ग्रहों की महादशा क्या है जाने गरूड़ पुराण के अनुसार।
हरेक मनुष्य को अपने निश्चित जीवन काल में ग्रहों की महादशा से होकर गुजरना पड़ता है।
यह जरूरी है। इस विषय को कुछ इस तरह से समझ सकते हैं। उदाहरण स्वरुप हम हर कक्षा में अनेक विषय पढ़ते हैं। हर विषय की एक अलग किताब होती है। उस किताब में विभिन्न विषय होते हैं और प्रत्येक विषय के अंतर्गत अलग-अलग लेख होते हैं। ठीक इसी तरह मानव का जीवन भी एक कक्षा है, जिसमें विभिन्न ग्रहों की अलग-अलग किताबें हैं, जिन्हें पढ़ना आवश्यक है।
इन किताबों को ‘महादशा’ कह सकते हैं। प्रत्येक ग्रह की किताब कम या ज्यादा पन्नों की है। जैसे वृहस्पति ग्रह की किताब सबसे ज्यादा मोटी है, क्योंकि उसकी महादशा भी सबसे ज्यादा 29 वर्ष की है। प्रत्येक ग्रह की किताब में शेष सभी ग्रहों के छोटे-छोटे विषय हैं, जिन्हें हम प्रत्यंतर, दशा कहते हैं।
श्री हरि ने प्रथम बार बताया महादेव को ग्रहों की महादशा
गरुड़ पुराण में श्री हरि ने भोलेनाथ को ग्रहों की महादशा का वर्णन करते हुए कहा कि सूर्य की महादशा 6 वर्ष, चंद्रमा की महादशा 15 वर्ष, मंगल की महादशा 8 वर्ष, बुध की महादशा 17 वर्ष, शनि की महादशा 10 वर्ष, बृहस्पति की महादशा 29 वर्ष, राहु की महादशा 12 वर्ष तथा शुक्र महादशा 21 वर्ष रहती है।
जानें जातकों पर महादशा का क्या प्रभाव पड़ता है
किसी भी व्यक्ति पर ग्रहों का महादशा जब चलता है तो कुछ को आपार सुख, आपार धन और चारों ओर हरियाली हरियाली नजर आती है, परंतु कुछ ऐसे भी ग्रह हैं जिनकी महादशा लोगों कंगाल, बड़े से बड़े अपराधी बना देता है। जाने किस ग्रह का जातकों पर कौन सा प्रभाव पड़ता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार किसी मनुष्य के ऊपर सूर्य की महादशा चल रहा है तो वह दुख देने वाली होती है और दुख को पैदा करती है राज्य का नाश कर देती है। उसी प्रकार चंद्रमा की महादशा ऐश्वर्य देने वाली, सुख पैदा करने वाली तथा मनुकूल वस्तुओं को देने वाली होती है।
मंगल की महादशा दुख देने वाली दादा दादी का विनाश करने वाली होती है बुध की महादशा लाभ की प्राप्ति एवं को सीधी करने वाली होती है शनि की दशा राज्य का नाश और बंधु बंधुओं को कष्ट प्रदान करने वाली होती है। बृहस्पति की महादशा राज्य लाभ और सुख समृद्धि तथा धन देने वाली है। राहु की महादशा राज्य की नाश कराती है, व्याधियों की प्राप्ति कराती है और दुःख पैदा करती है।
शुक्र की महादशा में हाथी, घोड़ा राज्य तथा स्त्री का लाभ होता है। इस इस प्रकार समझा जाए वाहन सुख, भवन सुख और सुशील स्त्री का सुख जातक को प्राप्त होता है।
जाने राशियों का क्षेत्र
हर राशि का कोई ना कोई ग्रह, उसका क्षेत्र कहा जाता है। मेष राशि का मंगल ग्रह, वृष राशि का शुक्र ग्रह, मिथुन राशि का बुध ग्रह और कर्क राशि का चंद्रमा ग्रह का क्षेत्र में कहा गया है। सूर्य का क्षेत्र सिंह एवं बुध का क्षेत्र कन्या राशि है। तुला राशि शुक्र का क्षेत्र है और वृश्चिक मंगल का क्षेत्र है। बृहस्पति का क्षेत्र धनु, शनि का क्षेत्र मकर एवं कुंभ और मीन वृहस्पति क्षेत्र कहा गया है।
गरुड़ पुराण में जो ग्रहों की महादशा, योग, समय तथा क्रम दिया गया है, वह महर्षि पराशर द्वारा निर्दिष्ट विशोतरी महादशा से भिन्न है। महर्षि पराशर के अनुसार ग्रहों का क्रम तथा उसकी भोग्य वर्ष और संख्या इस प्रकार है।