कोकिला पूजा 2025: जानिए शुभ तिथि, पूजा विधि और पौराणिक कथाएं

कोकिला पूजा 2025 कब है? जानिए आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कोकिला व्रत से जुड़ी पौराणिक कथाएं। पढ़ें इस खास दिन की संपूर्ण जानकारी। हिन्दी मे।

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष 10 जुलाई 2025 दिन गुरुवार को गुरु पूर्णिमा अर्थात आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन कोकिला पूजा की जाती है। साथ में पढ़ें  पौराणिक कथाएं।

पूर्णिमा तिथि का शुभारंभ 09 जुलाई 2025 दिन बुधवार को रात 01:36 बजे से प्रारंभ होकर दूसरे दिन गुरुवार को रात 02:06 बजे पर समाप्त हो जाएगा। 

कोकिला व्रत क्या है और क्यों मनाया जाता है 

कोकिला व्रत सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे महिलाएं और पुरुष विशेष रूप से आषाढ़ पूर्णिमा के अवसर पर व्रत रखकर मनातें हैं। 

यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने और सुख-समृद्धि, वैवाहिक जीवन की सुख-शांति, और संतान प्राप्ति की कामना के लिए किया मनाया जाता है। इसे "कोयल व्रत" भी कहा जाता है क्योंकि यह व्रत कोयल पक्षी से संबंधित है, जो पवित्रता और शुभता का प्रतीक है।

कौन हैं कोकिला माता?

कोकिला माता को कोयल पक्षी का देवस्वरूप माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, कोकिला माता को भगवान शिव और माता पार्वती की एक विशेष कृपा प्राप्त है। 

यह पक्षी आषाढ़ मास में अपनी मधुर आवाज से प्रकृति को सुंदर बनाता है, जिसे शुभता और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। भक्तों का विश्वास है कि कोकिला माता की पूजा से सभी तरह के मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।

माता पार्वती और कोयल की पौराणिक कथा

माता पार्वती और भगवान शिव के दिव्य प्रेम, तपस्या, और शक्ति के विभिन्न पहलुओं से कई अद्भुत पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक कथा कोयल पक्षी के रूप में माता पार्वती के स्वरूप और उनके विशेष आध्यात्मिक महत्व को उजागर करती है। यह कथा न केवल माता पार्वती की तपस्या और प्रेम का प्रतीक है, बल्कि यह भी बताती है कि कोयल पक्षी (कोकिला माता) का संबंध कैसे शिव-पार्वती की कथा से जुड़ा हुआ है।

कथा का आरंभ: सती का आत्मदाह और शिव का दुःख

दक्ष प्रजापति द्वारा भगवान शिव का अपमान और सती का आत्मदाह, शिव के जीवन में एक बड़ा दुखद अध्याय था। सती के आत्मदाह के बाद, भगवान शिव ने अपने आप को कठोर ध्यान में समर्पित कर लिया और संसार से दूर हिमालय की गुफाओं में चले गए। शिव के इस विराग के कारण संसार में संतुलन बिगड़ने लगा। देवता और ऋषिगण चिंतित हुए, क्योंकि शिव के बिना सृष्टि के संचालन में कठिनाई हो रही थी।

इसी समय, माता सती ने माता पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। पार्वती हिमालय के राजा हिमालयन और रानी मैना की पुत्री थीं। उन्हें अपनी पूर्व जन्म की स्मृतियां थीं और वे शिव को पुनः प्राप्त करने का निश्चय कर चुकी थीं।

माता पार्वती की कठोर तपस्या और कोयल का जन्म

माता पार्वती ने शिव को प्रसन्न करने और उनके हृदय को पिघलाने के लिए कठोर तपस्या आरंभ की। उनकी तपस्या इतनी तीव्र और अडिग थी कि उनकी शक्ति का प्रभाव प्रकृति पर भी दिखाई देने लगा। वन-उपवन शांत और पवित्र हो गए, और सभी प्राणी उनके तप के प्रभाव से प्रेरित हुए।

एक दिन, भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उन्होंने एक ब्राह्मण के रूप में प्रकट होकर उनकी तपस्या को बाधित करने की कोशिश की। शिव ने उनसे कहा, "हे कन्या, तुम एक युवा और सुंदर राजकुमारी हो। तुम्हारा ध्यान एक गृहस्थ जीवन पर होना चाहिए, न कि इस कठोर तपस्या पर। शिव तो एक विरक्त योगी हैं, जो विवाह के योग्य नहीं हैं।"

पार्वती ने बड़ी धैर्यता और नम्रता से उत्तर दिया, "हे ब्राह्मण, मैं केवल भगवान शिव को ही अपना स्वामी मानती हूं। यह तपस्या मेरे जीवन का उद्देश्य है, और मैं इसे किसी भी स्थिति में नहीं छोड़ूंगी।"

यह सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हुए, परंतु उन्होंने तुरंत अपना स्वरूप प्रकट नहीं किया।

कोयल का जन्म:

कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपनी तपस्या के दौरान अपनी आंतरिक शक्ति को प्रकृति में विलीन कर दिया। उनके तप की एक किरण से एक मधुर स्वर वाली कोयल (कोकिला) उत्पन्न हुई। यह कोयल उनकी तपस्या का प्रतीक बन गई और उसकी मधुर ध्वनि शिव को उनकी ओर आकर्षित करने लगी

कोयल की भूमिका: शिव का मन बदलना

माना जाता है कि जब शिव ने पार्वती की तपस्या की गहराई को समझ लिया, तो भी वे अपने कठोर योगी स्वरूप से बाहर नहीं आ सके। उन्होंने पार्वती की तपस्या से प्रभावित होकर यह सोचा कि यदि उनके प्रेम और तप का इतना गहरा प्रभाव है, तो इसे एक मधुर रूप में प्रकृति के माध्यम से प्रकट होना चाहिए।

इसलिए, उन्होंने पार्वती की तपस्या से उत्पन्न कोयल को प्रकृति में भेजा। कोयल ने अपनी मधुर आवाज से वन-उपवन को सजाया और शिव को धीरे-धीरे अपनी तपस्या से जुड़े प्रेम और करुणा की ओर आकर्षित किया। कोयल का स्वर शिव के हृदय को पिघलाने वाला था, जिसने उन्हें पार्वती के प्रति और अधिक आकर्षित किया।

शिव-पार्वती का मिलन और कोयल का महत्व

अंततः, पार्वती की तपस्या और कोयल की मधुरता ने मिलकर शिव को अपने योगी स्वरूप से बाहर आने पर विवश कर दिया। भगवान शिव ने पार्वती को स्वीकार कर लिया और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। इस विवाह को "महादेव और शक्ति" के दिव्य मिलन के रूप में देखा गया।

शिव ने कोयल को वरदान दिया, "तुम माता पार्वती की तपस्या का प्रतीक हो। तुम्हारा स्वर संसार में शुभता और मधुरता का संदेश देगा। जो लोग तुम्हारी पूजा करेंगे, उन्हें पार्वती और मेरी कृपा प्राप्त होगी।"

कोयल और कोकिला व्रत

आषाढ़ पूर्णिमा के दिन किए जाने वाले कोकिला व्रत का सीधा संबंध माता पार्वती और कोयल पक्षी से है। इस व्रत के दौरान कोयल के प्रतीक को पूजा जाता है, और व्रती शिव-पार्वती से अपने वैवाहिक जीवन में सुख और शांति की कामना करते हैं।

कोयल और आध्यात्मिक संदेश

इस कथा का आध्यात्मिक संदेश यह है कि तपस्या, प्रेम, और समर्पण से हर कठिनाई को दूर किया जा सकता है। कोयल, जो मधुरता और शुभता का प्रतीक है, यह सिखाती है कि जीवन में मधुरता और धैर्य से बड़ी से बड़ी बाधा को पार किया जा सकता है।

कोकिला व्रत की पूजा विधि

1. स्नान और स्वच्छता:

व्रत करने वाले व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।

2. व्रत का संकल्प:

भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान कर कोकिला व्रत का संकल्प लें।

3. पूजा सामग्री:

भगवान शिव और कोकिला माता की प्रतिमा या तस्वीर। फूल, धूप, दीपक, अक्षत, चंदन, और मिठाई। कोयल पक्षी के प्रतीक के रूप में चावल या तांबे की मूर्ति।

4. पूजन विधि:

भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करें।

कोकिला माता का ध्यान करें और उनके समक्ष धूप-दीप जलाएं। कोयल पक्षी के प्रतीक को पंचामृत से स्नान कराएं और उसे फूलों से सजाएं। व्रत कथा का पाठ करें।

5. भजन और आरती:

शिव और कोकिला माता के भजन गाएं और आरती करें।

6. भोजन और पारण:

दिनभर उपवास रखें और केवल फलाहार करें। अगले दिन पूजा के बाद अन्न ग्रहण करें

कोकिला व्रत का शुभ मुहूर्त

सावन पूर्णिमा का दिन कोकिला व्रत के लिए सबसे शुभ माना जाता है। पूजा का समय प्रातःकाल से लेकर मध्याह्न तक विशेष फलदायक होता है।

पूजा का शुभ मुहूर्त

आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि मध्य रात्रि से प्रारंभ होकर अगले दिन की देर रात तक रहेगा। तिथि और समय के पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है।

पूजा करने का शुभ मुहूर्त अहले सुबह 05:07 बजे से लेकर 06:48 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा। इस प्रकार सुबह 10:10 बजे से लेकर 11:51 बजे तक चर मुहूर्त, 11:24 बजे से लेकर 12:18 बजे तक अभिजीत मुहूर्त, 11:52 बजे से लेकर 01:32 बजे तक लाभ मुहूर्तों और 01:32 बजे से लेकर 03:15 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। इस दौरान व्रतधारी अपने सुविधा अनुसार पूजा अर्चना कर सकते हैं।

पूजा करने के लिए शाम का मुहूर्त 

संध्या समय पूजा करने के लिए गोधूलि मुहूर्त शाम 06:30 बजे से लेकर 06:54 बजे तक रहेगा इस प्रकार शुभ मुहूर्त शाम 04:30 बजे से लेकर 06:34 बजे तक और 06:34 बजे से लेकर रात 07:53 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा।

देश-विदेश में कोकिला माता के प्रमुख मंदिर 

1. कोयल मठ, वाराणसी, उत्तर प्रदेश: यह मठ भगवान शिव और कोकिला माता को समर्पित है।

2. कोयल धाम, मध्य प्रदेश: इस स्थान पर कोयल पक्षी के प्रतीक की पूजा की जाती है।

3. कोकिला माता मंदिर, नेपाल: यह मंदिर शिव-पार्वती भक्तों के लिए प्रमुख तीर्थस्थल है।

4. कोकिला देवी तीर्थ, श्रीलंका: यह स्थान रामायणकालीन मान्यता से जुड़ा हुआ है।

5. लंदन हिंदू मंदिर, इंग्लैंड: यहां प्रवासी भारतीय कोकिला माता का व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं।

कोकिला व्रत के लाभ

1. मनोकामना की पूर्ति।

2. वैवाहिक जीवन में शांति।

3. संतान सुख की प्राप्ति।

4. आध्यात्मिक उन्नति।

5. पापों से मुक्ति।

डिस्क्लेमर

कोकिला माता की पूजा पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। शुभ मुहूर्त और समय आदि की गणना पंचांग से किया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहारों के प्रति रूझान बढ़ाना है। हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।







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