गोवर्धन पूजा व अन्नकूट महोत्सव 15 को

गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव 15 नवंबर को मनाया जाएगा इस दिन गौ सेवा करना फलदाई रहेगा।

 कार्तिक मास प्रतिपदा तिथि दिन सोमवार को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव मनाया जाएगा।

 सोमवार को सुबह उठकर गोपालक सबसे पहले अपने जानवरों को शुद्ध जल से स्नान कराकर उसके सिर में घी का लेप लगाते हैं।

 इसके बाद उसके शरीर पर विभिन्न तरह के रंगों से भरे हुए चित्रकारी चलते हैं। और पैरों में घुंघरू बांध ते हैं। साथ ही तरह-तरह के सजावट के सामान अपने जानवरों के शरीर पर सजाते हैं।

पौराणिक कथाओं की जानकारियां

गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव का विस्तार से वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में किया गया है। कथा के अनुसार नंद जी ने सभी ग्वालों से कहे कि अब समय आ गया है। इंद्र को याद कर उन्हें खुश किया जाए।

 इस विषय पर श्री कृष्ण ने कहा कि संसार की स्थिति, उत्पत्ति और उसके अंत क्रमशः सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण में है। यह संपूर्ण जगत स्त्री और पुरुष के संजोग से रजोगुण द्वारा उत्पन्न होता है। उसी रजोगुण की प्रेरणा से मेघगण सभी जगहों पर जल बरसाते हैं। उसी से अन्न और अन्न से ही सभी जीवों की जीविका चलती है।

 इसमें भला इन्द्र का क्या लेना-देना है। पिताश्री न तो हमारे पास किसी देश का राज्य है। और ना तो बड़े-बड़े नगर ही हमारे अधीन है। हमारे पास गांव या घर भी नहीं है। इसलिए हम लोगों गौओं, ब्राह्मणों और गिरिराज का पूजा करने की तैयारी करें। इंद्र यज्ञ के लिए जो सामग्रियों इकट्ठा की गई है। उन्हीं से इस यज्ञ का अनुष्ठान होने दें।

 पूजा के लिए खीर, हलवा, पुआ, पूरी आदि से लेकर मूंग की दाल तक बनाए जाएं। ब्रज का सारा दूध एकत्र कर लिया जाए। वेदवादी ब्राह्मणों के द्वारा भांति भांति हवन कराया जाए तथा उन्हें अनेकों प्रकार के अन्न, गाय और दक्षिण दी जाए।

 अंत में सज धज कर सभी गोपी और गोपिया गोवर्धन की परिक्रमा करें। यह मेरी इच्छा है इसे करने से गौ, ब्राम्हण और गिरिराज को भी प्रिय लेगा और मुझे भी बहुत पसंद आएगा। श्रीकृष्ण की इच्छा थी कि इंद्र का घमंड चूर चूर कर दें। नंद बाबा सहित सभी गोपों ने उनकी बात सुनकर बड़ी प्रसन्नता से स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण के कहे अनुसार यज्ञ प्रारंभ किया गया।

श्रीकृष्ण ने धारे गिरिराज का रूप

श्री कृष्ण ने गोप और गोपियों को विश्वास दिलाने के लिए गिरिराज के ऊपर एक दूसरा विशाल शरीर धारण करके प्रकट हो गए। तथा मैं हूं गिरिराज ? इस प्रकार कहते हुए सारी सामग्री खाने लगे। भगवान श्री कृष्ण ने अपने उस स्वरूप को दूसरे व्रजवासियों के साथ स्वयं भी प्रणाम किया और कहने लगे देखो कैसा आश्चर्य है।

 गिरिराज को साक्षात प्रकट होकर हम पर कृपा की है। यह चाहे जैसा रूप धारण कर सकते हैं। जो बनवासी जीव इसका निरादर करते हैं, उन्हें यह नष्ट कर डालते हैं। आओ अपना और अपने गौओं का कल्याण करने के लिए इस गिरिराज को हम नमस्कार करें।

गुस्से में इंद्र ने की भीषण बारिश

जब इंद्र को पता चला कि मेरी पूजा बंद कर दी गई है। तब नंद बाबा और गोपों पर बहुत ही क्रोधित हुए। इन्द्र को अपने पद का बड़ा घमंड था। वह समझते थे कि मैं ही त्रिलोकी का ईश्वर हूं। इन्द्र ने क्रोध से  तिलमिलाकर प्रलय करने वाले मेघों और सांवर्तक नामक गणों को व्रज पर चढ़ाई करने का आज्ञा दी। इन्द्र ने गुस्से में भरकर कहा को ओह जंगली वालों को इतना घमंड सचमुच यह धन का नाश है।

 भला देखो तो सही एक साधारण मनुष्य कृष्ण के बल पर उन्होंने मुझे देवराज का अपमान कर डाला। कृष्ण बकवादी, नादान, अभिमानी और मूर्ख होने पर भी अपने को बहुत बड़ा ज्ञानी समझता है। वह स्वयं मृत्यु का ग्रास है। फिर भी उसी का सहारा लेकर इन अहीरों ने मेरी अवहेलना की है।

सात दिनों तक होती रही बारिश, भगवान ने उठाए रखें पर्वत को

भीषण बारिश होते देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने खेल खेल में एक ही हाथ से गिरिराज गोवर्धन को अखाड़ा कर हाथ में रख लेते हैं। उन्होंने उस पर्वत को धारण कर लिया। इसके बाद भगवान ने गोपों से कहा माता जी, पिता जी और ब्रजवासियों तुम लोग अपनी गोवधन, सब सामग्रियों के साथ इस पर्वत के गड्ढे में आकर आराम से बैठ जाओ।

 भगवान श्रीकृष्ण के आश्वासन देने पर सब के सब ग्वालों ने अपने-अपने गोधन, आश्रितों, पुरोहित और बच्चों महिलाओ को अपने साथ लेकर गोवर्धन के गड्ढे में आ घुसे। श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक लगातार उस पर्वत को उठा रखा। एक पग भी वहां से इधर-उधर नहीं हुए।

 श्रीकृष्ण की योग माया का प्रभाव देखकर इंद्र को आश्चर्य का ठिकाना न रहा। इसके बाद मेघों को वर्षा रोकने का आदेश दिया। भीषण तूफान बंद हो गया। सूर्य दिखने लगे। इससे बाल गोपाल काफी खुश हो गए, इसके बाद श्रीकृष्ण ने कहा बचे हुए सामग्रियों को लेकर आप अपने घर लौट सकते हैं क्योंकि सभी नदी नाले में पानी कम हो गया है।

सात दिनों तक चला अन्नकूट महोत्सव

7 दिनों तक बृजवासी गोवर्धन पर्वत के नीचे आसरा लिए हुए थे। इस दौरान उन्होंने अपने साथ लाए सामग्रियों का एक जगह इकट्ठा कर भोजन बनाकर आपस में मिल बांट कर खाने लगे यह अन्नकूट महोत्सव 7 दिनों तक चलता रहा।

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