रोहिणी व्रत की सभी तिथियां 2025: जानें पंचांग के अनुसार, पढ़ें दस पौराणिक कथाएं, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और देश-विदेश में मंदिर

रोहिणी व्रत की सभी तिथियां 2025: जानें पंचांग के अनुसार, पढ़ें दस पौराणिक कथाएं, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और देश-विदेश में मंदिर

रोहिणी व्रत पूजा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि, दिन गुरुवार 03 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा। जैन समुदाय का प्रमुख त्यौहार है रोहिणी व्रत पूजा।

पर्व का शुभारंभ एक दिन पूर्व नहाए-खाए से हो जायेगा। षष्ठी तिथि का शुभारंभ 02 अप्रैल दिन शुक्रवार को रात 11:39 बजे से होगा, जो 03 अप्रैल दिन गुरुवार को रात 09:41 बजे तक रहेगा। 

रोहिणी व्रत एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो मुख्यतः जैन धर्म और सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत प्रत्येक माह को चंद्रमा की रोहिणी नक्षत्र में पड़ने वाली तिथि को रखा जाता है। रोहिणी व्रत सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य, और परिवार की उन्नति के लिए किया जाता है।

जैन धर्म में रोहिणी व्रत को बहुत पवित्र माना जाता है। यह व्रत दीर्घायु और मोक्ष प्राप्ति की कामना से किया जाता है। जैन धर्म में इसे कुंडलपुर तीर्थ के तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ से भी जोड़ा जाता है।

. पूजा विधि:

रोहिणी व्रत को पूरे श्रद्धा और विधि-विधान से किया जाता है। इसकी पूजा विधि निम्नलिखित है:

1. स्नान और संकल्प:

प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को साफ करें और वहां रोहिणी माता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

2. दीप प्रज्वलन: 

घी का दीपक जलाकर पूजा शुरू करें।

3. मंत्र उच्चारण:

रोहिणी माता की पूजा के दौरान निम्न मंत्र का जाप करें:> "ॐ रोहिण्यै नमः।"

4. फूल और प्रसाद चढ़ाना: 

माता को पुष्प, चावल, गुड़, और फल चढ़ाएं।

5. व्रत कथा सुनना: 

व्रत कथा का पाठ स्वयं करें या सुनें।

6. आरती: 

अंत में रोहिणी माता की आरती करें और प्रार्थना कर, लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करें।

7. दान: 

व्रत के बाद ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, या धन का दान दें।

4. शुभ मुहूर्त:

रोहिणी व्रत चंद्रमा की रोहिणी नक्षत्र में रखा जाता है। यह तिथि हर महीने में आती है, लेकिन विशेष रूप से कार्तिक और श्रावण महीने में इसे रखना अधिक शुभ माना जाता है।

रोहिणी नक्षत्र का समय: पंचांग के अनुसार रोहिणी नक्षत्र का आरंभ और समाप्ति समय देखें।

व्रत का प्रारंभ: सूर्योदय के बाद। व्रत का समापन: अगले दिन पूजा और दान के बाद।

2. रोहिणी व्रत की दस पौराणिक कथाएं :

रोहिणी व्रत, सनातन और जैन परंपराओं में एक विशिष्ट व्रत है, जो अपने प्रभावशाली धार्मिक और आध्यात्मिक लाभों के कारण अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत चंद्रमा की रोहिणी नक्षत्र के दिन रखा जाता है। इसके साथ जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जो व्रत की शक्ति, महत्व और लाभ को उजागर करती हैं।

कथा 01: निर्धन ब्राह्मण और रोहिणी माता

बहुत समय पहले एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ एक गांव में रहता था। उनका जीवन अत्यंत कठिनाई में व्यतीत हो रहा था। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने देवी रोहिणी से प्रार्थना की कि वे उनके कष्टों को दूर करें।

देवी रोहिणी प्रसन्न होकर प्रकट हुईं और कहा, "यदि तुम हर रोहिणी नक्षत्र के दिन व्रत रखोगी, तो तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।" ब्राह्मण की पत्नी ने पूरे श्रद्धा से दो व्रत रखना शुरू कर दिया। कुछ ही समय में उनके जीवन में चमत्कारिक बदलाव आया। उनकी गरीबी समाप्त हो गई और वे सुख-समृद्धि के साथ रहने लगे।

यह कथा हमें सिखाती है कि रोहिणी व्रत श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाए, तो यह जीवन में अद्भुत परिवर्तन ला सकता है।

कथा 02: रोहिणी देवी और राजा का अहंकार

एक समय की बात है, एक राजा अपने राज्य में अत्यधिक गर्वित और अहंकारी था। वह अपने धन और वैभव पर घमंड करता था। उसने सोचा कि वह स्वयं ही अपनी खुशहाली का कारण है। एक दिन, उसकी प्रजा ने रोहिणी व्रत की महिमा का वर्णन किया और उसे व्रत करने का सुझाव दिया।

राजा ने इस सुझाव को मजाक में उड़ा दिया। उसी रात, देवी रोहिणी ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और कहा, "तुम्हारा घमंड तुम्हारे विनाश का कारण बनेगा। यदि तुम रोहिणी व्रत करोगे और अपने अहंकार को त्यागोगे, तो तुम्हारे राज्य में स्थायी समृद्धि और शांति आएगी।"

राजा ने अगले ही दिन व्रत करना शुरू किया। उसका अहंकार समाप्त हो गया, और उसका राज्य फिर से वैभवशाली हो गया।

कथा 03: चंद्रमा, रोहिणी और देवताओं की कृपा

पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रमा की 27 पत्नियों में से रोहिणी उनकी प्रिय पत्नी थीं। चंद्रमा का अधिकतर समय रोहिणी के साथ व्यतीत होता था, जिससे अन्य पत्नियां क्रोधित हो गईं। उन्होंने इस समस्या को उनके पिता प्रजापति दक्ष के समक्ष रखा।

दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया कि वे क्षय रोग से पीड़ित होकर अपना तेज खो देंगे। श्राप के प्रभाव से चंद्रमा का क्षय होने लगा। रोहिणी ने चंद्रमा के जीवन को बचाने के लिए देवी शक्ति की घोर तपस्या की।

देवी शक्ति ने प्रसन्न होकर वरदान दिया कि चंद्रमा श्रापमुक्त तो नहीं होंगे, लेकिन वे अमृतमय रोहिणी नक्षत्र के समय अपनी ऊर्जा पुनः प्राप्त करेंगे। तभी से रोहिणी नक्षत्र के दिन चंद्रमा को पूज्य माना जाता है और इस दिन व्रत करने की परंपरा का आरंभ हुआ।

कथा 04: साध्वी रोहिणी और भगवान विष्णु

एक अन्य कथा के अनुसार, साध्वी रोहिणी ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वे चंद्रमा की रोहिणी नक्षत्र में विशेष रूप से पूजी जाएंगी।

साध्वी रोहिणी ने अपने अनुयायियों को सिखाया कि कैसे रोहिणी व्रत से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह व्रत व्यक्ति के सारे पापों को हरता है और आत्मा को शुद्ध करता है।

कथा 05: जैन धर्म में रोहिणी व्रत और मल्लिनाथ तीर्थंकर

जैन धर्म में रोहिणी व्रत को भगवान मल्लिनाथ तीर्थंकर से जोड़ा जाता है। भगवान मल्लिनाथ ने अपने जीवनकाल में रोहिणी व्रत के महत्व को समझाया और इसे मोक्ष प्राप्ति का एक साधन बताया।

कहा जाता है कि एक बार एक राजा ने भगवान मल्लिनाथ से पूछा कि वह अपने राज्य में शांति और समृद्धि कैसे ला सकता है। भगवान ने उत्तर दिया, "रोहिणी व्रत रखो और अपनी प्रजा को भी इसके लिए प्रेरित करो। यह व्रत तुम्हें और तुम्हारे राज्य को पवित्र बनाएगा।"

राजा और उनकी प्रजा ने रोहिणी व्रत करना शुरू कर दिया, जिससे उनका राज्य सुखी और शांत हो गया।

कथा 06: देवताओं और असुरों के बीच युद्ध

एक अन्य पौराणिक कथा में कहा गया है कि जब देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ, तो देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा। उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने उन्हें रोहिणी व्रत करने का सुझाव दिया।

देवताओं ने रोहिणी व्रत किया और अपनी शक्ति को पुनः प्राप्त किया। इसके बाद वे असुरों को हराने में सक्षम हो गए। यह कथा दर्शाती है कि यह व्रत शक्ति और विजय का प्रतीक है।

कथा 07: किसान और रोहिणी व्रत

एक समय की बात है, एक किसान अपनी फसल के खराब होने से बहुत परेशान था। उसने रोहिणी व्रत के बारे में सुना और इसे पूरे नियमों के साथ करना शुरू किया।

उसकी भक्ति और विश्वास से प्रभावित होकर देवी रोहिणी ने उसकी भूमि को उपजाऊ बना दिया। उसकी फसल लहलहाने लगी, और वह धनी बन गया। तब से किसानों के बीच यह व्रत विशेष रूप से लोकप्रिय हो गया।

कथा 08: माता रोहिणी और स्त्रियों का कल्याण

एक बार एक गांव में महिलाओं ने देवी रोहिणी की पूजा की और उनसे अपने परिवार की सुरक्षा और सुख की प्रार्थना की।

देवी ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि जो भी महिला यह व्रत करेगी, उसके परिवार में कभी कोई संकट नहीं आएगा। इस व्रत से पारिवारिक समृद्धि और शांति का आशीर्वाद मिलता है।

कथा 09: रोहिणी व्रत और चमत्कारी जल

एक अन्य कथा में कहा गया है कि एक बार एक राजा के राज्य में अकाल पड़ गया। उसकी प्रजा ने रोहिणी व्रत किया। व्रत के प्रभाव से राज्य में चमत्कारी जल प्रकट हुआ, जिसने उनकी सभी समस्याओं को समाप्त कर दिया।

कथा 10: योगिनी और रोहिणी व्रत

एक योगिनी ने अपनी तपस्या के दौरान रोहिणी व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से उसे दिव्य शक्तियां प्राप्त हुईं। उसने अपने अनुयायियों को सिखाया कि यह व्रत व्यक्ति को हर प्रकार के भय और पाप से मुक्त करता है।

व्रत का निष्कर्ष क्या है:

रोहिणी व्रत की ये कथाएं इसकी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता को प्रकट करती हैं। यह व्रत श्रद्धा और विश्वास से किया जाए, तो यह जीवन को सुख-समृद्धि, शांति और आत्मिक उन्नति प्रदान करता है।

5. रोहिणी माता के प्रसिद्ध मंदिर:

रोहिणी माता से जुड़े मंदिर भारत और विदेश में प्रसिद्ध हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिर हैं:

भारत में:

1. कुंडलपुर तीर्थ, मध्य प्रदेश: यह जैन धर्म का एक प्रमुख तीर्थ है और भगवान मल्लिनाथ से जुड़ा है।

2. रोहिणी माता मंदिर, गुजरात: यहां रोहिणी माता की प्रतिमा स्थापित है।

3. त्रिपुर सुंदरी मंदिर, त्रिपुरा:इस मंदिर में रोहिणी माता की पूजा विशेष रूप से की जाती है।

विदेश में:

1. सिंगापुर जैन मंदिर: सिंगापुर में जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा रोहिणी व्रत किया जाता है।

2. नेपाली जैन मंदिर काठमांडू: यहां भी रोहिणी व्रत से जुड़ी विशेष पूजा होती है।

रोहिणी व्रत का महत्व: सुख-समृद्धि: व्रत से धन-धान्य और वैभव की प्राप्ति होती है। स्वास्थ्य लाभ: यह व्रत शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है।

आध्यात्मिक उन्नति: यह व्रत आत्मा को शुद्ध करता है और मोक्ष मार्ग पर ले जाता है।

पारिवारिक कल्याण: परिवार में शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए यह व्रत अत्यंत शुभ है।

रोहिणी व्रत जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण उपवास है, जो रोहिणी नक्षत्र के दिन रखा जाता है। वर्ष 2025 में रोहिणी व्रत की तिथियां निम्नलिखित हैं:

01.रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 10 जनवरी 2025 दिन शुक्रवार दोपहर 01:45 बजे से शुरू होकर शनिवार 11 जनवरी 2025 को 12:29 बजे तक रहेगा।

02. 07 फरवरी 2025, दिन शुक्रवार रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 6 फरवरी 2025 को 07:29 शाम रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 7 फरवरी 2025 को 06:40 शाम तक।

03. 05 मार्च 2025, बुधवार

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 06 मार्च 2025 को 11:38 पूर्वाह्न

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 07 मार्च 2025 को 10:35 पूर्वाह्न

व्रत तिथि: 06 मार्च 2025

शुभ मुहूर्त: सूर्योदय से रोहिणी नक्षत्र की समाप्ति तक

04. 02 अप्रैल 2025, मंगलवार

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 02 अप्रैल 2025 को 8:19 अपराह्न

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 03 अप्रैल 2025 को 6:32 अपराह्न

व्रत तिथि: 03 अप्रैल 2025

शुभ मुहूर्त: सूर्योदय से रोहिणी नक्षत्र की समाप्ति तक

05. 29 अप्रैल 2025, मंगलवार

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 29 अप्रैल 2025 को 06:47 पूर्वाह्न

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 30 अप्रैल 2025 को 03:48 पूर्वाह्न

व्रत तिथि: 30 अप्रैल 2025

शुभ मुहूर्त: सूर्योदय से रोहिणी नक्षत्र की समाप्ति तक

27 मई, 2025: दिन मंगलवार

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 27 मई को प्रातः 5:32 बजे

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 28 मई को प्रातः 2:50 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त: 27 मई को प्रातः 5:32 बजे से 28 मई को प्रातः 2:50 बजे तक के बीच उपयुक्त समय चुनें।

24 जून 2025: दिन मंगलवार

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 24 जून को प्रातः 5:32 बजे

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 25 जून को प्रातः 2:50 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त: 24 जून को प्रातः 5:32 बजे से 25 जून को प्रातः 2:50 बजे तक के बीच उपयुक्त समय चुनें।

20 जुलाई 2025: दिन रविवार 

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 20 जुलाई को रात 10:52 बजे

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 21 जुलाई को रात 09:07 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त: 21 जुलाई को दिन भर उपयुक्त समय चुनकर पूजा करें।

16 अगस्त 2025: दिन शनिवार

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 16 अगस्त को प्रातः 04:32 बजे

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 17 अगस्त को प्रातः 03:17 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त: 16 अगस्त को प्रातः 04:32 बजे से 17 अगस्त को प्रातः 03:17 बजे तक के बीच उपयुक्त समय चुनें।

13 सितंबर 2025: दिन शनिवार 

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 13 सितंबर को प्रातः 10:11 बजे

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 14 सितंबर को प्रातः 08:41 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त: 13 सितंबर को प्रातः 10:11 बजे से 14 सितंबर को प्रातः 08:41 बजे तक के बीच उपयुक्त समय चुनें।

10 अक्टूबर 2025: दिन शुक्रवार 

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 10 अक्टूबर को संध्या 5:31 बजे

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 11 अक्टूबर को दोपहर 03:20 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त: 10 अक्टूबर को संध्या 05:31 बजे से 11 अक्टूबर को दोपहर 03:20 बजे तक के बीच उपयुक्त समय चुनें।

06 नवंबर 2025: दिन गुरुवार 

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 06 नवंबर को प्रातः 03:28 बजे

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 07 नवंबर को रात 12:33 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त: 06 नवंबर को प्रातः 03:28 बजे से 07 नवंबर को रात 12:33 बजे तक के बीच उपयुक्त समय चुनें।

04 दिसंबर 2025: दिन गुरुवार 

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 04 दिसंबर को दोपहर 02:54 बजे

रोहिणी नक्षत्र समाप्ति: 05 दिसंबर को दिन के 11:46 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त: 04 दिसंबर को दोपहर 02:54 बजे से 05 दिसंबर को दिन के 11:46 बजे तक के बीच उपयुक्त समय चुनें।

महत्वपूर्ण सुझाव:

पूजा के लिए रोहिणी नक्षत्र के दौरान दिन के समय को प्राथमिकता दें।

सटीक समय और मुहूर्त के लिए अपने स्थानीय पंचांग या ज्योतिषी से परामर्श लें, क्योंकि समय क्षेत्र और स्थान के अनुसार भिन्नता हो सकती है।

रोहिणी व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और तिथियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए, आप निम्नलिखित वीडियो भी देख सकते हैं:

डिस्क्लेमर 

रोहिणी व्रत जैन धर्म से संबंधित है, न कि श्रीकृष्ण के जन्म से। जैन धर्म में इस व्रत का अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह व्रत मुख्य रूप से श्रावक और श्राविकाएँ (जैन अनुयायी) करते हैं। इसे रोहिणी नक्षत्र के दिन किया जाता है। यह व्रत तप, संयम और आत्मशुद्धि का प्रतीक है। विस्तार से इस व्रत का महत्व, नियम, विधि और उससे जुड़ी कथा को नीचे वर्णित किया गया है।


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने