तीज पूजा का शुभ मुहूर्त संध्या 6:00 से रात्रि 9:00 तक।
हरियाली तीज पर जानें पूजा करने की विधि, पौराणिक कथा, पारन करने का समय, पूजा सामग्री और कैसे करें पूजन।
श्रवणी, सिंघारा और हरियाली तीज 11 अगस्त 2021 दिन शनिवार को है। इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती है। भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती, गणेश और सखियों की प्रतिमा बनाकर पूजा-अर्चना करती है। हरियाली तीज को हरितालिका तीज भी कहा जाता है।
क्यों कहते हैं हरियाली तीज
इस व्रत को हरितालिका तीज इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि पार्वती की सखियां उन्हें पिता और महल से भगाकर कर जंगल में ले गई थी। हरित का मतलब होता है हरण करना और तालिका का मतलब होता है सखी।
तात्पर्य है कि सखियों द्वारा माता पर्वती को अपहरण करके जंगल में ले जाना और तपस्या कर भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए उत्साहित करना है।
क्यों कहते हैं श्रावणी तीज
श्रावण मास, शुक्ल पक्ष, तृतीया तिथि को पति के दीर्घायु की कामना कर सुहागिन महिलाएं तीज व्रत करती है। सावन माह में पड़ने के कारण इस चीज को श्रावणी तीज भी कहा जाता हैं। सावन महीना भोलेनाथ का महीना है। और इस दिन पर्वती की घोर तपस्या से खुश होकर भगवान शिव दर्शन दिए थे। और पत्नी के रूप में स्वीकार किए थे। इसलिए इस महीना को इस व्रत को श्रावणी तीज व्रत कहा जाता है।
क्यों कहा जाता है सिंघारा तीज
सिंघारा (सिंधोरा) तीज का मतलब होता है। जिस वस्तु में सिंदूर रखा जाता है। सिंदूर सुहागन से जुड़ा हुआ प्रमुख सिंगार है। सुहागन महिलाएं तीज त्यौहार मैके में जाकर करती है। ससुराल से सिंगार के सामान के अलावा नया वस्त्र, चूड़ी और सिंधोरा में सिंदूर आता है।
सिंघारा उत्सव तीज के एक दिन मनाया जाता है। इस दिन कुंवारी और विवाहिता महिलाएं हाथों में मेहंदी का लेप लगाती है और नैहर से आए श्रृंगार के सामानों से सजती धजती है। झूले झूलने की परम्परा है।
जानें पूजा करने का उचित समय चौघड़िया और पंचांग के अनुसार
11 अगस्त, दिन बुधवार को सावन मास, शुक्ल पक्ष, तृतीया तिथि जो शाम 4:33 तक रहेगा। आज अभिजीत मुहूर्त का संयोग नहीं है। इस दिन नक्षत्र पूर्वाफाल्गुनी सुबह 9:32 तक है। प्रथम करण गर 4:53 तक एवं द्वितीय करण वणिज है। योग शिवा शाम 6:28 तक। सूर्योदय 5:58 बजे पर और सूर्यास्त 7:04 बजे पर होगा। चंद्रोदय सुबह 8:15 पर और चंद्र अस्त 9:10 बजे। सूर्य कर्क राशि में और चंद्रमा सिंह राशि में 3:00 बज के 24 मिनट तक इसके बाद कन्या राशि में चला जाएगा। सूर्य दक्षिणायन दिशा में स्थित है।
दिनमान 13 घंटा 16 मिनट का और चन्द्रमान 10 घंटा 44 मिनट का रहेगा। आनन्दादि योग सुस्थिर सुबह 9:00 बज के 32 मिनट तक इसके बाद प्रबर्धमान हो जायेगा। होमाहूति सूर्य सुबह 9:32 तक, इसके बाद बुध हो जाएगा। दिशाशूल उत्तर, राहुवास दक्षिण पश्चिम, अग्निवास पृथ्वी शाम 4:53 बजे इसके बाद आकाश हो जायेगा। चंद्रवास पूर्व 3:00 बज के 24 मिनट तक इसके बाद दक्षिण दिशा में हो जाएगा।
जाने पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त का संजोग आज नहीं बन रहा है। विजया मुहूर्त 2:39 बजे से लेकर 3:32 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 6:51 से लेकर 7:15 तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त 7:04 से लेकर 8:09 तक निशिता मुहूर्त रात 12:05 बजे से लेकर 12:48 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:23 बजे से लेकर 5:06 बजे तक प्रातः मुहूर्त 4:44 बजे से लेकर 5:49 बजे तक रहेगा।
अशुभ मुहूर्त
हरियाली तीज के दिन सुबह 7:28 से लेकर 9:07 तक यमगण्ड काल रहेगा। 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक राहु काल, सुबह 10:47 बजे तक से लेकर 12:26 बजे तक गुलिक काल, दिन के 12:00 बजे से लेकर 12:53 बजे तक दुर्मुहूर्त काल और शाम 4:32 से लेकर 5:06 बजे का वज्र्य काल रहेगा। इस दौरान पूजा करना वर्जित है।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त का शुभारंभ सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक लाभ मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक अमृत मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक शुभ मुहूर्त के रूप में, शाम 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक चर मुहूर्त के रूप में रहेगा। एक बार फिर से लाभ मुहूर्त 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक है। इस दौरान पूजा करना काफी शुभ और फलदायी है।
चौघड़िया पंचांग अनुसार अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त 9:00 बजे से शुरू हो रहा है। 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक काल मुहूर्त, 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक रोग मुहूर्त और 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक उद्धेग मुहूर्त का संयोग है। इस दौरान पूजा अर्चना करना हितकर नहीं होगा।
पूजा सामग्री की सूची
बेलपत्र, केले के पत्ते, धतूरा, अकव पेड़ के पत्ते, तुलसी, दूब, शमी के पत्ते, काले रंग की गीली मिट्टी, बालू, जनेऊ, धागा, नए पीले वस्त्र, पीली चूड़ियां, माहौर, सिंदू,र बिछुवा, मेंहदी, कुमकुम, कंघी, सिंगार के सामान, श्रीफल, मिट्टी के कलश, अबिर, चंदन, तेल, कपूर, दही, चीनी, गुड, शहद, दूध, गंगाजल और पंचमेवा की आवश्यकता होती है।
पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार मां पार्वती अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर्वत पर प्रवाहित होने वाली गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तपस्या किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय तक सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने निराहार रहकर केवल वायु (हवा) पीकर ही जींदा रही।
माता पर्वती की स्थिति देखकर पिता हिमालय राजा अत्यंत दुखी थे। इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के समक्ष पहुंचे। उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पिता ने माता पार्वती को उनके विवाह के संबंध में बात बताई। पिता की बातें सुनकर मां पार्वती ज़ोर ज़ोर से रोने लगी और विलाप करने लगी।
सहेली के पुछने पर माता ने बताई कि वह भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वह कठोर व्रत कर रही है। जबकि उनके पिता उनका विवाह श्रीहरि (भगवान विष्णु) से कराना चाहते हैं। तब सहेलियों की सलाह पर माता पर्वती घनाघोर जंगल में चली गई और वहां एक बड़े गुफा में जाकर भगवान भोलेनाथ की आराधना में लीन हो गई।
भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, द्वितीय तिथि के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने बालु से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छा अनुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधान पूर्वक और पूर्ण निष्ठा से भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और सखियों की पूजा अर्चना करती है। उसे अपने मन के अनुसार पति को प्राप्त करती है। साथ ही पति-पत्नी के दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रहती है।
जानें पूजा करने की विधि
सर्वप्रथम उमा महेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये मंत्र का जप करते हुए संकल्प लेकर व्रत का शुभारंभ करने चाहिए।
इसके बाद स्नान आदि कर नए वस्त्र पहनकर पूजा सामग्री एकत्र करें। हरि तालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता है। प्रदोष काल अर्थात संध्या का समय होता है। माता पार्वती शिव को स्वर्ण युक्त यदि असंभव ना हो तो मिट्टी की प्रतिमा बनाकर विधि विधान से पूजा करें। बालू रेत अथवा काली मिट्टी से शिवलिंग, पार्वती, गणेश और सखियों की प्रतिमा अपने हाथों से बनाएं।
इसके बाद सुहागन लकड़ी से बनी पिटारी पर सुहाग की सारी सामग्री सजाकर रखे। इन वस्तुओं को पार्वती जी को अर्पित करें। शिवजी को धोती और गमछा अर्पित करें। तत्पश्चात सुहाग की सामग्री किसी ब्राह्मणी को तथा धोती और अंगोछा ब्राह्मण को दान कर दें।
इस प्रकार पार्वती तथा शिव का पूजन आराधना कर हरियाली व्रत कथा सुनें। फिर सर्वप्रथम गणेश जी की आरती फिर शिवजी की फिर माता पार्वती और सखियों की आरती करें तत्पश्चात् भगवान की परिक्रमा करें। रात्रि जागरण करके सुबह पूजा के बाद माता पर्वती को सिंदूर और वस्त्र चढ़ाएं। फिर अपनी परंपरा के अनुसार व्रत को तोड़े। इसके बाद समस्त पूजा सामग्रियों को एकत्रित कर पवित्र नदी कुंआ, तालाब या किसी सरोवर में विसर्जित कर दें।
अब जानें तीज पूजा का उचित समय और मुहूर्त
हरियाली तीज की पूजा सांध्य समय में होती है। इस दौरान व्रती महिलाओं को कौन से मुहूर्त में पूजा करनी चाहिए इसकी संपूर्ण जानकारी यहां दी गई है।
व्रती महिलाएं शाम 6:00 बजे से लेकर 9:00 बजे तक पूजा अर्चना करनी चाहिए।
शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक लाभ मुहूर्त है।
7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक अमृत मुहूर्त है।
6:00 का मन से लेकर 7:15 तक गोधूलि मुहूर्त है।
इस दौरान महिलाएं हरियाली तीज की पूजा विधि विधान से कर सकती हैं।
हरियाली तीज व्रतधारी महिलाएं सुबह अर्थात 12 अगस्त को 5:00 बज के 39 मिनट के बाद पारन कर सकते हैं।
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पारन करने का उचित समय साथ ही उस दिन का पंचांग।
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पौराणिक कथा
हरियाली तीज पर जानें पूजा करने का उचित समय