श्रावण मास का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है। इस वर्ष 2 माह के लिए श्रावण माह लग रहा है। ऐसे स्थिति में में हर सनातन धर्मी चाहता है कि बाबा भोले शंकर उनकी रक्षा करें और बाबा के लिए हर भक्त तरह-तरह के प्रयत्न करते हैं। हम आपको बताते हैं कि श्रावण माह में कैसे भोलेशंकर को खुश कर सकते हैं। जानें 10 विशेष बातों जो आपको भगवान शिव के करीब लाता है।
1. श्रावण मास में भगवान भोलेशिव की पूजा-अर्चना और आराधना करने का विशेष प्रावधान है। सनातनी पंचांग के अनुसार यह महीना वर्ष का पांचवां माह कहलाता है और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सावन का महीना जुलाई-अगस्त के बीच में आता है।
2. श्रावण माह के दौरान श्रावण सोमवारी व्रत का विषेश महत्व बताया गया है। दरअसल श्रावस माह भगवान भोलेशिव को सबसे प्रिय माह है। इस महीने में सोमवारी का व्रत करने और सावन स्नान की पौराणिक परंपरा है। श्रावण मास में बेल पत्र, भांग, धतुरा और फूलों से भगवान भोलेशंकर की पूजा-अर्चना करना और उन्हें जलाभिषेक करना अति फलदायी माना जाता है।
3. शिव पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार जो कोई व्यक्ति श्रावण माह में सोमवारी का व्रत करता है। वैसे जातक को भगवान भोलेनाथ उसकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। श्रावण के महीने में लाखों श्रद्धालु ज्योर्तिलिंग के दर्शन के लिए बैजनाथ धाम, बाबा विश्वनाथ, बाबा केदारनाथ, भीमाशंकर, महाकाल, अमरनाथ और सोमनाथ सहित भारत के कई धार्मिक स्थलों पर जाते हैं।
4.श्रावण महीने का प्रकृति से भी गहरा लगाव है क्योंकि इस महीने में वर्षा ऋतु होने से संपूर्ण पृथ्वी बारिश से हरी-भरी हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु के बाद इस माह में बारिश होने से जीव-जंतुओं को बड़ी सुकुन भरी राहत मिलती है। श्रावण महीने में अनेक पर्व और त्योहार भी मनाए जाते हैं।
5. भारत के पश्चिम तटीय राज्यों मसलन गुजरात, महाराष्ट्र और गोवा में श्रावण मास के अंतिम दिन नारियल पूर्णिमा के रूप में धूमधाम से मनायी जाती है।
6. श्रावण के पवित्र महीने में भोलेनाथ के भक्तों द्वारा कांवड़ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस दौरान लाखों भोलेनाथ के भक्तों द्वारा सुल्तानगंज से गंगा जल लाकर बाबा नगरी देवघर आकर बाबा बैद्यनाथ पर जलाभिषेक करते हैं। दूसरी ओर देवभूमि उत्तराखंड के शिवनगरी हरिद्वार स्थित बाबा केदारनाथ और गंगोत्री धाम की यात्रा करते हैं। शिव भक्त इन तीर्थ स्थलों से गंगा जल से भरी कलश को कांवड़ में रखकर अपने कंधों पर उठाकर पैदल जाते हैं और वही गंगा जल शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। हर साल होने वाली इस धार्मिक यात्रा में भाग लेने वाले लाखों शिव भक्तों को कांवरिया या काबड़िया भी कहा जाता है।
7.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा गया है कि जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे। समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्न निकले थे। उन चौदह रत्नों में से एक रत्न हलाहल विष भी था। विष के प्रभाव से सारी सृष्टि नष्ट होने का संभावना प्रबल दिखाई दे रहा था।
उसी समय सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान भोलेशंकर ने उस हलाहल विष को पान कर लिया और उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। विष के दुश प्रभाव से भोलेनाथ का कंठ नीला पड़ गया। विष पान करने के कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा।
कहा जाता है कि रावण भोलेनाथ का परम भक्त था। रावण ने कांवर में गंगाजल भरकर लेकर आया और उसी जल से उसने शिवलिंग का जलाभिषेक किया और तब जाकर भगवान भोलेनाथ को हलाहल विष से मुक्ति मिली।
8. श्रावण माह के इस पवित्र महीने में शिव भक्तों दो प्रकार के व्रत रखने की शुरूआत करते हैं।
श्रावण सोमवारी व्रत: श्रावण मास में सोमवार के दिन जो व्रत रखा जाता है उसे श्रावण सोमवारी व्रत कहा जाता है। सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ को को समर्पित है और उनके सबसे प्रिय दिन माना जाता है।
श्रावण को पवित्र माह माना जाता है। इसलिए सोलह सोमवारी के व्रत प्रारंभ करने के लिए यह बेहद ही शुभ समय है।
प्रदोष व्रत : श्रावण माह भगवान भोलेशिव और मां पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए प्रदोष व्रत का प्रारंभ कर प्रदोष काल तक किया जाता है।
9.श्रावण माह का ज्योतिषीय महत्व यह है कि श्रावण माह के शुरूआत में सूर्य राशि में परिवर्तन आता है। सूर्य का सभी 12 राशियों में गोचर कर प्रभावित करते हैं।
10. श्रावण माह भोलेनाथ के साथ ही साथ माता पार्वती को भी समर्पित है। शिव भक्त श्रावण महीने में सच्चे मन, पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ भोलेशंकर का व्रत करते हैैं। उस भक्त को भगवान भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है। विवाहित स्त्रियां अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय और स्वास्थ्यमय बनाने और अविवाहित महिलाएं अच्छे, सुंदर, सुशील और शिव भक्त वर के लिए भी श्रावण माह में सोमवारी का व्रत रखती हैं।
डिस्क्लेमर
यह कथा धर्मा अध्यात्म पर आधारित है। सावन माह के विशेष अवसर पर यह लेख आपके बीच में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए लिखा गया है। लेख लिखने के पहले इंटरनेट पर सर्च कर और विद्वान आचार्य से विचार विमर्श कर लिखा गया है। हम इसकी सत्यता की गारंट नहीं लेते हैं। हम सिर्फ सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए यह लेख लिखे हैं।