षट्तिल एकादशी 7 फरवरी को, जानें कथा और पूजा की विधि

मकर संक्रांति की तरह षट्तिला एकादशी को जरूरी है तिल खाना।
सभी तरह के पापों को नष्ट कर देता है षट्तिला एकादशी।
तिल और अन्न दान करना जरूरी।
षट्तिल एकादशी की पौराणिक कथा।
दाल्भ्य ऋषि ने पुलस्त्य मुनि को बताया कथा का रहस्य।
तिल का उपयोग करने की 6 विधियां।
सबसे पहले नारदजी ने श्रीहरि से सुना था षट्तिल एकादशी की माहात्म्य
ब्राह्मणी ने दान किया मिट्टी का पिंड ।
ब्राह्मणी ने तिल और अन्न का दान कर पायी अन्नपूर्णा का भंडार।
जानें पूजा करने का उचित समय पंचांग के अनुसार।
अभिजीत मुहूर्त दोपहर के 12:13 से लेकर 12:57 तक।
भूलकर भी ना करें इस समय पूजा।
चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार शुभ समय।
व्रतधारी इस समय ना करें पूजा।
कैसे करें पूजा जानें विधि।
पूजा सामग्री की सूची
माघ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को षट्तिल एकादशी व्रत कहते हैं। षट्तिल एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यत है कि इस दिन व्रत रखने से घर में अन्न की अधिकता के साथ सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत में तिल का महत्व बहुत ज्यादा है। व्रत के दौरान तिल का उपयोग छह प्रकार से किया जाता है। इसलिए इसका नाम षट्तिल एकादशी पड़ा है।

7 फरवरी, दिन रविवार को पड़ने वाले षट्तिल एकादशी के दिन सूर्य उत्तरायण दिशा में, ऋतु शिशिर, नक्षत्र ज्येष्ठा, सूर्य मकर राशि में, चंद्रमा वृश्चिक राशि होते हुए धनु राशि में रहेंगे। माघ माह कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को षट्तिल एकादशी पड़ रहा है।

षट्तिल एकादशी की पौराणिक कथा

श्रीहरि ने षट्तिल एकादशी की कथा सुनाते हुए अर्जुन से कहा एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि हे महाराज, पृथ्वी लोक में मानव ब्रह्महत्या, परस्त्रीगामी और गौहत्या जैसे महान पाप करते हैं साथ ही पराए धन की चोरी तथा दूसरे की उन्नति देखकर ईर्ष्या करते हैं। अनेक प्रकार के पापों में फंस जाते हैं, फिर भी उनको नर्क की प्राप्त नहीं होती, इसका क्या कारण है?
वे न जाने कौन-सा दान-पुण्य करते हैं जिससे उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इस रहस्य की कथाएं मुझे विस्तार पूर्वक बताएं। पुलस्त्य मुनि कहने लगे कि हे ऋषिवर ! आपने मुझसे अत्यंत गंभीर प्रश्न पूछा है। इससे संसार के जीवों का अत्यंत भला होगा। इस भेद को ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा इंद्र आदि भी नहीं जानतेे, परंतु मैं आपको यह गुप्त रहस्य अवश्य बताऊंगा।

दाल्भ्य ऋषि ने पुलस्त्य मुनि को बताए कथा का रहस्य

दाल्भय ऋषि ने कहा कि माघ मास लगते ही मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। इंद्रियों को वश में कर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे (गोइठा)  बनाना चाहिए। उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए।
उस दिन ज्येेष्ठा नक्षत्र हो और एकादशी तिथि हो तो अच्छे पुण्य देने वाले नियमों को ग्रहण करें। स्नानादि कर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सब देवताओं के देव श्रीहरि का पूजन करें और एकादशी व्रत धारण करें। रात्रि को जागरण जरूर करना चाहिए।
उसके दूसरे दिन धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का पूजन करके खिचड़ी का भोग लगाएं। इसके बाद नारियल, केला, सीताफल या सुपारी का अर्घ्य देकर स्तुति करनी चाहिए-
हे भगवान! आप दीनों को शरण देने वाले हैं, इस संसार सागर में फंसे हुए का उद्धार करने वाले हैं। हे श्रीकृष्ण, हे श्रीहरि, हे विष्णु, हे पितरों, हे जगत्पते! आप लक्ष्मीजी सहित इस तुच्छ के अर्घ्य को ग्रहण करें।

तिल का उपयोग करने की 6 विधियां

इसके बाद जल से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान करें तथा ब्राह्मण को काली गौ और तिल पात्र दान देना भी उत्तम है। तिल स्नान और भोजन दोनों ही श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार जो मनुष्य जितने तिलों का दान करता है, उतने ही हजार वर्ष स्वर्ग में वास करता है। ऐसे करें तिल दान और उपयोग।
पहला, जल में तिल का मिश्रण करा स्नान करना, दूसराा, तिल को पीसकर शरीर मेंं उबटन लगाना, तीसरा, माथे पर तिल का तिलक लगाना, चौथा, जल में तिल मिलाकर सेवन करना, पांचवां, तिल का भोजन करना और छठा तिल का हवन और दान करना। ये तिल के छह प्रकार हैं। इनके प्रयोग के कारण ही यह षट्तिल एकादशी कहलाती है। इस व्रत के करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इतना कहकर पुलस्त्य ऋषि कहने लगे कि अब मैं तुमसे इस एकादशी की कथा कहता हूँ।

नारदजी ने श्रीहरि से सुना था षट्तिल एकादशी का माहात्म्य

एक समय नारदजी ने भगवान श्रीविष्णु से यही प्रश्न किया था और भगवान ने जो षट्तिल एकादशी का माहात्म्य नारदजी से कहा- सो मैं तुमसे कहता हूँ। भगवान ने नारदजी से कहा कि हे नारद! मैं तुमसे सत्य घटना कहता हूं। ध्यानपूर्वक सुनो।

ब्राह्मणी ने दान किया मिट्टी का पिंड 

प्राचीनकाल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही। इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया। यद्यपि वह अत्यंत बुद्धिमान थी तथापि उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान नहीं किया था। इससे मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, अब इसे विष्णुलोक तो मिल ही जाएगा परंतु उसने कभी अन्न का दान नहीं किया, इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है।
भगवान ने आगे कहा- ऐसा सोचकर मैं भिखारी के वेश में मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा मांगी। वह ब्राह्मणी बोली- महाराज किसलिए आए हो? मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने एक मिट्टी का पिंड भिक्षापात्र में डाल दिया। मैं उसे लेकर स्वर्ग लौट आया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग में आ गई। उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला, परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सहित सभी प्रकार के सामग्रियों से शून्य पाया।
ब्राह्मणी ने की तिल और अन्न का दान कर पाया अन्नपूर्णा का भंडार

घबराकर वह मेरे पास आई और कहने लगी कि भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सहित सभी प्रकार के वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है? इस पर मैंने कहा- पहले तुम अपने घर जाओ। देवस्त्रियां तुम्हें देखने के लिए आयेंगे। पहले उनसे षट्तिल एकादशी का पुण्य और व्रत करनेेेे की विधि सुन लो, तब द्वार खोलना। मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई। जब देेवस्त्रियां आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली- आप मुझे देखने आई हैं तो षट्तिल एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो।
उनमें से एक देवस्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूंं। ब्राह्मणी ने षट्तिल एकादशी का माहात्म्य सुनी, तब द्वार खोल दिया। देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है। उस ब्राह्मणी ने उनके कथनानुसार षट्तिल एकादशी व्रत की। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से भर गया। इस दिन तिल का दान और उपयोग करना चाहिए।

जानें पूजा करने का उचित समय पंचांग के अनुसार

अभिजीत मुहूर्त दोपहर के 12:13 से लेकर 12:57 तक

पंचांग के अनुसार षट्तिल एकादशी के दिन दोपहर 2:25 से लेकर 3:09 तक विजया मुहूर्त है। उसी प्रकार संध्या 5:00 बज के 54 मिनट से लेकर 6:18 तक गोधूलि मुहूर्त है। संध्या 6:05 से लेकर 7:30 तक संध्या मुहूर्त और रात्रि निशिता मुहूर्त रात 12:09 से लेकर 1:01 तक तथा ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:30 से लेकर 6:13 तक और अहलेसुबह मुहूर्त 5:47 से लेकर सुबह 7:05 तक रहेगा इस दौरान श्री हरि का पूजा करना काफी शुभ माना जाता है।

भूलकर भी ना करें इस समय पूजा

षट्तिल एकादशी के दिन यमगण्ड काल दोपहर 12:35 से लेकर 1:58 तक रहेगा। उसी प्रकार गुलिक काल 3:20 से लेकर 4:43 तक और राहु काल 4:30 से लेकर शाम 6:00 बजे तक रहेगा इस दौरान पूजा करना वर्जित है। ‌‌

चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार शुभ समय

चौघड़िया मुहूर्त सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक चार मुहूर्त, सुबह 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक लाभ मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक अमृत मुहूर्त और दोपहर 1:30 से लेकर 3:00 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा इस दौरान भी लोग पूजा कर सकते हैं।

व्रतधारी इस समय ना करें पूजा

षट्तिल एकादशी के दिन सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 तक उद्वेग मुहूर्त, दोपहर 12:00 बजे से लेकर 1:30 तक काल मुहूर्त, 3:00 बजे से लेकर 4:30 तक रोग मुहूर्त और 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक एक बार फिर से उद्वेग मुहूर्त का संयोग हो रहा है। इस दौरान पूजा करना सर्वथा वर्जित है।
कैसे करें पूजा जानें विधि
षट्तिल एकादशी व्रत करने के उपरांत सर्वप्रथम गौरी गणेश का पूजन करें। गौरी गणेश को स्नान कराएं। गंध, पुष्प और अक्षत से पूजन करें। इसके बाद श्रीहरि का पूजन शुरू करें। भगवान विष्णु को आवाहन करें इसके बाद भगवान विष्णु को आसान दें। अब भगवान विष्णु को स्नान कराएं स्नान से पहले जल से, फिर पंचामृत से और अंत में फिर से जल से स्नान कराएं। फिर भगवान को वस्त्र पहनाएं वस्त्र पहनाने के बाद आभूषण और जनेऊ पहनाएं। इसके बाद पुष्प माला पहनाना है। इसके बाद सुगंधित इत्र अर्पित करें। तिलक करें। तिलक के बाद अष्टगंध का प्रयोग करें। अब धूप और दीप अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल विशेष प्रिय है, इसलिए तुलसी पत्ता अर्पित करें। भगवान विष्णु के पूजन में चावल का प्रयोग ना करें। तिल का प्रयोग करें। घी या तेल का दीपक जलाएं और आरती करें। आरती करने के बाद परिक्रमा करें और अंत में नैवेद्य अर्पित करें।

पूजा सामग्री की सूची

षट्तिल एकादशी पूजा में लगने वाले सामग्रियों में देव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का लोटा, जल कलश, गाय का दूध, वस्त्र, भगवान को पहनाने के लिए आभूषण, तिल, कुमकुम, दीपक, घी, तिल का तेल, रुई, धूपबत्ती, फूल, अश्वगंधा, तुलसी पत्ता, चावल, जनेऊ, दही, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सुखा मेवा, गुड़, पान का पत्ता, पैसा, मधु, शंख, गाय का गोबर, आम का पत्ता और केला के पत्ता सहित गंगाजल रहना चाहिए।






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