सभी तरह के पापों को नष्ट करती है रमा एकादशी


रमा एकादशी तिथि 31 अक्टूबर , दिन रविवार, कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष, दसमी तिथि को दिन के 2:27 बजे से शुरू होकर एक नवंबर दिन 1 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। 


निर्णय सिंधु पुराण के नुकसान एक नवंबर को कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष, एकादशी तिथि, दिन सोमवार को है। 


रमा एकादशी कथा में पड़े निम्नलिखित बातें


1.रमा एकादशी के दिन फाल्गुनी नक्षत्र है

2.सूर्य तुला में और चंद्रमा व कन्या राशि में

3.राहुवास उत्तर और पश्चिम दिशा में

4.अब जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त

5.पंचांग के अनुसार जानें अशुभ मुहूर्त

6.चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन और रात का शुभ काल

7.रात का शुभ मुहूर्त

8.चारों पहर में कब करें पूजा जानें विस्तार से

9.रमा एकादशी व्रत करने का विधान


रमा एकादशी की पौराणिक कथा में पढ़ें। प्रमुख बातें।


1.राजा मुचुकुंद विष्णु भक्त थे

2.चंद्रभागा का विवाह शोभन से हुआ

3.राज्य के लोगों को करना पड़ता था एकादशी व्रत

4.ना चाहते हुए भी शोभन को करना पड़ा रमा एकादशी व्रत

5.मनुष्य को कौन कहे जानवरों भी करते थे एकादशी व्रत

6.युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा व्रत करने से क्या मिलेगा फल

7.व्रत करने से शोभन को मृत्यु हो गई

8.पति की मृत्यु पर दुखी हो गई पत्नी

9.व्रत के प्रभाव से शोभन बना राजा

10.नगर के ब्राह्मण ने पहचाना लिया शोभन को

11.अस्थिर भूखंड का राजा बना शोभन

12.ब्राह्मण ने राजकुमारी को बताया जिंदा है आपके पति

13.पति से मिलने की जिद करने लगी राजकुमारी

14.व्रत के प्रभाव से राज्य को स्थित की चंद्रभागा ने

15.कथा पढ़ना और सुनना दोनों पुण्य का कार्य


रमा एकादशी के दिन फाल्गुनी नक्षत्र है


नक्षत्र पूर्वा फाल्गुनी दिन के 12:30 बजे तक, प्रथम करण बालव, द्वितीय करण कौलव और योग ऐन्दा है।


सूर्य तुला में और चंद्रमा व कन्या राशि में

एकादशी के दिन सूर्योदय 6:33 बजे पर होगा।  सूर्यास्त शाम 5:36 बजे है। सूर्य तुला राशि में, चंद्रमा सिंह राशि में शाम 6:00 बज के 40 मिनट तक रहेगा, इसके बाद कन्या राशि में चला जाएगा। अयन दक्षिणायन है। ऋतु हेमंत, दिनमान 11 घंटा 2 मिनट का और रात्रिमान 12 घंटा 57 मिनट का है।


राहुवास उत्तर और पश्चिम दिशा में

आनन्दादि योग केतु दिन के 12:53 बजे तक इसके बाद श्रीवत्स हो जाएगा। होमाहुति राहु दिन के 12:53 बजे तक इसके बाद केतु हो जाएगा। दिशा शूल पूर्व, राहुवास उत्तर-पश्चिम, अग्निवास आकाश दिन के 1:21 बजे तक इसके बाद पाताल हो जाएगा। चंद्रभास पूर्व है। शाम 6:40 बजे के बाद दक्षिण हो जायेगा।


अब जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त

अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:42 बजे से शुरू होकर 12:27 बजे तक रहेगा।

एकादशी के दिन विजय मुहूर्त दिन के 1:55 बजे से लेकर 2:39 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 5:25 बजे से लेकर 5:00 बज के 49 मिनट तक है। उसी प्रकार निशिता मुहूर्त रात 11:00 बज के 39 मिनट से लेकर 12:31 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:50 बजे से लेकर 5:42 बजे तक और प्रातः सान्धा मुहूर्त सुबह 5:16 बजे से लेकर 6:34 बजे तक रहेगा।


पंचांग के अनुसार जानें अशुभ मुहूर्त

रमा एकादशी के दिन यमगण्ड काल सुबह 10:00 बज कर 42 मिनट से लेकर 12:00 बज कर 04 मिनट तक रहेगा। उसी प्रकार राहु काल सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक, गुलिक काल दिन के 1:00 बज कर 27 मिनट से लेकर 2:50 बजे तक, दुर्मुहुर्त काल दिन के 12:27 बजे से लेकर 01:11 बजे तक और 02:39 बजे से लेकर 3:00 बज कर 23 मिनट तक है। वज्य काल शाम 7:44 बजे से लेकर 9:16 बजे तक रहेगा।

 
चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन और रात का शुभ काल

रमा एकादशी के दिन चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन और रात का शुभ मुहूर्त (समय) इस प्रकार है। एक नवंबर सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त सुबह 9:00 बजे से लेकर 10:30 तक, चर मुहूर्त दिन के 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक है। लाभ मुहूर्त शाम 3:00 बजे से लेकर 4:00 बज कर 30 मिनट तक रहेगा। एक बार फिर से अमृत मुहूर्त का सुखद संयोग आ रहा है यह संयोग शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक है। 


रात का शुभ मुहूर्त
रमा एकादशी के दिन चौघड़िया पंचांग के अनुसार रात का शुभ मुहूर्त का आगमन शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक चर मुहूर्त के रूप में होगा। उसी प्रकार रात 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक लाभ मुहूर्त, रात 1:30 से लेकर 3:00 बजे तक शुभ मुहूर्त और अमृत मुहूर्त 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे है। चर मुहूर्त सुबह 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक रहेगा।

चारों पहर में कब करें पूजा जानें विस्तार से

एकादशी व्रत करने वाले धारियों को चारों पहर  पूजा करने का विधान है। रात्रि जागरण के अलावा सुबह, शाम, रात और अहले सुबह पूजा करनी चाहिए। किस पहर में कब करें पूजा, जानें पंचांग और चौघड़िया पंचांग के अनुसार।


सुबह- रमा एकादशी के दिन सुबह 6:00 से लेकर 7:30 बजे तक अमृत मुहूर्त, 9:00 बजेेे से ले 10:30 बजे तक शुभ मुहूर्त और 11:42 बजे सेेेेे लेकर 12:00 बज कर 27 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त है।


शाम-- रमा एकादशी के शाम 5:00 बज के 36 मिनट पर सूर्यास्त हो जायेगा। इसके बाद पूजा अर्चना कर सकते हैं। शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक अमृत मुहूर्त, शाम 5:00 बज के 25 मिनट सेेे लेकर 5:00 बज 49 मिनट तक गोधूलि मुहूर्त और 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा। इस दौरान संध्या का पूजा व्रतधारी कर सकते हैं। 


रात्रि-- रात्रि बेला पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। निशिता मुहूर्तत रात 11:00 बज के 39 मिनट से लेकर 12:31 मिनट तक और लाभ मुहूर्त रात 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक है।

 

प्रातः-- सुबह समय 4:50 बजे से लेकर 5:42 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त है। उसी प्रकार प्रातः सांध्य मुहूर्त सुबह 5:16 बजे से लेकर 6:34 बजे तक और चर मुहूर्त 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक रहेगा। 


रमा एकादशी व्रत करने का विधान

रमा एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु का पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति रमा एकादशी व्रत करना चाहता है उसे व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी के दिन एक बार ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए।

 एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेकर धूप, मौसमी फल, घी एवं पंचामृत आदि से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। रमा एकादशी की रात सोना नहीं चाहिए बल्कि भगवान का भजन कीर्तन एवं सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। रात्रि जागरण करना काफी शुभ और फलदाई होता है। 

द्वादशी अर्थात पारन के दिन भगवान विष्णु का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद वितरण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करा क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। अंत में स्वयं भोजन कर उपवास खोलना चाहिए। साथ ही बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद भी लेना चाहिए।




रमा एकादशी की पौराणिक कथा

धर्मराज युधिष्ठिर कहने ने कहा हे भगवान श्रीकृष्ण! कार्तिक कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसे करने की विधि क्या है? इसके करने से किस तरह का फल मिलता है। संपूर्ण विधि विस्तारपूर्वक बताइए। 

भगवान श्रीहरि बोले कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा एकादशी है। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है। इसका माहात्म्य मैं तुमसे सुनाता हूं। ध्यान से सुनो।


राजा मुचुकुंद विष्णु भक्त थे

हे युधिष्ठिर ! प्राचीनकाल में मुचुकुंद नाम का एक राजा था। उसकी इंद्र के साथ अच्छी मित्रता थी। इसके अलावा विभीषण, वरूण, कुबेर और यमराज से भी उसके मित्र थे। राजा मुचुकुंद बड़ा ही धर्मात्मा और विष्णु के परम भक्त के अलावा न्याय के साथ राज करने वाला था। 


चंद्रभागा का विवाह शोभन से हुआ

मुचुकुंद राजा की एक कन्या थी जिसका नाम चंद्रभागा था। कन्या का विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ धूमधाम के साथ हुआ था। एक दिन कि बात है। शोभन अपना ससुराल पहुंचा। कुछ दिनों के उपरांत रमा एकादशी आने वाली थी।

राज्य के लोगों को करना पड़ता था एकादशी व्रत

व्रत का दिन निकट आ गया तो चंद्रभागा के मन में डर और सोच उत्पन्न हुआ कि मेरे पति अत्यंत दुर्बल और कमजोर हैं। मेरे पिता की आज्ञा अत्यंत कठोर है। दशमी को राजा ने अपने राज्य में ढोल बजवाकर  यह घोषणा करवा दी कि एकादशी के दिन कोई भी व्यक्ति भोजन नहीं कर सकता है। 


न चाहते हुए शोभन को करना पड़ा व्रत

राजा के द्वारा रमा एकादशी के दिन निर्जला व्रत रखने की बात सुनते ही शोभन को अत्यधिक चिंता हुई और अत्यंत दुःखी मन अपनी पत्नी से कहा कि हे प्राणप्रिया! अब मुझे क्या करना चाहिए, मैं एक पहर भी भूख सहन नहीं कर सकूंगा। तुम मुझे एक ऐसा सुझाव दो जिससे मेरे प्राण बच जाये और मैं एकादशी व्रत भी कर सकू।


मनुष्य को कौन कहे जानवरों भी करते थे व्रत

चंद्रभागा ने अपने पति से कहा कि हे स्वामी! मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन मनुष्य क्या कोई भी जानवर भी भोजन नहीं करता। घोड़ा, हाथी, गदहा, गौ माता, बिल्ली सहित अन्य भी अन्न, जल और चारा भी ग्रहण नहीं कर करते हैं।

 अगर आप भोजन करना चाहते हैं तो किसी दूसरे जगह पर चले जाइए। अगर आप मेरे साथ रहना चाहते हैं तो आपको रमा एकादशी व्रत करना ही पड़ेगा। ऐसा सुनकर राजकुमार शोभन ने कहा हे प्रिये! मैं रमा एकादशी व्रत जरूर करूंगा। मेरे जो भाग्य में जो लिखा होगा, वह देखा जाएगा।


युधिष्ठिर ने पूछा श्रीकृष्ण से व्रत करने से क्या मिलेगा फल

युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कार्तिक कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले रमा एकादशी का नाम कैसे पड़ा। इस व्रत करने का क्या है विधि। व्रत करने का फल कैसे मिलता हैं। इसे विस्तार से बताइए। ऐसा पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा रमा एकादशी करने से बड़े-बड़े पाप का नाश होता है।


व्रत करने से शोभन को हो गई मृत्यु
 

शोभन ने हिम्मत रखकर व्रत रख लिया। व्रत रखने पर भूख व प्यास से अत्यधिक पीडि़त होने लगा शोभन। सूर्यास्त हो गए और रात्रि में जागरण का समय आया तो व्रतधारियों में अत्यधिक हर्ष होने लगा, इधर शोभन भूख और प्यास से अत्यंत दु:खी होने लगा। सुऊ होते ही शोभन के प्राण पखेरु निकल गए।


पति की मृत्यु पर दुखी हो गई पत्नी
 

राजा ने सुगंधित काष्ठ से अपने दामाद का दाह संस्कार विधि विधान और धार्मिक अनुष्ठान के अनुसार करवाया। परंतु चंद्रभागा ने अपने पिता की आज्ञा से अपने शरीर का त्याग नहीं किया और शोभन के शरीर की क्रिया कर्म के बाद चंद्रभागा अपने पिता के महल में अपने पति के वियोग करते हुए रहने लगी।

मरने के उपरांत शोभन को रमा एकादशी के तेज से मंदराचल पर्वत पर सोना, चांदी, हीरा और मोती से युक्त तथा शत्रुओं से विजेता एक सुंदर महल प्राप्त हुआ। 


व्रत के प्रभाव से शोभन बना राजा

महल अत्याधिक सुंदर रत्न और स्वर्ण जड़ित खंभों पर निर्मित था। अनेक प्रकार की स्फटिक मणियों से सुशोभित महल में बहुमूल्य वस्त्रा भूषणों से युक्त होकर शोभन रहने लगा। गंधर्व और अप्सरा शोभन के दास थे। इंद्र के दरबार के समान ही शोभन का भी विहंगम दरवार था।


नगर के ब्राह्मण ने पहचाना लिया शोभन को
 

एक समय कि बात है मुचुकुंद नगर में रहने वाले  सोम शर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थयात्रा पर निकला था। सोम शर्मा घूमता-घूमता उस नगरी में पहुंच गया। उसने राजा बने शोभन को पहचान लिया। उसने देखा यह तो राजा मुचुकुंद का दामाद शोभन है। सोम शर्मा राजा के निकट गया।

 शोभन भी उसे पहचान लिया। फिर अपने आसन से उठकर उसके पास गया और प्रणाम कर अपनी पत्नी और राजा मुचुकुंद का सामाचार पूछा। ब्राह्मण ने शोभन से कहा कि राजा मुचुकुंद और आपकी पत्नी दोनों कुशल से हैं। नगरवासी भी कुशल हैं। राजन! हमें आश्चर्य हो रहा है। आपके सुंदर नगर जो मैंने कभी न देखा, और  न ही सुना है। यह आपको कैसे प्राप्त हुआ।


 अस्थिर भूखंड का राजा बना शोभन

शोभन ने सोम शर्मा को बताया कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी का व्रत करने से मुझे यह नगर और सुंदर महल प्राप्त हुआ, परंतु यह भूखंड अस्थिर है। यह स्थिर हो जाए ऐसा उपाय ब्राह्मण देवता कीजिए। ब्राह्मण ने कहा कि हे राजन! यह राजमहल क्यों स्थिर नहीं है और यह कैसे स्थिर हो सकता है आप इसका उपाय बताइए।

 शोभन ने कहा कि मैंने रमा एकादशी व्रत को श्रद्धा पूर्वक नहीं किया था। इसलिए यहां सब कुछ अस्थिर है। यदि आप मुचुकुंद की कन्या अर्थात मेरी पत्नी चंद्रभागा को यह सब बातें कहें तो यह महल स्थिर हो सकता है।


ब्राह्मण ने राजकुमारी को बताया जिंदा है आपका पति

सोभन की बात सुनकर कुल श्रेष्ठ ब्राह्मण ने अपने नगर लौटकर राजकुमारी चंद्रभागा से सारा वृत्तांत विस्तार से सुनाया। ब्राह्मण के बात सुनकर चंद्रभागा को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने व्याकुल होकर ब्राह्मण से पूछा हे कुल श्रेष्ठ ब्राह्मण! ये सब बातें आपने अपनी आंखों से देखी हैं या स्वप्न की बातें कर रहे हैं।

ब्राह्मण कहने लगा कि हे राजकुमारी ! मैंने  तुम्हारे पति सोभन को अपने इन आंखों से देखा है। देवताओं के नगर के समान आपके पति का नगर भी मैंने देखा है। परन्तु उक्त नगर स्थिर नहीं है। किस प्रकार से वह स्थिर रह सके वैसा उपाय करना चाहिए।


पति से मिलने की जिद करने लगी राजकुमारी

चंद्रभागा ब्राम्हण से कहने लगी हे विप्र! आप मुझे मेरे पतिदेव के पास ले चले, मुझे अपने पतिदेव का दीदार करना है। मैं अपने अर्जित किए हुए पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूंगी। आप ऐसा काम कीजिए जिससे उनका हमारा मिलन हो सकें। एक वियोगी को मिलाना महान पु्ण्य का कार्य है।

 सोम शर्मा यह बात सुनकर चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर पहुंच गया। वामदेव ऋषि ने सारी बात सुनकर दिव्य नेत्रों से चंद्रभागा को अपने पति का दर्शन करा दिया। इसके बाद ऋषि वामदेव ने वेद मंत्रों के प्रभाव और एकादशी व्रत के आशीर्वाद से चंद्रभागा का शरीर दिव्य कर दिया और चंद्रभागा दिव्य गति को प्राप्त हुई।

इसके बाद बड़ी प्रसन्नता के साथ चन्द्रभागा अपने पति के सामने गई। अपनी प्रिय पत्नी को आते देखकर शोभन अति प्रसन्न हुआ। और उसे बुलाकर अपनी बाईं तरफ बिठा लिया। चंद्रभागा कहने लगी कि हे प्राणनाथ! आप मेरे पुण्य को ग्रहण कीजिए। 


व्रत के प्रभाव से राज्य को स्थित की चंद्रभागा

जब मैं अपने पिता के घर आठ वर्ष की थी तब से विधिपूर्वक और पूरी निष्ठा से रमा एकादशी व्रत को करती आ रही हूं। मेरे पुण्य और प्रताप से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा तथा समस्त कर्मों से युक्त होकर प्रलय के अंत तक रहेगा। इस प्रकार चंद्रभाग अपने पति के साथ आनंदपूर्वक रहने लगी।


कथा पढ़ना और सुनना दोनों पुण्य का कार्य

हे युधिष्ठिर मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य आपको कहा सुनाया, जो मनुष्य इस व्रत को पूरी निष्ठा पूर्वक करते हैं, उनके ब्रह्म हत्या, अकाल मृत्यु सहित समस्त पाप खत्म हो जाते हैं। हर महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों की एका‍दशियां एक समान हैं, इनमें किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं है। दोनों समान फल देती हैं।


जो भी जातक इस माहात्म्य को पढ़ता है या सुनता हैं, उसे समस्त पापों से छूटकर मिल जाता है और विष्णु धाम को प्राप्त करता हैं।


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