स्वामीनारायण जयंती हर वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव (राम नवमी) के साथ पड़ती है। 06 अप्रैल 2025 दिन रविवार को है। पढ़ें संपूर्ण जानकारी।
1781 में इसी दिन भगवान स्वामीनारायण, जिन्हें सहजानंद स्वामी और घनश्याम महाराज के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म हुआ।
उनका जन्म उत्तर प्रदेश के चित्रकूट के पास स्थित छपिया गांव में हुआ। उनके माता-पिता हरिप्रसाद और प्रेमवती (भक्तिमाता) अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। स्वामीनारायण जी का असली नाम घनश्याम था, और वे बचपन से ही चमत्कारी और अलौकिक प्रतिभा के धनी थे।
पौराणिक कथा और जीवन दर्शन
स्वामीनारायण जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि उनका अवतरण धर्म की पुनर्स्थापना और मानव कल्याण के लिए हुआ। उनके जीवन की मुख्य घटनाएं इस प्रकार हैं:
1. बाल्यकाल के चमत्कार: बालक घनश्याम ने अपनी दिव्य दृष्टि और चमत्कारी शक्ति से कई संकटों का समाधान किया। कहते हैं, एक बार उन्होंने बाल अवस्था में ही एक बड़े वृक्ष को हिलाकर वहां से सांप को भगाया, जो गांववासियों के लिए परेशानी का कारण बन रहा था।
2. संन्यास ग्रहण: केवल 11 वर्ष की आयु में, अपने माता-पिता के निधन के बाद, उन्होंने घर छोड़ दिया और संन्यास का जीवन अपनाया। उन्होंने नीलकंठ वर्णी के नाम से हिमालय, काशी, जगन्नाथपुरी, और अन्य पवित्र स्थलों की यात्रा की।
3. संपूर्ण धर्म स्थापना: स्वामीनारायण जी ने समाज सुधार, जातिगत भेदभाव मिटाने और वैदिक सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अनेकों कार्य किए। उन्होंने स्वामीनारायण संप्रदाय की स्थापना की और साधु-भक्तों का एक विस्तृत संगठन खड़ा किया।
4. अद्भुत शिक्षाएं: उनकी शिक्षाएं सरल, व्यावहारिक और शाश्वत थीं। उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, और सेवा का महत्व बताया। उन्होंने सैकड़ों मंदिरों की स्थापना कर लोगों को भक्ति और धर्म की ओर प्रेरित किया।
स्वामीनारायण जयंती का महत्व
स्वामीनारायण जयंती न केवल उनके जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है, बल्कि यह धर्म, भक्ति और नैतिकता की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। इस दिन भक्तगण उपवास रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है और भजन-कीर्तन किए जाते हैं।
देश और विदेश में स्वामीनारायण मंदिर
स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुयायियों ने पूरी दुनिया में इस पवित्र परंपरा को फैलाया। मुख्य मंदिरों में शामिल हैं:
भारत में कहां-कहां है मंदिर
1. अहमदाबाद: स्वामीनारायण संप्रदाय का प्रथम मंदिर, जिसे 1822 में स्वामीनारायण जी ने स्वयं स्थापित किया।
2. गांधीनगर (अक्षरधाम): यह मंदिर अपनी वास्तुकला और आध्यात्मिकता के लिए विश्वप्रसिद्ध है।
3. वडोदरा, भावनगर, सूरत, और राजकोट: यहां भी भव्य मंदिर स्थित हैं।
विदेशों में कहां-कहां है मंदिर
1. लंदन (नीस्डन): भव्य और आधुनिक संरचना वाला यह मंदिर भारतीय संस्कृति का प्रतीक है।
2. न्यू जर्सी (यूएसए): सबसे बड़ा स्वामीनारायण मंदिर, जो 12 वर्षों में निर्मित हुआ।
3. नैरोबी (केन्या): यह मंदिर अफ्रीका में भारतीय समुदाय का धार्मिक केंद्र है।
4. सिडनी और मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया): यहां के मंदिर भारतीय परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।
स्वामीनारायण: जीवन, ग्रंथ और प्रभाव
स्वामीनारायण, जिन्हें भगवान सहजानंद स्वामी भी कहा जाता है, एक आध्यात्मिक संत और सुधारक थे। उन्होंने भारतीय समाज में धार्मिक चेतना और नैतिकता का प्रचार किया। उनका कार्यक्षेत्र व्यापक था, जिसमें उन्होंने ग्रंथों की रचना, समाज सुधार, और धार्मिक संगठन की स्थापना की। उनके विचार और शिक्षाएं आज भी लाखों अनुयायियों को प्रेरित करती हैं।
स्वामीनारायण द्वारा लिखित ग्रंथ
स्वामीनारायण जी ने स्वयं ग्रंथ लिखे और अपने अनुयायियों को भी प्रेरित किया कि वे धर्म और भक्ति पर आधारित साहित्य तैयार करें। उनके द्वारा रचित या प्रेरित मुख्य ग्रंथ निम्नलिखित हैं:
1. शिक्षापत्री
स्वामीनारायण जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
शिक्षापत्री में 212 श्लोक हैं, जो मानव जीवन को नैतिकता, भक्ति, और सेवा के आदर्शों पर आधारित बनाते हैं।
इसे 1826 में लिखा गया था, और इसमें सभी धर्मों और जातियों के लिए मार्गदर्शन है।
इसमें उन्होंने अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, स्वच्छता, और पारिवारिक जीवन के आदर्शों को समझाया है।
2. वचनामृत
यह स्वामीनारायण जी के प्रवचनों और शिक्षाओं का संग्रह है।इसमें भक्तों और संतों के साथ हुई उनकी चर्चाओं को संकलित किया गया है।
यह उनके जीवन दर्शन, आध्यात्मिक ज्ञान और धार्मिक प्रथाओं को समझने का प्रमुख स्रोत है।
3. स्वामीनारायण गीता
इस ग्रंथ में भगवद्गीता के श्लोकों को उनके आध्यात्मिक दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया गया है।
स्वामीनारायण जी का निधन कब हुआ था
भगवान स्वामीनारायण का महाप्रयाण 1 जून 1830 को हुआ।स्थान: गढ़दा, गुजरात।
उन्होंने अपने अंतिम समय में अपने अनुयायियों को धर्म, भक्ति और सेवा के पथ पर चलने की प्रेरणा दी।
उनके समाधि स्थल को गढ़दा में अक्षरब्रह्म मंदिर के रूप में पूजा जाता है।
भारत के विभिन्न राज्यों में अनुयायी
स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुयायी न केवल गुजरात में बल्कि भारत और विदेशों के कई हिस्सों में भी फैले हुए हैं। उनके प्रमुख अनुयायी निम्नलिखित राज्यों में पाए जाते हैं:
1. गुजरात:
स्वामीनारायण संप्रदाय का जन्मस्थान होने के कारण गुजरात में सबसे अधिक अनुयायी हैं।
अहमदाबाद, गांधीनगर, भावनगर, और सूरत जैसे शहरों में भव्य मंदिर स्थित हैं।
2. महाराष्ट्र:
मुंबई और पुणे में बड़ी संख्या में स्वामीनारायण अनुयायी रहते हैं। यहां के मंदिर भक्ति और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र हैं।
3. राजस्थान:
मारवाड़ और मेवाड़ क्षेत्र में स्वामीनारायण के भक्त हैं। यहां उनके मंदिरों में नियमित पूजा और भजन-कीर्तन होते हैं।
4. उत्तर प्रदेश
स्वामीनारायण का जन्म उत्तर प्रदेश के छपिया गांव में हुआ था। इस लिए फैजाबाद, वाराणसी, और प्रयागराज जैसे स्थानों में उनके अनुयायी मिलते हैं।
5. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़
यहाँ के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वामीनारायण की शिक्षाओं को मानने वाले कई समुदाय रहते हैं।
6. दिल्ली और हरियाणा
दिल्ली में स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर एक बड़ा केंद्र है। यह मंदिर हरियाणा और उत्तर भारत के अन्य राज्यों से भक्तों को आकर्षित करता है।
7. दक्षिण भारत
तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में स्वामीनारायण मंदिर मौजूद हैं। यहां के अनुयायी ज्यादातर गुजराती समुदाय के लोग हैं।
विदेशों में अनुयायी और प्रभाव
स्वामीनारायण संप्रदाय ने भारत के बाहर भी अपनी गहरी छाप छोड़ी है। यूके, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, और अफ्रीका के कई देशों में उनके अनुयायी हैं। उनके भव्य मंदिर और संस्थान भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर प्रोत्साहित करते हैं।
सामाजिक और धार्मिक प्रभाव
1. जातिगत भेदभाव का अंत
स्वामीनारायण जी ने जाति व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई और समाज के हर वर्ग को समानता का अधिकार दिया।
2. महिला सशक्तिकरण
उन्होंने महिलाओं को भी आध्यात्मिक शिक्षा और मंदिर में पूजा का अधिकार दिया।
3. आध्यात्मिक संगठन
उनके द्वारा स्थापित स्वामीनारायण संप्रदाय आज लाखों लोगों को धर्म और सेवा से जोड़ता है।
4. शिक्षा और सेवा
स्वामीनारायण अनुयायियों ने शिक्षा, चिकित्सा, और समाजसेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
स्वामीनारायण के जीवन से क्या मिलती है प्रेरणा
भगवान स्वामीनारायण का जीवन, ग्रंथ, और उनकी शिक्षाएं हमें सत्य, अहिंसा, और नैतिकता का पालन करने की प्रेरणा देती हैं। उनका योगदान केवल धार्मिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है; उन्होंने समाज के हर क्षेत्र में सुधार किए। स्वामीनारायण जी के अनुयायी उनके विचारों को पूरी दुनिया में फैलाने में सफल रहे हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं।
डिस्क्लेमर
स्वामीनारायण के लेख लिखने के लिखने के पूर्व विद्वान ब्राह्मणों और आचार्यों से विचार-विमर्श कर लिखा गया है। साथ ही लेख लिखते समय इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों और लोगों से चर्चा करने के बाद लिखा गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म की प्रचार प्रसार करना और लोगों के बीच अपने धर्म के प्रति जागरूकता पैदा करना ही मकसद