"Padmini Ekadashi 2026 पद्मिनी एकादशी: शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और पौराणिक कथा का विस्तृत विवरण"

"27 मई 2026, दिन बुधवार पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली पद्मिनी एकादशी का महत्व, संपूर्ण पूजा विधि, व्रत कथा और शुभ मुहूर्त जानें। इस दुर्लभ एकादशी व्रत से प्राप्त करें भगवान विष्णु की कृपा। पद्मिनी एकादशी 2026: दुर्लभ व्रत, अनंत फल और संपूर्ण पूजन विधि"

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"शांत और सौम्य भगवान विष्णु की दिव्य छवि – पद्मिनी एकादशी 2026 का पावन संदेश"

"साल में 24 एकादशी होती हैं, पर हर तीन साल में एक बार जब अधिक मास आता है, तब दो अतिरिक्त एकादशियां मनाई जाती हैं। इनमें से एक है पद्मिनी एकादशी, जिसे कमला एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और पुरुषोत्तम मास में पड़ने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।" 

"इस वर्ष, 27 मई 2026 को यह दुर्लभ एकादशी आ रही है। इस ब्लॉग में हम पद्मिनी एकादशी के महत्व, पूजा की संपूर्ण विधि, व्रत के लाभ और एक विस्तृत पौराणिक कथा के बारे में जानेंगे। नीचे दिए गए विषयों पर विस्तार से पढ़ें हमारे ब्लॉग पर।"

*पद्मिनी एकादशी 2026

*पद्मिनी एकादशी का महत्व

*कमला एकादशी

*पुरुषोत्तम मास एकादशी

*पद्मिनी एकादशी पूजा विधि

*एकादशी व्रत कथा

*27 मई 2026

*अधिक मास एकादशी

*कृतवीर्य और पद्मिनी की कथा

*पद्मिनी एकादशी के लाभ

*एकादशी व्रत संकल्प विधि

*पद्मिनी एकादशी 2026: शुभ मुहूर्त

"पद्मिनी एकादशी का व्रत 27 मई 2026 को रखा जाएगा, और इसका पारण द्वादशी तिथि के दिन किया जाएगा।"

"एकादशी तिथि का प्रारंभ: 26 मई 2026, मंगलवार को सुबह 05:10 बजे"

"एकादशी तिथि का समापन: 27 मई 2026, बुधवार को सुबह 06:21 बजे"

"27 मई को सुबह 05:01 बजे पर सूर्य उदय होगा। सूर्योदय के बाद तक एकादशी तिथि रहने के कारण पद्मिनी एकादशी 27 मई दिन बुधवार को होगा"।

"पारण का समय: 28 मई 2026, बुधवार को सुबह 05:22 बजे से सुबह 08:08 बजे तक"

जानें चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त 

एकादशी व्रत में चारों पर पूजा करने का विधान है। जानें किस समय में कौन सा है शुभ मुहूर्त।

पदमा एकादशी के दिन अभिजीत मुहूर्त नहीं है। 

पद्मिनी एकादशी के दिन पंचांग के अनुसार विजय मुहूर्त दोपहर 1:56 से लेकर 2:50 तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 6:30 से लेकर 6:44 तक, निशिता मुहूर्त रात 11:21 से लेकर 12:04 तक और ब्रह्म मुहूर्त सुबह 3:26 से लेकर 4:18 तक रहेगा।

चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त

पद्मिनी एकादशी के दिन लाभ मुहूर्त सुबह 5:01 से लेकर 6:41 तक अमृत मुहूर्त 6:41 से लेकर 8:22 मिनट तक शुभ मुहूर्त 10:02 से लेकर 11:43 तक चार मुहूर्त शाम 3:30 से लेकर 4:44 तक लाभ मुहूर्त शाम 4:44 से लेकर 6:24 तक चार मुहूर्त रात्रि 10:30 से लेकर 11:22 तक और शुभ मुहूर्त दूसरे दिन सुबह 5:01 से लेकर 6:41 तक रहेगा।

आप अपने सुविधा अनुसार शुभ मुहूर्त देखकर भगवान श्री हरि विष्णु कि चारों पहर की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

"पद्मिनी एकादशी का महत्व"

"पद्मिनी एकादशी का पर्व अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस व्रत को सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ करता है, उसे भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। शास्त्रों में इस व्रत को बहुत ही प्रभावशाली माना गया है।"

"चूंकि यह व्रत पुरुषोत्तम मास में किया जाता है, इसलिए इसका फल सामान्य एकादशी से कई गुना अधिक होता है। ऐसा माना जाता है कि इस एक व्रत को करने से मनुष्य को पूरे वर्ष की 24 एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। यह व्रत जीवन की सभी समस्याओं को दूर करने और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक माना जाता है।"

"पद्मिनी एकादशी पूजन विधि"

"पद्मिनी एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है। दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी का व्रत करने के लिए दशमी तिथि की रात्रि को भूमि पर ही शयन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।"

"एकादशी के दिन की तैयारी"

ब्रह्म मुहूर्त में उठें: एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त हों।

स्नान करें: स्नान करने के लिए जल में गंगाजल, तिल और आंवला मिलाकर स्नान करें।

स्वच्छ वस्त्र धारण करें: स्नान के बाद स्वच्छ और पीले रंग के वस्त्र पहनें।

"पूजा की स्थापना"

चौकी तैयार करें: अपने घर के पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। अपने सामने एक लकड़ी की चौकी रखें। इस पर गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध करें।

आसन बिछाएं: चौकी पर एक पीले रंग का वस्त्र बिछाएं और उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं।

भगवान विष्णु की स्थापना: अब स्वास्तिक के ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।

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"रंगीन बल्बों की जगमगाती रोशनी में सजा एक शांत पूजा घर, जहां भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने दीपक, ताजे फूल, तुलसी दल, फल और मिठाइयां रखी हैं। यह दृश्य भक्ति और आस्था का प्रतीक है।

"संकल्प लेने की विधि"

पूजा शुरू करने से पहले संकल्प लेना बहुत आवश्यक है। संकल्प लेने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।

हाथ में थोड़ा सा जल, चावल और एक फूल लें।

भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए मन ही मन बोलें: "हे भगवान विष्णु, मैं (अपना नाम) आज पद्मिनी एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा के साथ करने का संकल्प लेता/लेती हूँ। मैं यह व्रत आपकी कृपा और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए कर रहा/रही हूँ। कृपया मेरे इस व्रत को स्वीकार करें।"

संकल्प बोलने के बाद हाथ में लिया हुआ जल, चावल और फूल भगवान के चरणों में अर्पित कर दें।

"पूजा विधि"

भगवान विष्णु के सामने गाय के घी का दीपक जलाएं।

उन्हें फूलों की माला, पीले फूल, पीला चंदन और तुलसी दल अर्पित करें।

धूप और अगरबत्ती जलाएं।

अब भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें, जैसे "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"।

विष्णु चालीसा, स्तुति, स्रोत और पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें।

पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें।

"रात्रि जागरण"

पद्मिनी एकादशी के दिन रात्रि में जागरण करने का विशेष महत्व है। इस दौरान भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें, उनकी स्तुति गाएं और कथाएं सुनें।

चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त 

"पारण विधि"

व्रत का पारण द्वादशी तिथि के प्रथम प्रहर में ही करना चाहिए।

पारण के समय सबसे पहले भगवान विष्णु की पूजा करें।

ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान दें।

इसके बाद स्वयं व्रत का पारण करें।

"पद्मिनी एकादशी व्रत के लाभ"

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पद्मिनी एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं:

विष्णु लोक की प्राप्ति: इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के धाम यानी वैकुंठ लोक में स्थान मिलता है।

समस्याओं का निवारण: यह व्रत जीवन की सभी बाधाओं और समस्याओं को दूर करने में सहायक है।

महापुण्य की प्राप्ति: माना जाता है कि इस एक व्रत से मनुष्य को सभी प्रकार के यज्ञों और तपस्याओं के समान फल मिलता है।

सर्वोत्तम फल: पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है, क्योंकि यह अधिक मास में आती है।

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"एक शांत जंगल में नदी किनारे ध्यानमग्न बैठा एक भक्त। उसके चेहरे पर शांति का भाव है, और उसने सनातनी वेशभूषा धारण कर रखी है।"

"पद्मिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा का विस्तार: राजा कृतवीर्य, रानी पद्मिनी और अधिक मास का महात्म्य"

"धर्मराज युधिष्ठिर ने जब भगवान श्रीकृष्ण से अधिक मास की एकादशी का महात्म्य पूछा, तो भगवान ने अर्जुन को बताई गई उसी पावन कथा का विस्तार करते हुए कहा", 

"हे राजन! यह कथा त्रेतायुग की है। महिष्मती पुरी में हैहय नामक वंश में कृतवीर्य नाम के एक प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनका यश चारों दिशाओं में फैला हुआ था, उनकी वीरता की गाथाएं देवताओं तक के मुख से सुनी जाती थीं।"

"उनकी प्रजा सुखी और समृद्ध थी, मानो स्वर्ग ही धरती पर उतर आया हो। परंतु, उनके राज-भवन में एक गहन पीड़ा का वास था, जो उनके सभी सुखों को ग्रहण लगा रही थी।"

"राजा कृतवीर्य की एक हज़ार परम प्रिय रानियाँ थीं, जिनमें से एक थीं इक्ष्वाकु वंश में जन्मी परम सुंदरी और पतिव्रता रानी पद्मिनी। रानी का सौंदर्य कमल के समान निर्मल था और उनका हृदय गंगा की धारा की तरह पवित्र। राजा और रानियाँ सभी सुखों से संपन्न थे, किंतु उन्हें कोई पुत्र नहीं था। एक ऐसे पुत्र का अभाव, जो उनके विशाल साम्राज्य का भार संभाल सके, राजा और रानी को भीतर ही भीतर खोखला कर रहा था।"

"वर्षों बीत गए, राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए हर संभव प्रयास किया। उन्होंने बड़े-बड़े यज्ञ करवाए, सिद्धों और ऋषि-मुनियों से आशीर्वाद लिया, वैद्य और ज्योतिषियों से परामर्श किया, देवताओं और पितरों की पूजा की, किंतु सब व्यर्थ रहा। एक विशाल राज्य होते हुए भी, उत्तराधिकारी के अभाव में, राजा का मन शून्य हो चुका था। रानियों की मुस्कान फीकी पड़ चुकी थी। विशेषकर रानी पद्मिनी, जो राजा से सर्वाधिक प्रेम करती थीं, अपने पति की पीड़ा देख-देखकर सूखती जा रही थीं।"

"एक दिन, राजा कृतवीर्य अपनी सभी रानियों के साथ राजमहल के उद्यान में बैठे थे। वसंत ऋतु का समय था, चारों ओर खिले फूलों की सुगंध और पक्षियों का कलरव मन को मोह रहा था। परंतु, राजा की दृष्टि शून्य थी। रानी पद्मिनी ने राजा के उदास चेहरे को देखा और उनके समीप आकर कोमल स्वर में कहा, 'हे नाथ! हमारे पास सब कुछ है, फिर भी आपका मुख इतना मलिन क्यों है? क्या कोई ऐसी पीड़ा है, जो आप मुझसे साझा नहीं कर सकते?'"

"राजा ने एक गहरी साँस ली और बोले, 'हे प्रिये! तुम मेरे हृदय की बात जानती हो। इस राजपाट, इस ऐश्वर्य और इन एक हजार रानियों का क्या लाभ, जब मेरे बाद इस वंश को आगे बढ़ाने वाला कोई न हो? मेरा जीवन अब व्यर्थ प्रतीत होता है। मेरे पूर्वजों का ऋण मुझ पर है और बिना पुत्र के मैं उन्हें जल भी नहीं दे पाऊंगा। मुझे लगता है कि इन सभी सुखों को त्याग कर अब मुझे वन में जाकर कठोर तपस्या करनी चाहिए। शायद भगवान की तपस्या से ही मुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान मिल सके।' यह कहकर राजा की आंखों से अश्रु बहने लगे।"

"रानी पद्मिनी ने तुरंत कहा, 'हे स्वामी! मैं आपकी अर्धांगिनी हूँ। आपके सुख में मेरा सुख और आपके दुःख में मेरा दुःख है। यदि तपस्या ही एकमात्र मार्ग है, तो मैं भी आपके साथ चलूंगी। मैं अपनी सभी सुख-सुविधाओं को छोड़कर आपके साथ आपके तप में सहभागी बनूंगी।' रानी के इन दृढ़ वचनों से राजा का मन कुछ शांत हुआ। उन्होंने अपने प्रधानमंत्री को राज्य का भार सौंपा और दोनों पति-पत्नी, राजसी वेश-भूषा का त्याग कर, सामान्य वस्त्र पहनकर, पुत्र प्राप्ति की कामना से गंधमादन पर्वत की ओर चल पड़े।"

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"अधिकार और ऐश्वर्य का त्याग कर, साधारण वेशभूषा में, राजा और रानी का वनगमन। प्रजा उन्हें भावभीनी विदाई दे रही है।"

"गंधमादन पर्वत एक अत्यंत पवित्र और रमणीय स्थान था। वहाँ की वायु में दिव्य औषधियों की सुगंध थी और हर ओर ऋषि-मुनियों की तपस्या का तेज विद्यमान था। राजा कृतवीर्य ने एक शांत कुटिया बनाई और रानी पद्मिनी के साथ घोर तपस्या में लीन हो गए। दस हजार वर्षों तक उन्होंने केवल जल और वायु पर जीवित रहकर तप किया। राजा का शरीर क्षीण हो गया, अस्थि-पंजर मात्र शेष रह गए, परंतु उनकी तपस्या में रत्ती भर भी कमी नहीं आई। रानी पद्मिनी भी अपने पति के साथ उसी प्रकार कठोर तप करती रहीं, उनकी भक्ति और निष्ठा में कोई संदेह नहीं था।"

"परंतु, दस हजार वर्ष की कठोर तपस्या के बाद भी, उनकी कामना पूरी नहीं हुई। राजा हताश होकर एक चट्टान पर बैठ गए और रानी पद्मिनी उनके पास आकर उनसे लिपट कर रोने लगीं। 'हे स्वामी! क्या हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई? क्या भगवान हमसे इतना रूष्ट हैं कि वे हमारी एक छोटी सी प्रार्थना भी नहीं सुन रहे?' रानी के इस रुदन ने राजा के हृदय को भी विचलित कर दिया। वे दोनों अत्यंत निराश हो गए।"

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एक घने जंगल में, एक वट वृक्ष के नीचे, राजा और रानी नदी के किनारे एक चटाई पर कठोर तपस्या में लीन हैं। उनके चारों ओर प्रकृति का शांत और एकांत वातावरण है, जहाँ विभिन्न जानवर और पक्षी विचरण कर रहे हैं। यह दृश्य उनके त्याग और तपस्या की गहराई को दर्शाता है

"उसी समय, त्रिलोकी में भ्रमण करती हुई सती अनसूया वहाँ से गुजरीं। अपने पतिव्रत धर्म के कारण वह अत्यंत तेजस्वी थीं। उन्होंने उस पर्वत पर एक स्त्री और पुरुष को अत्यंत दुःख में देखा और उनके पास आईं। अनसूया माता ने अपनी दिव्य दृष्टि से सब कुछ जान लिया। उन्होंने रानी पद्मिनी को सांत्वना दी और उनके आँसुओं को पोंछते हुए कहा, 'हे पतिव्रते! तुम दोनों के तप में कोई कमी नहीं है, तुम दोनों ने घोर तपस्या की है। तुम्हारी नियति ने पुत्र सुख से वंचित किया है, परंतु एक ऐसा मार्ग है जो इस नियति को भी बदल सकता है।' रानी पद्मिनी और राजा कृतवीर्य ने आश्चर्य से माता की ओर देखा। रानी ने हाथ जोड़कर कहा, 'हे माता! आप कौन हैं और ऐसा कौन सा मार्ग है, जो हमारी इस पीड़ा को समाप्त कर सकता है?'"

"माता अनुसूया ने मुस्कुराते हुए कहा, 'मैं अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया हूँ। तुम दोनों अत्यंत भाग्यशाली हो कि तुमने ऐसे समय में तपस्या की है जब पुरुषोत्तम मास आने वाला है। यह मास सभी मासों में सबसे अधिक पवित्र है। इसे मलमास या अधिक मास भी कहते हैं, क्योंकि इस मास में किए गए पुण्य कर्मों का फल अनंत गुना हो जाता है। यह मास स्वयं भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और वे इस मास में भक्तों को उनके सभी पापों से मुक्त करते हैं और उनकी हर कामना पूरी करते हैं। इस मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पद्मिनी एकादशी है, क्योंकि इसे करने से स्वयं लक्ष्मी भी प्रसन्न हो जाती हैं।'

"माता अनुसूया ने आगे कहा, 'तुम्हें इस एकादशी का व्रत करना चाहिए। इसकी विधि अत्यंत सरल है, पर इसका फल अत्यंत गहरा। दशमी के दिन से ही सात्विक आहार ग्रहण करो और एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करो। भगवान विष्णु की पूजा करो, उन्हें तुलसी दल और पीले फूल अर्पित करो।" 

"पूरे दिन निराहार रहकर व्रत करो और रात में जागरण कर भगवान के भजन और कीर्तन करो। यदि तुम यह व्रत पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करोगी, तो भगवान विष्णु तुमसे अवश्य प्रसन्न होंगे और तुम्हें मनचाहा वरदान देंगे। यह व्रत इतना प्रभावशाली है कि इसके प्रभाव से तुम एक ऐसे पुत्र को जन्म दोगी, जो तीनों लोकों में अतुल्य बलशाली होगा।'।"

"रानी पद्मिनी ने माता अनुसूया के चरणों में गिरकर उनका आभार व्यक्त किया। माता अनसूया ने उन्हें आशीर्वाद दिया और अपने मार्ग पर आगे बढ़ गईं। राजा और रानी के हृदय में एक नई आशा का संचार हुआ। वे दोनों माता के बताए मार्ग पर चलने के लिए तैयार हो गए।"

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"एक शांत कुटिया में, ऋषि माता अनुसूया अपने तेजस्वी रूप में, रानी पद्मिनी और राजा कृतवीर्य को जीवन और धर्म का गहन ज्ञान प्रदान कर रही हैं। पीछे बहती हुई नदी और घना जंगल इस दिव्य दृश्य की शांति को और बढ़ा रहा है।"

"पद्मिनी एकादशी का दिन आया। रानी पद्मिनी ने माता अनुसूया के बताए अनुसार सभी नियमों का पालन किया। दशमी की शाम से उन्होंने अन्न-जल त्याग दिया था। एकादशी के दिन, वह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र जल से स्नान करके, पीले वस्त्र धारण कर, उन्होंने भगवान विष्णु की पूजा के लिए सभी सामग्री एकत्रित की। 

"उन्होंने एक वेदी बनाई, उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित की, और उनके समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित किया। पूरी एकाग्रता और भक्ति से उन्होंने भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप किया, उनके सहस्रनाम का पाठ किया और विष्णु चालीसा का वाचन किया।"

"रानी ने पूरे दिन निराहार रहकर कठोर व्रत किया। उनके मन में केवल एक ही कामना थी - पुत्र की प्राप्ति। जब रात हुई, तो रानी ने जागरण शुरू किया। वे अपने पति के साथ बैठकर भगवान के भजन गाने लगीं। रात गहरी होती गई, लेकिन उनकी आंखों में नींद नहीं थी, केवल भक्ति का प्रकाश था। 

"वे भगवान को पुकारती रहीं, 'हे नारायण! हे लक्ष्मीपति! मुझ अभागिन पर कृपा करें। मेरी यह तपस्या सफल करें और मेरे पति की पीड़ा को दूर करें। मैं आपसे कुछ और नहीं, केवल एक पुत्र का वरदान मांगती हूँ।' रानी की हर पुकार में हृदय का पूरा प्रेम और दर्द समाया हुआ था।"

"आधी रात के बाद, जब रानी पद्मिनी भजन गा रही थीं, तभी चारों ओर एक दिव्य प्रकाश फैल गया। पर्वत की हवा में एक मधुर सुगंध भर गई, मानो स्वर्ग के पुष्प खिल उठे हों। राजा और रानी ने आंखें खोली और देखा कि उनके सामने गरुड़ पर सवार स्वयं भगवान विष्णु प्रकट हुए हैं। उनका श्यामवर्ण शरीर बादलों जैसा गहरा था, उनकी चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित थे। उनके मुख पर एक दिव्य मुस्कान थी, जो पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित कर रही थी।"

"भगवान विष्णु ने अपनी दिव्य वाणी में कहा, 'हे पद्मिनी! मैं तुम्हारी भक्ति और निष्ठा से अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुमने ऐसा व्रत किया है, जो स्वयं मेरे लिए भी दुर्लभ है। तुमने अपने पतिव्रत धर्म और पुत्र कामना के लिए इतनी कठोर तपस्या की है, कि तुम्हारा व्रत तुम्हारे और तुम्हारे पति के सभी पापों को हर चुका है। मैं तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूँ।' यह सुनकर रानी पद्मिनी और राजा कृतवीर्य की आँखों में आनंद के अश्रु आ गए। उन्होंने भगवान के चरणों में अपना शीश झुकाया और उनका आभार व्यक्त किया।"

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"दिव्य आशीर्वाद का क्षण: भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर विराजमान होकर, एक घने और शांत जंगल में बहती नदी के किनारे खड़े राजा और रानी को आशीर्वाद दे रहे हैं।"

"भगवान ने आगे कहा, 'तुम्हें ऐसा पुत्र प्राप्त होगा जो तीनों लोकों में अतुल्य बलशाली होगा। उसके समान कोई योद्धा न होगा। उसके प्रताप से तुम्हारा वंश अमर हो जाएगा।' यह कहकर भगवान विष्णु अंतर्धान हो गए। रानी पद्मिनी ने द्वादशी के दिन व्रत का पारण किया और राजा के साथ अपने राज्य की ओर लौट पड़ीं।" 

"रानी के हृदय में अपार खुशी थी। जल्द ही, रानी पद्मिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र इतना बलशाली था कि जन्म के समय ही उसके शरीर में वज्र का बल था। उसका नाम कार्तवीर्य रखा गया। वह बड़ा होकर महान योद्धा बना और उसने अपने बल से पूरे संसार को जीत लिया।"

"भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया, 'हे अर्जुन! पद्मिनी एकादशी का यह व्रत इतना शक्तिशाली है कि इसके प्रभाव से पुत्र की कामना ही नहीं, बल्कि हर तरह की इच्छा पूरी हो जाती है। यह व्रत मोक्ष का द्वार खोलता है और भक्तों को परम पद की प्राप्ति कराता है। जो भी मनुष्य इस व्रत को सच्चे हृदय से करता है, या इसकी कथा को सुनता या सुनाता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है और वह यश तथा कीर्ति प्राप्त कर अंत में मेरे लोक को प्राप्त होता है।'।"

"हे धर्मराज! इस कथा का यही सार है कि जब मनुष्य अपनी श्रद्धा और विश्वास से भगवान का स्मरण करता है, तो भगवान उसकी पुकार अवश्य सुनते हैं। अधिक मास में पड़ने वाली यह पद्मिनी एकादशी इसी विश्वास और भक्ति का प्रतीक है, जो सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है।"

डिस्क्लेमर

इस ब्लॉग में प्रस्तुत सभी जानकारी प्राचीन हिंदू शास्त्रों, पुराणों, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। हमने अपरा एकादशी से संबंधित कथा, पूजा विधि, महत्व और मान्यताओं को सरल एवं रोचक शैली में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, ताकि पाठक गण इससे लाभ उठा सकें और अपनी श्रद्धा को और दृढ़ कर सकें। कृपया ध्यान दें कि यह लेख धार्मिक आस्था और जानकारी साझा करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई सामग्री का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति, संप्रदाय, विचारधारा या मान्यता को आहत करना नहीं है। पूजा-पाठ और व्रत-विधान करने से पूर्व स्थानीय परंपरा, परिवार की मान्यता या किसी विद्वान पंडित की सलाह लेना उचित रहेगा। पाठकों से निवेदन है कि इस ब्लॉग को आस्था और ज्ञानवर्धन की दृष्टि से पढ़ें और इसका उपयोग सकारात्मक दिशा में करें।


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