थित पुरा अगुंग तिर्ता भुवाना मंदिर की एक आकर्षक तस्वीर।

पुरा अगुंग तिर्ता भुवाना

स्थान: बेकासी, इंडोनेशिया।

विशेषता: इंडोनेशिया का हिंदू-बाली प्रभावित मंदिर, जहां गणेश जी को विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है। यहां की मूर्तियां प्राचीन जावानीज शैली की हैं।

श्री गणेश टेम्पल ऑफ अलास्का

स्थान: एंकोरेज, अलास्का, संयुक्त राज्य अमेरिका।

विशेषता: ठंडे मौसम में स्थित यह मंदिर उत्तरी अमेरिका का अनोखा गणेश स्थल है, जहां सर्दियों में विशेष पूजा होती है।

ये मंदिर गणेश जी की वैश्विक भक्ति का प्रमाण हैं। यदि आप किसी मंदिर की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो स्थानीय नियमों और समय की जांच करें। गणपति बप्पा मोरया

डिस्क्लेमर 

इस ब्लॉग में दी गई गणेश चतुर्थी 2025 की जानकारी पौराणिक ग्रंथों, पंचांग, ज्योतिषीय गणनाओं और सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित है। हमारी कोशिश है कि आपको इस पवित्र पर्व की संपूर्ण और रोचक जानकारी मिले। हालांकि, तिथियों, मुहूर्तों और पूजा विधियों की सटीकता की गारंटी नहीं ली जा सकती, क्योंकि ये विभिन्न स्रोतों और क्षेत्रीय परंपराओं पर निर्भर करते हैं। हमारा उद्देश्य केवल सूचना और भक्ति-भाव को बढ़ावा देना है। पूजा, व्रत या अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए अपने स्थानीय पंडित या धर्माचार्य से सलाह लें। इस जानकारी के उपयोग की जिम्मेदारी पूर्णतः पाठक की है। गणेश चतुर्थी के इस पावन अवसर पर हम कामना करते हैं कि विघ्नहर्ता गणपति आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाएं। गणपति बप्पा मोरया!


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