टुसू पर्व 2026: जानिए इतिहास, पौराणिक कथा, गीत, पूजा-विधि, आधुनिक रूप और सांस्कृतिक महत्व।

क्या आप जानते हैं टुसू पर्व में किस देवी-देवता की पूजा होती है? पूजा करने से क्या मिलेगा फल? पूजा में गलती होने पर कौन सा मिलेगा दुष्परिणाम? पढ़ें दो पौराणिक कथा? कब से हो रही है यह पूजा ? सहित अन्य जानकारियां पढ़ें मेरे ब्लॉग से।

" नीचे दिए गए टुसू पर्व से संबंधित  विषयों के संबंध में पढ़ें विस्तार से"।

*टुसू पर्व 2026

*टुसू पर्व की पूजा विधि

*टुसू पर्व की कथा

*टुसू पर्व का महत्व

*Tusu Parab 2026

*Tusu Festival India

*Tusu Puja Story

*टुसू गीत और परंपरा

*टुसू पर्व और सूर्य से संबंध 

*कुंवारी लड़कियां ही पुजती है टुसू माई को

*एक माह चलती है यह त्योहार 

*टुसू पर्व का संस्कृत, समाजिक, वैज्ञानिक और पौराणिक जानकारी 

*टुसू पर्व के दिन क्या करें और क्या न करें

"टुसू पर्व 2026 की 14 जनवरी दिन बुधवार के पौष मास, कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को मनेगा"

"टुसू उत्सव झारखंड, पश्चिमी बंगाल, असम और ओडिशा के आदिवासी समुदाय के लोगों का एक प्रमुख फसल पर्व है, जो पौष महीने के कृष्ण पक्ष एकादशी के दिन मनेगा। 14 जनवरी 2026, दिन बुधवार को मकर संक्रांति के दिन टुसू पर्व है"। 

Tusu festival

✨ आदिवासी आस्था और संस्कृति का अद्भुत संगम – टुसू पर्व 2026 में श्रद्धालु टुसू माता की भव्य प्रतिमा के समक्ष पूजा-अर्चना करते हुए। 🙏

टुसू पर्व का त्यौहार मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों द्वारा मनाया जाता है। जो प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और अपनी संस्कृति को दर्शाते हैं. इस पर्व पर पारंपरिक गीत गाए जाते हैं, नृत्य किए जाते हैं और विशेष प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। 

भारत विविधताओं का देश है। यहां की सांस्कृतिक धरोहर केवल मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां की मिट्टी में लोकजीवन की खुशबू, खेत-खलिहानों का संगीत और आदिवासी परंपराओं की अमर गूंज सुनाई देती है। आदिवासी समाज ने प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करते हुए अनेक पर्वों और त्यौहारों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक है — टुसू पर्व, जिसे झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम के आदिवासी समुदाय विशेष उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाते हैं।

टुसू पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जीवन, प्रेम, संघर्ष और स्त्री-शक्ति की गाथा है। यह पर्व कृषि और प्रकृति से जुड़ा हुआ है, जिसमें धान की नई फसल के आगमन की खुशी, समाज की एकजुटता और लोकजीवन की मिठास झलकती है।

"टुसू पर्व की उत्पत्ति और इतिहास"

टुसू पर्व की उत्पत्ति सीधे तौर पर कृषि से जुड़ी मानी जाती है। जब खेतों में धान की फसल पक जाती है और किसान उसकी कटाई-गहाई पूरी कर लेते हैं, तब घर-घर में खुशियां आती हैं। यह पर्व फसल का उत्सव है, जो ग्रामीण जीवन की मेहनत और समर्पण को दर्शाता है।

इतिहासकार मानते हैं कि टुसू पर्व का संबंध सूर्य उपासना और उर्वरता की पूजा से भी है। चूंकि यह पर्व मुख्य रूप से माघ संक्रांति (जनवरी) के आस-पास मनाया जाता है, इसलिए इसे संक्रांति पर्व से भी जोड़ा जाता है।

टुसू पर्व का उल्लेख सदियों पुराना है। यह आदिवासी समाज में केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन के रूप में भी उभरा। इस पर्व में महिलाओं की प्रमुख भूमिका इसे और भी अनोखा बनाती है।

"टुसू पर्व की धार्मिक-सांस्कृतिक महत्ता"

टुसू पर्व आदिवासी जीवन में गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से जुड़ा है।

  • इसे मुख्य रूप से अविवाहित कन्याएं मनाती हैं, जो टुसू देवी की पूजा कर अच्छा वर और सुखी जीवन की कामना करती हैं।
  • यह पर्व सामूहिकता और भाईचारे का प्रतीक है। गांव के लोग मिलकर टुसू चौदल सजाते हैं और गीत-नृत्य के माध्यम से इसे पूरे गांव का उत्सव बना देते हैं।
  • इसमें स्त्री शक्ति और स्त्री स्वतंत्रता का विशेष संदेश छुपा है।
Tusu festival

"टुसू पर्व की तैयारी"

टुसू पर्व के लिए विशेष तैयारियां की जाती हैं:

  • दिनिमाई (धान की ढेरी) खेत से घर लाकर इसे पूजा का अंग बनाया जाता है।
  • घर की महिलाएं और कन्याएं मिट्टी, बांस और कागज़ से कुलुंगी (मंच/मंदिर नुमा ढांचा) बनाती हैं, जिसमें टुसू देवी की मूर्ति स्थापित की जाती है।
  • चौदल नामक सजावट की जाती है, जिसमें रंगीन कागज, कपड़े और आभूषणों से टुसू को सजाया जाता है।
  • हर शाम टुसू गीत गाए जाते हैं और नृत्य होता है।
  • पर्व के अंतिम दिन विसर्जन किया जाता है, जिसमें पूरे गाँव की महिलाएं और कन्याएं शामिल होती हैं।

"टुसू पर्व की पौराणिक कथा"

टुसू पर्व की पौराणिक कथा इसे सबसे खास बनाती है। यह कथा स्त्री-शक्ति, साहस और त्याग की गाथा है।

टुसू नामक कन्या की गाथा

बहुत समय पहले की बात है। एक राज्य में एक अत्याचारी राजा राज करता था। वह प्रजा पर कठोर कर लगाता और विशेषकर गरीब किसानों और आदिवासी समुदाय से अत्यधिक उपज और धन की मांग करता। जो लोग उसका विरोध करते, उन्हें दंडित किया जाता।

इसी राज्य में एक अत्यंत सुंदर, गुणी और साहसी कन्या रहती थी, जिसका नाम था टुसू। टुसू गरीब परिवार से थी, लेकिन उसका हृदय बेहद साहसी और विद्रोही था। वह अपने गीतों के माध्यम से राजा की नीतियों का विरोध करती और जनता को जागरूक करती।

Tusu festival

"राजदरबार की चमक और सत्ता के गुरूर के सामने, उसकी सादगी और शांत आवाज़ ने हर किसी को खामोश कर दिया।"

राजा ने जब सुना कि टुसू नामक कन्या उसके खिलाफ गीत गा रही है और लोगों को संगठित कर रही है, तो उसने उसे पकड़ने का आदेश दिया। सैनिकों ने टुसू को गिरफ्तार कर दरबार में पेश किया।

राजा ने कहा —

"हे कन्या, तू मेरे खिलाफ जनता को भड़का रही है। तुझे दंड मिलना ही चाहिए।"

टुसू ने निर्भीक होकर उत्तर दिया —

"राजन, मैं केवल सत्य कह रही हूं। जब जनता भूखी मर रही है, तो तेरी ऐश्वर्य की क्या कीमत है? मैं अन्याय का विरोध करती रहूंगी।"

राजा क्रोधित हुआ और आदेश दिया कि उसे दंड दिया जाए।

"टुसू का विद्रोह और बलिदान"

टुसू को नदी किनारे ले जाया गया। वहां जनता भी एकत्र हो गई। सब चाहते थे कि टुसू को बचा लें, लेकिन राजा की सेना बहुत मजबूत थी।

टुसू ने जनता से कहा:

"तुम सब डरना मत। मेरा जीवन बलिदान होगा, लेकिन यह बलिदान तुम्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देगा। जब तक तुम्हारे खेतों में धान उगेगा, जब तक तुम गीत गाओगे, तब तक मेरा नाम अमर रहेगा।" यह कहकर टुसू ने स्वयं जल-समाधि ले ली।

🌸 "टुसू माता की दूसरी पौराणिक कथा"

बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव में एक गरीब किसान परिवार रहता था। परिवार के पास थोड़ी-सी ज़मीन थी, लेकिन वर्षा न होने के कारण खेती सूख जाती थी। घर में भूख और दुख का वातावरण बना रहता था। किसान की एक बेटी थी – टुसू, जो बहुत ही भक्तिभाव से मां दुर्गा की पूजा करती थी।

टुसू प्रतिदिन नदी किनारे जाती और मिट्टी से एक छोटी-सी देवी की प्रतिमा बनाकर उसे फूल और धान के नए पौधों से सजाती। वह माता से प्रार्थना करती –
"हे माता! हमारे गाँव में अन्न, वर्षा और सुख-समृद्धि हो।"

धीरे-धीरे गांव की अन्य कन्याएं भी टुसू के साथ पूजा करने लगीं। सब मिलकर लोकगीत गातीं और माता की आराधना करतीं। कहते हैं कि टुसू की सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने गांव में वर्षा कराई और खेतों में लहलहाती फसलें उग आईं।

लेकिन भाग्य का खेल ऐसा था कि एक दिन टुसू नदी में स्नान करने गई और अचानक तेज़ बहाव में डूब गई। गांव वाले स्तब्ध रह गए। सबने माना कि टुसू अब स्वयं देवी रूप में परिवर्तित हो गई है। उस दिन से हर वर्ष पौष महीने की आख़िरी रात, लोग टुसू माता की पूजा और विसर्जन करने लगे।

गांव के लोग मानते हैं कि जिस घर में श्रद्धा से टुसू माता की पूजा होती है, वहां अन्न-धान्य, धन और सुख-शांति कभी कम नहीं होती।

🌿 "क्या है लोक मान्यताएं" 

टुसू माता विशेषकर आदिवासी समाज और ग्रामीण क्षेत्रों में फसल और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं।

उनकी पूजा के समय लोकगीत गाए जाते हैं और झूमर-नृत्य होता है।

विसर्जन के समय लोग कहते हैं –
“टुसू जाएगी ससुराल, सुख-समृद्धि छोड़ जाएगी मायकेवालों के द्वार।”

"कथा का प्रतीकात्मक महत्व"

  • टुसू कन्या का बलिदान स्त्री साहस और विद्रोह का प्रतीक है।
  • उसका जल-समाधि लेना यह संदेश देता है कि सत्य और न्याय के लिए प्राण भी न्यौछावर किए जा सकते हैं।
  • यही कारण है कि आदिवासी समाज ने टुसू को देवी का दर्जा दिया और हर साल इस पर्व को उसकी स्मृति में मनाया।

🌾 "टुसू पर्व: एक माह लंबा अनुष्ठान और कुमारी कन्याओं का महत्व"

✨ "एक माह पूर्व से प्रारंभ होने वाली पूजा"

टुसू पर्व केवल मकर संक्रांति के दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि इसकी शुरुआत एक माह पहले ही हो जाती है। यह समय धान कटाई के बाद का होता है, जब गाँवों में फसल घर आ चुकी होती है और लोग प्रसन्नता से देवी का धन्यवाद करने की तैयारी करते हैं।

प्रारंभिक पूजन: अगहन माह (नवंबर–दिसंबर) के अंत से ही गाँव की कुमारी कन्याएं छोटे-छोटे गीत गाकर और मिट्टी के छोटे दीप जलाकर देवी टुसू का आह्वान करती हैं।

दैनिक अनुष्ठान: हर दिन संध्या समय वे देवी के सामने दीपक जलाती हैं, ताजा धान की बालियां अर्पित करती हैं और टुसू गीत गाती हैं।

गीत और चौपाल: गांव के चौक या चौपाल में बैठकर कन्याएँ देवी की स्तुति करती हैं और सामाजिक घटनाओं को गीतों के माध्यम से व्यक्त करती हैं।

साप्ताहिक पर्व: हर सप्ताह विशेष पूजा होती है, जिसमें चावल, हल्दी, फूल और नए अनाज से देवी का श्रृंगार किया जाता है।

पूरे माह यह क्रम चलता है और अंततः मकर संक्रांति के दिन विसर्जन और मेले के साथ इसका समापन होता है।

🌸 "क्यों करती हैं केवल कुमारी कन्याएं पूजा?

टुसू पर्व का सबसे रहस्यमय और विशिष्ट पक्ष यही है कि इसकी पूजा मुख्य रूप से अविवाहित कन्याएं करती हैं। इसके पीछे कुछ प्रमुख मान्यताएं हैं:

01. पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक: कुमारी कन्याओं को समाज में निष्कलंक और पवित्र माना जाता है। देवी टुसू भी कन्याओं का ही स्वरूप मानी जाती हैं, इसलिए उन्हीं के हाथों से पूजा अधिक फलदायी मानी जाती है।

02. विवाह और समृद्धि की कामना: मान्यता है कि जो कन्या पूरी श्रद्धा से टुसू माता की पूजा करती है, उसे उत्तम वर और सुखी वैवाहिक जीवन प्राप्त होता है। इसलिए यह पर्व युवतियों की आशाओं और भविष्य से भी जुड़ा है।

03. स्त्री-शक्ति का सम्मान: टुसू पर्व स्त्री-शक्ति की अभिव्यक्ति है। इसमें यह संदेश छिपा है कि स्त्री ही जीवनदायिनी और समाज को पोषित करने वाली शक्ति है।

 "टुसू पर्व की पूजा-विधि, परंपरा और शुभ मुहूर्त" 

✨ "टुसू पर्व का महत्व"

टुसू पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत—झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम के ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों में मनाया जाने वाला धान कटाई और फसल उत्सव है। यह पर्व विशेषकर मकर संक्रांति के आसपास मनाया जाता है। टुसू माता को फसल और समृद्धि की देवी माना जाता है। यह पर्व अविवाहित कन्याओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि वे ही टुसू की पूजा और गीतों का संचालन करती हैं।

🌸 "टुसू पर्व की तैयारी क्या है प्रारंभिक चरण" 

धान की नई फसल खेत से लाकर घर के आंगन या पंडाल में स्थापित की जाती है।

टुसू माता की प्रतिमा या मूर्ति मिट्टी, कागज और लकड़ी से बनाकर उसे फूल, कपड़े और गहनों से सजाया जाता है।

प्रतिमा को रखने के लिए कुलुंगी (बांस, घास और कपड़े से बनी टोकरीनुमा संरचना) तैयार की जाती है।

घर और चौपाल में गीत, नृत्य और सजावट का आयोजन होता है।

🪔 "पूजा-विधि"

1. सुबह स्नान कर महिलाएं और कन्याएं स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं।

2. टुसू माता की मूर्ति को कुलुंगी में स्थापित कर फूल, हल्दी, चावल, धान की बाली और दीप अर्पित किए जाते हैं।

3. अर्घ्य देने की परंपरा है—जिसमें जल और दूध से देवी का पूजन होता है।

4. पूजा के दौरान पारंपरिक टुसू गीत गाए जाते हैं, जिनमें देवी की महिमा, फसल की खुशी और सामाजिक संदेश छिपे होते हैं।

5. गांव की महिलाएं सामूहिक रूप से देवी के सामने नृत्य और भजन करती हैं।

6. पूजा का मुख्य आकर्षण होता है—संध्या आरती और सामूहिक भोजन (धान, दही और चूड़ा)।

🎉 "विसर्जन की परंपरा"

मकर संक्रांति के दिन या दूसरे दिन टुसू माता की मूर्ति को नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है। विसर्जन यात्रा में ढोल-नगाड़े, गीत और नृत्य होते हैं। इसे “टुसू परब विसर्जन” कहा जाता है।

🕉️ "शुभ मुहूर्त"

टुसू पर्व चूंकि मकर संक्रांति से जुड़ा है, इसलिए इसका शुभ समय सूर्य के उत्तरायण होने के बाद का माना जाता है। जानें विस्तार से।

टुसू पर्व 14 जनवरी 2026 दिन बुधवार के पौष मास, कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को मनेगा। इस दिन सूर्य धनु राशि से 3:13 के बाद मकर राशि में प्रवेश करेंगे चंद्रमा की वृश्चिक है। सूर्योदय सुबह 6:28 बजे और सूर्यास्त 5:21 बजे होगा। इस दिन नक्षत्र अनुराधा, योग गण्ड और करण बालव रहेगा। इस दिन अमृत काल, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का त्रिलोकी संयोग मिल रहा है।

Tusu festival

"टुसू पर्व 2026: जानिए शुभ और अशुभ मुहूर्त – सही समय पर किए गए कार्य बनते सफल, गलत समय पर हो सकते हैं विघ्नकारी।"

"अब जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त" 

टुसू पर्व के दिन अभिजीत मुहूर्त नहीं हैविजय मुहूर्त दोपहर के 01:45 बजे से लेकर 02:27 बजे तक और गोधूलि मुहूर्त 05:18 बजे से लेकर 05:45 बजे तक रहेगा।

"अब जानें चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त" 

चौघड़िया पंचांग के अनुसार टुसू पर्व दिन शुभ मुहूर्त 06:28 बजे से लेकर 07:50 बजे में तक लाभ मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार अमृत मुहूर्त 07:50 बजे से लेकर 09:11 बजे तक, शुभ मुहूर्त 10: 33 बजे से लेकर 11:54 बजे तक, चर मुहूर्त दोपहर 02:38 बजे से लेकर 03:59 बजे तक, लाभ मुहूर्त 03:59 बजे से लेकर 05:21 बजे बजे तक, शुभ मुहूर्त शाम 06:59 बजे से लेकर 08:38 बजे तक और अमृत मुहूर्त रात 8:38 बजे से लेकर 10:10 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप टुसू माता की आराधना और पूजा-पाठ अपने सुविधा अनुसार कर सकते हैं।

"पुण्यकाल: प्रातः 07:15 बजे से दोपहर 12:25 बजे तक"

"महापुण्य काल (स्नान-दान का समय): सुबह 07:50 से 09:11 बजे तक"

इसी समय टुसू माता की पूजा और अर्घ्य अर्पण करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

🌸 "टुसू पादप पर क्या करें"

टुसू माता की पूजा करें और गीत गाएँ।

धान, तिल, गुड़ आदि अर्पित करें।

व्रत व उपवास करें और घर-परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करें।

सामूहिक रूप से टुसू गीत गाकर उत्सव मनाएँ।

आदिवासी परंपरा अनुसार प्रतिमा या पादप का विसर्जन करें।

🚫" टुसू पादप पर क्या न करें"

झूठ, छल-कपट और कटु वचन न बोलें।

मांस, मदिरा और नशे का सेवन न करें।

व्रत या पूजा में लापरवाही न बरतें।

परंपरागत गीत और रीति-रिवाज का अपमान न करें।

आपसी विवाद और कलह से बचें।

"अब जानें की कब टुसू पर्व का शुभारंभ होगा" 

"15 दिसंबर 2025 दिन सोमवार माघ कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि के दिन टुसू पर्व का शुभारंभ होगा। उसे दिन नक्षत्र चित्रा, योग शोभन और करण बव रहेगा। सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा तुला राशि गोचर करेंगे। इस दिन अभिजीत मुहूर्त 11:19 बजे से लेकर 12:02 बजे तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त में पूजा शुभारंभ करना काफी अच्छा और पंचांग संवत होगा"।

"आज भी टुसू गीतों में यह कथा गाई जाती है"

  • अत्याचार के खिलाफ विद्रोह का संदेश
  • स्त्री की स्वतंत्रता और शक्ति का गुणगान
  • समाज में न्याय और समानता की पुकार

"टुसू गीत और लोकसाहित्य"

टुसू पर्व का सबसे आकर्षक पक्ष है इसके गीत।

  • ये गीत सामूहिक रूप से गाए जाते हैं।
  • इनमें प्रेम, दुख, सामाजिक अन्याय और विद्रोह की झलक मिलती है।
  • कई गीतों में विवाह की कामना और स्त्री जीवन की पीड़ा भी प्रकट होती है।
  • आधुनिक समय में इन गीतों में सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को भी शामिल किया जाता है।

"टुसू पर्व और स्त्री शक्ति"

टुसू पर्व स्त्री शक्ति का प्रतीक है।

  • इसमें अविवाहित कन्याएं केंद्र में होती हैं।
  • पूजा और विसर्जन की सारी प्रक्रिया स्त्रियों के नेतृत्व में होती है।
  • यह पर्व स्त्रियों को सामूहिकता और नेतृत्व का अवसर देता है।

"टुसू पर्व और सूर्य का गहरा संबंध"

टुसू पर्व, जिसे मुख्य रूप से एक फसल उत्सव के रूप में जाना जाता है, का सूर्य देव के साथ एक गहरा और अटूट संबंध है। यह संबंध केवल धार्मिक या पौराणिक नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक, कृषि और प्रतीकात्मक महत्व भी है। यह त्योहार पौष माह के अंतिम दिन, यानी मकर संक्रांति को समाप्त होता है, जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का प्रतीक है। यही कारण है कि टुसू को 'मकर पर्व' भी कहा जाता है। यह पर्व प्राचीन लोगों की प्रकृति, विशेष रूप से सूर्य की शक्ति, के प्रति समझ और सम्मान को दर्शाता है
Tusu festival

"सूर्य पूजा का महत्व"

मकर संक्रांति, जिसे टुसू पर्व के अंतिम दिन के रूप में भी मनाया जाता है, पूरे भारत में सूर्य देव को समर्पित एक प्रमुख त्योहार है। इस दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यह घटना उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक है, जब सूर्य उत्तर की ओर गमन करना शुरू करते हैं, जिससे दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं। 

इस दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि सूर्य को जीवन, ऊर्जा और समृद्धि का दाता माना जाता है। हिंदू धर्म में, सूर्य को 'सविता' या 'जीवन का दाता' कहा गया है। यह माना जाता है कि सूर्य की किरणें न केवल फसलों को पोषण देती हैं, बल्कि हमारे जीवन में भी सकारात्मक ऊर्जा लाती हैं। मकर संक्रांति पर सूर्य पूजा करके लोग सूर्य देव के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और उनसे अच्छी फसल और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। यह पूजा इस बात का भी प्रतीक है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।

"वैज्ञानिक और कृषि महत्व"

प्राचीन सभ्यताओं के लोग, जिनमें टुसू मनाने वाले समुदाय भी शामिल हैं, सूर्य की गति और कृषि चक्र के बीच के संबंध को बखूबी समझते थे। उनके लिए, सूर्य की दिशा और शक्ति सीधे तौर पर फसलों की पैदावार से जुड़ी थी। जब सूर्य दक्षिणायन में होते हैं (जून से दिसंबर), तो दिन छोटे होते हैं और सूर्य की रोशनी कम मिलती है, जो फसलों की कटाई का समय होता है। इसके विपरीत, जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करते हैं (जनवरी से जून), तो दिन लंबे होते जाते हैं और सूर्य की किरणें अधिक शक्तिशाली होती हैं, जो नई फसलों की बुवाई और अंकुरण के लिए अनुकूल होती है।

टुसू पर्व इसी कृषि चक्र के अंत और शुरुआत को चिह्नित करता है। धान की कटाई के बाद, किसान अपने परिश्रम का फल पाते हैं और इस खुशी को मनाने के लिए टुसू का उत्सव शुरू होता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य की दिशा में बदलाव का उत्सव मनाकर, वे आगामी कृषि वर्ष के लिए भी शुभ संकेत देखते हैं। यह पर्व एक तरह से प्राचीन खगोल विज्ञान और कृषि विज्ञान का एक अनूठा संगम है, जहां लोग बिना किसी आधुनिक उपकरण के सूर्य की गति को समझकर अपने जीवन को व्यवस्थित करते थे।

"टुसू का प्रतीकात्मक अर्थ"

टुसू को सिर्फ एक देवी या एक फसल का ढेर नहीं माना जाता, बल्कि इसे जीवन और समृद्धि का अग्रदूत माना जाता है। यह प्रतीकात्मकता कई अनुष्ठानों में देखी जाती है। टुसू के विसर्जन का अनुष्ठान इस प्रतीकात्मकता को सबसे स्पष्ट रूप से दर्शाता है। अविवाहित लड़कियों द्वारा टुसू को नदी या तालाब में विसर्जित करना, एक नवविवाहित लड़की के अपने मायके से ससुराल जाने के समान है।

यह प्रतीकात्मकता टुसू गीतों में भी स्पष्ट होती है। एक प्रसिद्ध टुसू गीत कहता है, "जले हेल, जले खेल, जले तोमार के आछे? / मनेते बुझिए देखो जले स्वसुरघर आछे"। इसका अर्थ है, "तुम जल में आनंदित हो; तुम जल में खेल रहे हो, जल में तुम्हारा कौन है? अपने मन में स्वयं से पूछो, जल ही वैवाहिक परिवार है।" 

जल का यहाँ अत्यधिक महत्व है। जैसे एक विवाहित लड़की अपने ससुराल में पति के साथ मिलकर एक नया जीवन शुरू करती है, उसी तरह अनाज के दाने भी पानी में मिलकर ही अंकुरित होते हैं और जीवन को जन्म देते हैं। टुसू को जल में अर्पित करने का अर्थ है जीवन के स्रोत, जल, को फसल का बीज अर्पित करना, ताकि आने वाले समय में भी समृद्धि बनी रहे। यह दर्शाता है कि जीवन की निरंतरता के लिए पानी कितना महत्वपूर्ण है, जो अंततः खेती और अस्तित्व के लिए सबसे आवश्यक तत्व है।

"टुसू शब्द की व्युत्पत्ति"

टुसू शब्द की उत्पत्ति के संबंध में कई मत हैं, लेकिन एक प्रमुख मत इसे सूर्य से जोड़ता है। इस मत के अनुसार, 'टुसू' शब्द दो कुर्माली शब्दों 'तुई' और 'सु' के मेल से बना है।
तुई: इसका अर्थ है 'सूर्य का सर्वोच्च स्थान'। यह सूर्य की उस शक्ति और ऊचाई को दर्शाता है जो फसलों को पकने और जीवन को फलने-फूलने में मदद करती है।

सु: इसका अर्थ है 'सूर्य'। यह सीधे तौर पर सूर्य देव को संदर्भित करता है।

इस व्युत्पत्ति के अनुसार, टुसू का अर्थ है 'सूर्य का अंतिम या सर्वोच्च स्थान'। यह सीधे तौर पर मकर संक्रांति के दिन सूर्य की स्थिति से जुड़ा है, जब वह अपनी दिशा बदलता है। यह दर्शाता है कि टुसू पर्व वास्तव में सूर्य की महिमा का उत्सव है, जिसे कृषि और जीवन के साथ जोड़कर मनाया जाता है। यह नामकरण टुसू और सूर्य के बीच के गहरे और प्रतीकात्मक संबंध को पुष्ट करता है, जो इस त्योहार के हर पहलू में निहित है।

"टुसू पर्व का आधुनिक रूप"

आज टुसू पर्व गांव-गांव ही नहीं, बल्कि कस्बों और शहरों में भी मनाया जाता है।

  • टुसू मेले लगते हैं, जहां चौदल सजावट की प्रतियोगिताएं होती हैं।
  • लोकनृत्य, लोकगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  • यह पर्व अब पर्यटन का भी हिस्सा बनने लगा है।

"टुसू पर्व और आर्थिक पक्ष"

  • टुसू मेला ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देता है।
  • हस्तशिल्प, लोककला और ग्रामीण उत्पादों की बिक्री होती है।
  • स्थानीय कलाकारों को मंच मिलता है।

"टुसू पर्व की चुनौतियां और भविष्य"

  • शहरीकरण और आधुनिकता के कारण नई पीढ़ी लोकगीत और परंपरा से दूर होती जा रही है।
  • लेकिन सांस्कृतिक संस्थाएं इसे संरक्षित करने का प्रयास कर रही हैं।
  • डिजिटल माध्यमों पर भी टुसू गीत और चौदल सजावट की झलक मिलती है।

"निष्कर्ष"

टुसू पर्व केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि यह आदिवासी समाज का सांस्कृतिक आंदोलन है। यह स्त्री शक्ति, कृषि संस्कृति, सामूहिकता और विद्रोह का प्रतीक है।
इस पर्व की गूंज हमें यह संदेश देती है कि अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना ही जीवन का असली धर्म है।

🌾 टुसू पर्व "डिस्क्लेमर" 

यह लेख/ब्लॉग टुसू पर्व से जुड़ी धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं की जानकारी साझा करने के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है। टुसू पर्व झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों की आदिवासी एवं ग्रामीण संस्कृति का प्रमुख फसल उत्सव है। इसमें वर्णित मान्यताएं, पौराणिक कथाएं, पूजा-विधि, लोकगीत और परंपराएं स्थानीय लोकजीवन और लोककथाओं पर आधारित हैं। इनका उद्देश्य केवल पाठकों को टुसू पर्व 2026 की महत्ता और सांस्कृतिक महत्व से अवगत कराना है।

इस ब्लॉग में दी गई जानकारी का पालन करना या न करना पूर्णतः पाठकों की व्यक्तिगत आस्था और विश्वास पर निर्भर करता है। यहां दी गई सामग्री किसी भी प्रकार की धार्मिक बाध्यता या व्यक्तिगत मत थोपने के लिए नहीं है। हमारा प्रयास केवल इस पर्व की लोक सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और प्रसारित करना है।



एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने