शुक्रवार को लक्ष्मी पूजा और दशहरा एक साथ
नवरात्रा में मां भवानी की नौ रूपों की 9 दिनों तक विधि विधान से और वैदिक मंत्रों के बीच से पूजा अर्चना किया जाता है।
अगर कोई व्यक्ति 9 दिनों तक व्रत रखने में कठिनाई महसूस करता है। वैसी स्थिति में उसे सिर्फ महासप्तमी, महाष्टमी और महानवमी की व्रत रखें और पूरे विधि विधान से करें। 9 दिनों तक चलने वाले व्रत का फल उसे प्राप्त हो जाता है।
भगवती पुराण में कहा गया है कि मां के तीन दिनों के रूप कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजन भक्ति पूर्वक करने से उसे सभी तरह का फल प्राप्त हो जाता है।
मां भगवती की पूजन क्यों करनी चाहिए
पृथ्वी लोक में जितने भी प्रकार के व्रत और दान हैं। इस नवरात्र व्रत के तुल्य नहीं है क्योंकि यह व्रत हमेशा धन-धान्य, ऐश्वर्या और शक्ति प्रदान करने वाला, सुख तथा संतान की वृद्धि करने वाला, आयु तथा आरोग्य प्रदान करने वाला और स्वास्थ्य देने वाला है।
जिस मनुष्य ने दुख तथा संताप का नाश करने वाली सिद्धियां देने वाली जगत में सर्वश्रेष्ठ शाश्वत तथा कल्याण स्वरूपिणी मां भगवती की उपासना नहीं की है वह इस पृथ्वी लोक पर सदा ही अनेक प्रकार के कष्टों से ग्रस्त दरिद्र तथा रोगों से पीड़ित है। ऐसे लोगों को जरूर नवरात्रि पर्व करनी चाहिए।
भगवान विष्णु, इन्द्र, शिव, ब्रह्मा, अग्नि, कुबेर, वरुण सहित समस्त देवी-देवताओं अपने कामनाओं को परिपूर्ण करने के लिए जिन भगवती का ध्यान करते हैं, उस चंडिका का हमें भी ध्यान करना चाहिए। जिन की इच्छा से ब्रह्मा द्वारा विश्व का श्रृजन करते हैं। भगवान विष्णु अनेक विधि अवतार लेते हैं और शंकर भगवान जगत को भस्मसात करते हैं।
मां भगवती को पूजन करने से चारों प्रकार के पुरुषार्थ मनुष्य को प्राप्त होता है। मसलन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति मनुष्यों को भगवती का अनुष्ठान और पूजा करने से मिलते हैं।
महाष्टमी को कैसे करें विशेष पूजा
नवरात्रा के दौरान महाष्टमी को महागौरी की आराधना और पूजा की जाती है। अष्टमी तिथि की रात संधी पूजा (निशा पूजा) होती है। 12 बजे के बाद संधि पूजा करने का विधान है। संधी पूजा के दौरान बलि देने की प्रथा है परंतु बदले माहौल में मां के भक्त गन्ना और चालकुमड़ा की बलि देते हैं।
संधी पूजा में भाग लेने वाले लोग अकाल मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। 3 से 5 घंटे तक चलने वाली पूजा में प्रसाद के रूप में सुगंध वाला चंदन, पुष्प की माला, खीर और मौसमी फल चढ़ाएं।
इस दिन कुमारी कन्याओं को पूजन के साथ भोजन कर यथाशक्ति दान देना चाहिए। अष्टमी तिथि को व्रत रखें और मां से निरोग रहने की कामना करें।
अष्टमी का दिन मां गौरी का दिन है, जिनके बारे में कहा जाता है जो व्यक्ति अष्टमी के दिन अगर दिल से मां को पुकारता है, तो मां भवानी तुरंत अपने भक्त की पीड़ा दूर करती हैं।
आदिशक्ति का महापर्व नवरात्रि इस वक्त पूरे देश में पूरी श्रद्धा, भक्ति, निष्ठा और विश्वास के साथ मनाया जा रहा है।
13 अक्टूबर रात 9 बजकर 47 मिनट से अष्टमी शुरू हो जाएगा। जो कि 14 अक्टूबर रात 10 बजकर 07 मिनट रहेगी। 14 अक्टूबर को रात 10 बजकर 08 मिनट से महानवमी लग जाएगी। इसलिए निर्णय सिंधु पुराण के अनुसार जो अष्टमी की व्रत करते हैं। वैसे लोग शनिवार को पूजा, व्रत और कुमारी कन्याओं की पूजन करेंगे। महानवमी का व्रत रखते हैं और हवन करते हैं वैसे जातक 13 अक्टूबर को करना चाहिए। महादशमी और दशहरा 14 अक्टूबर को मनाया जायेगा।
सिद्धिदात्री मां को शतावरी और नारायणी कहते हैं
महानवमी मां सिद्धिदात्री का दिन होता है। मां दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप को शतावरी और नारायणी भी कहा जाता है। जो शक्ति का पर्याय हैं। मां के इन दोनों रूप की पूजा करने वाले को कभी भी कोई कष्ट और अकाल मृत्यु नहीं होता हैं। वैसे मनुष्य हमेशा खुश, निरोग और संपन्न रहते है। मां भगवती अपने भक्त के हर कष्ट को दूर करती हैं और उन्हें निरोग रखती हैं। मानव भय से दूर, जीवन के हर सुख को प्राप्त करता है।