सफला एकादशी 26 दिसंबर 2024 को, हर काम में मिलेगी सफलता

सफला एकादशी के दिन करें, भगवान विष्णु की पूजा।

हर काम में सफलता और अपने भाग्य को उदयमान बनाने के लिए सफला एकादशी व्रत जरूरी।

साल के अंत में आती है सफला एकादशी।

वर्ष 2024 के पहले माह और अंतिम माह में पड़ेगी सफला एकादशी।

जानें साल में कितने एकादशी पड़ती हैं। सभी एकादशी अतिथियों का नाम।

कौन थी एकादशी माता जाने संपूर्ण कहानी।

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भूलकर भी ना करें इस समय पूज

सफला एकादशी 26 दिसंबर को

सफला एकादशी, मार्गशीर्ष मास, कृष्ण पक्ष, एकादशी तिथि, जो 26 जनवरी, दिन गुरुवार को पड़ रही है। 

साल में 24 एकादशी पड़ती हैं

वर्ष भर में 24 एकादशी होती है तथा अधिक मास में दो और बढ़ जाती है। इस प्रकार कुल 26 एकादशी होती है। एकादशी के नाम इस प्रकार है। उत्पन्ना एकादशी, मोक्षदा एकादशी, सफला एकादशी, पुत्रदा एकादशी, जया एकादशी, विजया एकादशी, पापमोषनी एकादशी, कामदा एकादशी, मोनिका एकादशी, योगिनी एकादशी, पवित्रा एकादशी, पुत्रदा एकादशी, अजा एकादशी, इंदिरा एकादशी, रमा एकादशी, पापांकुश एकादशी, देवशयनी एकादशी, निर्जला एकादशी, आमतकी एकादशी, परियसिनी एकादशी, देवात्यानी एकादशी और वरुचिनी एकादशी है। वर्ष भर में कामदा और सफला एकादशी दो बार आती है।

 इस प्रकार कुल मिलाकर साल भर में 24 एकादशी पड़ती है। अधिक मास होने पर पद्मिनी एकादशी और पदमा एकादशी बढ़ जाती है। इस प्रकार को 26 एकादशी हो जाती है।

जाने एकादशी व्रत क्यों है, महत्त्वपूर्ण

एक समय की बात है जब श्रीकृष्ण से अर्जुन ने पूछा कि हे, पार्थ कोई ऐसा व्रत का वर्णन करें जो सभी व्रतों में श्रेष्ठ हो और जिसके करने से परमधाम की प्राप्ति हो। श्री कृष्ण ने कहा हे, अर्जुन बड़ी-बड़ी दक्षिणा वाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। पौष माह के कृष्ण पक्ष में सफला एकादशी होती है।

 उस दिन विधिपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तब देवताओं में श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं उसी प्रकार संपूर्ण व्रत में एकादशी व्रत सर्वश्रेष्ठ है।

श्री कृष्ण ने कहा एकादशी से संबंधित एक कथा सुनाता हूं। सतयुग में मूर नामक एक भयंकर दैत्य था। उसने इन्द्र सहित सभी देवताओं को जीतकर उन्हें उनके स्थान से भगा दिया था। देवता गण दैत्य के अत्याचार से पीड़ित होकर मृत्युलोक अर्थात पृथ्वी पर अपना समय बिता रहे थे। सबसे पहले देवताओं का एक जत्था महादेव से मिला और अपना दुख सुनाया। महादेव ने श्रीहरि के पास जाने का सुझाव देवताओं को दिया।

देवताओं ने महादेव की बात सुनकर श्रीविष्णु धाम पहुंच गए। उन्होंने देखा श्रीहरि शेषनाग के सैय्या पर सोए हुए हैं। इन्द्र सहित सभी देवताओं ने श्री विष्णु का स्तुति गान करने लगे। देवताओं के स्तुति गान सुनकर श्रीहरि नींद से जागे और देवताओं को आने का कारण पूछें।

 देवताओं ने मूर नमक दैत्य के अत्याचार से संबंधित सभी घटनाओं को विस्तार से कह सुनाया। भगवान इन्द्र ने श्रीहरि से कहा कि पहले एक बड़ा भारी नाड़ी जंग नामक दैत्य था, जिसकी उत्पत्ति ब्रह्मा वंश में हुई थी और अपने बल से गर्वित होकर देवों को सर्वदा पीड़ित करता था। उसी का पुत्र मूर नमक दैत्य है, जिसकी राजधानी चंद्रावती है। वह दैत्य अपने प्रताप से संपूर्ण विश्व को जीतकर और देवताओं को देवलोक से निकालकर इन्द्र, अग्नि, यम, वरुण और चंद्रमा आदि लोकपाल स्वयं बन बैठा है। स्वयं सूर्य बन कर जगत को ताप रहा है। देवताओं का सभी कार्य करने लगा है।

 भगवान इंद्र की बात सुनकर अत्यंत क्रुद्ध हुए और बोले कि हम शत्रुओं को शीघ्र ही नष्ट कर देंगे। भगवान विष्णु ने देवताओं को चंद्रावती पर चढ़ाई करने का आदेश दे दिया।

देवताओं और दानवों के बीच हुआ भयंकर युद्ध

भगवान श्रीहरि का आदेश देने के बाद देवताओं ने चंद्रावती पर चढ़ाई कर, भयंकर युद्ध किया। देवताओं ने दैत्यों से हर तरह का युद्ध किया, परंतु युद्ध में देवताओं की हार हुई। देवताओं की हार को देखते हुए श्रीहरि अपने विराट रूप में आकर दानवों से युद्ध करने लगे।

 1,000 वर्षों तक युद्ध और मल युद्ध चला। थक हार कर भगवान विष्णु ने गुफा में आराम करने लगे। गुफा में श्रीहरि को सोए देख दानवों ने उन पर हमला करने की योजना बनाने लगे उसी समय श्रीहरि के तेज से एक नारी उत्पन्न हुई। ओजस्वी रूप धारण करने वाली उक्त नारी का नाम एकादशी थी।

देवी एकादशी ने की दैत्यों का विनाश और श्रीहरि की रक्षा

दिव्य रूप धारण कर देवी एकादशी ने दानवों पर हमला कर दिया। भीषण संग्राम हुआ। अंत में दैत्यों का राजा मूर मारा गया। दैत्यराज मूर को मारा देख बचे हुए दानव पाताल लोक भाग गए। भीषण युद्ध करने के बाद जिस राक्षसों से श्रीविष्णु भी हार गए थे। उसे देवी ने बड़ी ही सरलता से मार गिरायी और श्री हरि प्राणों की रक्षा की।

 श्री हरि ने देवी से पूछा तुम कौन हो देवी ? देवी ने नम्र निवेदन करते हुए कही, हम आप ही का अंश है आप ही से जन्मे हैं। राक्षस राजा मूर आप की हत्या करना चाहता था। उसी समय मेरा जन्म हुआ। भगवान श्री हरि ने दिव्य कन्या को गले लगाते हुए कहा मांगो जो वर मांगना चाहते हो उसे मांग लो, संकोच मत करो। किसी भी प्रकार का वर तुम मान सकती हो।

एकादशी व्रत करने से सभी पापों से मिलेगी मुक्ति

भगवान श्रीहरि ने कहा कि हे कन्या तुम एकादशी तिथि को उत्पन्न हुई हो इसलिए तुम्हारा नाम एकादशी होगी। अब वर मांगो। कन्या ने कही श्री हरि यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मुझे वर देना चाहते हैं तो मुझे वरदान दीजिए कि यदि कोई एकादशी के दिन उपवास करें और आपका स्मरण करते हुए आपका पूजन करें, तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाए और आपके धाम में निवास करें।

 श्री हरि ने कहा एकादशी व्रत करने वाले व्रतधारी हमारे लोक में उसे जगह मिलेगी और अन्नत वर्षों तक सुख प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि मुझे अष्टमी, चतुर्दशी और एकादशी तिथि सबसे प्रिय तिथियों में है।


सफला एकादशी का पौराणिक कथा

चंपावती नाम से विख्यात एक नगरी था। जो कभी राजा महिष्मति की राजधानी थी। राजा महिष्मति के पांच पुत्र थे। इसमें जो ज्येष्ठ था, परस्त्रीगामी और वेश्यासक्त था। वह सदा पाप कर्म में ही लगा रहता था। पिता के धन को पाप कर्म में खर्च करते रहता था। अपने पुत्र को ऐसा पापा चारी देखकर राजा महिष्मति ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर राजा ने उसे राज्य से ही निकाल दिया।

लुम्भक गहन वन में चला गया। वहीं रहकर उसने नगर का धन लूटने लगा। एक दिन जब रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया किंतु जब उसने अपने आप को राजा महिष्मति का पुत्र बताया तो, सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया। फिर वह वन में लौट आया और मांस तथा वृक्षों का फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा।

 पीपल बृक्ष के नीचे वह रहता था। एक दिन किसी पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया। पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन पापी युवक ने वृक्षों का फल खाए। वस्त्रहीन होने कारण रात भर जाड़े का कष्ट होगा। उस समय न तो उसे नींद आई और ना ही उसे आराम ही मिला। सूर्योदय होने पर भी उसे होश नहीं आया। सफला एकादशी के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा। दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई।

 वन में गया और बहुत से फल लेकर जब विश्राम स्थल पर लौटा तब तक सूर्यदेव अस्त हो गए, तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत सा फल निवेदन करते हुए कहा कि इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हो। यह कहकर लुम्भक ने रात भर नींद नहीं ली। इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया। उस समय सहसा आकाशवाणी हुई राजकुमार तुम सफला एकादशी के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे। बहुत अच्छा कह कर उसने वह वरदान स्वीकार किया।

इसके बाद उसका रूप दिव्य हो गया है, तब से उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गई। 15 वर्षों तक राज्य किया। उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह बड़ा हुआ तब लुम्भक ने राज्य की ममता छोड़ कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्री कृष्ण के समीप चला गया जहां जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता।

पूजा सामग्री का विवरण

सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की मूर्ति तांबा तथा पीतल का लोटा में जल पंचामृत रोली मोली चंदन पुष्प तुलसी के पत्ते आम और पान के पत्ते फल मिठाई नारियल लोंग इलाइची घी का दीपक अमन और आम के लकड़ी के टुकड़े होने चाहिए।

कैसे करें पूजा-पाठ 

सफला एकादशी व्रत नर और नारी दोनों को करना चाहिए। इस दिन निर्जला व्रत करते हुए शेषशाई रूप में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है। इस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम, का जाप करके गोदान वस्त्र दान, फल और अन्य सहित अन्य चीजों का दान करना चाहिए।

डिस्क्लेमर 

सफला एकादशी साल के अंतिम महीना दिसंबर माह में मनाया जाता है। कथा लिखने के दौरान विद्वान ब्राह्मणों और आचार्यों से विचार विमर्श कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेटस से भी सहयोग लिया गया है। कथा के संबंध में पूरी जानकारी दी गई है। यह लेख सिर्फ सनातन धर्म के अंतर्गत आने वाले त्योहारों की जानकारी देना मुख्य उद्देश्य है। इसकी सत्यता की गारंटी हम नहीं लेते हैं।

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