06 अप्रैल 2025 को है Ramnavami: जानें शुभ मुहूर्त पौराणिक कथा व महावीर झंडा गाड़ने की विधि

प्रभु श्रीराम के जन्मोत्सव चैत्र माह शुक्ल पक्ष नवमी तिथि अर्थात 6 अप्रैल 2025 दिन रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन रवि पुण्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, आडल योग और रवि योग का सुखद संयोग मिल रहा है। इसी दिन स्वामीनारायण जयंती और महातारा जयंती भी है।

भगवान राम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था। वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, उनका जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को कर्क लग्न में हुआ था। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, पुनर्वसु नक्षत्र को बहुत शुभ माना जाता है। इस नक्षत्र के बारे में कुछ खास बातें। पुनर्वसु नक्षत्र, 27 नक्षत्रों में से सातवें नंबर का नक्षत्र है। इस नक्षत्र के स्वामी गुरु बृहस्पति हैं।

भगवान राम के जन्म के समय पांचों ग्रह सूर्य, मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि अपनी उच्च राशि में थे। ज्योतिष में ऐसा बहुत कम होता है कि किसी के जन्म के समय पांचों ग्रहों का उच्च होना। 

नवमी तिथि शुभारंभ 05 अप्रैल 2025 दिन शनिवार को शाम 07:26 बजे से होगा। जिसका समापन 06 अप्रैल 2025 दिन रविवार को शाम 07:22 बजे पर होगा। 

प्रभु श्रीराम का जन्म मध्याह्न समय में हुआ था। नवमी तिथि रविवार को दिन भर है। इसलिए प्रभु श्री राम का जन्मोत्सव रविवार के दिन ही मनाया जायेगा।

शुभ मुहूर्त: पूजा के लिए मध्याह्न समय सुबह 11:08 बजे से दोपहर 01:39 बजे तक रहेगा। सर्वश्रेष्ठ शुभ समय अभिजीत मुहूर्त के रूप में दिन के 11:23 बजे से लेकर 12:15 बजे तक है।

रामनवमी की पौराणिक कथा और भगवान राम का जन्म

रामनवमी सनातन धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो भगवान श्रीराम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में राजा दशरथ के घर राम के रूप में अवतार लिया था। 

रामनवमी न केवल भगवान राम की दिव्यता का स्मरण है, बल्कि यह धर्म, न्याय और आदर्श जीवन मूल्यों का प्रतीक भी है। भगवान राम का जन्म कैसे हुआ, इसके पीछे की कथा अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक है। आइए, इस पौराणिक कथा को विस्तार से जानते हैं।

अयोध्या नगरी और राजा दशरथ की समस्या

त्रेतायुग में अयोध्या नगरी कौशल राज्य की राजधानी थी, जो सरयू नदी के किनारे स्थित थी। इस नगरी के राजा दशरथ बहुत ही पराक्रमी, धर्मपरायण और न्यायप्रिय शासक थे। उनके राज्य में हर तरफ खुशहाली थी, लेकिन एक समस्या थी। उनके कोई संतान नहीं थी। संतानहीनता के कारण राजा दशरथ चिंतित रहते थे, क्योंकि उनके बिना राज्य का उत्तराधिकारी नहीं बन सकता था।

राजा दशरथ ने अपनी इस चिंता को अपने गुरु वशिष्ठ मुनि के सामने रखा। वशिष्ठ ने उन्हें अश्वमेध यज्ञ और पुत्रकामेष्टि यज्ञ करने का सुझाव दिया। गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ से कहा कि यदि वे सही विधि से यज्ञ करेंगे तो उन्हें अवश्य संतान की प्राप्ति होगी।

पुत्रकामेष्टि यज्ञ का आयोजन

राजा दशरथ ने वशिष्ठ मुनि की सलाह मानते हुए यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ को पूर्ण विधि से संपन्न कराने के लिए ऋषि श्रृंगी को बुलाया गया। ऋषि श्रृंगी महान तपस्वी और विद्वान थे। उन्होंने यज्ञ की सभी तैयारियां कीं और मंत्रोच्चार के साथ यज्ञ संपन्न कराया।

यज्ञ के दौरान अग्नि से एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए, जिनके हाथ में स्वर्ण पात्र था। इस पात्र में दिव्य खीर थी। दिव्य पुरुष ने राजा दशरथ को खीर देते हुए कहा, "इस खीर को अपनी तीनों रानियों में बांट दें। यह खीर देवताओं का प्रसाद है, और इसके प्रभाव से आपको दिव्य संतान प्राप्त होगी।

खीर का वितरण और वरदान

राजा दशरथ ने खीर को अपनी तीनों रानियों – कौशल्या, सुमित्रा और कैकेई में बांट दिया। कौशल्या को खीर का सबसे बड़ा भाग दिया गया, सुमित्रा को दूसरा भाग और कैकेई को तीसरा भाग। इस खीर को ग्रहण करने के बाद रानियों को गर्भधारण हुआ।

भगवान विष्णु का अवतार

उसी समय रावण नामक राक्षस ने पृथ्वी पर अत्याचारों की सीमा पार कर दी थी। रावण को ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि उसे कोई देवता, राक्षस या असुर नहीं मार सकता। हालांकि, उसने यह वरदान मांगते समय मनुष्यों और वानरों को कमजोर समझते हुए उनकी बात नहीं की थी।

देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे पृथ्वी पर अवतार लें और रावण का वध करें। भगवान विष्णु ने अपनी योगमाया से घोषणा की कि वे राजा दशरथ के घर में जन्म लेंगे

राम का जन्म और उनके भाइयों का जन्म

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में माता कौशल्या ने भगवान श्रीराम का जन्म दिन के 12 बजे हुआ। भगवान राम के जन्म के समय चारों दिशाओं में प्रकाश फैल गया। अयोध्या नगरी में उत्सव जैसा माहौल हो गया। सभी ने इसे भगवान का आशीर्वाद माना।

साथ ही, कैकेई ने भरत को जन्म दिया और सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। इस प्रकार राजा दशरथ को चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। चारों पुत्रों का जन्म धर्म, सत्य और न्याय की स्थापना के लिए हुआ।

राम का बाल्यकाल

भगवान राम बचपन से ही गुणवान, विनम्र और आज्ञाकारी थे। वे हमेशा अपने गुरु वशिष्ठ और माता-पिता की आज्ञा का पालन करते थे। उनके जीवन का हर पहलू धर्म और मर्यादा का पालन करता था।

रामनवमी का पर्व इसी महान कथा को स्मरण करते हुए मनाया जाता है। यह पर्व हमें धर्म, सत्य, संयम और न्याय के आदर्शों का पालन करने की प्रेरणा देता है।

रामनवमी के महत्व और पूजन विधि

रामनवमी के दिन भक्त व्रत रखते हैं और भगवान राम की पूजा करते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान राम की कथा का पाठ किया जाता है। रामचरितमानस का अखंड पाठ भी किया जाता है।

पूजा विधि

1. स्नान और तैयारी: प्रातः स्नान कर पूजा स्थल की सफाई करें।

2. प्रतिमा स्थापना: भगवान राम की प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करें और पीले वस्त्र पहनाएं।

3. अभिषेक: दूध, दही, और गंगाजल से अभिषेक करें।

4. श्रृंगार: मूर्ति को फूल, माला, और चंदन लगाएं।

5. पाठ: रामचरितमानस या रामायण का पाठ करें।

6. भोग: खीर, फल, और मिष्ठान का भोग लगाएं।

7. आरती: राम आरती गाएं और परिवार के सदस्यों के साथ प्रसाद बांटें।

8. दान-पुण्य: अन्न, कपड़े, और धन का दान करें। इसे शुभ माना जाता है।

महावीर झंडा कैसे बदला जाए

महावीर झंडा बदलने की प्रक्रिया भी पवित्र तरीके से की जाती है।

1. सबसे पहले स्नान करें और पूजा सामग्री तैयार करें।

2. झंडे को लाल या केसरिया वस्त्र से सजाएं।

3. केसरिया सिंदूर में शुद्ध घी डालकर लेप बनाएं और ध्वजा में लगाएं।

4. इसे मंदिर के मुख्य स्थान पर या घर के अंदर महावीर जी पीड़ी के समक्ष स्थापित करें।

5. झंडा बदलने के दौरान हनुमान चालीसा का पाठ करें और जय श्रीराम के नारे लगाएं।

रामनवमी का संदेश

रामनवमी का पर्व केवल भगवान राम के जन्मोत्सव का उत्सव नहीं है, बल्कि यह हमें उनके आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा देता है। भगवान राम का जीवन हमें सिखाता है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाले को सदा विजय मिलती है।

इस प्रकार, रामनवमी भारतीय संस्कृति और धर्म का ऐसा पर्व है, जो धर्म और मर्यादा की स्थापना का प्रतीक है।

डिस्क्लेमर 

सनातन धर्म में रामनवमी त्यौहार का बहुत ही अधिक महत्व है। इसी दिन प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, भारत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। रामनवमी का उत्सव पूरे भारत में मनाया जाता है। इतना ही नहीं विदेश में भी बड़े पैमाने पर रामनवमी का उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन के संबंध में लिखे गए लेख इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों और लोगों से चर्चाओं के बाद लिखा गया है। शुभ मुहूर्त की गणना पंचांग से कया गया है। लेख लिखने का मुख उद्देश्य सनातन धर्म की प्रचार प्रसार करना और लोगों के बीच अपने धर्म के प्रति जागरूकता पैदा करना ही मकसद है।

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