Mokshada Ekadashi 2022: के दिन करें भगवान दामोदर व श्रीकृष्ण की पूजा

मार्गशीर्ष (माघ) माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी या मौनी एकादशी के रुप में मनाया जाता है। वर्ष 2022 में मोक्षदा एकादशी 04 दिसंबर को मनाई जाएगी।

मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली मोक्षदा एकादशी करने से व्रतधारियों के सभी पाप नष्ट हो जाती है।

मोक्षदा एकादशी को दक्षिण भारत के सनातनी लोग वैकुण्ठ एकादशी के नाम से जानते है।

मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इस दिन गीता जयंती के रूप में मनाने की परंपरा है। 

 एकादशी करने का क्या क्या विधि है तथा पूजा के दौरान कौन से देवता की, कि जाती है पूजा। जानें विस्तार से।

मोक्षदा एकादशी के दिन व्रतधारी ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र जल से स्नान करते हैं।

24 घंटे की अवधि के लिए रखा जाता है मोक्षदा एकादशी व्रत।

मोक्षदा एकादशी 04 दिसंबर को सूर्योदय से शुरू होकर द्वादशी तिथि के दिन सूर्योदय तक मान्य है।

उपवास के दौरान व्रतधारी शाकाहारी भोजन, फल, डेयरी उत्पाद और दूध का उपभोग कर सकते हैं।

मोक्षदा एकादशी व्रत गर्भवती महिलाओं द्वारा भी किया जा सकता है।

भक्तों के लिए मोक्षदा एकादशी की पूर्व संध्या पर लहसुन, अदरक, प्याज, दलहन और चावल का उपभोग करना मना है।

भगवान श्रीहरि के भक्त बेल पेड़ की पत्तियों का उपयोग पूजा के दौरान कर सकते हैं।

भगवान का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए व्रतधारी भगवान विष्णु की पूर्ण भक्ति के साथ पूजा और प्रार्थना करते हैं।

मोक्षदा एकादशी के दिन, कुछ लोग भगवत गीता की पूजा और पाठ करते हैं और कई मंदिरों में गीता प्रवचन का आयोजन करते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के भक्त प्रार्थना और पूजन भी करते हैं। शाम को, भक्त उत्सवों को देखने के लिए भगवान विष्णु के मंदिर भी जाते हैं।

मोक्षदा एकादशी के दिन मुकुंदष्टकम, विष्णु सहस्रनामम और भगवत गीता का पाठ करना बहुत शुभ और लाभप्रद माना जाता है।

महाभारत युद्ध के समाप्ति के बाद युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा हे पार्थ, मेरे मृत सगे संबंधियों को नरक का कष्ट न झेलना पड़े इसके लिए हमें कौन सा व्रत करने चाहिए।

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष की मोक्षदा एकादशी का वर्णन कर बताया कि जिसके श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। उसी का नाम मोक्षदा एकादशी है। एकादशी व्रत करने से जातकों के सभी तरह के पाप नष्ट हो जाती है।

मोक्षदा एकादशी के दिन ध्यान पूर्वक तुलसी की मंजरी तथा धूप, दीपादि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए। 

मोक्षदा एकादशी व्रत करने से पहले विधि-विधान से दशमी तिथि और एकादशी तिथि के नियमों का पालन करना चाहिए। 

मोक्षदा एकादशी करने से बड़े से बड़े पापों का नाश हो जाते हैं ।

04 दिसंबर दिन रविवार, मार्गशीर्ष माह, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि को हेमंत ऋतु में सूर्य दक्षिणायन दिशा में रहेंगे। उस दिन नक्षत्र अश्विनी, योग वरीयान, सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा मेष राशि में स्थित है।

कौन है भगवान दामोदर

महाभारत काल अर्थात द्वापर युग में देवव्रत भीष्म पितामह को 'दामोदर' के रूप में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में संबोधित किया था। जिसका अर्थ है ऐसा भगवान जो बहुत ज्यादा सहनशील हैं।

महाभारत काल में, भगवान श्रीहरि को कई नामों से पुकारा जाता है। जैसे कृष्ण, कन्हैया, नंदलाल, यशोदानंदन और वासुदेव के नाम से कई बार पुकारा गया है, जबकि दामोदर नाम का प्रयोग केवल 2 या 3 बार ही किया गया है।

मोक्षदा एकादशी का पालन कैसे करें

इस दिन तुलसी के पत्तों और इसके बीजों से श्रीकृष्ण के दामोदर रूप की पूजा की जाती है। दामोदर कृष्ण को तुलसी के बीज चढ़ाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इस दिन घी का दीपक जलाना चाहिए। घी में धनियां डालनी चाहिए।

चंदन लकड़ी की धूप का प्रयोग पूजा में करनी चाहिए।

कच्चे धागे मोक्षदा एकादशी के दिन धारण करना शुभ माना जाता है।

चंदन का लेप कृष्ण को अर्पित करना चाहिए और स्वयं अपने माथे पर तिलक लगाना चाहिए।

मोक्षदा एकादशी के दिन मौसमी फल चढ़ाया जाता है। जिसमें प्रमुख है सीताफल।

पूजा के दौरान रंगीन मिठाईयां बनाकर भगवान दामोदर को चढ़ाया जाता है।

 श्री कृष्ण दामोदराय नमः॥ इस मंत्र को 108 बार जाप करना चाहिए। 

मोक्षदा एकादशी दिन गाय को केला खिलाने से सभी प्रकार के भय पर काबू पाने में मदद मिलती है।

शांति और समृद्धि के लिए अपने घरों में तुलसी का पौधा लगाएं और उसकी देखभाल करें।

मोक्षदा एकादशी व्रत से जुड़े सभी तरह के नियमों का पालन करना चाहिए।

मोक्षदा एकादशी के दिन गीता जयंती  भी मनाने की परंपरा है।

मोक्षदा एकादशी करने का विधान

मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्रतधारियों को ना केवल स्वयं को मोक्ष की प्राप्ति होती है बल्कि पितरों को मुक्ति मिल जाती है और उनके लिए विष्णुधाम के द्वार खुल जाते हैं। 

मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत रखने से गंगा स्नान के समान ही फल की प्राप्ति होती है। उस दिन भगवान दामोदर और श्रीकृष्ण को पीले वस्त्र, पीले फूल, तुलसी का माला, तुलसी पत्ता, नवैद्ध और मौसमी फलों सहित सीता फल से विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए।

मोक्षदा एकादशी की रात्रि में श्रीकृष्ण की प्रसन्न्ता के लिए नृत्य, गीत, कीर्तन और स्तुति करके जागरण करना चाहिए। जिसके करने से आपके पितर पापवश नीच योनि में पड़े हों, वे इस एकादशी का व्रत करके इसका पुण्यदान अपने पितरों को दें, तो पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

मोक्षदा एकादशी का पौराणिक कथा

पूर्वकाल की बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चंपक नगर में वैखानस नामक राजा रहते थे। वे अपनी प्रजा को पुत्र की भांति पालन करते थे । इस प्रकार राज्य करते हुए राजा ने एक दिन रात को स्वप्न में अपने पितरों को नरक लोक में पड़ा हुआ देखा । उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा दुःख हुआ और प्रातः काल ब्राह्मणों से उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया।

वैखानस राजा बोले, ब्रह्माण देवता मैने अपने पितरों को नरक में पड़ा हुआ देखा है। वे बारंबार रोते हुए मुझसे कह रहे थे कि तुम हमारे पुत्र हो, इसलिए इस नरक से हम लोगों को बाहर निकालों। इस रुप में मुझे पितरों के दर्शन हुए हैं इससे मुझे चैन नहीं है, क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय बैठा जा रहा है। ब्राह्मण श्रेष्ठ हमें आप लोग वह व्रत, वह तप और वह योग बताएं जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरक से छुटकारा पा सके। वैसी व्रत बताने की कृपा करें । मेरे जैसे बलवान तथा साहसी पुत्र के जीते जी मेरे माता पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं। अत: ऐसे पुत्र होने से क्या लाभ है ?

 राजा को ब्राह्मणों ने कहा पर्वत मुनि के आश्रम में जाएं, होगा कल्याण

ब्राह्मण बोले राजा वैखानस आप यहां से निकट ही पर्वत मुनि का आश्रम है। मूनि भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं । राजन आप उनके पास चले जाइये । ब्राह्मणों की बात सुनकर राजा वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गये और मुनिश्रेष्ठ पर्वत को देखकर उन्होंने दण्डवत् प्रणाम करके मुनि के चरणों का स्पर्श किया।

पर्वत मुनि ने बताया राजा को उपाए

राजा ने मुनिश्रेष्ठ को बोले, मैंने स्वप्न में देखा है कि मेरे पितर नरक में पड़े हैं । अतः आप बताइये कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से छुटकारा मिलेगा। राजा की यह बात सुनकर मुनि पर्वत एक मुहूर्त तक ध्यानमग्न रहे । इसके बाद मुनि ने राजा से बोले, महाराज वैखानस मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष में जो 'मोक्षदा' नाम की एकादशी आती है। तुम उस व्रत का विधि-विधान से पालन करो और उसका पुण्य अपने पितरों को दे डालो। उस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से मुक्ति मिल जायेगा।

महाराजा वैखानस ने किया मोक्षदा एकादशी

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि सुनो युधिष्ठिर, मुनि पर्वत की यह बात सुनकर राजा पुनः अपने राज्य लौट आये । जब उत्तम मार्गशीर्ष मास आया, तब राजा वैखानस ने मुनि के कथनानुसार ‘मोक्षदा एकादशी' का व्रत करके उसका पुण्य अपने समस्त पितरों सहित माता और पिता को दे दिया। पुण्य देते ही क्षणभर में आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। महाराजा वैखानस के माता-पिता सहित पितरों तत्काल नरक से छुटकारा पा गये और आकाश में आकर अपने पुत्र के प्रति आभार व्यक्त करते हुए यह पवित्र वचन बोले, बेटा तुम्हारा कल्याण हो और यह कहकर वे स्वर्ग में चले गये।

इसलिए जो कल्याणमयी मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । यह मोक्ष देनेवाली 'मोक्षदा एकादशी' मनुष्यों के लिए चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है। इस माहात्मय के पढ़ने और सुनने से जातकों को वाजपेय यज्ञ करने का फल मिलता है। 

जानें चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त

किसी भी एकादशी व्रत करने वाले व्रत धारियों को चारों पहर पूजा करने का विधान है। विधि विधान से पूजा करने पर मनचाहा फल मिलता है। जानें विस्तार से चारों पहर पूजा करने का उचित और शुभ समय।

4 दिसंबर को अहले सुबह 05:10 बजे से लेकर 06:04 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 05:37 बजे से लेकर 06:59 बजे तक प्रातः संध्या मुहूर्त और 05:17 बजे से लेकर 06:39 बजे तक लाभ मुहूर्त है उसी प्रकार सुबह 08:17 बजे से लेकर 09:35 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा। इस दौरान आप सुबह वक्त अर्थात पहले पहर की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

दोपहर का अर्थात दूसरे पहर का पूजा दिन के 11:50 बजे से लेकर 12:32 बजे तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 11:45 बजे से लेकर रात के 01:25 बजे तक अमृत काल रहेगा। विजय मुहूर्त दोपहर 01:55 बजे से लेकर 02:37 बजे तक रहेगा। 10:30 बजे से लेकर 12:11 बजे तक अमृत मुहूर्त होगा। इस दौरान आप दूसरे पहर की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

 दूसरे पहर अर्थात संध्या का पूजन आप गोधूलि मुहूर्त, सायाह्य सांध्य मुहूर्त और शुभ मुहूर्त मैं पूजन कर सकते हैं। गोधूलि मुहूर्त शाम 05:13 बजे से लेकर 05:30 बजे तक, सायाह्य सांध्य मुहूर्त शाम 05:24 बजे से लेकर 06:45 बजे तक और शुभ मुहूर्त शाम 05:24 बजे से लेकर 07:06 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप संध्या का पूजन कर सकते हैं।

तीसरे पहर की पूजा मध्यरात्रि को करने का विधान है। निशिता मुहूर्त  रात्रि 11:44 बजे से लेकर रात 12:00 बज के 39 मिनट तक रहेगा। इस दौरान आप तीसरे पहर अर्थात मध्य रात्रि का पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

चौथे पहर अर्थात अहले सुबह की पूजा ब्रह्म मुहूर्त में 05:10 बजे से लेकर 06:04 बजे तक प्रातः संध्या मुहूर्त में 05:37 बजे से लेकर 06:59 बजे तक और लाभ मुहूर्त 05:17 बजे से लेकर 06:39 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप भगवान दामोदर की पूजा अर्चना कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर

यह लेख पूरी तरह धर्म शास्त्रों पर आधारित है। सनातनी मान्यता और धर्माचार्य द्वारा बताए गए और कहे गए प्रवचन सुनकर इस लेख को लिखा गया है। शुभ मुहूर्त का लेखन पंचांग को देखकर लिखा गया है। यह लेख पूरी तथा धार्मिक प्रचार व्रत रखने वाले के प्रति आस्था रखने वाले लोगों के लिए है।




एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने