पौष मास के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि जो 10 जनवरी दिन शुक्रवार को है। उसे पुत्रदा एकादशी व्रत त्योहार कहते है। पढ़ें पौराणिक कथा, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और सामाग्री।
पुत्रदा एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें
एकादशी के दिन इन कामों से रखे अपने आप को दूर तभी मिलेगा संपूर्ण फल
01. एकादशी का व्रत पूरे मनोयोग, यशो योग और समर्पण भावना अपना कर करें।
02.शरीर के किसी भी हिस्से का बाल नहीं बनाने चाहिए।
03.एकादशी के दिन किसी भी प्रकार के फूल नहीं तोड़नी चाहिए।
04.पुत्रदा एकादशी व्रत करने वाले स्त्री और पुरुषों को दसवीं तिथि वाले दिन से ही मांस, मदिरा, प्याज-लहसुन तथा मसूर की दाल का सेवन करना वर्जित है।
05.पुत्रदा एकादशी वाले दिन सुबह पेड़ से तोड़ी हुई लकड़ी की दातुन नहीं करनी चाहिए। इसके स्थान पर नींबू, जामुन तथा आम के पत्तों को चबाकर मुख शुद्धि कर लेना चाहिए।
06.मुंह में उंगली डालकर कंठ शुद्ध करना चाहिए। इस दिन ध्यान रखें पेड़ से पत्तें तोड़ना मना है, अतः पेड़ से गिरे हुए पत्तें का ही प्रयोग करें। पत्तें उपलब्ध नहीं होने पर 12 बार शुद्ध जल लेकर मुख शुद्धि करनी चाहिए।
07.फिर स्नान कर मंदिर में जाकर गीता का पाठ करना चाहिए। भगवान विष्णु के सामने खड़े होकर इस प्रकार प्रण करना चाहिए।
08.एकादशी के दिन मैं दुराचारी, चोर और पाखंडी मनुष्यों से बात व्यवहार नहीं करूंगा।
09.एकादशी व्रत के दिन किसी से कड़वी बात कर उसका दिल नहीं दुखाऊंगा।
10.गाय और ब्राह्मणों को फल तथा अन्न देकर प्रसन्न करूंगा।
11.रात्रि जागरण कर कीर्तन करूंगा। ऊं नमो भगवते वासुदेवाय जाप करना चाहिए।
12.पुत्रदा एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगानी चाहिए। कारण झाड़ू लगानेेे से सूक्ष्म जीव और चीटियों की मृत्यु हो सकती है।
13.और ना ही ज्यादा बोलना चाहिए। मौन व्रत रखना उत्तम रहेगा।
14.एकादशी वाले दिन यथाशक्ति अन्नदान करना चाहिए, परंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न ग्रहण न करें।
15.असत्य वचन और कुकर्म से दूर रहना चाहिए।
16.एकादशी का व्रत करें और त्रयोदशी को पारण कर लेें।
17.फलाहारी व्यक्ति को गोभी, गाजर, शलगम और पालक आदि का सेवन नहीं करना चाहिए बल्कि आम, अंगूर, केला, सेव, बादाम एवं पिस्ता आदि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए।
18.जो भी फल ले उसमें तुलसी का पत्ता डालकर सबसे पहले भगवान विष्णु का भोग लगा लें इसके बाद ही भोजन करें।
19.फूल नहीं तोड़नी चाहिए।
तीनों लोकों के स्वामी मेरे प्रण की रक्षा करना। मेरी लाज आपके हाथ में हैै। अतः इस प्रण को पूरा कर सकु ऐसी शक्ति मुझे देना।
पुत्रदा एकादशी के दिन व्रतधारियों को इस प्रकार प्रण लेने के बाद भगवान विष्णु स्मरण कर प्रार्थना करनी चाहिए।
इस विधि से व्रत करने वाले मनुष्य को दिव्य फलों की प्राप्ति होती है।
संतान की प्राप्ति के लिए लोग पुत्रदा एकादशी व्रत करते हैं। साल में दो बार पुत्रदा एकादशी आती है। अंग्रेजी कैलेंडर के प्रथम महीना जनवरी में पड़ने वाले एकादशी को ही पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं।
निसंतान दंपतियों के लिए पुत्रदा एकादशी व्रत रामबाण की तरह है। इस पुत्रदा एकादशी व्रत को विधि विधान से करने पर संतान की प्राप्ति होती है।
पद्म पुराण के अनुसार सांसारिक सुखों की प्राप्ति और पुत्र इच्छुक भक्तों के लिए पुत्रदा एकादशी व्रत को फलदायक माना जाता है। संतानहीन या पुत्रहीन जातकों के लिए इस व्रत को बेहद अहम माना गया है।
पूजन सामग्री की सूची
पुत्रदा एकादशी के दिन पूजन सामग्री के रूप में भगवान विष्णु के बाल गोपाल की प्रतिमा, जल का लोटा पीतल या तांबा का, पंचामृत, रोली, मोली, चंदन, पुष्प, तुलसी, पान और आम के पत्ते, फल, मिठाई, नारियल, लॉन्ग, इलायची, घी, दीपक, रूई, मधु, गंगाजल, दही, दूध, गुड़, आवला, पंचमेवा एवं बेर आदि पूजा सामग्री इकट्ठा करना भक्तों के लिए जरूरी होता है। दीपदान भी इस व्रत को श्रेष्ठ बना देता है।
रात में वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता है। समस्त कामनाओं और सिद्धियों के दाता भगवान नारायण की इस तिथि के अधिदेवता है।
क्यों करनी चाहिए पुत्रदा एकादशी का व्रत, जानें महत्व
व्रत एवं उपवास का महत्व हर धर्म में है। प्रत्येक धर्म व्रत करने के लिए आज्ञा देता है, क्योंकि इसका पालन करने से आत्मा और मन की शुद्धि होती है।
व्रत या उपवास करने से ज्ञान शक्ति में वृद्धि होती है। व्रत एवं उपवास में निषेध आहार का त्याग एवं सात्विक आहार करने का विधान है।
इसलिए व्रत एवं उपवास आरोग्य और दीर्घायु की प्राप्ति के लिए उत्तम साधन माना जाता है। जो मनुष्य निमित्त रूप से व्रत करते हैं उन्हें उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायु की प्राप्ति के साथ-साथ इस लोक में परम सुख तथा इश्वर के चरण में स्थान मिलता है।
नारद पुराण में व्रतों का महत्व बताते हुए लिखा गया है कि गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, मां के समान कोई गुरु नहीं, भगवान विष्णु जैसा कोई देवता नहीं। व्रतों में एकादशी व्रत को सर्वोपरि माना गया है।
अपने नाम के अनुरूप फल देने वाली है। जिसका कथा तथा विधि विधान से सुनने पर सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। एकादशी में दो भेद है।
पहला नित्य और दूसरा काम्या। एकादशी व्रत बिना किसी फल की इच्छा से किया जाए, तो वह नित्य कहलाती है और यदि किसी प्रकार के फल और धन की प्राप्ति अथवा रोग दोष से मुक्ति के लिए किया हुआ एकादशी व्रत काम्या कहलाती है।
जानें, पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा
पौष एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इसमें भगवान विष्णु के बाल रूप कि पूजा की जाती है। इस संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसके पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान बन जाता है। पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा इस प्रकार है।
भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सब रहने भी बाद भी संतोष नहीं होता था।
वह हमेशा चिंता करते थे कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान और श्राद्ध कर्म करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।
एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है।
इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों? राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगा।
थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि जानवर विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया।
राजा को देखकर मुनियों ने कहा- हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, कहो। राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहां आए हैं। कृपा करके बताइए। उपस्थित मुनियों ने कहा कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।
यह सुनकर राजा ने कहा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले- हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा।
मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के बाद उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ। पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए।
जानें किस शुभ मुहूर्त में करें पहर की पूजा-अर्चना का समय
पंचांग के अनुसार सुबह 06:28 बजे से लेकर 07:49 बजे तक चर मुहूर्त का संयोग है। उसी प्रकार लाभ मुहूर्त सुबह 07:49 बजे से लेकर 09:10 बजे तक, अमृत मुहूर्त 09:10 बजे से लेकर 10:32 बजे तक और दिन में 11:53 बजे से लेकर 01:14 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा। संध्या समय एक बार फिर से अमृत मुहूर्त का आगमन हो रहा है। शाम 03:57 बजे से लेकर 05:18 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा। इस दौरान व्रतधारी पूजा अर्चना कर सकते हैं। उसी प्रकार रात को 11:53 बजे से लेकर 01:32 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।
इस दौरान आप रात्रि का पूजन कर सकते हैं। उसी प्रकार सुबह 04:42 बजे से लेकर 05:35 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त रहेगा सुबह का पूजा इस दौरान करना काफी फलदाई होगा।
पारण द्वादशी तिथि के दिन सुबह 05:30 बजे के बाद कर लेनी चाहिए।
डिस्क्लेमर
पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा धर्म शास्त्रों से लिया गया है। साथ ही विद्वान आचार्यों से और सनातनी पारंपरिक का भी समावेश किया गया है। शुभ और अशुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। यह कथा आप लोगों के बीच धार्मिक चेतना जगाने के लिए लिखा गया है।