नहाए खाए 28 अक्टूबर को
खरना 29 अक्टूबर को
संध्या का अर्ध्य 30 अक्टूबर को
सुबह का अर्ध्य 31 अक्टूबर को
खड़ना की रात 08:39 बजे के बाद शुरू होगा 24 घंटे का निर्जला व्रत
पहले दिन का अर्ध्य शाम 05:38 बजे से शुरू
सुबह 06:32 बजे के बाद दे उगते सूर्य को अर्घ्य
पवित्रता और आस्था का महापर्व छठ इस बार 28 अक्टूबर से शुरू होकर 31 अक्टूबर तक चलेगा। 36 घंटे निर्जला व्रत रखकर सूर्य देव की आराधना करना तथा संतान के दीर्घायु और सुखी जीवन की कामना के लिए समर्पित छठ पूजा इस वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि अर्थात 28 अक्टूबर से शुरू होगा।
छठ पूजा का प्रारंभ चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होता है। इसके बाद पंचमी तिथि को खरना या रसियाव का आयोजन किया जाता है।
षष्ठी तिथि को छठ पूजा और सूर्य देव को शाम का अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन सप्तमी को सूर्योदय के समय उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान हैं। अर्घ्य देने के उपरांत व्रतधारी 36 घंटे से निर्जला व्रत का पारण करके व्रत को पूरा करते हैं। छठ पर्व पवित्रता की महता को दर्शाता है।
आस्था का महापर्व छठ पर्व का शुभारंभ कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, चतुर्थी तिथि से होती है। यह छठ पर्व का पहला दिन कहलाता है, इस दिन को नहाए खाय कहते हैं।
इस वर्ष नहाय-खाय 28 अक्टूबर दिन शुक्रवार को पड़ रहा है।
इस दिन सुबह उठकर नदी, तालाब, कुंआ या घर में स्थित नल से स्नान कर शरीर पर गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद आस्था का महापर्व छठ व्रत करने का संकल्प लें।
भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद घर में बड़े बुजुर्गों का चरण स्पर्श करें। पूजा के उपरांत अरवा चावल का भात और लौकी से बने सब्जी का सेवन करें।
चंद्रास्त के बाद शुरू होता है निर्जला व्रत
खरना की रात चंद्र अस्त के बाद निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा। महाआस्था का पर्व छठ के दूसरे दिन खरना करने का विधान है। इस दिन छठ पूजा का दूसरा दिन कहलाता है।
शाम को स्नान कर नया वस्त्र पहन कर व्रतधारी मिट्टी के बने चूल्हे पर आम की लकड़ी से पीतल के बर्तन में गुड़ के खीर और रोटी बनाती हैं।
गोधूलि बेला में भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद छठी मैया की पूजा अर्चना करने के उपरांत खीर और रोटी खाती है।
व्रत धारियोंं को भोजन करने के उपरांत प्रसाद के रूप में लोगों के बीच रसियाव और रोटी वितरण किया जाता है।
मान्यता है इस दिन खरना के प्रसाद मांग कर खाने से छठी मैया खुश होती है। आकाश में जब तक चंद्र उदय रहता है व्रतधारी पानी पी सकते हैं। चंद्रमा अस्त हो जाने के बाद 24 घंटेे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
खरना की रात चंद्रास्त शाम 07:52 बजे पर होगा। चंद्रास्त के पूर्व व्रतधारी पेय पदार्थ पी सकते हैं। इसके बाद 32 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा।
छठ की पूजा सामग्री दउरा और सूप में सजा कर व्रतधारी छठी मईय की गीत गाते हुए घाट की ओर प्रस्थान करती है। इसके बाद घाट पर पहुंचकर छठी मैया और सूर्य देव का पिंड बनाकर पवित्र जल में स्नान कर, पूजा अर्चना करने के उपरांत भगवान भास्कर को अर्घ्य देती हैैं।
चौथे दिन उगते सूरज को अमृत मुहूर्त में दें अर्घ्य
पहले दिन का अर्ध्य शाम 05:38 बजे के बाद
सुबह का अर्ध्य 06:32 के बाद
छठ पर्व में लगने वाली पूजा सामग्री
जानें छठ व्रत को लेकर पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार छठी देवी को नौनिहालों की रक्षा करने वाली माता तथा लंबी उम्र प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। आज भी देश के कई राज्यों में बच्चों के जन्म के छठे दिन को छठिहार के रूप में मनाया जाता है।
महाभारत काल में मिलती है दो कथाएं
दो कथा महाभारत काल से भी जुड़ा है। कर्ण का जन्म सूर्य देव के द्वारा दिए गए वरदान के कारण कुंती के गर्भ से हुआ था। कर्ण को भगवान सूर्य ने कवच और कुंडल भी प्रदान किया था। कर्ण प्रतिदिन सुबह समय कमर भर जल में खड़े होकर घंटों भगवान सूर्य को पूजा करते थे और नदी के जल से भगवान भास्कर को अर्घ्य देते थे। भगवान सूर्य को अर्घ्य दने की परंपरा कर्ण ने हीं शुरू किया था।
रानी के पुत्र प्राप्ति की कथा
छठ व्रत की कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम मालिनी थी। दोनों नि:संतान थे। संतान नहीं होने से राजा और रानी काफी दुखी रहते थे। राजा और रानी ने एक दिन पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ के प्रभाव से रानी गर्भवती हो गईं। 9 महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी के गर्भ से मृत पुत्र पैदा हुआ। राजा को जब इस बात का पता चला तो वे बहुत ज्यादा दुखी हो गए।
देवी ने राजा से कहा कि मैं षष्टी माता हूं। मैं सभी नि: संतानों को संतान का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो भक्त सच्चे मन से मेरी पूजा-अर्चना करते हैं, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण कर देती हूं।