51 शक्तिपीठों के बारे में जाने विस्तार से संपूर्ण जानकारी



भगवान भोलेनाथ के समझाने पर भी माता सती उनकी एक बात न सुनी और नारदजी के बहकावे में आकर पिता राजा दक्ष प्रजापति द्वारा हरिद्वार में आयोजित बृहस्पति सर्व यज्ञ में जाने की जीद ठान लीं।


राजा दक्ष ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे और ना चाहते हुए भी अपने पिता ब्रह्मा जी के आदेश पर भगवान भोले शंकर से अपनी पुत्री सती की विवाह करानी पड़ी।


माता सती से विवाह होने के कारण भगवान भोलेनाथ से प्रजापति दक्ष को दुश्मनी हो गई। इसी कारण प्रजापति दक्ष ने आयोजित यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र सहित तीनों लोक के देवी देवताओं, ऋषि-मुनियों सहित अन्य को निमंत्रण पत्र दिए। पर अपने प्रिय पुत्री सती के पति भगवान भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया।


यह समाचार मिलने पर मां सती अपने पिता के यहां जाने की जीद कर बैठी। अंत में भोलेनाथ ने अपने गणों के साथ माता पार्वती को महाराज दक्ष के यहां जाने की आज्ञा दे दी।


जब माता सती राजा दक्ष के यज्ञ स्थल पर पहुंची तो, प्रजापति दक्ष ने सती का स्वागत ना करते हुए मुंह फेर लिया। साथ ही सती और शिव की आलोचना करने लगे। कहावत कहा गया है बिना बुलाए कहीं भी, किसी भी व्यक्ति को, नहीं जाना चाहिए।


माता सती ने भयंकर भूल कर बैठी। अपने सामने अपने पति का अपमान सहना कर न सकी और यज्ञ स्थल स्थित बनें अग्नि कुंड में कूदकर माता सती जान दे दी।


यह समाचार जब गणों द्वारा भोलेनाथ को मिला, तो उन्होंने अपने जटा से बलभद्र और काली को जन्म देकर दक्ष के यज्ञ को विनाश कर देने का आदेश दे दिया। दोनों शिव अंश ने गणों के साथ लेकर यज्ञ स्थल पर धावा बोल दिया और यज्ञ स्थल को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया। साथ ही राजा दक्ष प्रजापति का सर काट कर हत्या कर दी।


भगवान भोलेनाथ माता को यज्ञस्थल पर अपनी अर्धांगिनी को मृत पड़े देखे तो, उन्होंने तांडव नृत्य करने लगे और अपने कंधे पर सती की पार्थिव शरीर को उठाकर तीनो लोक का भ्रमण करने निकल पड़े। भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता के अंगों की 51 जगहों से काट दिया, जो देश और विदेश के विभिन्न क्षेत्रों में गिरे।


माता सती की शरीर का अंग और आभूषण जहां जहां गिरा उस स्थान को शक्तिपीठ का नामों से जान जाता है।

 जानें देश और विदेश में कहां-कहां है शक्ति पीठ। देवी की शक्तिपीठ नेपाल, श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में स्थित है।

कहां कहां है शक्ति पीठ जानें विस्तार से

भारत के कश्मीर केन्द्र शासित राज्य में महामाया शक्तिपीठ है। कश्मीर स्थित पहलगांव के पास मां का कंठ गिरा था। यहीं माहामाया शक्तिपीठ बना

ज्वालामुखी सिद्धि पीठ भारत के हिमांचल प्रदेश स्थति कांगड़ा मेंं स्थित है। यहां माता सती की जीभ गिरी थी। इसे मां ज्वालाजी स्थान भी कहते हैं।


विशालाक्षी शक्तिपीठ यह यूपी के वाराणसी के गंगा नदी स्थित मणिकर्णिका घाट पर अवस्थित है। यहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे।


माता सती के हाथ की उंगलियां उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित गंगा घाट पर गिरी थी। यहां भी सती शक्तिपीठ स्थित है।

पंजाब के जालंधर में मां सती की शक्ति पीठ है। यहां माता सती का वाम (वामा)स्तन गिरा था।

देवीकूप शक्तिपीठ हरियाणा के कुरुक्षेत्र के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है। इसे श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ के नाम से जाना जाता है। यहां माता का दहिना चरण गिरा था।

बिहार के पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी मां की प्रसिद्ध मंदिर है। वह भी शक्तिपीठ है। यहां माता सती की दाहिनी जंघा गिरी थी। 

मानस शक्तिपीठ ज़ो तिब्बत देश के कैलाश पर्वत स्थित मानसरोवर तट पर अवस्थित है। माता की दाहिनी हथेली गिरी थी।

करवीर शक्तिपीठ महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में  स्थित है। जहां माता का त्रिनेत्र्र(तीनों आंख)  गिरा था। इसे महालक्ष्मी का निज निवास स्थान माना जाता है।

महालक्ष्मी शक्तिपीठ महाराष्ट्र में नासिक के पंचवटी में स्थित है। यहां माता की ठोड़ी गिरी थी। इसे दक्षिण का काशी भी कहा जाता है।

अम्बाजी शक्तिपीठ गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित है। यहां माता का दिल गिरा था। कुछ ग्रंथों में जूनागढ़ के गिरनार पर्वत पर शक्तिपीठ होने और उदर गिरने की मान्यता है।

मणिवेदिका शक्तिपीठ राजस्थान सूबे के पुष्कर धाम में स्थित है। इसे गायत्री मन्दिर के नाम से विख्यात है। यहां माता सती की कलाइयां गिरी थीं।

अम्बिका शक्तिपीठ जो विराट, जयपुर के वैराट गांव में स्थित है। यहां मां सती के 'दाएं पांव की अंगुलियां गिरी थीं। यह देश का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है।

आंध्र प्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर त्रिसंध्या शक्तिपीठ स्थित है। इसे जागृत शक्तिपीठ कहा जाता है। यहां सती माता का बायां कपोल गिरा था।

शुचीन्द्रम शक्तिपीठ यह तमिलनाडु राज्य के कन्याकुमारी के तीन सागर के मिलन अर्थात  संगम स्थल पर स्थित है, जहां सती के ऊर्ध्वदन्त गिरे थे।

श्रीशैल शक्तिपीठ जो आंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिला के पास स्थित है। यहां माता सती  की ग्रीवा गिरी थी।

तमिलनाडु के कांचीवरम में कामाकक्षी शक्तिपीठ है। यहां माता का कंकाल गिरा था।

किरीट शक्तिपीठ जोोपश्चिम बंगाल के  हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है। यहां माता सती का किरीट यानी शिरोभूषण सर पर धारण करने वाला मुकुट गिरा था।

अट्टहास शक्तिपीठ जो पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्धमान जिला के कटवा प्रखंड स्थित निरोला गांव  में स्थित है। यहां माता सती के नीचे का दोनों  होंठ गिरा था।

नन्दीपुर शक्तिपीठ जो पश्चिम बंगाल के बोलपुर जिले में स्थित है। बोलपुर जिला स्थित शांति निकेतन से 33 किलोमीटर दूर सैन्थया रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूर स्थित एक बरगद वृक्ष के नीचे नंदीपुर शक्तिपीठ अवस्थित है। यहां मां नंदिनी और भगवान भोले शंकर नंदीकेश्वर के रूप में विराजते हैं। यहां मां का कण्ठहार गिरा था।

नलहटी शक्तिपीठ जो पश्चिम बंगाल के बोलपुर स्थित नलहटी में स्थित है जहां सती की उदरनली गिरी थी। यह शक्ति पीठ मां दुर्गा और भगवान शिव को समर्पित है।

बहुला शक्तिपीठ जो पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में है। यहां माता का वाम बाहु गिरा था। यह शक्तिपीठ मां दुर्गा और भगवान शिव को समर्पित है। यहां माता सती बहुला रूप है तथा भगवान  भैरव भीरुक रूप में है।


त्रिस्तोता शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल की जलपाइगुड़ी जिला के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है। यहां माता का वाम चरण गिरा था।यहां सती भ्रामरी लक्ष है और भोले शंकर ईश्वर के रूप में विराजमान है। 

विभाष शक्तिपीठ जो पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में ताम्रलुक गांव में रूपनारायण नदी के तट पर स्थित वर्गभीमा का विशाल मंदिर ही विभाष शक्तिपीठ कहलाता है। यहां की शक्ति कपालिनी भीमरूपा तथा भैरव सर्वानंद है।यहां माता सती की वाम टखना गिरा था। 

युगाद्या शक्तिपीठ जो पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले में महाकुमार मंगलकोट थाना के क्षीरग्राम में स्थित है यहां शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी युगाद्या तथा भैरव क्षीर कंटक है। यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था। 

पश्चिम बंगाल के कोलकाता स्थित हुगली नदी पर काली घाट शक्तिपीठ स्थित है। यहां मां का स्वरूप शंकर के छाती पर पैर रखे हुए गले में नरमुंड का माला पहने हुए और लंबी जीभ निकाले हुए हैं। जीभ से रक्त लटकने की आकृति बनती है। यहां की शक्ति कालिका और भैरव नकुलेश है। कालीघाट शक्तिपीठ कालीमन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां दाएं पांव का अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं

वक्रेश्वर शक्तिपीठ जो पश्चिम बंगाल के बीरभूम सैंथिया गांव में है। यहां मां सती की मन गिरा था। यहां सती को महिषासुरमर्दिनी तथा शिव को वक्तथ कहा जाता है।

कामाख्या शक्तिपीठ जो असम, गुवाहाटी के नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यह शक्तिपीठ तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थान माना जाता है । यही भगवती का महामुद्रा अर्थात योनि कुंड स्थित है। अम्बुवाची पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। यहां माता सती की योनि गिरा था।


जयन्ती शक्तिपीठ जो मेघालय की जयन्तिया पहाड़ी पर स्थित है। यहां माता सती की वाम जंघा गिरी थी। सती जयंती और शिव क्रमदीश्वर के रूप में स्थित है।

त्रिपुरसुन्दरी शक्तिपीठ त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है। जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां माता सती को त्रिपुर सुंदरी और शिव को त्रिपुरेश कहते हैं।

विरजा शक्तिपीठ जो उत्कल , उड़ीसा के याजपुर के वैतरणी नदी के तट पर स्थित है। माना जाता है कि याहां माता की नाभि गिरी थी। यहां माता के स्वरूप को महिषासुरमर्दिनी कहा गया है।

झारखंड के देवघर स्थित ह्रदय शक्तिपीठ जो बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है। यहां माता का हृदय गिरा था। मान्यता है, यहीं सती का दाह-संस्कार हुआ था। वहां शक्ति को जय दुर्गा और शिव को बैद्यनाथ के रूप में जाना जाता है।


मध्य प्रदेश, उज्जैन के क्षिप्रा नदी के तट पर हरसिद्धि शक्तिपीठ है। यहां माता की कोहनियां गिरी थीं।

मध्य प्रदेश के अमरकंटक पर्वत माला से नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी का उदगम स्थल है काल माधव शक्तिपीठ नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। यहां सती को काली और शिव को असितांग माना गया है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। 

यह भी मान्यता है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही सोन तटस्था ताराचंडी शक्तिपीठ है।

‌ श्रीलंका में लंका शक्तिपीठ है। यहां नूपुर गिरे थे। यह ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है कि किस स्थान पर गिरे थे। यहां सती को इंद्राक्षी और शिव को राक्षसेश्वर माना गया है।


श्रीलंका स्थित गंडकी शक्तिपीठ जो गंडक नदी का उद‌्गम स्थल पर है। यहां सती के दाहिने गाल गिरे थे। सती को महामाया के रूप में तथा शिव के चक्रपणि के रूप में पूजा जाता है।

गुह्येश्वरी शक्तिपीठ जो नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के थोड़ी दूर बागमती नदी की दूसरी ओर स्थित है। यहां मां के दोनों घुटनें का निपात गिरे थे। सती को महामाया और शिव को कपाल के रूप में पूजे जाते हैं।

हिंगलाज शक्तिपीठ जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में स्थित है। यहां माता की ब्रह्मरन्ध्र गिरा था। पाकिस्तान के हिंगोल नदी के तट पर स्थित इस मंदिर को नानी मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर छोटी सी प्राकृतिक गुफा में बना हुआ हैं। देवी की कोई मानव निर्मित प्रतिमा नहीं है। बल्कि एक छोटे आकार के शिला है। हिंगलाज माता को प्रतिक के रूप में पूजते हैं।

सुगंधा शक्तिपीठ जो बांग्लादेश के बारीसाल के शिकारपुर गांव के सुगंधा नदी के तट पर स्थित उग्रतारा मंदिर को सुगंधा शक्तिपीठ कहते हैं। शक्ति को सुनंदा और शिव को त्र्यंम्बक के रूप में पूजे जाते हैं। यहां माता का नासिका (नाक) गिरी थी।


करतोयाघाट शक्तिपीठ जो बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर स्थित है। यहां माता का वाएं पैर पायल गिरी थी। इस शक्तिपीठ में भगवान शंकर को भैैैरवर और माता सती को अर्पणा रूप में पूजे जाते हैं।

चट्टल शक्तिपीठ जो बंग्लादेश के चटगांव में स्थित है। यहां माता की यहां दाहिनी भुजा गिरी थी। शक्तिपीठ स्थल पर गर्म पानी के प्राकृतिक झरने हैं। माता को भवानी और भैरव को चन्द्रशेखर के रूप में पूजते हैं।

यशोर शक्तिपीठ जो बांग्लादेश के खुलना जिले के जैसोर गांव में स्थित है। यहां मां की बायीं हथेली गिरी थी। स्वती को योगेश्वरी और शंकर को चंद्र के रूप में पूजन की जाती है।

श्री पर्वत शक्तिपीठ: जम्मू कश्मीर के लद्दाख में स्थित है। यहां मां सती की दाहिने पैर की पायल गिरी थी। इस शक्तिपीठ में सती को सुंदरी और शिव को सुंदरानंद के रूप में पूजे जाते हैं। कुछ ऐतिहासिक विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख क्षेत्र है, कुछ का मानना है कि यह असम क्षेत्र के सिलहट में है। 

पंच सागर शक्तिपीठ : पंच सागर शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान अभी तक ज्ञात नहीं हुआ है।

भैरव पर्वत शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित भैरव पर्वत पर स्थित है। किंतु इसकी स्थिति को लेकर धर्म आचार्यों में मतभेद है। कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदी तट पर स्थित भैरव पर्वत को मानते हैं। तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के निकट स्थित भैरव पर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अतः दोनों स्थानों की शक्तिपीठ की मान्यता सामान्य है। यहां मां शक्ति को अवंती और शिव को लंबकर्ण के रूप में पूजते हैं। यहां माता सती के ऊपरी होठ गिरी थी।

मिथिला शक्तिपीठ तीनों स्थानों पर स्थित है। पहला उग्रतारा मंदिर बिहार के सहरसा में, दूसरा जय मंगला देवी बिहार के समस्तीपुर में और तीसरा वन दुर्गा मंदिर नेपाल के जनकपुर में स्थित है। यहां सती को उमा य महादेवी और भैरव को महोदर के रूप में पूजा जाता है। यहीं पर माता के वाम स्कंध का निपात हुआ था। 

रत्नावली शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के हुगली जिला स्थित खाना कुल और कृष्णा नगर मार्ग पर अवस्थित रत्नावली गांव के रत्नाकर नदी तट पर स्थित है। स्थान को लेकर धर्म आचार्यों के बीच काफी मतभेद है। 


बंगाल पंजिका में वर्णित कथा के अनुसार तमिलनाडु के चेन्नई में यह शक्तिपीठ कही अज्ञात स्थान पर स्थित है। यहां शक्ति को कुमारी और भैरव को शिव मानकर पूजा अर्चना किया जाता है। 

कालमाधव शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के अमरकंटक में स्थित है। सती को काली और शिव को असितंग माना जाता है। देवी सती की वाम नितम्ब यहां गिरी थी। इस शक्तिपीठ के बारे में मतभेद है। 

शिव पुराण कहा गया है की मां की शक्तिपीठों का नाम का स्मरण करने से पुण्य मिलता है। नवरात्रा के दिन सभी शक्तिपीठों का प्रतिदिन स्तुति किया जाए तो काफी शुभ परिणाम देखने को मिलता है।








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