पुत्रदा एकादशी क्या वंश बढ़ाने में सहायक है: पढ़ें संपूर्ण जानकारी विस्तार से

10 जनवरी 2025 दिन शुक्रवार पौष मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी मनेगा।

पुत्रदा एकादशी क्यों करनी चाहिए, जानें पौराणिक कथाएं और उसका महत्व।

संतान की प्राप्ति के लिए लोग पुत्रदा एकादशी व्रत करते हैं। साल में दो बार पुत्रदा एकादशी आती है। अंग्रेजी कैलेंडर के प्रथम महीना जनवरी में पड़ने वाले एकादशी को ही पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं। 
हिंदी कैलेंडर के अनुसार पौष मास, शुक्ल पक्ष, दिन शुक्रवार को पौष पुत्रदा एकादशी और दूसरा सावन माह के शुक्ल पक्ष के दिन पड़ने वाले को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहलाती है। निसंतान दंपतियों के लिए पुत्रदा एकादशी व्रत रामबाण की तरह है। इस पुत्रदा एकादशी व्रत को विधि विधान से करने पर संतान की प्राप्ति होती है।

पद्म पुराण के अनुसार सांसारिक सुखों की प्राप्ति और पुत्र इच्छुक भक्तों के लिए पुत्रदा एकादशी व्रत को फलदायक माना जाता है। संतानहीन या पुत्रहीन जातकों के लिए इस व्रत को बेहद अहम माना गया है।

साल में 24 एकादशी व्रत आती हैं

साल में 24 एकादशी पड़ती हैं

वर्ष भर में 24 एकादशी आती है तथा अधिक मास में दो एकादशी तिथि और बढ़ जाती है। इस प्रकार कुल 26 एकादशी होती है। एकादशी के नाम इस प्रकार है। उत्पन्ना एकादशी, मोक्षदा एकादशी, सफला एकादशी, पुत्रदा एकादशी, जया एकादशी, विजया एकादशी, पापमोषनी एकादशी, कामदा एकादशी, मोनिका एकादशी, योगिनी एकादशी, पवित्रा एकादशी, पुत्रदा एकादशी, अजा एकादशी, इंदिरा एकादशी, रमा एकादशी, पापांकुश एकादशी, देवशयनी एकादशी, निर्जला एकादशी, आमतकी एकादशी, परियसिनी एकादशी, देवात्यानी एकादशी और वरुचिनी एकादशी है। वर्ष भर में कामदा और सफला एकादशी दो बार आती है। 

इस प्रकार कुल मिलाकर साल भर में 24 एकादशी पड़ती है। अधिक मास होने पर पद्मिनी एकादशी और पदमा एकादशी बढ़ जाती है। इस प्रकार को 26 एकादशी हो जाती है।

पुत्र प्राप्ति के लिए क्यों करनी चाहिए पुत्रदा एकादशी का व्रत, जानें महत्व

व्रत एवं उपवास का महत्व हर धर्म में है। प्रत्येक धर्म व्रत करने के लिए आज्ञा देता है, क्योंकि इसका पालन करने से आत्मा और मन की शुद्धि होती है। व्रत या उपवास करने से ज्ञान शक्ति में वृद्धि होती है। 

व्रत एवं उपवास में निषेध आहार का त्याग एवं सात्विक आहार करने का विधान है। इसलिए व्रत एवं उपवास आरोग्य, दीर्घायु की प्राप्ति के लिए उत्तम साधन है, जो मनुष्य निमित्त व्रत करते हैं उन्हें उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायु की प्राप्ति के साथ-साथ इस लोक में परम सुख तथा इश्वर के चरण में स्थान मिलता है।

नारद पुराण में व्रतों का महत्व बताते हुए लिखा गया है कि गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, मां के समान कोई गुरु नहीं, भगवान विष्णु जैसा कोई देवता नहीं। व्रतों में एकादशी व्रत को सर्वोपरि माना गया है। 

अपने नाम के अनुरूप फल देने वाली है। जिसका कथा तथा विधि विधान से सुनने पर सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। एकादशी में दो भेद है। पहला नित्य और दूसरा काम्या। एकादशी व्रत बिना किसी फल की इच्छा से किया जाए, तो वह नित्य कहलाती है और यदि किसी प्रकार के फल और धन की प्राप्ति अथवा रोग दोष से मुक्ति के लिए किया हुआ एकादशी व्रत काम्या कहलाती है।

पुत्रदा एकादशी व्रत करने का विधान और क्या मिलता है फल 

पुत्रदा एकादशी व्रत करने वाले स्त्री और पुरुषों को दसवीं वाले दिन मांस, मदिरा, प्याज तथा मसूर की दाल का सेवन करना वर्जित है। पुत्रदा एकादशी वाले दिन सुबह पेड़ से तोड़ी हुई लकड़ी की दातुन नहीं करनी चाहिए। 

इसके स्थान पर नींबू, जामुन तथा आम के पत्तों को चबाकर मुख शुद्धि कर लेना चाहिए। मुंह में उंगली डालकर कंठ शुद्ध करना चाहिए। इस दिन ध्यान रखें पेड़ से पत्तें तोड़ना मना है, अतः पेड़ से गिरे हुए पत्तें का ही प्रयोग करें। पत्तें उपलब्ध नहीं होने पर 12 बार शुद्ध जल लेकर मुख शुद्धि करनी चाहिए। 

फिर स्नान कर मंदिर में जाकर गीता का पाठ करना चाहिए। भगवान विष्णु के सामने खड़े होकर इस प्रकार प्रण करना चाहिए। आज मैं दुराचारी, चोर और पाखंडी मनुष्यों से बात व्यवहार नहीं करूंगा। किसी से कड़वी बात कर उसका दिल नहीं दुखाऊंगा। 

गाय और ब्राह्मणों को फल तथा अन्न देकर प्रसन्न करूंगा। रात्रि जागरण कर कीर्तन करूंगा। ऊं नमो भगवते वासुदेवाय जाप करूंगा। इस प्रकार प्रण लेने के बाद भगवान विष्णु स्मरण कर प्रार्थना करनी चाहिए। तीनों लोकों के स्वामी मेरे प्रण की रक्षा करना। मेरी लाज आपके हाथ में हैै। अतः इस प्रण को पूरा कर सकु ऐसी शक्ति मुझे देना।

पुत्रदा एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगानी चाहिए। कारण झाड़ू करने से सूक्ष्म जीव और चींटियों की मृत्यु हो सकती है। पुत्रदा एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए और ना ही ज्यादा बोलना चाहिए। 

मौन व्रत रखना उत्तम रहेगा। एकादशी वाले दिन यथाशक्ति अन्नदान करना चाहिए, परंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न ग्रहण न करें। असत्य वचन और कुकर्म से दूर रहना चाहिए। एकादशी का व्रत करें और त्रयोदशी को पारण कर लेें। 

फलाहारी व्यक्ति को गोभी, गाजर, शलगम और पालक आदि का सेवन नहीं करना चाहिए बल्कि आम, अंगूर, केला, सेव, बादाम एवं पिस्ता आदि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए। जो भी फल ले उसमें तुलसी का पत्ता डालकर सबसे पहले भगवान विष्णु का भोग लगा लें इसके बाद ही भोजन करें। इस विधि से व्रत करने वाले मनुष्य को दिव्य फलों की प्राप्ति होती है।

डिस्क्लेमर 

पुत्रदा एकादशी के संबंध में लिखा गया लेख पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथो से पर अधारित है। इंटरनेट से भी सहयोग लिया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातनियों के बीच अपने धर्म के प्रति जागरूकता पैदा करना और धर्म से जुड़े रखना है। लेख में लिखें गए कंटेंट की गारंटी हम नहीं देते हैं।

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