ब्रह्मा व विष्णु का युद्ध, क्यों काटा शिव ने ब्रह्मा का सर


 ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु का अनादर किया।क्रोधित विष्णुजी ने ब्रह्माजी पर हमला कर दिया। दोनों में भयंकर युद्ध छिड़ गई। 

भगवान भोलेनाथ को बीच-बचाव करने के लिए आना पड़। ब्रह्मा और केतकी को झूठ बोलने का फल भुगतना पड़ा। 

केतकी फूल शिव पूजन योग नहीं रहीं जबकि ब्रह्मा जी को अपना पांचवा सर गंवाना पड़ा। इन सभी घटनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। पढ़ें इस लेख में नीचे।

अभद्र बोलकर बुरे फंसे ब्रह्मा जी

शिव पुराण के अनुसार पूर्व काल में श्री विष्णु जी अपनी पत्नी लक्ष्मी जी के साथ शेष शैय्या पर विश्राम कर रहे थे। उसी समय ब्रह्मा जी वहां पहुंचे और विष्णु जी को पुत्र कहकर पुकारने लगे। उन्होंने कहा पुत्र उठो मैं तुम्हारा ईश्वर तुम्हारे पास खड़ा हूं।

 यह सुनकर विष्णु जी को क्रोध आ गया। फिर भी शांत रहते हुए वह बोले पुत्र तुम्हारा कल्याण हो। कहो अपने पिता के पास कैसे आना हुआ। यह सुनकर ब्रह्माजी कहने लगे मैं तुम्हारा रक्षक हूं। तुम्हारे सहित सारे जगत का पितामह हूं। सारा जगत मुझ में निवास करता है। तुम मेरी नाभि कमल से प्रकट हुए हो और मुझसे ऐसी बातें कर रहा है।

 इस प्रकार दोनों में विवाद होने लगा। तब यह दोनों अपने को प्रभु कहते कहते एक दूसरे का वध करने को तैयार हो गए। हंस और गरुड़ बैठकर दोनों परस्पर युद्ध करने लगे।

 ब्रह्मा जी के वक्ष स्थल में विष्णु जी ने अनेकों शस्त्रों का प्रहार करके उन्हें व्याकुल कर दिया। इससे कुपित हो ब्रह्मा जी ने भी पलटवार कर भयानक प्रहार किया।

 उनके परस्पर आघातों से देवताओं में हलचल मच गए। घबरा हुए देवतागण त्रिशूलधारी भगवान शिव के पास गए और उन्हें सारी व्यथा सुनाई। उस समय भगवान शिव अपनी सभा में देवी उमा के साथ सिंहासन पर बैठे हुए थे और मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।

महादेव जी बोले पुत्रों मैं जानता हूं तुम ब्रह्मा विष्णु के परस्पर युद्ध से बहुत ज्यादा दुखी हो। तुम डरो मत। मैं अपने गणों के साथ तुम्हारे साथ चलता हूं। इसके बाद भगवान शिव अपने नंदी पर सवार होकर युद्ध स्थल की ओर चल दिए। वहां छिपकर वे ब्रह्मा विष्णु के देखने लगे।

शिव जी को जब ज्ञात हुआ कि वे दोनों एक-दूसरे को मारने की इच्छा से महेश्वर और पशुपात शास्त्रों का प्रयोग कर रहे हैं तो कोई युद्ध को शांत करने के लिए भोलेनाथ महाअग्नि के तुल्य एक स्तंभ रूप में ब्रह्मा विष्णु के मध्य खड़े हो गए।

 महाअग्नि के प्रकट होते ही दोनों के अस्त्र स्वयं ही शांत हो गए। अस्त्रों को शांत होते देख कर ब्रह्मा विष्णु दोनों कहने लगे कि इस अग्नि स्वरूप स्तंभ के बारे में हमें जानकारी करनी चाहिए।

 दोनों ने शिव की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। भगवान विष्णु ने शुकर के रूप धारण कर लिया। स्तंभ को देखते हुए नीचे धरती में चले गए। ब्रह्मा जी हंस का रूप धारण करके ऊपर की ओर चल दिए।

 पाताल में बहुत नीचे तक जाने पर भी विष्णु जी का स्तंभ का अंत नहीं मिला। अंत में वे हार कर वापस आ गए। ब्रह्मा जी ने आकाश में जाकर केतकी का फूल देखा। उस फुल को लेकर विष्णु जी के पास आए। उन्होंने कहा मैं इस अग्नि स्तंभ का पता लगा लिया हूं और इसका अंत भी देख चुका हूं इसका गवाह केतकी फूल है। इसलिए इसको अपने साथ लेकर आया हूं। 

विष्णु जी ने उनके चरण पकड़ लिया। ब्रह्मा जी ने छल को देख कर भगवान शिव प्रकट हुए। विष्णु जी की महानता से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ बोले हे विष्णु जी आप सत्य बोलते हैं। मैं आपको अपने समानता का अधिकार देता हूं।

महादेव जी ब्रह्मा जी के छल पर अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने अपने तीसरे आंख से भैरव को प्रकट किया और उन्हें आज्ञा दी कि इस तलवार से ब्रह्मा जी को दंड दो। आज्ञा पाते ही भैरव ने ब्रह्मा जी का बाल पकड़ लिया और उनका पांचवां सिर काट डाला।

 ब्रह्मा जी डर के मारे कांपने लगे। उन्होंने भैरव के चरण पकड़ लिए तथा क्षमा मांगने लगे। इस दृश्य को देखकर भगवान विष्णु ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि आपकी कृपा से ही ब्रह्मा जी को पांचवां सर मिला था। अतः आप उन्हें क्षमा कर दें। विष्णु जी के अनुरोध पर शिव जी की आज्ञा पाकर भैरव ने ब्रह्मा जी को छोड़ दिया।

 शिवजी ने कहा तुमने प्रतिष्ठा और ईश्वरत्व को देखने के लिए छल किया है। इसलिए मैं तुम्हें शाप दता हूं कि तुम सत्कार, स्थल और उत्सव से विहीन रहोगे। 

ब्रह्मा जी को अपनी गलती का पछतावा हो चुका था। ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के चरण पकड़कर क्षमा मांगी और निवेदन किया कि उनका पांचवां सिर पुनः प्रदान करें। महादेव जी ने कहां जगत की स्थिति को बिगड़ने से बचने के लिए पापी को दंड देना चाहिए ताकि लोक मर्यादा बनी रहे। मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम गणों के आचार्य बनें रहो और तुम्हारे बिना यज्ञ पूर्ण नहीं होगा।

शिव जी ने केतकी फूल से कहा अरे दुष्ट केतकी पुष्प अब तुम मेरी पूजा के अयोग्य रहोगे। तब केतकी पुष्प बहुत दुखी हुआ, उसके चरणों में गिर कर माफी मांगने लगा तब महादेव जी ने कहा मेरा वचन कभी झूठा नहीं हो सकता। इसलिए तुम मेरे भक्तों के समान होगा। इस प्रकार तेरा जन्म सफल हो जाएगा।

यह लेख शिवपुरण पर आधारित है। ब्रह्माजी और विष्णुजी के युद्ध को रोचक ढंग से लिखा गया है और विस्तार दिया गया है।

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