मोक्षदा एकादशी को करें गीता पाठ, पूर्वजों को मिलेगी मुक्ति

मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इस दिन गीता जयंती के रूप में मनाने की परंपरा है। मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में कौन सी ऐसी एकादशी पड़ती है। 
इस एकादशी करने का क्या क्या विधि है तथा पूजा के दौरान कौन सा देवता का पूजन किया जाता है। इसे विस्तार से जाने।

युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा मोक्षदा एकादशी के संबंध में
महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा हे पार्थ, मेरे मृत सगे संबंधियों को नरक का कष्ट न झेलना पड़े इसके लिए हमें कौन सा व्रत करने चाहिए। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की मोक्षदा एकादशी का वर्णन कर बताया कि जिसके श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। उसी का नाम 'मोक्षदा एकादशी है, जो सब पापों का नाश करनेवाली है । मोक्षदा एकादशी के दिन यत्नपूर्वक तुलसी की मंजरी तथा धूप दीपादि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए। सबसे पहले विधि पूर्वक दशमी और एकादशी के नियम का पालन करना होगा। मोक्षदा एकादशी बड़े बड़े पापों का नाश करने वाली है ।
25 दिसंबर दिन शुक्रवार मार्गशीर्ष माह, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि को शिशिर ऋतु में सूर्य उत्तरायण दिशा में रहेंगे। उस दिन नक्षत्र अश्विनी, योग शिव, सूर्य धनु राशि में और चंद्रमा मेष राशि में स्थित है।

जाने मोक्षदा एकादशी करने का विधान
मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को ना केवल स्वयं को मोक्ष की प्राप्ति होती है बल्कि उनके पितरों को मुक्ति मिल जाती है और उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत रखने से गंगा स्नान के समान ही फल की प्राप्ति होती है। उस दिन भगवान दामोदर और श्रीकृष्ण को पीले वस्त्र, पीले फूल, तुलसी का माला, तुलसी पत्ता, नवैद्ध और मौसमी फलों से विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए।
उस दिन रात्रि में श्रीकृष्ण की प्रसन्न्ता के लिए नृत्य, गीत और स्तुति करके जागरण करना चाहिए। जिसके करने से आपके पितर पापवश नीच योनि में पड़े हों, वे इस एकादशी का व्रत करके इसका पुण्यदान अपने पितरों को दें, तो पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
मोक्षदा एकादशी का पौराणिक कथा
पूर्वकाल की बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चंपक नगर में वैखानस नामक राजा रहते थे। वे अपनी प्रजा को पुत्र की भांति पालन करते थे । इस प्रकार राज्य करते हुए राजा ने एक दिन रात को स्वप्न में अपने पितरों को नरक लोक में पड़ा हुआ देखा । उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा दुःख हुआ और प्रातः काल ब्राह्मणों से उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया।
वैखानस राजा बोले, ब्रह्माण देवता मैने अपने पितरों को नरक में पड़ा हुआ देखा है। वे बारंबार रोते हुए मुझसे कह रहे थे कि तुम हमारे पुत्र हो, इसलिए इस नरक से हम लोगों को बाहर निकालों। इस रुप में मुझे पितरों के दर्शन हुए हैं इससे मुझे चैन नहीं है, क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय बैठा जा रहा है। ब्राह्मण श्रेष्ठ हमें आप लोग वह व्रत, वह तप और वह योग बताएं जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरक से छुटकारा पा सके। वैसी व्रत बताने की कृपा करें । मेरे जैसे बलवान तथा साहसी पुत्र के जीते जी मेरे माता पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं। अत: ऐसे पुत्र होने से क्या लाभ है ?

ब्राह्मणों ने कहा पर्वत मुनि के आश्रम में जाए राजन
ब्राह्मण बोले राजा वैखानस आप यहां से निकट ही पर्वत मुनि का आश्रम है। मूनि भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं । राजन आप उनके पास चले जाइये । ब्राह्मणों की बात सुनकर राजा वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गये और मुनिश्रेष्ठ पर्वत को देखकर उन्होंने दण्डवत् प्रणाम करके मुनि के चरणों का स्पर्श किया ।

पर्वत मुनि ने बताया राजा को उपाए
राजा ने मुनिश्रेष्ठ को बोले, मैंने स्वप्न में देखा है कि मेरे पितर नरक में पड़े हैं । अतः आप बताइये कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से छुटकारा मिलेगा। राजा की यह बात सुनकर मुनि पर्वत एक मुहूर्त तक ध्यानमग्न रहे । इसके बाद मुनि ने राजा से बोले, महाराज वैखानस मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष में जो 'मोक्षदा' नाम की एकादशी आती है। तुम उस व्रत का विधि-विधान से पालन करो और उसका पुण्य अपने पितरों को दे डालो। उस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से मुक्ति मिल जायेगा।
महाराजा वैखानस ने किया मोक्षदा एकादशी
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि सुनो युधिष्ठिर, मुनि पर्वत की यह बात सुनकर राजा पुनः अपने राज्य लौट आये । जब उत्तम मार्गशीर्ष मास आया, तब राजा वैखानस ने मुनि के कथनानुसार ‘मोक्षदा एकादशी' का व्रत करके उसका पुण्य अपने समस्त पितरों सहित माता और पिता को दे दिया। पुण्य देते ही क्षणभर में आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। महाराजा वैखानस के माता-पिता सहित पितरों तत्काल नरक से छुटकारा पा गये और आकाश में आकर अपने पुत्र के प्रति आभार व्यक्त करते हुए यह पवित्र वचन बोले, बेटा तुम्हारा कल्याण हो और यह कहकर वे स्वर्ग में चले गये ।
इसलिए जो कल्याणमयी मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । यह मोक्ष देनेवाली 'मोक्षदा एकादशी' मनुष्यों के लिए चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है। इस माहात्मय के पढ़ने और सुनने से जातकों को वाजपेय यज्ञ करने का फल मिलता है ।
जाने पूजा करने का शुभ मुहूर्त
किसी प्रकार के पूजा में शुभ मुहूर्त का काफी महत्व होता है। मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह 7:00 बजे से ही शुभ मुहूर्त का आगमन हो रहा है। सुबह 7:06 से लेकर 8:27 तक चर मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 8:27 से लेकर 9:47 तक लाभ मुहूर्त और सुबह के 9:47 से लेकर दोपहर के 11:07 तक अमृत मुहूर्त का संजोग है। शुभ मुहूर्त दोपहर के 12:30 से लेकर 1:48 तक रहेगा। शाम के समय 4:29 से लेकर 5:00 बज के 39 मिनट तक चर मुहूर्त का एक बार फिर से आगवन हो रहा है। इस दौरान जातक विधि पूर्वक पूजा अर्चना कर सकते हैं।
रात में पूजा करने का शुभ मुहूर्त
रात का शुभ मुहूर्त रात्रि 9:48 से 10:48 तक लाभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त रात 12:28 से लेकर देर रात 2:07 तक और अमृत मुहूर्त रात 2:07 से लेकर 3:45 तक रहेगा। चर मुहूर्त रात रात 3:47 से लेकर सुबह के 5:27 तक रहेगा इस दौरान भी आप विधि विधान से पूजा अर्चना कर सकते हैं।
भूलकर भी ना करें इस दौरान पूजा
दिन और रात कुछ समय ऐसा होता है, जब पूजा अर्चना करना वर्जित है। अब हम विस्तार से जाने सुबह के समय कौन सा मुहूर्त या समय है जब हम पूजा अर्चना नहीं कर सकते हैं। दोपहर के 11:07 से लेकर 12:28 तक काल मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार दोपहर के 1:43 से लेकर 3:08 तक रोग मुहूर्त और 3:08 से लेकर शाम 4:29 तक उद्धेग मुहूर्त रहेगा।
रात का अशुभ मुहूर्त
शाम 5:49 से लेकर रात 7:29 तक रोग मुहूर्त उसी प्रकार 7:29 से लेकर रात 9:08 तक काल मुहूर्त और रात 10:48 से लेकर रात 12:28 तक उद्धेग मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित रहेगा।

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