मकर संक्रांति के दिन ही अवतरित हुई थी गंगा
भगवान विष्णु ने मकर संक्रांति के दिन असुरों का किया था वध
मकर सक्रांति के दिन माता यशोदा ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए रखी थी व्रत
पितरों को करें तिल से तर्पण, मिलेगी मुक्ति
किस प्रदेश में किस नाम से जाना जाता है मकर संक्रांति
मकर संक्रांति इन देवताओं का करें पूजन
तिल खाने के औषधीय गुण
मकर संक्रांति के संबंध में पौराणिक कथा
चूड़ा में पाये जाते हैं कार्बोहाइड्रेट
भगवान भास्कर को खिचड़ी का भोग लगाना शुभ
मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा पूरा करती है
तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई थी
मकर संक्रांति के दिन कैसे करें पूजा, जानें विधि
मकर सक्रांति के दिन किस चीजों का करें दान
मकर सक्रांति के दिन चंद्रमा और सूर्य मकर राशि में
पूजा और तर्पण करने का शुभ मुहूर्त
भूलकर भी ना करें इस समय पूजा
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर जाते हैं। शनि देव मकर संक्रांति के देवता है। इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति कहा जाता है।
शनि देव को मकर और कुंभ राशि के स्वामी माना जाता है। जिस कारण से यह दिन पिता और पुत्र के अनोखे मिलन को दर्शाता है। कई जगहों पर इस त्यौहार को नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर मनाया जाता है।
वर्ष 2021 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को मकर संक्रांति त्योहार मनाया जाएगा। इसके अलावा मकर संक्रांति कथा के विषय में महाभारत में भी वर्णन मिलताा है। इसी दिन भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे।
मकर संक्रांति के दिन पितरों के उद्धार के लिए तिल से तर्पण करना शुभ होता है, क्योंकि महाराजा भागीरथ ने भी अपने पितरों के उद्धार के लिए इसी दिन तर्पण किया था। भगवान सूर्य, सूर्योदय के समय धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
इस दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाने की परंपरा है। परंपरा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन तिल से बने तिलकुट, चूड़ा, गुड़ और खिचड़ी खाने के साथ पतंग उड़ाने का भी विधान है। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन प्रयास और गंगासगर में स्नान का विशेष महत्व है।
जब सूर्य देव दक्षिणायन की ओर जाते हैं, अर्थात अशुभ। दक्षिण दिशा को यम का वास या यम के द्वार माना जाता है। नरक के द्वार पहुंचते ही यमदूत मृत आत्मा को लेने आते हैं। उत्तर दिशा स्वर्ग का द्वार माना जाता है। जहां, मृत आत्मा को लेने देवदूत आते हैं।
वर्ष को दो भागों में बांटा गया है, उत्तरायण और दक्षिणायन। मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा को पूरा करता है और उत्तर की ओर अग्रसर हो जाता है। इसलिए इस दिन से सूर्य उत्तर दिशा की ओर गतिमान हो जाता है। दक्षिणायन दिशा को दानव, दुष्ट और दुराचारियों का दिशा कहा जाता है जबकि उत्तरायण दिशा को देवताओं का दिशा माना जाता है। इसी दिशा में स्वर्ग लोक है।
संक्रांति कथा के विषय में महाभारत में भी वर्णन मिलता है। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के महान योद्धा और कौरव सेना के सेनानायक गंगापुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। संक्रांति की महत्ता को जानते हुए उन्होंने अपनी मृत्यु के लिए इसी दिन को निर्धारित किये थे।
वे जानते थे कि सूर्य दक्षिणायन होने पर व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है और उसे इस मृत्युलोक में पुनः जन्म लेना पड़ता है। महाभारत युद्ध के बाद जब सूर्य उत्तरायण हुआ तभी पितामह ने अपना प्राण त्यागे। वह दिन मकर संक्रांति था।
धार्मिक मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही मां गंगा स्वर्ग से अवतरित होकर राजा भागीरथ के पीछे पीछे कपिल मुनि के आश्रम होते हुए गंगासागर तक पहुंची थी।
मां गंगा के पवित्र जल से राजा भागीरथ ने अपने पितरों को तर्पण कर मोक्ष की प्राप्ति करा स्वर्ग लोक भेजने का काम किए थे। इसलिए मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर और प्रयागराज में स्नान करना काफी शुभ माना जाता है। भविष्य पुराण में गंगासागर और प्रयागराज में मकर संक्रांति पर्व के मौके पर गंगा स्नान करने का उल्लेख मिलता है।
मकर सक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। श्रीहरि ने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
यशोदा मां ने श्रीकृष्ण जन्म के बाद, प्राप्ति लिए व्रत रखी थी। उस समय भगवान सूर्य उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। तभी से मकर सक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ है। कहा जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई थी। इसलिए इसका प्रयोग करने से पापों से मुक्ति मिलती है। तिल का उपयोग से शरीर निरोग रहता है और शरीर में गर्मी आती है।
मकर संक्रांति के दिन पितरों को तिल से तर्पण करना काफी शुभ होता है। इसी दिन महाराजा भागीरथ में अपने पितरों के लिए तर्पण किया था। तर्पण विधि पूर्वक करनी चाहिए, क्योंकि भगवान सूर्य सूर्योदय के समय धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस लिए सूर्योदय के समय ही पितरों को तर्पण करनी चाहिए। इसी दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रांति पर्व अलग-अलग तरह से मनाये जाते हैं। आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में संक्रांति कहा जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में लोग मनाते है। पंजाब और हरियाणा में लोहरी, असम में बिहू। मध्य भारत सहित बिहार और यूपी में मकर संक्रांति के नाम से प्रचलित है।
मकर संक्रांति के दिन भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान गणेश, आदि शक्ति माता और सूर्य आराधना करने का दिन माना जाता है। इस दिन पितरों का तर्पण करने से, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मकर सक्रांति के दिन तिल खाने, लगाने और स्नान करने का धार्मिक, अध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। जानें तिल में और कौन-कौन से औषधीय गुण है। तिल में कई तरह के पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, कैल्शियम, काम्प्लेक्स बी, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, जिंक, कॉपर और मैग्नीशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। तिल में मोनो सैचुरेटेड फैटी एसिड होता है।
गुड़ का तासीर गर्म है। गुड़ में लवण, मैग्नेशियम, आयरन, विटामिन ए, बी, लौह तत्व, पोटेशियम, गंधक, फासफोरस और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। गुड़ खाने से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।
मकर संक्रांति के दिन तिलकुट और गुड़ के साथ चूड़ा का भी सेवन किया जाता है। चूड़ा में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी, मैंगनीज, फास्फोरस, आयरन, फाइबर, फैटी एसिड आदि तत्व पाए जाते हैं। चूड़ा खाने से पित्त को शांत करता है, यह शरीर को बल देता है।
मकर संक्रांति के दिन अहले सुबह स्नान करने विधान है। इस दिन नदी, सरोवर, कुआं या घर में गंगाजल और तिल डालकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद पितरों को तिल मिले जल से तर्पण करना चाहिए। भगवान ब्रह्मा, विष्णु, शिव, आदिशक्ति माता, शनि देव, और भगवान सूर्य को विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
पौष मास, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा तिथि, गुरुवार दिन 14 जनवरी को मकर संक्रांति पढ़ रही है। किस दिन सूर्य सुबह 8:30 बजे तक धनु राशि में रहेंगे, इसके बाद मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा। चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे। इस दिन नक्षत्र श्रवण, योग वज्र, ऋतु शिशिर और सूर्योदय सुबह 7:11 पर होगा।
मकर संक्रांति के दिन सुबह 7:10 से लेकर 8:30 तक शुभ मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजा और तर्पण लोग कर सकते हैं। इसके बाद दिन के 11:00 बजे से लेकर के शाम 3: 18 बजे तक अच्छा मुहूर्त है।
मसलन चर मुहूर्त 11:14 से लेकर 12:35 तक, लाभ मुहूर्त 12:35 से लेकर 1:57 तक और अमृत मुहूर्त 1:57 से लेकर 3:18 तक रहेगा। इसके बाद संध्या 4:40 से लेकर 6:00 बजे तक शुभ मुहूर्त का एक बार फिर संजोग बन रहा है। इस समय पूजा, दान और तर्पण करना धर्म सम्मत रहेगा।